ग्लैमर की बात ही और होती है. तभी तो स्मृति ईरानी सियासत के किसी भी कुर्सी के लिए फिट बैठायी जाने लगती हैं. गुजरात तो गनीमत है, लेकिन एक वक्त तो उन्हें यूपी का चीफ मिनिस्टर बनाये जाने की भी चर्चा थी.
स्मृति को सीएम बनाये जाने की चर्चा एक बार फिर शुरू हुई है. संभावनाएं ज्यादा इसलिए भी नजर आती हैं क्योंकि ये चर्चा गुजरात को लेकर है. स्मृति ईरानी गुजरात से तो हैं ही - राज्य सभा के लिए भी वहीं से चुनी गयी हैं. सवाल ये है कि स्मृति ईरानी गुजरात की मुख्यमंत्री क्यों बनायी जाएंगी? अगर ऐसा हुआ तो बीजेपी अमेठी में सर्जिकल स्ट्राइक के लिए किसे भेजेगी?
विजय रुपाणी फिर से क्यों नहीं?
पहला सवाल तो यही है कि विजय रुपाणी से ऐसी क्या खता हो गयी कि बीजेपी उन्हें हटाकर स्मृति ईरानी को कुर्सी पर बैठा देगी. आखिर विजय रुपाणी कोई मामूल नेता तो हैं नहीं, उन्हें भी तो नरेंद्र मोदी की उत्तराधिकारी आनंदीबेन पटेल की जगह और नितिन पटेल पर तरजीह देते हुए मुख्यमंत्री बनाया गया था. जिस व्यक्ति को आलाकमान का रिमोट तक बताया जाता हो, भला ऐसी क्या गुस्ताखी हो गयी कि चुनाव जीतने के बाद उसे बेदखल कर दिया जाएगा.
वैसे बीजेपी ऐसा नहीं करेगी, ये दावा भी नहीं किया जा सकता. दिल्ली में पहली बार जब आम आदमी पार्टी ने दस्तक दी तो बीजेपी का नेतृत्व डॉ. हर्षवर्धन कर रहे थे. चुनावों बीजेपी का प्रदर्शन सिर्फ ठीक ठाक नहीं, बल्कि पार्टी सीटों के हिसाब से पहले नंबर पर रही. कुछ ही दिन बाद जब फिर से चुनाव हुए तो हर्षवर्धन को हाशिये पर भेज बीजेपी ने किरण बेदी को पैराशूट से बीच मैदान में उतार दिया. ये अलग बात है कि उसके बाद हर्षवर्धन और बीजेपी दोनों के हाल किसी नयी टिप्पणी के मोहताज नहीं हैं.
जहां तक गुजरात में...
ग्लैमर की बात ही और होती है. तभी तो स्मृति ईरानी सियासत के किसी भी कुर्सी के लिए फिट बैठायी जाने लगती हैं. गुजरात तो गनीमत है, लेकिन एक वक्त तो उन्हें यूपी का चीफ मिनिस्टर बनाये जाने की भी चर्चा थी.
स्मृति को सीएम बनाये जाने की चर्चा एक बार फिर शुरू हुई है. संभावनाएं ज्यादा इसलिए भी नजर आती हैं क्योंकि ये चर्चा गुजरात को लेकर है. स्मृति ईरानी गुजरात से तो हैं ही - राज्य सभा के लिए भी वहीं से चुनी गयी हैं. सवाल ये है कि स्मृति ईरानी गुजरात की मुख्यमंत्री क्यों बनायी जाएंगी? अगर ऐसा हुआ तो बीजेपी अमेठी में सर्जिकल स्ट्राइक के लिए किसे भेजेगी?
विजय रुपाणी फिर से क्यों नहीं?
पहला सवाल तो यही है कि विजय रुपाणी से ऐसी क्या खता हो गयी कि बीजेपी उन्हें हटाकर स्मृति ईरानी को कुर्सी पर बैठा देगी. आखिर विजय रुपाणी कोई मामूल नेता तो हैं नहीं, उन्हें भी तो नरेंद्र मोदी की उत्तराधिकारी आनंदीबेन पटेल की जगह और नितिन पटेल पर तरजीह देते हुए मुख्यमंत्री बनाया गया था. जिस व्यक्ति को आलाकमान का रिमोट तक बताया जाता हो, भला ऐसी क्या गुस्ताखी हो गयी कि चुनाव जीतने के बाद उसे बेदखल कर दिया जाएगा.
वैसे बीजेपी ऐसा नहीं करेगी, ये दावा भी नहीं किया जा सकता. दिल्ली में पहली बार जब आम आदमी पार्टी ने दस्तक दी तो बीजेपी का नेतृत्व डॉ. हर्षवर्धन कर रहे थे. चुनावों बीजेपी का प्रदर्शन सिर्फ ठीक ठाक नहीं, बल्कि पार्टी सीटों के हिसाब से पहले नंबर पर रही. कुछ ही दिन बाद जब फिर से चुनाव हुए तो हर्षवर्धन को हाशिये पर भेज बीजेपी ने किरण बेदी को पैराशूट से बीच मैदान में उतार दिया. ये अलग बात है कि उसके बाद हर्षवर्धन और बीजेपी दोनों के हाल किसी नयी टिप्पणी के मोहताज नहीं हैं.
जहां तक गुजरात में विजय रुपाणी की स्थिति का सवाल है, वो हर्षवर्धन की दिल्ली में हालत से काफी बेहतर है. सबसे बड़ी बात वो अमित शाह के करीबी हैं. आनंदी बेन के हटने पर नितिन पटेल को सीएम न बनाने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शाह को मनमर्जी की छूट इसी आधार पर दी थी कि सीएम जो भी बने चुनाव में जीत की गारंटी होनी चाहिये.
अमित शाह ने रुपाणी को सीएम बनाते वक्त मोदी से जो वादा किया था उसे दोनों ने मिल कर पूरा भी कर दिया है. अब अगर केंद्र में शाह की तरह ही रुपाणी के लिए भी कोई रोल लिखा गया हो तो बात अलग है, वरना रुपाणी कहीं से भी कमतर नहीं हैं.
लेकिन स्मृति ईरानी क्यों नहीं?
यूपी चुनाव की आहट भी नहीं हुई थी कि स्मृति ईरानी की मुख्यमंत्री के फेस को लेकर चर्चा होने लगी थी, लेकिन राजनाथ और मनोज सिन्हा होते हुए सेलेक्शन की सूई आखिरकार योगी आदित्यनाथ पर जाकर रुकी.
सबसे पहले तो स्मृति ईरानी वहीं छंट जाती हैं जहां विजय रुपाणी से तुलना होगी. विजय रुपाणी, अमित शाह के पसंदीदा व्यक्ति हैं जबकि स्मृति को वो कभी भी पसंद नहीं करते. कई मौकों पर ये बात चर्चित भी रही है. पहले तो पार्टी में ही उनकी पूछ कम हो गयी थी. बाद में भी मानव संसाधन मंत्रालय से हटाये जाने के बाद मेनस्ट्रीम में उनकी वापसी भी तभी हुई जब उन्होंने शाह से संबंध सुधारने में दिलचस्पी दिखायी.
एक तो स्मृति शाह की फेवरेट लिस्ट में भी नहीं हैं - और ऊपर से उन्हें रिमोट से कंट्रोल करना भी संभव नहीं है.
सबसे अहम बात - आने वाले चुनावों में स्टार प्रचारकों की सूची में स्मृति ईरानी की भरपाई कौन करेगा?
अगर बीजेपी स्मृति ईरानी को गुजरात तक सीमित कर देगी तो क्या बार बार अहमदाबाद से अमेठी का सफर मुश्किल नहीं हो जाएगा?
क्या राहुल से मोर्चा लेने के लिए किसी और मुहं नहीं देखना पड़ेगा? और ऐसा सोचा भी जाय तो क्या स्मृति जितनी जोरदार टक्कर कोई 2019 में दे पाएगा? भला बीजेपी ऐसा रिस्क क्यों लेगी?
बीजेपी को कैसा मुख्यमंत्री चाहिये?
स्मृति ईरानी के साथ ग्लैमर जरूर जुड़ा है, लेकिन क्या गुजरात में बीजेपी ऐसे किसी ग्लैमर की जरूरत है? गुजरात को अगर जरूरत है तो ऐसे ग्लैमर की जो चुनावों में जीत सुनिश्चित करने में दक्ष हो. अब मोदी जैसी करिश्माई अगर कोई नहीं है तो ऐसे ग्लैमर की गुजरात को क्या आवश्यकता है? फिर सवाल पूछा जा सकता है कि गुजरात को कैसा मुख्यमंत्री चाहिये? सीधा सा जवाब है -
1. ऐसा कोई भी नेता जिसमें गुजरात के हिसाब से मोदी का अक्स दिखे. ठीक वैसे ही जैसे यूपी में योगी आदित्यनाथ कई मायनों में इस क्राइटेरिया में पूरी तरह फिट बैठते हैं.
2. ऐसा कोई भी नेता जिसके बूते बीजेपी पाटीदारों, ओबीसी, दलितों और आदिवासियों का दिल दोबारा जीतने में कामयाब हो सके.
3. ऐसा कोई भी नेता जो इतना सक्षम दिखे कि 2019 में गुजरात की सभी सीटें बीजेपी की झोली में भर सकेगा.
4. ऐसा कोई भी नेता जो 'कांग्रेस युक्त गुजरात' का स्टेटस अपटेड करके उसे फिर से 'कांग्रेस मुक्त गुजरात' कर सके.
5. ऐसा कोई भी नेता जो फिर से देश के सामने गुजरात विकास मॉडल डंके की चोट पर पेश कर सके.
वैसे स्मृति ईरानी ने अपनी ओर से ऐसी चर्चाओं को पूरी तरह खारिज कर दिया है - 'हर कोई मुझसे छुटकारा पाना चाहता है, यही वजह है कि वे ऐसे अफवाह उड़ाते हैं.' ये 'हर कोई' कौन है, या कौन-कौन है - स्मृति ने समझने के लिए छोड़ दिया है.
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