कांग्रेस नेृतृत्व धीरे धीरे अपने ही बुने जाल में उलझने लगा है. संविधान और संस्थाओं को लेकर जो तोहमत कांग्रेस नेतृत्व की तरफ से बीजेपी की मोदी सरकार पर मढ़े जाते रहे हैं, कांग्रेस के अंदर से ही उस पर सवाल उठाये जाने लगे हैं. सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) की सरकार पर लोकतांत्रिक संस्थाओं को बर्बाद करने का इल्जाम लगाते हुए संविधान के खतरे में पड़ने की आशंका जतायी है. सोनिया गांधी ने गांधी, नेहरू और अंबेडर के सपनों का हवाला देते हुए मोदी सरकार पर कांग्रेस में मची उठापटक के बीच ही फिर से हमला बोला है.
सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखने वाले 23 नेताओं में गुलाम नबी आजाद के बाद सबसे ज्यादा मुखर रहे कपिल सिब्बल ने सोनिया गांधी को आईना दिखाने की कोशिश की है.
कपिल सिब्बल सीधे सीधे पूछ रहे हैं - कांग्रेस भले ही बीजेपी पर संविधान का पालन न करने की तोहमत लगाती रहे, लेकिन वो खुद क्या कर रही है?
कपिल सिब्बल (Kapil Sibal) ने कांग्रेस नेता जितिन प्रसाद के खिलाफ यूपी में पारित प्रस्ताव पर भी सवाल उठाया है. सचिन पायलट के मामले में भी कपिल सिब्बल का अस्तबल वाला ट्वीट काफी चर्चित रहा है.
चिट्ठी लिखने वालों को सबक सिखाने की कांग्रेस में चल रही मुहिम के बावजूद कपिल सिब्बल और गुलाम नबी आजाद खामोश नहीं हुए हैं, बल्कि तरह तरह से सोनिया गांधी और राहुल गांधी को संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं. गुलाम नबी आजाद तो यहां तक कह चुके हैं कि अगर कांग्रेस नेतृत्व ने अपना रवैया नहीं बदला तो पार्टी 50 साल तक विपक्ष में ही बैठी रहेगी.
सिब्बल ने सोनिया को दिखाया आईना
छत्तीसगढ़ विधानसभा की नई इमारत की नींव रखने के कार्यक्रम के लिए अपने रिकॉर्डेड वीडियो संदेश में सोनिया गांधी ने कहा जवाहर लाल नेहरू और बीआर आंबेडकर जैसे हमारे पूर्वजों ने सपने में भी कभी नहीं सोचा होगा कि आजादी के 75 साल बाद देश का संविधान और लोकतंत्र खतरे में होगा - और लोकतांत्रिक संस्थाओं को बर्बाद किया जाएगा! सोनिया गांधी ने...
कांग्रेस नेृतृत्व धीरे धीरे अपने ही बुने जाल में उलझने लगा है. संविधान और संस्थाओं को लेकर जो तोहमत कांग्रेस नेतृत्व की तरफ से बीजेपी की मोदी सरकार पर मढ़े जाते रहे हैं, कांग्रेस के अंदर से ही उस पर सवाल उठाये जाने लगे हैं. सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) की सरकार पर लोकतांत्रिक संस्थाओं को बर्बाद करने का इल्जाम लगाते हुए संविधान के खतरे में पड़ने की आशंका जतायी है. सोनिया गांधी ने गांधी, नेहरू और अंबेडर के सपनों का हवाला देते हुए मोदी सरकार पर कांग्रेस में मची उठापटक के बीच ही फिर से हमला बोला है.
सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखने वाले 23 नेताओं में गुलाम नबी आजाद के बाद सबसे ज्यादा मुखर रहे कपिल सिब्बल ने सोनिया गांधी को आईना दिखाने की कोशिश की है.
कपिल सिब्बल सीधे सीधे पूछ रहे हैं - कांग्रेस भले ही बीजेपी पर संविधान का पालन न करने की तोहमत लगाती रहे, लेकिन वो खुद क्या कर रही है?
कपिल सिब्बल (Kapil Sibal) ने कांग्रेस नेता जितिन प्रसाद के खिलाफ यूपी में पारित प्रस्ताव पर भी सवाल उठाया है. सचिन पायलट के मामले में भी कपिल सिब्बल का अस्तबल वाला ट्वीट काफी चर्चित रहा है.
चिट्ठी लिखने वालों को सबक सिखाने की कांग्रेस में चल रही मुहिम के बावजूद कपिल सिब्बल और गुलाम नबी आजाद खामोश नहीं हुए हैं, बल्कि तरह तरह से सोनिया गांधी और राहुल गांधी को संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं. गुलाम नबी आजाद तो यहां तक कह चुके हैं कि अगर कांग्रेस नेतृत्व ने अपना रवैया नहीं बदला तो पार्टी 50 साल तक विपक्ष में ही बैठी रहेगी.
सिब्बल ने सोनिया को दिखाया आईना
छत्तीसगढ़ विधानसभा की नई इमारत की नींव रखने के कार्यक्रम के लिए अपने रिकॉर्डेड वीडियो संदेश में सोनिया गांधी ने कहा जवाहर लाल नेहरू और बीआर आंबेडकर जैसे हमारे पूर्वजों ने सपने में भी कभी नहीं सोचा होगा कि आजादी के 75 साल बाद देश का संविधान और लोकतंत्र खतरे में होगा - और लोकतांत्रिक संस्थाओं को बर्बाद किया जाएगा! सोनिया गांधी ने अपने संदेश में नेहरू और अंबेडकर के साथ साथ महात्मा गांधी और संविधान सभा के स्पीकर जीवी मावलंकर का भी हवाला दिया है. सोनिया गांधी ने कहा कि देश और गरीब विरोधी ताकतें भारत में नफरत और हिंसा का जहर फैला रही हैं और - लोकतंत्र पर तानाशाही का असर भी बढ़ता जा रहा है.
कपिल सिब्बल ने इंडियन एक्सप्रेस को दिये इंटरव्यू सोनिया गांधी के वीडियो संदेश की बातों पर ही सवाल उठा दिया है. सोनिया गांधी का डबल स्टैंडर्ड सिब्बल को रास नहीं आ रहा है - कहते हैं, 'आखिर हम भी तो यही कह रहे हैं. हम भी तो यही कह रहे हैं कि संगठन के संविधान के मुताबिक पार्टी में भी काम होना चाहिये - ठीक वैसे ही जैसे भारतीय संविधान के हिसाब से मोदी सरकार को काम करना चाहिये. हम अपने संविधान का पालन करना चाहते हैं और इस पर किसे ऐतराज हो सकता है?'
सोनिया गांधी को लिखी चिट्ठी और फिर इंटरव्यू और बयानों के जरिये भी कपिल सिब्बल वही बात पूछ रहे हैं कि जैसी अपेक्षा देश के लिए कांग्रेस मोदी सरकार से करती है - आखिर वो सब पार्टी के भीतर अमल में क्यों नहीं लाया जाता है?
कपिल सिब्बल चिट्ठी की बातें याद दिलाते हुए कहते हैं आखिर कांग्रेस वर्किंग कमेटी के चुनाव की मांग ही तो की जा रही है और वो क्यों नहीं होना चाहिये. दरअसल, गांधी परिवार के वफादारों की तरफ से अब गुलाम नबी आजाद की पुरानी बातें याद दिलायी जाने लगी हैं. गुलाम नबी आजाद का एक पुराना बयान है जिसमें वो कांग्रेस अध्यक्ष को अपने हिसाब से CWC के सदस्य चुनने की सलाह दे रहे हैं. फिर सवाल ये उठाया जा रहा है कि अब वो चुनाव की मांग क्यों करने लगे? ये भी तो हो सकता है पहले लगता हो कि कांग्रेस अध्यक्ष सदस्यों के चुनाव में कोई भेदभाव न करते हुए न्यायसंगत प्रक्रिया अपनाएगा, लेकिन जब लगने लगा कि सिर्फ वफादारों और चापलूसों को जगह मिल रही है तो सवाल उठाया जा रहा है.
कपिल सिब्बल, सोनिया गांधी का ध्यान CWC की उस बैठक में हुई चर्चा की ओर दिलाना चाहते हैं जिसमें बहस होनी चाहिये थी कि कैसे सामूहिक तौर पर पार्टी में सुधार की कोशिश हो सके, लेकिन चिट्ठी को लेकर वफादारी पर बात होने लगी.
कपिल सिब्बल याद दिलाते हैं कि कैसे मीटिंग में देखते ही देखते कांग्रेसी मुख्यमंत्री और कई पीसीसी अध्यक्ष गांधी परिवार के प्रति खुद की निष्ठा जताने लगे और चिट्ठी पर दस्तखत करने वालों को दरकिनार करने के लिए गद्दार साबित करने में जुट गये.
कपिल सिब्बल का कहना है कि अगर कांग्रेस 23 नेताओं ने चिट्ठी में कुछ गलत लिखा है तो निश्चित तौर पर उस पर सवाल होना चाहिये. चिट्ठी लिखने वालों से पूछा जाना चाहिये, कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक में चर्चा होनी चाहिये - लेकिन होता क्या है कुछ लोग मिल कर चिट्ठी लिखने वालों के खिलाफ एक्शन लेने की मांग शुरू कर देते हैं. कपिल सिब्बल को हैरानी इस बात को लेकर हो रही है कि ये सब कांग्रेस नेतृत्व की मौजूदगी में हो रहा है.
कोई बोलता क्यों नहीं?
ऐसा भी नहीं है कि मोदी सरकार के प्रति कांग्रेस नेतृत्व के रवैये पर पहली बार सवाल उठाया जा रहा है. ऐसे कई मौके आये हैं जब कांग्रेस नेताओं ने पार्टी फोरम पर भी और सार्वजनिक तौर पर पार्टी हित में सही सलाह देने की कोशिश की है, लेकिन सच तो ये है कि ऐसी सलाहियत पर कभी ध्यान नहीं दिया गया है.
जैसे सोनिया गांधी संविधान और लोकतांत्रिक संस्थाओं को बर्बाद करने के आरोप लगा रही हैं, राहुल गांधी भी तो काला धन वापस न लाने, युवाओं को रोजगार न देने के आरोप लगाते रहे हैं. आखिर सचिन पायलट क्या सवाल उठा रहे थे - यही न कि राहुल गांधी की तरफ से राजस्थान विधानसभा के चुनावों में जो वादे किये गये थे वे पूरे किये जायें. मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया के भी तो तब की कमलनाथ सरकार से ऐसे ही सवाल थे. हां, ज्योतिरादित्य सिंधिया ने धारा 370 और CAA के विरोध के कांग्रेस नेतृत्व के स्टैंड पर भी सवाल उठाया था, ऐसा भी तो नहीं कि उनके कांग्रेस छोड़ कर बीजेपी ज्वाइन कर लेने के बाद से ये सवाल खत्म हो गया हो.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर कांग्रेस नेताओं के निजी हमले को लेकर भी तो कांग्रेस के भीतर विरोध होता रहा है, लेकिन नतीजा क्या होता है? आरपीएन सिंह जैसे नेता ऐसे सवाल उठाकर अकेले पड़ जाते हैं और राहुल गांधी की हां में हां मिलाती प्रियंका गांधी और फिर चापलूसों का कोरस हावी होकर ऐसी हर आवाज खामोश कर देता है. सलाह तो ऐसे जयराम रमेश, शशि थरूर और कई और भी नेता देते रहे हैं, लेकिन कभी न तो ध्यान दिया जाता है न कोई बहस होती है न कहीं कोई जिक्र ही.
सोनिया गांधी ने वीडियो संदेश में सरकार पर लोगों को बोलने देने से रोकने का भी आरोप लगाया है. कहती हैं, 'बुरी सोच का अब बोलबाला है, अभिव्यक्ति की आजादी खतरे में है.'
मुश्किल ये है कि सोनिया गांधी भूल जा रही हैं कि अगर अपने गिरेबान में झांके बगैर दूसरों को नसीहत दी जाएगी तो सवाल तो उठेंगे ही. फर्क ये है कि अब तक ऐसे सवाल राजनीतिक विरोधी उठाते रहे, लेकिन अब वही सवाल कांग्रेस के अंदर ही उठाये जाने लगे हैं. सोनिया गांधी को मोदी सरकार पर अभिव्यक्ति की आजादी को लेकर हमला बोल रही है तो कपिल सिब्बल कांग्रेस नेतृत्व से ही सवाल पूछते हैं.
कपिल सिब्बल का सीधा सवाल है कि चिट्ठी लिखने वाले कांग्रेस नेताओं को अभिव्यक्ति की आजादी क्यों नहीं दी जा रही है? चिट्ठी के जरिये जो बातें कहने की कोशिश की गयी है वो क्या अभिव्यक्ति की आजादी के दायरे से बाहर हैं?
कपिल सिब्बल याद दिलाना चाहते हैं कि अगर चिट्ठी के जरिये कोई मुद्दा उठाने की कोशिश हो रही है तो उसके कंटेंट पर गौर किये जाने की बजाय उसकी टाइमिंग पर सवाल उठाये जा रहे हैं. कपिल सिब्बल का इशारा राहुल गांधी की तरफ है. कांग्रेस कार्यसमिति की मीटिंग में राहुल गांधी चिट्ठी को लेकर इसी बात से गुस्सा थे कि ऐसा क्यों किया गया जब सोनिया गांधी बीमार थीं. उनकी आवाज को दबाने के लिए चिट्ठी को वफादारी और गद्दारी की बहस में बड़े आराम से उलझा दिया गया - और सोनिया गांधी चुपचाप देखती रहीं.
सोनिया गांधी तो तब भी चुपचाप रहीं जब राज्य सभा सांसदों की मीटिंग में कपिल सिब्बल के आत्मनिरीक्षण की सलाह पर राजीव सातव बरस पड़े और मनमोहन सिंह की यूपीए 2 सरकार पर सवाल खड़े कर दिये. देखा जाये तो मनमोहन सरकार पर राहुल गांधी की टीम के किसी नेता की तरफ से सवाल उठाया जाना भी तो सोनिया गांधी पर ही लागू होता है. अगर मनमोहन सरकार की उपलब्धियां सोनिया गांधी के खाते में जाती हैं तो नाकामी कहां जाएगी?
इन्हें भी पढ़ें :
गुलाम नबी आजाद समेत चिट्ठी लिखने वाले नेताओं पर कार्रवाई कांग्रेस का आत्मघाती वार होगा
कांग्रेस नेतृत्व पर सवाल उठाने वाले जितिन प्रसाद पर कार्रवाई का दबाव खतरनाक मोड़ पर
कांग्रेस ने P में अपने ब्राह्मण चेहरे जितिन प्रसाद को विवादित क्यों बना दिया?
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.