कैप्टन अमरिंदर सिंह (Capt. Amrinder Singh) ने अपनी नयी पॉलिटिकल लाइन की तरफ इशारा तो किया है, लेकिन पत्ते नहीं खोले हैं. बस इतनी ही समझाइश रही कि राजनीति में कई विकल्प होते हैं - और उनके पास भी मौजूद हैं. बाकियों के मुकाबले तो कुछ ज्यादा ही.
नवजोत सिंह सिद्धू को लेकर कुछ ही दिन पहले पंजाब के कांग्रेस प्रभारी हरीश रावत ने कहा था कि वो अक्सर चौके की जगह छक्का जड़ देते हैं, लेकिन इस बार कैप्टन अमरिंदर सिंह ने गुगली फेंकी है - और वो नो बॉल तो कतई नहीं है. तात्कालिक तौर पर भले ही कैप्टन विरोधियों के बीच खुशहाली का माहौल बना हुआ हो लेकिन धीरे धीरे असलियत सामने आएगी - सिद्धू से लेकर सोनिया गांधी तक.
कैप्टन का क्या - वो तो अपनी पूरी पारी खेल चुके हैं. सोचना तो सिद्धू को है. आगे उनके चुनौतियां हजार हैं. पहले तो सिद्धू के बस एक राजनीतिक विरोधी कैप्टन हुआ करते थे, अब तो मालूम भी नहीं होगा कि जो अनुभवी नेता उनके कंधे पर बंदूक रख कर कैप्टन को टारगेट करते रहे, वे मिल कर अब सिद्धू के मुख्यमंत्री बनने की राह का रोड़ा बन रहे होंगे. अगर सुनील जाखड़ या किसी और नेता को जो खुद को मुख्यमंत्री पद का दावेदार समझ रहा हो, लगे कि सिद्धू ही दीवार बने हुए हैं तो जैसे कैप्टन को किनारे लगाने की कोशिश हुई, वैसी ही मुहिम सिद्धू के खिलाफ भी तो शुरू हो जाएगी.
कैप्टन अमरिंदर के खिलाफ नवजोत सिंह सिद्धू कोई अपने सपोर्ट बेस के खिलाफ नहीं उभरे हैं, बल्कि विरोध के नाम पर एकजुट नेताओं का चेहरा और राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा का मोहरा बन कर काम करते रहे हैं - और ऐसी राजनीति बुलबुले जैसी ही होती है, फूटा तो सबका साथ छूटा. अंबिका सोनी के नाम पर आम राय बनना भी तो यही जता रहा है कि सिद्धू के नाम पर नये सिरे से गुटबाजी शुरू...
कैप्टन अमरिंदर सिंह (Capt. Amrinder Singh) ने अपनी नयी पॉलिटिकल लाइन की तरफ इशारा तो किया है, लेकिन पत्ते नहीं खोले हैं. बस इतनी ही समझाइश रही कि राजनीति में कई विकल्प होते हैं - और उनके पास भी मौजूद हैं. बाकियों के मुकाबले तो कुछ ज्यादा ही.
नवजोत सिंह सिद्धू को लेकर कुछ ही दिन पहले पंजाब के कांग्रेस प्रभारी हरीश रावत ने कहा था कि वो अक्सर चौके की जगह छक्का जड़ देते हैं, लेकिन इस बार कैप्टन अमरिंदर सिंह ने गुगली फेंकी है - और वो नो बॉल तो कतई नहीं है. तात्कालिक तौर पर भले ही कैप्टन विरोधियों के बीच खुशहाली का माहौल बना हुआ हो लेकिन धीरे धीरे असलियत सामने आएगी - सिद्धू से लेकर सोनिया गांधी तक.
कैप्टन का क्या - वो तो अपनी पूरी पारी खेल चुके हैं. सोचना तो सिद्धू को है. आगे उनके चुनौतियां हजार हैं. पहले तो सिद्धू के बस एक राजनीतिक विरोधी कैप्टन हुआ करते थे, अब तो मालूम भी नहीं होगा कि जो अनुभवी नेता उनके कंधे पर बंदूक रख कर कैप्टन को टारगेट करते रहे, वे मिल कर अब सिद्धू के मुख्यमंत्री बनने की राह का रोड़ा बन रहे होंगे. अगर सुनील जाखड़ या किसी और नेता को जो खुद को मुख्यमंत्री पद का दावेदार समझ रहा हो, लगे कि सिद्धू ही दीवार बने हुए हैं तो जैसे कैप्टन को किनारे लगाने की कोशिश हुई, वैसी ही मुहिम सिद्धू के खिलाफ भी तो शुरू हो जाएगी.
कैप्टन अमरिंदर के खिलाफ नवजोत सिंह सिद्धू कोई अपने सपोर्ट बेस के खिलाफ नहीं उभरे हैं, बल्कि विरोध के नाम पर एकजुट नेताओं का चेहरा और राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा का मोहरा बन कर काम करते रहे हैं - और ऐसी राजनीति बुलबुले जैसी ही होती है, फूटा तो सबका साथ छूटा. अंबिका सोनी के नाम पर आम राय बनना भी तो यही जता रहा है कि सिद्धू के नाम पर नये सिरे से गुटबाजी शुरू हो सकती है.
जिस अंदाज में कैप्टन ने सिद्धू पर हमला बोला है, उनके बीजेपी में जाने के कयास आसानी से लगाये जा सकते हैं, लेकिन उसमें कोई नयी बात नहीं लग रही. सिद्धू को लेकर पहले जो बातें कैप्टन थोड़े संकोच या सोफियाने अंदाज में कहा करते थे, अब सीधे सपाट शब्दों में कह दिया है. बस.
फौज के अपने बैकग्राउंड को मेंटेन करते हुए कैप्टन अमरिंदर सिंह ने अपनी राजनीतिक लाइन हमेशा ही राष्ट्रवाद के इर्द-गिर्द रखी है - और नये दौर में इसे संयोग समझें या प्रयोग ये बीजेपी के राष्ट्रवाद से पूरी तरह मैच भी करता है.
जब तक राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित को कैप्टन ने इस्तीफा नहीं सौंपा था, कांग्रेस आलाकमान के प्रति भी एक लिहाज और अदब की जरूरत समझ रहे थे. कहने को तो अपनी चिट्ठी में ही कैप्टन ने सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) को लिख कर बता दिया था कि वो पंजाब में शासन और संगठन के दोनों मामलों में दखल देने की कोशिश कर रही हैं.
अब तो सोनिया गांधी ने पंजाब की राजनीति (Punjab Politics) में कैप्टन अमरिंदर सिंह के सामने खुला मैदान छोड़ दिया है. अब तो कैप्टन जितनी भी धमा चौकड़ी मचायें कम ही होगा, लेकिन एक बात तो साफ है कि कैप्टन को सोनिया गांधी को ही ये क्रेडिट देना पड़ेगा कि वो उनके आगे विकल्पों की भरमार कर दी है. आइये देखते हैं कैप्टन अमरिंदर सिंह के सामने पंजाब की राजनीति में विकल्पों का दायरा कहां तक फैला हुआ है -
1. कांग्रेस में ही बने रहें
मुख्यमंत्री पद से इस्तीफे के बाद कैप्टन अमरिंदर सिंह के सामने एक विकल्प तो यही है कि वो कांग्रेस में ही बने रहें और पूर्व प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह की तरह अब से ही सही खामोशी अख्तियार कर लें. सब कुछ यूं ही चलता रहेगा. ताउम्र कांग्रेसी बने रहेंगे और अगर कांग्रेस सत्ता में आ जाती है तो जरूरी सुविधायें भी मिलती रहेंगी.
वैसे राजनीति में लंबा वक्त गुजार लेने के बाद सत्ता बदलने से कोई खास मुश्किल भी नहीं आती है. जैसे राजस्थान में वसुंधरा राजे के प्रति होने वाले अशोक गहलोत सरकार के व्यवहार की तरफ सचिन पायलट और दूसरे नेता जब तब इशारा और जिक्र करते रहते हैं. बीते दौर के आरोपों से तो वो उबर ही चुके हैं.
जैसे मनमोहन सिंह ज्यादातर आर्थिक मामलों पर और कभी कभार चीन के मामले या विदेश नीति के मुद्दे पर बयान देकर कांग्रेस का पक्ष रख देते हैं, कैप्टन भी चाहें तो राष्ट्रवाद के मुद्दे पर बीजेपी के हमले के दौरान कांग्रेस का बचाव कर सकते हैं.
2. राजनीति से संन्यास ले लें
विकल्पों की तरफ महज इशारा करते हुए कैप्टन अमरिंदर सिंह बस इतना ही कहा है कि करीबियों से सलाह के बाद ही वो फैसला लेंगे - और उनका तेवर देख कर ये तो बिलकुल नहीं लग रहा है कि वो राजनीति से रिटायर होने के बारे में थोड़ा सा भी सोच रहे हैं.
कहने को तो वो 2017 के चुनाव में ही आखिरी पारी की बात कर चुके हैं, लेकिन पांच साल सरकार चलाने के आत्मविश्वास बढ़ा है और अब भी ऐसा ही लगता है कि वो आगे बढ़ने के लिए तैयार हैं - आगे की दिशा कौन और कैसी होगी ये भी नहीं बताया है.
लेकिन राजनीति में लंबा दौर गुजारने के बाद कैप्टन अमरिंदर सिंह के पास एक ऑप्शन ये तो है ही कि उम्र के इस पड़ाव पर वो रिटायर होकर आराम से पूरा वक्त अपने फार्म हाउस में गुजारें और हंसी मजाक या मनोरंजन के लिए हाल की तरह आगे भी अपने समर्थक नेताओं को बुलाकर कभी लंच तो कभी डिनर करते रहें.
ताजातरीन नजारा तो दिखा ओलंपिक से लौटे खिलाड़ियों के सम्मान में दिया गया भोज - जहां कैप्टन अमरिंदर सिंह खिलाड़ियों को खुद अपने हाथों से परोस रहे थे. बताया ये भी गया कि काफी चीजें पकायी भी कैप्टन ने ही थी.
3. अपनी पार्टी बना लें
2017 में चुनावों से कुछ ही दिन पहले कांग्रेस नेतृत्व तभी झुका भी था जब लगा कि कैप्टन अमरिंदर सिंह अपनी राजनीतिक पार्टी बना सकते हैं. तब सोनिया गांधी ने राहुल गांधी के फैसले को पलटते हुए प्रताप सिंह बाजवा से कमान छीन कर कैप्टन अमरिंदर सिंह को सौंप दी थी.
वैसे भी कैप्टन अमरिंदर सिंह जो अपनी पार्टी बनाते भी तो कोई नेताओं की नयी भर्ती थोड़े ही करने वाले थे, कांग्रेस के ही नेताओं को तोड़ कर अपना अलग फोरम बनाते - मतलब, साफ था कांग्रेस टुकड़ों में बंट जाती.
देखा जाये तो एक बार फिर कांग्रेस उसी मोड़ पर पहुंच चुकी है. टूट की कगार पर, बशर्ते कैप्टन अमरिंदर सिंह ऐसा करने का निर्णय लें और परदे के पीछे से बीजेपी का सपोर्ट हासिल हो.
कैप्टन अगर अपनी पार्टी बनाते हैं तो बीजेपी के साथ परदे के पीछे चुनावी समझौता हो सकता है - और बाद में नतीजों के हिसाब से सारी चीजें तय भी की जा सकती हैं.
अपनी पार्टी तो कैप्टन अमरिंदर सिंह ने 80 के दशक में भी बनायी थी, लेकिन बाद में कोई फायदा नजर नहीं आने पर कांग्रेस में विलय कर लिया था. वैसे नवजोत सिंह सिद्धू ने भी बीजेपी छोड़ने के बाद और कांग्रेस ज्वाइन करने से पहले एक मोर्चा बनाया था जिसके नाम पर कुछ दिन तक प्रेस कांफ्रेंस भी करते रहे.
हालांकि, 80 साल के होने जा रहे कैप्टन अमरिंदर के लिए अब पार्टी बनाना भी काफी मुश्किल होगा, लेकिन उनका आत्मविश्वास देख कर तो लगता है कि उनको मजा ही आएगा. कुछ ही दिन सही.
4. बीजेपी ज्वाइन करें
किसान आंदोलन के दौरान कई मौकों पर लगा भी और माना जाता है कि कैप्टन अमरिंदर सिंह के केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दोनों ही के साथ अच्छे संबंध रहे हैं.
ऐसे संबंधों को कैप्टन अमरिंदर सिंह की मजबूत राष्ट्रवादी विचारधारा खाद पानी बन कर और भी मजबूत बनाती रही है - पहले भी सिद्धू की पाकिस्तान यात्रा रही हो, इमरान खान से सिद्धू की दोस्ती का मुद्दा हो या फिर पाकिस्तानी आर्मी चीफ जनरल कमर बाजवा से गले मिलने की बात, कैप्टन अमरिंदर सिंह का भी स्टैंड वही रहा है जो बीजेपी का होता है.
तब इमरान खान ने सिद्धू ही नहीं बल्कि कैप्टन अमरिंदर सिंह को भी बुलाया था, लेकिन वो भी उसी लाइन पर कायम रहे जो तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज का स्टैंड रहा.
अपने इस्तीफे के तत्काल बाद भी कैप्टन अमरिंदर सिंह ने जिस तरीके से सिद्धू पर हमला बोला है, वो भी एक ही दिशा में इशारे कर रहा है. अब कैप्टन चाहें तो बीजेपी का भगवा चोला ओढ़ कर अपने राष्ट्रवाद को और भी फलने फूलने का मौका दे सकते हैं.
हालांकि, बीजेपी से कैप्टन को बहुत उम्मीद भी नहीं करनी होगी. बीजेपी भी कैप्टन को वैसे ही कांग्रेस के खिलाफ इस्तेमाल करेगी जैसे 2015 में बिहार में जीतनराम मांझी को नीतीश कुमार के खिलाफ किया था. कैप्टन भी जब तक कांग्रेस को डैमेज करने में मददगार साबित होंगे, फायदे में रहेंगे.
अभी ये तो नहीं कहा जा सकता है कि बीजेपी कैप्टन अमरिंदर सिंह को लेकर भी हिमंता बिस्व सरमा की तरफ हवाई किला बना रही होगी, लेकिन ये तो हो ही सकता है सेवाओं के एवज और इनाम में कैप्टन अमरिंदर सिंह को भी देश के किसी न किसी राज भवन में कुछ दिन गुजारने का मौका मिल जाये - जहां कांग्रेस के मुख्यमंत्री हों. बुढ़ापा काटने के लिए इससे बेहतर तो कोई विकल्प भी नहीं हो सकता.
5. किंगमेकर भी बन सकते हैं
पटियाला के राज परिवार से आने वाले कैप्टन अमरिंदर सिंह अब तक तो किंग के किरदार निभाते रहे, चाहें तो आगे कुछ दिन किंगमेकर भी बन सकते हैं - किंगमेकर होने का भी अपना ही मजा है.
एक बात तो साफ है अगर किंगमेकर की भूमिका में आये तो कांग्रेस, आम आदमी पार्टी या अकाली दल का किंग तो बनने नहीं देना चाहेंगे. कांग्रेस में भी सिद्धू के खिलाफ तो विरोध का बिगुल अभी से बजाने लगे हैं, जाहिर से बचती बीजेपी ही है.
अगर कांग्रेस और बीजेपी से बात न बने तो कोई अलग मोर्चा खड़ा होने में भी भूमिका निभा सकते हैं. किसान आंदोलन का भी कैप्टन अमरिंदर सिंह ने खुल कर सपोर्ट किया है और पंचायत चुनाव के नतीजे सबूत भी हैं. ऐसे में किसानों और केंद्र सरकार के बीच मध्यस्त बन कर अगर किसी नतीजे पर मसला पहुंचा सकें तो भी अच्छा ही टाइमपास समझा जाएगा.
ये तो साफ है कि कांग्रेस के मुख्यमंत्री पद पर फैसला लेने से पहले कैप्टन अमरिंदर सिंह तो कुछ भी जाहिर नहीं करने वाले हैं क्योंकि असली रणनीति तो उसके बाद ही तैयार की जा सकेगी.
चुनाव से पहले कैप्टन अमरिंदर सिंह के मन में बदले का विचार आता है तो अपने समर्थक विधायकों को तोड़ कर बीजेपी ज्वाइन करा सकते हैं. ऐसा हुआ तो कांग्रेस की सरकार गिर जाएगी और राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ेगा - क्योंकि चुनाव तो समय पर होंगे ही.
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