खुश होने का फिलहाल ख्याल ही सही, लेकिन लगता है शरद पवार (Sharad Pawar) को महाराष्ट्र सरकार में दबदबा ज्यादा ही मजेदार लग रहा है - और जैसे कि आरोप भी लगते हैं, उसी को एक्सटेंड करते हुए पवार, दरअसल, अब दिल्ली में भी रिमोट कंट्रोल का पावर दिखाना चाहते हैं.
ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) और शरद पवार की राजनीति में एक कॉमन चीज ये है कि दोनों नेताओं ने कांग्रेस छोड़ कर ही अपनी अलग जगह बनायी है - और अपना मुकाम हासिल करने के बाद कांग्रेस के साथ केंद्र में गठबंधन सरकार का हिस्सा भी रह चुके हैं.
शरद पवार को तो दिक्कत भी सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) से ही रही है. सोनिया गांधी के विदेशी मूल को मुद्दा बना कर शरद पवार ने पीए संगमा और तारिक अनवर के साथ एनसीपी बनायी. तारिक अनवर तो अब कांग्रेस में ही लौट भी चुके हैं.
ममता बनर्जी भी यूपीए का हिस्सा रह चुकी हैं, लेकिन अब तो वो उसके अस्तित्व को ही नकारने लगी है. ये यूपीए ही है जिसमें रहते हुए कांग्रेस की मदद से ममता बनर्जी ने लेफ्ट को पश्चिम बंगाल में सत्ता से बेदखल करने में कामयाबी हासिल की थी - और काम बन जाने के कुछ दिन बाद बहाना खोज कर यूपीए से अलग भी हो गयीं. अलग होते होते भी कांग्रेस से काफी लोगों को साथ ले लिया और बीजेपी के दिल्ली पहुंचने से बहुत पहले ही कांग्रेस मुक्त बंगाल की मुहिम चलाने लगीं.
ममता बनर्जी ने सोनिया गांधी के नेतृत्व वाले जिस यूपीए के अस्तित्व को नकार दिया है, वो पॉलिटिकल लाइन भी सिल्वर ओक में ही तय की हुई है. सिल्वर ओक असल में शरद पवार का घर है, जहां ममता बनर्जी ने तो महज एक घंटे ही बिताये, उनके चुनावी सलाहकार प्रशांत किशोर तो प्रजेंटेशन के साथ तीन घंटे तक मीटिंग कर चुके हैं.
असल बात तो ये है कि ममता बनर्जी को भी अपनी सीमाएं मालूम हैं. जैसे अरविंद...
खुश होने का फिलहाल ख्याल ही सही, लेकिन लगता है शरद पवार (Sharad Pawar) को महाराष्ट्र सरकार में दबदबा ज्यादा ही मजेदार लग रहा है - और जैसे कि आरोप भी लगते हैं, उसी को एक्सटेंड करते हुए पवार, दरअसल, अब दिल्ली में भी रिमोट कंट्रोल का पावर दिखाना चाहते हैं.
ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) और शरद पवार की राजनीति में एक कॉमन चीज ये है कि दोनों नेताओं ने कांग्रेस छोड़ कर ही अपनी अलग जगह बनायी है - और अपना मुकाम हासिल करने के बाद कांग्रेस के साथ केंद्र में गठबंधन सरकार का हिस्सा भी रह चुके हैं.
शरद पवार को तो दिक्कत भी सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) से ही रही है. सोनिया गांधी के विदेशी मूल को मुद्दा बना कर शरद पवार ने पीए संगमा और तारिक अनवर के साथ एनसीपी बनायी. तारिक अनवर तो अब कांग्रेस में ही लौट भी चुके हैं.
ममता बनर्जी भी यूपीए का हिस्सा रह चुकी हैं, लेकिन अब तो वो उसके अस्तित्व को ही नकारने लगी है. ये यूपीए ही है जिसमें रहते हुए कांग्रेस की मदद से ममता बनर्जी ने लेफ्ट को पश्चिम बंगाल में सत्ता से बेदखल करने में कामयाबी हासिल की थी - और काम बन जाने के कुछ दिन बाद बहाना खोज कर यूपीए से अलग भी हो गयीं. अलग होते होते भी कांग्रेस से काफी लोगों को साथ ले लिया और बीजेपी के दिल्ली पहुंचने से बहुत पहले ही कांग्रेस मुक्त बंगाल की मुहिम चलाने लगीं.
ममता बनर्जी ने सोनिया गांधी के नेतृत्व वाले जिस यूपीए के अस्तित्व को नकार दिया है, वो पॉलिटिकल लाइन भी सिल्वर ओक में ही तय की हुई है. सिल्वर ओक असल में शरद पवार का घर है, जहां ममता बनर्जी ने तो महज एक घंटे ही बिताये, उनके चुनावी सलाहकार प्रशांत किशोर तो प्रजेंटेशन के साथ तीन घंटे तक मीटिंग कर चुके हैं.
असल बात तो ये है कि ममता बनर्जी को भी अपनी सीमाएं मालूम हैं. जैसे अरविंद केजरीवाल को राजनीति में आने से पहले आंदोलन को धार देने के लिए अन्ना हजारे के सपोर्ट की तलब हुई, ममता बनर्जी ने भी महाराष्ट्र का ही रुख किया है - और शरद पवार में भी वो ऐसी शख्सियत देख रही हैं जो विपक्षी खेमे में उनसे ज्यादा अच्छी तरह खेल कर सकता है.
ममता बनर्जी भी समझ चुकी हैं कि शरद पवार के मन में कांग्रेस को लेकर क्या चल रहा है - और यही वजह है कि दिल्ली में नजरअंदाज किये जाने के बाद भी वो पवार से मिलने उनके घर मुंबई पहुंच गयीं.
निशाने पर यूपीए क्यों है
असल में विपक्ष के नेतृत्व के नाम पर फिलहाल यूपीए ही एक बना बनाया फोरम है. बीजेपी के केंद्र में 2014 में सत्ता पर कब्जा जताने से पहले यूपीए की ही दस साल तक सरकार रही है. 2004 से ही सोनिया गांधी यूपीए के चेयरपर्सन हैं. मुद्दे की बात तो ये है कि अगर राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष का पद नहीं छोड़े होते तो सोनिया गांधी यूपीए की जिम्मेदारी भी किसी न किसी को सौंप चुकी होतीं. कहीं गांधी परिवार के हाथ से कांग्रेस की कमान फिसल न जाये ये सोच कर सोनिया गांधी को कांग्रेस का अंतरिम अध्यक्ष बनना पड़ा, ऐसे यूपीए छोड़ना तो और भी जोखिम भरा हो सकता था.
चूंकि ममता बनर्जी ये लगने लगा है कि कांग्रेस विपक्ष के सभी नेताओं को साथ लेकर चल भी नहीं रही है और कोई और नेतृत्व के लिए आगे बढ़ना चाहे तो अड़ंगे लगा देती है, लिहाजा पहले वो कांग्रेस को ही रास्ते हटाने में जुट गयी हैं.
ममता बनर्जी और शरद पवार के बीच कॉमन टारगेट कांग्रेस नेतृत्व आसानी से बन जा रहा है, लेकिन सबसे बड़ा पेंच ये है कि ममता बनर्जी का एक ही स्टैंड शरद पवार को सही लग रहा है, वो है - बीजेपी और मोदी सरकार का कड़ा विरोध, लेकिन वो कांग्रेस को लेकर बिलकुल वैसा ही नहीं सोचता जो ममता बनर्जी चाह रही हैं.
1. यूपीए पर उठे सवाल का सूत्रधार कौन: मुंबई में एनसीपी नेता शरद पवार के साथ मीटिंग खत्म होते ही पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बड़ा सवाल उठा दिया, ''कौन सा यूपीए? फिलहाल कोई यूपीए नहीं है... हम इस पर साथ में फैसला लेंगे.'
देखा जाये तो ममता बनर्जी यूपीए पर सवाल खड़ा करने वाली कोई पहली नेता नहीं हैं, महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में गठबंधन की सरकार बनने के महीने भर बाद से ही शिवसेना प्रवक्ता संजय राउत ने यूपीए को टारगेट करना शुरू कर दिया था.
ये भी तभी की बात है जब संजय राउत यूपीए को एनजीओ जैसा बताने लगे थे. संजय राउत दलील भी कोई बेदम रही हो, ऐसा भी नहीं कहा जा सकता. संजय राउद क्षेत्रीय नेताओं नवीन पटनायक, जगनमोहन रेड्डी और ममता बनर्जी का नाम लेकर गिना रहे थे कि सारे महत्वपूर्ण नेता तो यूपीए से बाहर हैं. हालांकि, संजय राउत ने ममता बनर्जी की तरह यूपीए के अस्तिव पर सवाल नहीं उठाया था. बल्कि संजय राउत का कहना रहा कि यूपीए का पुनर्गठन किया जाना चाहिये और बीजेपी-मोदी सरकार के खिलाफ एक मजबूत विकल्प के तौर पर खड़ा करने की कोशिश होनी चाहिये.
पत्रकारों से बातचीत में यूपीए के नेतृत्व को लेकर तब संजय राउत का कहना रहा, 'कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने बीते वर्षों में यूपीए का बहुत सफलतापूर्वक नेतृत्व किया है... अब समय आ गया है कि इसके दायरे को बढ़ाया जाये.'
संजय राउत ने तभी यूपीए का नेतृत्व शरद पवार को सौंप दिये जाने की सलाह दी थी. तभी ये भी देखने को मिला था कि सोनिया गांधी सक्रिय हो गयी थीं और मुलाकातों की रणनीति ऐसी तैयार की थी कि विपक्ष के नेता मिलने के लिए 10, जनपथ पहुंचें और मैसेज जाये कि कमान किसके हाथ में है. चीजें तय कौन कर रहा है?
2. कांग्रेस को लेकर ममता-पवार एक राय नहीं: कभी सोनिया गांधी के विदेशी मूल के होने को लेकर सवाल खड़े करने वाले शरद पवार से मुलाकात के बीच ममता बनर्जी ने राहुल गांधी की विदेश यात्राओं पर सवाल उठाया है. हालांकि, नाम नहीं लिया है.
अब सवाल उठता है कि क्या ममता बनर्जी की बातों से शरद पवार भी पूरी तरह इत्तफाक रखते हैं?
ममता बनर्जी और शरद पवार की बातों को ध्यान से समझें तो ऐसा नहीं लगता. प्रशांत किशोर और शरद पवार की मुलाकात के बाद विपक्षी खेमे में जो गतिविधियां देखने को मिली थीं, कांग्रेस की भागीदारी नदारद नजर आयी थी.
कांग्रेस को काफी फिक्र हुई और सोनिया गांधी की तरफ से पहल भी हुई. कमलनाथ ने शरद पवार से मिल कर मैसेज पहुंचाया और उसका असर भी फौरन देखने को मिला. शरद पवार ने बयान दिया कि कांग्रेस को साथ लिये बगैर विपक्ष के लिए मोदी सरकार को चैलेंज करने का सवाल ही पैदा नहीं होता.
शरद पवार अब भी उसी स्टैंड पर कायम हैं और शायद इसीलिए ममता बनर्जी भी थोड़ा संयम दिखा रही हैं, 'किसी को भी छोड़ने का कोई सवाल ही नहीं है... बीजेपी के खिलाफ जो भी लोग हैं, हमसे जुड़ें... जो लोग सबके साथ काम करने को तैयार हैं... उनको साथ लिया जाना चाहिये.'
कुछ ही दिन पहले शरद पवार ने कहा था, 'आम चुनाव में बीजेपी के खिलाफ गठबंधन का नेतृत्व कौन करेगा ये कोई मुद्दा नहीं है... जनता को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, उसे बस राजनीतिक विकल्प चाहिये.'
ऐसा बोल कर शरद पवार एक तरीके से यही मैसेज देने की कोशिश कर हैं कि अगर उनको कांग्रेस का नेतृत्व रास नहीं आ रहा है, तो अभी तक वो ममता बनर्जी को भी नेता बनाने के मूड में नहीं हैं.
ममता बनर्जी जिस तरीके से कांग्रेस को नेस्तनाबूद करने में जुटी हुई हैं, लगता नहीं कि शरद पवार भी ऐसा सोच रहे हैं - और ये बात समझ में आती है, मीटिंग से निकल कर आयी खबर से. ऐसा लगता है कि ममता बनर्जी तो महाराष्ट्र की गठबंधन सरकार से भी कांग्रेस का पत्ता गोल करना चाहती हैं.
आज तक की एक्सक्लूसिव रिपोर्ट के मुताबिक, ममता बनर्जी चाहती हैं एनसीपी और शिवसेना मिल कर महाराष्ट्र संभाल लें, लेकिन कांग्रेस को माइनस करके. रिपोर्ट के मुताबिक, ममता बनर्जी की इस बात पर शरद पवार कुछ नहीं बोले, लेकिन हां, दोनों ने आगे से लगातार मिलते रहने पर सहमति जरूर जतायी है.
क्या ममता ने हथियार डाल दिये?
महाराष्ट्र में शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस की गठबंधन सरकार बनवाने के बाद ही शरद पवार ने कहा था कि राष्ट्रीय स्तर पर भी वो वैसा ही प्रयोग करना चाहेंगे. अब शायद शरद पवार को भी लगता है कि वो वक्त आ चुका है - और यही वजह है कि पश्चिम बंगाल चुनाव और ममता बनर्जी के दिल्ली दौरे की तरह उनको निराश नहीं किया है.
1. बीजेपी के खिलाफ मोर्चेबंदी की तैयारी: शरद पवार से मुलाकात के दौरान ममता बनर्जी के साथ उनके भतीजे अभिषेक बनर्जी भी मौजूद रहे - और तृणमूल कांग्रेस महासचिव ने कांग्रेस की कमजोर कड़ियों को एक एक करके सामने रखा.
अभिषेक बनर्जी ने शरद पवार को बताया कि देश में ऐसी करीब 250 सीटें हैं जिन पर बीजेपी और कांग्रेस में सीधी टक्कर है - और खास बात ये रही कि ममता बनर्जी और शरद पवार दोनों इस बात पर सहमत हैं कि बीजेपी ऐसी सीटों पर आसानी से बढ़त हासिल कर सकती है.
ये आकलन तो यही बता रहा है कि 2024 में भी बीजेपी की जीत पक्की मान कर चलना चाहिये. गोवा से वायरल हुए प्रशांत किशोर के वीडियो में भी ऐसा ही मैसेज था, जिसे राहुल गांधी पर सीधा हमला समझा गया. हालांकि, ममता बनर्जी ने पूछे जाने पर ये समझाया था कि उनके कहने का मतलब ये रहा होगा कि अगर कोशिशें न हुई तो बीजेपी को रोका नहीं जा सकेगा.
शरद पवार के साथ हुई मुलाकात से आई खबर बताती है कि ममता बनर्जी चाहती हैं कि उन चीजों पर फोकस किया जाना जरूरी है जहां कांग्रेस बीजेपी को सीधे सीधे फेस नहीं कर पा रही है, लेकिन इसके लिए ममता बनर्जी जो तरीका अपनाना चाहती हैं वो शायद शरद पवार को सही नहीं लग रहा है.
ममता बनर्जी ने शरद पवार को सलाह दी है कि यूपीए को खत्म कर दिया जाना चाहिये - और तृणमूल कांग्रेस-एनसीपी को मिल कर काम करना चाहिये.
2. शरद पवार की राजनीति में उलझीं ममता: शरद पवार से मुलाकात करने ममता बनर्जी यूं ही मुंबई नहीं पहुंचीं. दरअसल, दिल्ली में झटका खाने के बाद ममता बनर्जी को ऐसा करना पड़ा है. मुलाकात के लिए बहाना बना मुंबई में होने वाला एक बिजनेस समिट.
पश्चिम बंगाल चुनाव के बाद ममता बनर्जी ने कोलकाता में शहीद रैली की थी - और ऑनलाइन जुड़े शरद पवार और कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम से कहा था कि उनके दिल्ली पहुंचने पर वे विपक्षी दलों की मीटिंग बुलाएं. ममता बनर्जी के दिल्ली पहुंचते ही अचानक राहुल गांधी एक्टिव हो गये और विपक्षी दलों के नेताओं को बुलाकर ताबड़तोड़ मीटिंग करने लगे.
ये भी एक तरीके से विपक्षी खेमे में वर्चस्व की लड़ाई थी. शरद पवार भी दिल्ली में ही थे. ममता बनर्जी ने विपक्ष के कई नेताओं से मुलाकात तो की लेकिन शरद पवार नहीं मिले. ऐसा भी नहीं वो उस दौरान किसी से मिल नहीं पा रहे थे. लालू यादव से मिलने के लिए मीसा भारती के घर तक गये लेकिन ममता बनर्जी दिल्ली में ही रह कर मुलाकात का इंतजार करती रहीं.
शरद पवार ने ममता बनर्जी से न मिल कर अपनी तरफ से विपक्षी खेमे को कोई मैसेज देने की कोशिश की थी. अब तो लग रहा है कि शरद पवार ने ममता बनर्जी के साथ साथ राहुल गांधी को भी मैसेज देना चाहा होगा - और अब कांग्रेस के प्रति शरद पवार का जो रुख सामने आ रहा है वो यही बता रहा है.
ममता बनर्जी की तरह शरद पवार को भी कांग्रेस का विपक्ष को लीड करना खटक रहा है, लेकिन वो ममता बनर्जी की तरह विपक्षी खेमे से बाहर करने के पक्ष में नहीं है - शरद पवार चाहते हैं कि कांग्रेस विपक्षी गठबंधन के साथ तो रहे, लेकिन विपक्ष में गांधी परिवार की निर्णायक भूमिका खत्म हो जाये - और अब इसकी बड़ी वजह सोनिया गांधी के मुकाबले राहुल गांधी ही ज्यादा लग रहे हैं.
शरद पवार से मुलाकात में ममता बनर्जी के साथ आपसी नेतृत्व को लेकर भी बातचीत हुई और ये भी ममता बनर्जी की तरफ से ही साफ हुआ लगता है. बातचीत के दौरान ही ममता बनर्जी ने कहा, 'आप मार्गदर्शन करिये... आगे कैसे करना है.'
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विपक्षी एकजुटता के लिए ममता बनर्जी ने तय कर लिया है कि कांग्रेस का क्या करना है
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