रविवार को दिल्ली के मुखर्जी नगर थाने के बाहर जो घटना हुई, उसे एक धर्म विशेष से जोड़ कर देखने की जगह अलग नज़रिए से समझने की ज़रूरत है. ये एक टेस्ट केस है जो हमारे समाज के तमाम मूल्यों के अधोपतन का संकेत कर रहा है? बता रहा है कि कैसे हम सामुदायिक प्राणी के तौर पर नाकाम हो रहे हैं.
ग्रामीण वाहन सेवा (टैम्पो) के सिख ड्राइवर सरबजीत सिंह की गलती थी या पुलिस की, सवाल इससे कहीं बड़ा है. सवाल ये है कि हर घटना, हर अपराध का आकलन करने से पहले ये देखा जाएगा कि उसमें जो शामिल हैं, उनका धर्म क्या है. आख़िर हुआ क्या था जो सरबजीत सिंह पुलिस वालों को तलवार दिखाते हुए ललकारने लगा. सब कुछ साफ तो जांच के बाद ही होगा. लेकिन घटना के जो वीडियो सामने आए हैं और जो थ्योरी पेश की गई है, उनसे एक मोटी समझ बनती है.
वीडियो के आधार पर ये थ्योरी पेश की गई है
कहा जा रहा है कि पुलिस के वाहन और टैम्पो मामूली तौर पर टकराए तो पुलिस वालों ने कुछ कहा. इसपर सरबजीत सिंह ने आपा खोया और तलवार हाथ में लेकर पुलिस को ललकारने लगा. इससे पहले स्थिति काबू से बाहर होती, सरबजीत सिंह के 15 वर्षीय लड़के बलवंत सिंह ने समझदारी दिखाई और पिता को खींचता हुआ वहां से ले गया.
इसके बाद थाने से चार-पांच पुलिसवाले हाथ में डंडे, पिस्तौल लेकर निकलते हैं. सरबजीत के टैम्पो तक पहुंच जाते हैं. सरबजीत फिर तलवार लहराता पुलिस वालों की तरफ भागता है. पुलिसवाले पीछे हटते हैं. लेकिन सादे कपड़े पहने एक पुलिसवाला तलवार पकड़े सरबजीत को पीठ के पीछे से पकड़ लेता है. सरबजीत फिर भी हाथ-पैर मारता रहता है. सरबजीत का बेटा बलवंत पुलिसवालों से उसे छुड़ाने की कोशिश करता है. लेकिन पुलिसवाले...
रविवार को दिल्ली के मुखर्जी नगर थाने के बाहर जो घटना हुई, उसे एक धर्म विशेष से जोड़ कर देखने की जगह अलग नज़रिए से समझने की ज़रूरत है. ये एक टेस्ट केस है जो हमारे समाज के तमाम मूल्यों के अधोपतन का संकेत कर रहा है? बता रहा है कि कैसे हम सामुदायिक प्राणी के तौर पर नाकाम हो रहे हैं.
ग्रामीण वाहन सेवा (टैम्पो) के सिख ड्राइवर सरबजीत सिंह की गलती थी या पुलिस की, सवाल इससे कहीं बड़ा है. सवाल ये है कि हर घटना, हर अपराध का आकलन करने से पहले ये देखा जाएगा कि उसमें जो शामिल हैं, उनका धर्म क्या है. आख़िर हुआ क्या था जो सरबजीत सिंह पुलिस वालों को तलवार दिखाते हुए ललकारने लगा. सब कुछ साफ तो जांच के बाद ही होगा. लेकिन घटना के जो वीडियो सामने आए हैं और जो थ्योरी पेश की गई है, उनसे एक मोटी समझ बनती है.
वीडियो के आधार पर ये थ्योरी पेश की गई है
कहा जा रहा है कि पुलिस के वाहन और टैम्पो मामूली तौर पर टकराए तो पुलिस वालों ने कुछ कहा. इसपर सरबजीत सिंह ने आपा खोया और तलवार हाथ में लेकर पुलिस को ललकारने लगा. इससे पहले स्थिति काबू से बाहर होती, सरबजीत सिंह के 15 वर्षीय लड़के बलवंत सिंह ने समझदारी दिखाई और पिता को खींचता हुआ वहां से ले गया.
इसके बाद थाने से चार-पांच पुलिसवाले हाथ में डंडे, पिस्तौल लेकर निकलते हैं. सरबजीत के टैम्पो तक पहुंच जाते हैं. सरबजीत फिर तलवार लहराता पुलिस वालों की तरफ भागता है. पुलिसवाले पीछे हटते हैं. लेकिन सादे कपड़े पहने एक पुलिसवाला तलवार पकड़े सरबजीत को पीठ के पीछे से पकड़ लेता है. सरबजीत फिर भी हाथ-पैर मारता रहता है. सरबजीत का बेटा बलवंत पुलिसवालों से उसे छुड़ाने की कोशिश करता है. लेकिन पुलिसवाले फिर सरबजीत की जमकर धुनाई करते हैं. सरबजीत जिस पुलिसवाले ने उसे पीछे से पकड़ रखा था, उसपर एक दो वार भी कर देता है. इस बीच पिता को बुरी तरह घिरा देख बलवंत टैम्पो को पुलिसवालों से भिड़ा देता है. फिर पुलिस अपना बर्बर चेहरा दिखाते सरबजीत की लात-मुक्कों, डंडों से जमकर धुनाई करती है. सड़क पर घसीटती है. इसमें सरबजीत की पगड़ी भी खुल जाती है. बलवंत के टैम्पो भिड़ाने की वजह से उसकी भी एक-दो पुलिसवाले पिटाई करते दिखते हैं. आख़िर पुलिस सरबजीत पर काबू पा लेती है. ये सब किसी निर्जन स्थान पर नहीं वाहनों से भरी सड़क पर हो रहा था.
सिख समेत कई चश्मदीद वहां मोबाइल से वीडियो बनाते देखे गए. किसी ने हस्तक्षेप कर सिख ड्राइवर या पुलिस को समझाने की कोशिश नहीं की. घटना की ख़बर मिलते ही सिख समुदाय में आक्रोश फैल गया. बड़ी संख्या में सिख मुखर्जी नगर थाने के बाहर पहुंच गए और पुलिस के खिलाफ नारेबाज़ी की. कुछ पुलिसवालों के साथ धक्कामुक्की भी हुई. राजनीतिक स्तर पर दबाव बड़ा तो तीन पुलिसवालों को निलंबित कर दिया गया.
घटना के बारे में आपने जान लिया, अब इन सवालों पर भी गौर कीजिए.
1. मान लीजिए टैम्पो ड्राइवर सिख ना होकर मुस्लिम या किसी और धर्म से होता तो भी क्या सिख समुदाय ऐसे ही इकट्ठा होकर रोष जताता? ऐसी घटनाओं में संबंधित व्यक्ति का धर्म पहले क्यों, खुद ही निष्कर्ष निकालने की जल्दबाज़ी क्यों?
2. धार्मिक प्रतीक को हाथ में लेकर औरों को धमकाने को जायज़ कैसे क़रार दिया जा सकता है, जबकि यहां आत्मरक्षा जैसी कोई स्थिति प्रथम दृष्टया सामने नहीं आई थी.
3. सोशल मीडिया के जमाने में वीडियो में भी उसी हिस्से को पेश किया जाता है जो अपने हिसाब से फिट बैठता है? ऐसा वीडियो क्यों नहीं जिसमें पूरी घटना का पता चलता हो?
4. स्थिति को शांत करने की जगह अब तमाशबीन मोबाइल से वीडियो बनाने में क्यों जुट जाते हैं...
5. दिल्ली की सड़कों पर वाहन चालकों का गुस्सा क्यों बढ़ता जा रहा है?
6. राजनीतिक दल घटना विशेष के गुण-दोष देखने की जगह अपने स्वार्थ से दबाव बनाने में क्यों जुट जाते हैं?
7. ये पुलिस आख़िर किस तरह की है? जो अपने ख़िलाफ़ कुछ कहने वाले को सबक सिखाने के लिए डंडे-पिस्तौल लेकर थाने से निकल पड़ती है?
8. इस तरह की पुलिस को मॉब-कंट्रोल की क्या ट्रेनिंग होगी, जो इकलौते शख़्स पर समझदारी से काबू नहीं पा सकती.
9. विदेशों से भी ऐसे कई वीडियो सामने आते हैं जहां पुलिस वाले ऐसी स्थिति से निपटते दिखते हैं. वो ललकारने वाले शख्स को पहले सरेंडर करने के लिए कहते हैं. उससे तब भी हमले का अंदेशा रहता है तो वो पैर में रबड़ की या असली गोली मार कर उसे निष्क्रिय कर देते हैं. सबसे पहले उस शख्स के हाथों को पीछे बांध कर हथकड़ी लगाई जाती है.
10. एक ऐसा एंगल भी सामने आ रहा है कि पुलिस इस तरह के वाहन चालकों से नियमित तौर पर उगाही करती है, हो सकता है उसी का गुस्सा टैम्पो चालक में भरा हो. इस तरह के भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम क्यों नहीं.
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