मुंबई (Mumbai), ऐसा लगता है कि अब शेष भारत (India) का हिस्सा नहीं बल्कि बपौती बन चुका है, चंद क़द्दावर रसूख़दारों का. अगर आप मुंबई या महाराष्ट्र (Maharashtra) में नहीं जन्मे या किसी दूसरे राज्य से यहां आयें हैं तो आप को इस शहर के सो-कॉल्ड मसीहाओं के तलवों के नीचे रहने की आदत डाल लेनी चाहिए. आप हिंदुस्तानी हो कर भी मुंबई में दोयम दर्ज़े के नागरिक माने जाएंगे क्योंकि आप इस शहर से नहीं हैं. ऐसा मैं अपने मन से नहीं बोल रही हूं, ये सामना में छपे आदरणीय संजय राउत (Sanjay Raut) जी के लिखे एडिटॉरीयल जो उन्होंने सुशांत सिंह राजपूत (Sanjay Singh Rajput) के लिए लिखा था, उसे पढ़ कर मुझे लग रहा है. उनके हिसाब से कुछ चीजें ऐसी हैं जिनको अगर आप पूरा नहीं करते तो आपको न तो मुंबई में रहने का हक़ है और न इंसाफ़ मांगने का. देखिए, बक़ौल संजय साहेब सबसे पहले तो वहीं सुशांत का केस वहीं कमज़ोर या बेक़ार सा साबित हो जाता है, जैसे ही ठाकरे परिवार (Thakarey Family) का नाम उस जैसे छोटे शख़्स की मौत से जुड़ता है. सुशांत राजपूत कौन सा इतना बड़ा स्टार था कि उस जैसे की मौत में मुंबई के मसीहाओं को अपना हाथ गंदा करना पड़े.
मतलब इसको ऐसे समझिए, आदरणीय संजय जी कहते हैं कि सुशांत था कौन? बिहार ने उसको दिया क्या था? वो जो भी बना, जो भी कमाया वो मुंबई से कमाया अर्थात् अब अगर वो मुंबई में मर भी गया तो क्या ज़ुल्म हो गया? उस जैसे हज़ारों लोग आते-जाते मरते रहते हैं. तो क्या इसके लिए संजय जी के भगवान, ठाकरे परिवार पर आप ऊंगली उठाएंगे. आप की इतनी हिम्मत. आपको तो उसी एहसान के तले दबे रहना चाहिए कि आप बिहार में भूखों मरते कम से कम मुंबई ने आपको काम तो दिया. तो क्या हुआ...
मुंबई (Mumbai), ऐसा लगता है कि अब शेष भारत (India) का हिस्सा नहीं बल्कि बपौती बन चुका है, चंद क़द्दावर रसूख़दारों का. अगर आप मुंबई या महाराष्ट्र (Maharashtra) में नहीं जन्मे या किसी दूसरे राज्य से यहां आयें हैं तो आप को इस शहर के सो-कॉल्ड मसीहाओं के तलवों के नीचे रहने की आदत डाल लेनी चाहिए. आप हिंदुस्तानी हो कर भी मुंबई में दोयम दर्ज़े के नागरिक माने जाएंगे क्योंकि आप इस शहर से नहीं हैं. ऐसा मैं अपने मन से नहीं बोल रही हूं, ये सामना में छपे आदरणीय संजय राउत (Sanjay Raut) जी के लिखे एडिटॉरीयल जो उन्होंने सुशांत सिंह राजपूत (Sanjay Singh Rajput) के लिए लिखा था, उसे पढ़ कर मुझे लग रहा है. उनके हिसाब से कुछ चीजें ऐसी हैं जिनको अगर आप पूरा नहीं करते तो आपको न तो मुंबई में रहने का हक़ है और न इंसाफ़ मांगने का. देखिए, बक़ौल संजय साहेब सबसे पहले तो वहीं सुशांत का केस वहीं कमज़ोर या बेक़ार सा साबित हो जाता है, जैसे ही ठाकरे परिवार (Thakarey Family) का नाम उस जैसे छोटे शख़्स की मौत से जुड़ता है. सुशांत राजपूत कौन सा इतना बड़ा स्टार था कि उस जैसे की मौत में मुंबई के मसीहाओं को अपना हाथ गंदा करना पड़े.
मतलब इसको ऐसे समझिए, आदरणीय संजय जी कहते हैं कि सुशांत था कौन? बिहार ने उसको दिया क्या था? वो जो भी बना, जो भी कमाया वो मुंबई से कमाया अर्थात् अब अगर वो मुंबई में मर भी गया तो क्या ज़ुल्म हो गया? उस जैसे हज़ारों लोग आते-जाते मरते रहते हैं. तो क्या इसके लिए संजय जी के भगवान, ठाकरे परिवार पर आप ऊंगली उठाएंगे. आप की इतनी हिम्मत. आपको तो उसी एहसान के तले दबे रहना चाहिए कि आप बिहार में भूखों मरते कम से कम मुंबई ने आपको काम तो दिया. तो क्या हुआ बदले में आप थोड़ा मर ही गए.
फिर एक बार जो आप मुंबई आए और यहां सफल हो गए तो आप पर आपके अपने राज्य या शहर का हक़ नहीं रह जाता. आप मुंबई का ग़ुलाम हो जाते हैं. आप पर मालिकाना हक़ मुंबई का होगा और इस सूरत में भी अगर आप यहां मरते हैं तो आपको इंसाफ़ मिलेगा या नहीं मिलेगा ये मुंबई शहर के आका तय करेंगे. जो मर गया उसके बाप को भी ये हक़ नहीं है कि वो एफ़आईआर दर्ज करवा सके.
ऊपर से ये हक़ तब और भी छोटा हो जाता है जब आपके ख़ानदान में किसी ने दो शादियां कर लीं हैं. वैसे ये रूल सिर्फ़ मुंबई से बाहर वालों के लिए है मुंबई के फ़र्स्ट-क्लास सिटिज़न जितने चाहे ब्याह कर सकते हैं, लिव-इन में रह सकते हैं इनके लिए सब जायज़ है. हां, तो मैं कह रही थी कि संजय साहेब ऐसा मानते हैं कि सुशांत के पिता ने दो शादियां की थी इसलिए सुशांत को इंसाफ़ नहीं मिलना चाहिए.
वैसे आप सब की जानकारी के लिए बता दूं कि सुशांत के पिता ने कोई दूसरी शादी नहीं की थी लेकिन ये शहर संजय साहेब का है तो यहां क़ानून भी उन्हीं के हिसाब से चलेगा. उनको इस बात से बहुत शिकायत है कि सुशांत जैसे छोटे-मोटे कलाकार की मौत पर सीबीआई जांच क्यों कर रही है? क्या सीबीआई को और काम नहीं है? ऊपर से मुंबई पुलिस ख़ुद में ही इतनी महान है कि वो सारे मिस्ट्री चुटकी बजा कर ही सॉल्व कर लेती है.
जैसे गुलशन कुमार की हत्या का केस सुलझा लिया, दिव्या भारती की मौत का रहस्य भी अगले दिन ही बता दिया था, श्री देवी की मौत के बारे में दूध का दूध और पानी का पानी कर दिया था, तो इस छोटे से बिहारी ऐक्टर की मौत की गुत्थी क्यों नहीं सुलझा पाएगी.
वैसे बात तो सही है संजय राउत जी की, जैसे ही आप मुंबई के नहीं होते हैं और न ही किसी पैसे वाले के बेटे होते हैं और न ही कोई स्टार-किड तो आपकी औक़ात इस शहर में कीड़े-मकौड़े से ज़्यादा होती नहीं है. आप के साथ न्याय हो इसके चांसेस आधा तभी हो जाता है जब आप किसी दूसरे राज्य से किसी बड़े शहर में अपनी क़िस्मत आज़माने आते हैं.
आपके साथ जब इन बड़े शहरों में कोई दुर्घटना घटती है तो शहर के आका ये कहते नज़र आते हैं कि अगर इतनी ही दिक्कत है इन्हें तो यहां आते ही क्यों हैं? हम क्या बुलाने गए थे. तो संजय साहेब जो सुशांत सिंह के लिए कह रहें हैं न वो कुछ ग़लत नहीं कह रहें हैं.
और संजय राऊत जैसे लोग कभी ग़लत हो भी नहीं सकते क्योंकि उनके पास पैसा है, पॉवर है सुशांत के घरवालों के पास क्या है? हर बीतते दिन के साथ सुशांत को न्याय मिलेगा ये धुंध और गहराती जा रही है वैसे उसे इंसाफ़ न भी मिलेगा तो क्या ज़ुल्म हो जाएगा? वो कौन सा किसी नेता या महान अभिनेता का बेटा था? उसकी मुंबई में औक़ात ही क्या थी?
वो मिडिल क्लास फ़ैमिली का एक लड़का था जिसने अपनी मेहनत के दम पर फ़र्श से अर्श तक सफ़र तय किया लेकिन वो भूल गया था कि सब कुछ हासिल कर लेने का बाद भी वो वही मिडिल-क्लास टाइप रह जाएगा. उसके जीने-मरने से मुंबई जैसे शहर के बड़े लोगों पर कोई फ़र्क़ नहीं पड़ेगा. बल्कि उसकी मौत कैसे हुई ये जानने कि कोशिश जो उसका बूढ़ा बाप करेगा तो उसे ही कठघरे में ये शहर उतार देगा. ख़ैर.
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