राजनीति (Politics) की दुनिया में आज अपर्णा यादव (Aparna Yadav) के नाम की हर ओर चर्चा है. वो अपर्णा जिसे अकेले घर से बाहर नहीं जाने दिया जाता था. वो अपर्णा जो घर की लाडली थीं. वो अपर्णा जो एटीएम से पैसे निकालने में भी घबरा जाती थीं, इसलिए अपने साथ किसी को साथ लेकर घर से बाहर जाती थीं. वो इतनी सीधी औऱ शांत थी कि घरवालें उन्हें अकेला छोड़ना नहीं चाहते थें.
वो जब भी घर से बाहर जाती थीं तो परिवार को उनकी चिंता रहती थी. आज उसी अपर्णा ने यूपी चुनाव से पहले अपने सपा कुनबे को छोड़ बीजेपी (Bjp) का दामन जो थाम लिया है. वो अपर्णा पूरी दुनिया के सामने कहती हैं कि उनके लिए सबसे पहले राष्ट्र धर्म आता है.
वो सीधी-साधी अपर्णा अब एक मजबूत महिला नेता बन गई हैं. जो अपने फैसले खुद लेने की क्षमता रखती हैं. जो आत्मनिर्भर हैं. जो बेबाकी से अपनी बात रखने का साहस रखती है. जो दुनिया को जवाब देना जानती है. जो अकेले पूरी जनता को संभाल सकती है.
असल में किसी महिला के मजबूत होने से मतलब उसके शारीरिक बल से नहीं होता है. मजबूत वह महिला होती है जो अपन सारे काम खुद कर सकती है, जो बैंक में खुद अपना फ़ॉर्म भप सकती है, जो बाइक चला सकती है और कार भी, जिसे कहीं बाहर जाने के लिए किसी सहारे की जरूरत न पड़े, वह महिला जो अपने खर्चे खुद उठा सकती है, जो अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जी सकती है...कोई भी महिला एकदम से मजबूत नहीं हो जाती है. वह हालातों से जुजरती है. जमाने की ठोकर खाती है. उसे स्ट्रगल भी करना पड़ता है. वह रोती है, चीखती है और अंत में अपने अस्तित्व को पा लेती है.
ससुराल के खिलाफ कोई भी फैसला लेना आसान होता...
राजनीति (Politics) की दुनिया में आज अपर्णा यादव (Aparna Yadav) के नाम की हर ओर चर्चा है. वो अपर्णा जिसे अकेले घर से बाहर नहीं जाने दिया जाता था. वो अपर्णा जो घर की लाडली थीं. वो अपर्णा जो एटीएम से पैसे निकालने में भी घबरा जाती थीं, इसलिए अपने साथ किसी को साथ लेकर घर से बाहर जाती थीं. वो इतनी सीधी औऱ शांत थी कि घरवालें उन्हें अकेला छोड़ना नहीं चाहते थें.
वो जब भी घर से बाहर जाती थीं तो परिवार को उनकी चिंता रहती थी. आज उसी अपर्णा ने यूपी चुनाव से पहले अपने सपा कुनबे को छोड़ बीजेपी (Bjp) का दामन जो थाम लिया है. वो अपर्णा पूरी दुनिया के सामने कहती हैं कि उनके लिए सबसे पहले राष्ट्र धर्म आता है.
वो सीधी-साधी अपर्णा अब एक मजबूत महिला नेता बन गई हैं. जो अपने फैसले खुद लेने की क्षमता रखती हैं. जो आत्मनिर्भर हैं. जो बेबाकी से अपनी बात रखने का साहस रखती है. जो दुनिया को जवाब देना जानती है. जो अकेले पूरी जनता को संभाल सकती है.
असल में किसी महिला के मजबूत होने से मतलब उसके शारीरिक बल से नहीं होता है. मजबूत वह महिला होती है जो अपन सारे काम खुद कर सकती है, जो बैंक में खुद अपना फ़ॉर्म भप सकती है, जो बाइक चला सकती है और कार भी, जिसे कहीं बाहर जाने के लिए किसी सहारे की जरूरत न पड़े, वह महिला जो अपने खर्चे खुद उठा सकती है, जो अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जी सकती है...कोई भी महिला एकदम से मजबूत नहीं हो जाती है. वह हालातों से जुजरती है. जमाने की ठोकर खाती है. उसे स्ट्रगल भी करना पड़ता है. वह रोती है, चीखती है और अंत में अपने अस्तित्व को पा लेती है.
ससुराल के खिलाफ कोई भी फैसला लेना आसान होता है?
वैसे क्या किसी भी महिला के लिए अपने ससुराल के खिलाफ कोई भी फैसला लेना आसान होता है? यह सभी जानते हैं कि अपर्णा यावद का रूझान पहले से ही भाजपा की तरफ था फिर भी उन्होंने यह फैसला लेने में कितना समय लगा दिया. जिन लोगों को सपा परिवार के अंदरूनी समझौते के बारे में नहीं पता है उन्होंने अपर्णा के बीजेपी ज्वाइन करने पर खूब खरी-खोटी भी सुनाई. यकीन ना हो तो किसी आम घर की महिला से पूछ कर देखिएगा कि अपना घर छोड़कर किसी और के घर का साथ देने पर उसे जामने के क्या-क्या ताने सुनने को मिलते हैं.
भले ही अखिलेश यादव आज अपर्णा को बीजेपी ज्वाइन करने पर बधाई देते हुए यह कह रहे हैं कि उनके बीजेपी में शामिल होने पर पार्टी को कुछ ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ा है, लेकिन पिछली बार इसी घरेलू कलह की वजह से उनका काफी नुकसान हुआ और वे चुनाव हार गए. अखिलेश यादव और चचा शिवपाल यादव के आपसी कलह की वजह से ही बीजेपी लहर में सपा को करारी हार का सामना करना पड़ा था.
अखिलेश जी ने अपर्णा यादव के बीजेपी ज्वाइन करने पर कहा था कि नेती जी ने उन्हें समझाने की बहुत कोशिश की थी. इसके बाद ही एक फोटो वायरल हुई जिसमें अपर्णा यादव अपने पिता समना ससुर मुलायम सिंह यादव से आशीर्वाद लेती नजर आईं, अब इस फोटो के बारे में अखिलेश यादव जो भी कहें लेकिन जनता तो समझ ही गई है.
अपर्णा की कहानी शुरु से
- अपर्णा मूल रूप से उत्तराखंड की रहने वाली हैं. वह राजपूत परिवार से थीं. उन्होंने मुलायम सिंह यादव के छोटे बेटे और अखिलेश यादव के छोटे भाई प्रतीक से लव मैरिज की है. अब उनका सरनेम यादव है.
- अपर्णा के पिता अरविंद सिंह बिष्ट पत्रकार रहे हैं. वे लखनऊ में रहकर पत्रकारिता करते थे. अपर्णा की परवरिश भी लखनऊ में ही हुई है. वे अपने पिता से प्रभावित रही हैं और इसलिए उनका रूझान राजनीति की तरफ आय़ा.
- अपर्णा लखनऊ के लॉरेटो कॉन्वेंट से पढ़ी हैं, उन्होंने एक बार कहा था कि वे अपने परिवार की लाडली थीं. परिवार के लोग उनकी काफी चिंता करते थे. वे जहां भी जाती उनके साथ कोई ना कोई साथ जाता था.
- अपर्णा ने बताया था कि इस दुलार के कारण ही मैं 18 साल की उम्र तक डेबिट कार्ड यूज करना ही नहीं जानती थी. मैं एटीएम से पैसे भी नहीं निकाल पाती थी.
- अपर्णा लाडली थीं, उन्हें तो साड़ी बांधने भी नहीं आती थी लेकिन घर की दूसरी महिलाओं ने उन्हें काफी मदद की और आज वे राजनीति कर रही हैं.
- अपर्णा यादव और प्रतीक ने साल 2012 में शादी की थी. इसके बाद ही सीधी साधी अपर्णा की जिंदगी में बदलाव हुआ. प्रतीक यादव ने हमेशा ही पत्नी की तरफदारी की है. दोनों की एक बेटी हैं. जिसका नाम प्रथमा है.
- अपर्णा के बीजेपी में शामिल होने के पीछे कुछ वजहें सामन आईं हैं. जिसके तार उनकी सासू मां साधना गुप्ता से जुड़े हैं. जिसके अनुसार, अमर सिंह ने साधना यादव को सपा परिवार में एंट्री दिलाई थी, क्योंकि अखिलेश यादव इसके खिलाफ थे. अमर सिंह ने ही अखिलेश यादव को मनाया. इस समय परिवार को साथ रखने के लिए एक समझौता भी हुआ था.
- समझौते के अनुसार, पिता की राजनीतिक विरासत के इकलौते वारिस अखिलेश यादव होंगे. जबकि साधना के बेटे प्रतीक यादव कभी भी राजनीति में नहीं आएंगे. उसी वक्त प्रॉपर्टी को भी दोनों भाइयों में बराबर बांट दिया गया.
- प्रतीक यादव लगातार कहते रहे कि ने कभी राजनीति में नही आएंगे और अपर्णा के सियासी भविष्य का फैसला नेता और खुद अपर्णा कर सकती हैं. पत्रकार की बेटी अपर्णा हमेशा से राजनीतिक पार्टी में अपनी जेठानी डिंपल यादव की तरहृ आधिकार चाहती थीं.
- अपने इसी जिंद की वजह से अपर्णा को मुलायम सिंह यादव ने 2017 में पार्टी का टिकट दिलवाया था, लेकिन वे चुनाव हार गईं. इसके बाद उन्होंने आरोप लगाया था कि अखिलेश यादव नहीं चाहते थे कि वो चुनाव जीतें. इसके बाद ही उन्होंने अपने ऊपर काम करना शुरु कर दिया थी. वे शांत होने के बदले बोलने लगी थीं. वे 2014 के बाद से ही प्रधानमंत्री मोदी की तारीफ करने लगी थीं. उनका रूझान बदल गया था. उन्होंने 2017 में योगी सरकार बनने के बाद भी CM योगी से मुलाकात भी की थी.
- चर्चा यह भी है कि अखिलेश यादव ने इस बार परिवार के किसी भी सदस्य को टिकट ना देने का फैसला किया. अपर्णा राजनीति में अपना करियर बनाने की कोशिश में थी ऐसे में पार्टी का यह फैसला उन्बें बेहद परेशान कर रहा था. कहा जा रहा है कि इसके बाद ही वे भाजपा के संपर्क में आईं और अब पार्टी में शामिल होने का फैसला किया.
अपर्णा और प्रतीक यादव की फिल्मी प्रेम कहानी
जिसके बाद इनकी जिंदगी बदल गईप्रतीक यादव से अपर्णा की मुलाकात लखनऊ में स्कूल के दिनों में हुई थी. उस वक्त दोनों एक स्कूल में नहीं पढ़ते थे लेकिन इंटर स्कूल फंक्शन्स में मिला करते थे. उस वक्त अपर्णा को पता भी नहीं था कि वे मुलामय सिंह यादव के परिवार से हैं. साल 2001 में एक बर्थडे पार्टी में प्रतीक ने उनसे मेल आईडी मांगी थी. तब मोबाइल का जमाना जो नहीं था. जब अपर्णा ने अपना मेल देखा तो इनका मेलबॉक्स प्रतीक के मैसेज से भरा था. जिसमें उन्होंने अपने प्यार का इजहार किया था.
दोनों एक-दूसरे के दोस्त बने रहे. दोनों ने 10 सालों बाद 2011 में सगाई की और फिर परिवार की मर्जी से साल 2012 में शादी कर ली. अपर्णा राजपूत परिवार से हैं जबकि पति प्रतीक, यादव हैं.
कोई भी महिला अगर यह इरादा कर ले कि उसे यह हांसिल करना है तो वह कर सकती है. अपने आज के हालात पर मत जाइए क्योंकि आप आने वाले कल की हीरो हो सकती हैं. अपने हौंसले को बुलंद कीजिए, थोड़ी मेहनत कीजिए औऱ देखिए मंजिल आपका इंतजार कर रही है. आप आज कमजोर हो सकती हैं लेकिन कल को एक मजबूत महिला भी बन सकती हैं. यकीन ना हो तो आज की आदर्श मानी जाने वाली किसी भी महिला की कहानी पढ़ सकती हैं.
वैसे अपर्णा यादव ने तो अभी एक झलक ही दिखाई है इनकी असली उड़ान तो अभी बाकी है. अपने अधिकार के लिए अपनों के खिलाफ जाने की हिम्मत करना सबके बस की बात नहीं...मंजिल तो पाना ही है चाहें रास्ता क्यों न बदलना पड़े. महिला हैं तो किसी के हुकुम को मानकर गुलामी करेंगे, ये कैसे सोच लिया किसी ने? अपर्णा को ही देखिए...
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