सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) को खराब सेहत की वजह से दिल्ली छोड़ कर हफ्ते भर के लिए गोवा शिफ्ट होना पड़ा है - और तब तक के लिए अंतरिम अध्यक्ष ने सीनियर कांग्रेस नेताओं को होम वर्क भी दे दिया है.
जुलाई में सोनिया गांधी सर गंगाराम अस्पताल में भर्ती हुई थीं. फिर अगस्त से ही सोनिया गांधी डॉक्टरों की निगरानी में हैं और सितंबर में चेक अप के लिए विदेश जाना पड़ा था जिसकी वजह से सोनिया के साथ साथ राहुल गांधी भी संसद सत्र में शामिल नहीं हो पाये थे. दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण के चलते डॉक्टरों ने कुछ दिन के लिए कहीं दूर जाकर रहने की सलाह दी थी.
बिहार चुनाव और देश भर में हुए उपचुनावों में कांग्रेस की हार के बाद कपिल सिब्बल ने पार्टी की हालत पर चिंता जताने के साथ साथ नेतृत्व पर सवाल भी उठाये थे. आर्थिक मामलों मसलों को लेकर कांग्रेस के बचाव में मोर्चे पर तैनात रहने वाले पी. चिदंबरम ने भी पार्टी के चुनावी प्रदर्शन पर तंज भरी टिप्पणी की थी.
गोवा रवाना होने से पहले सोनिया गांधी ने कांग्रेस नेतृत्व को देश से जुड़े मुद्दों पर सलाह देने के लिए तीन कमेटियां बनायी हैं - पांच सदस्यों वाली तीनों कमेटी की पहली खासियत है कि इनमें चार असंतुष्टों को जगह दी गयी है - और दूसरी, ये कि किसी में भी राहुल गांधी या प्रियंका गांधी वाड्रा को जगह नहीं दी गयी है.
कांग्रेस के असंतुष्टों में भी विरोध का झंडा लेकर आगे चलने वालों में गुलाम नबी आजाद (Ghulam Nabi Azad) तो कमेटी में शामिल किये गये हैं, लेकिन कपिल सिब्बल (Kapil Sibal) को किसी भी में जगह नहीं मिली है, जबकि सभी में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह शामिल किये गये हैं.
ये झुनझुने कब तक बजाये जाएंगे
कोरोना संकट शुरू होने से लेकर अब तक सोनिया गांधी और राहुल गांधी भारत-चीन सीमा विवाद और ऐसे ही कुछ रटे रटाये मुद्दों पर फोकस नजर आये और थोड़े थोड़े अंतराल पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को टारगेट कर हमला बोलते रहे. यहां तक कि बिहार चुनाव में भी राहुल गांधी के निशाने पर मुख्यमंत्री नीतीश...
सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) को खराब सेहत की वजह से दिल्ली छोड़ कर हफ्ते भर के लिए गोवा शिफ्ट होना पड़ा है - और तब तक के लिए अंतरिम अध्यक्ष ने सीनियर कांग्रेस नेताओं को होम वर्क भी दे दिया है.
जुलाई में सोनिया गांधी सर गंगाराम अस्पताल में भर्ती हुई थीं. फिर अगस्त से ही सोनिया गांधी डॉक्टरों की निगरानी में हैं और सितंबर में चेक अप के लिए विदेश जाना पड़ा था जिसकी वजह से सोनिया के साथ साथ राहुल गांधी भी संसद सत्र में शामिल नहीं हो पाये थे. दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण के चलते डॉक्टरों ने कुछ दिन के लिए कहीं दूर जाकर रहने की सलाह दी थी.
बिहार चुनाव और देश भर में हुए उपचुनावों में कांग्रेस की हार के बाद कपिल सिब्बल ने पार्टी की हालत पर चिंता जताने के साथ साथ नेतृत्व पर सवाल भी उठाये थे. आर्थिक मामलों मसलों को लेकर कांग्रेस के बचाव में मोर्चे पर तैनात रहने वाले पी. चिदंबरम ने भी पार्टी के चुनावी प्रदर्शन पर तंज भरी टिप्पणी की थी.
गोवा रवाना होने से पहले सोनिया गांधी ने कांग्रेस नेतृत्व को देश से जुड़े मुद्दों पर सलाह देने के लिए तीन कमेटियां बनायी हैं - पांच सदस्यों वाली तीनों कमेटी की पहली खासियत है कि इनमें चार असंतुष्टों को जगह दी गयी है - और दूसरी, ये कि किसी में भी राहुल गांधी या प्रियंका गांधी वाड्रा को जगह नहीं दी गयी है.
कांग्रेस के असंतुष्टों में भी विरोध का झंडा लेकर आगे चलने वालों में गुलाम नबी आजाद (Ghulam Nabi Azad) तो कमेटी में शामिल किये गये हैं, लेकिन कपिल सिब्बल (Kapil Sibal) को किसी भी में जगह नहीं मिली है, जबकि सभी में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह शामिल किये गये हैं.
ये झुनझुने कब तक बजाये जाएंगे
कोरोना संकट शुरू होने से लेकर अब तक सोनिया गांधी और राहुल गांधी भारत-चीन सीमा विवाद और ऐसे ही कुछ रटे रटाये मुद्दों पर फोकस नजर आये और थोड़े थोड़े अंतराल पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को टारगेट कर हमला बोलते रहे. यहां तक कि बिहार चुनाव में भी राहुल गांधी के निशाने पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से ज्यादा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही दिखे. हो सकता है, नीतीश कुमार को तेजस्वी यादव के हिस्से देकर प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ राहुल गांधी ने खुद को फोकस रखने का फैसला किया है.
अंत भला तो सब भला - ऐसा नीतीश कुमार ने बिहार चुनाव प्रचार के आखिरी दौर में बोला था. बीजेपी के मजबूत सपोर्ट बिहार के लोगों के छिटपुट आशीर्वाद की बदौलत नीतीश कुमार का अंत तो भला हो गया, लेकिन राहुल गांधी के हिस्से वही सब आया जो दिल्ली या दूसरे चुनावों में आता रहा. 70 सीटों पर चुनाव लड़कर भी महज 19 सीटें हासिल करने के लिए राहुल गांधी को आरजेडी का भी कोपभाजन होना पड़ा. आरजेडी नेता शिवानंद तिवारी ने तो राहुल गांधी के चुनाव के वक्त प्रियंका गांधी के साथ पिकनिक मनाने को लेकर भी तंज कसा था.
चुनाव नतीजों के बाद, कपिल सिब्बल ने इंडियन एक्सप्रेस को दिये इंटरव्यू में कहा था कि लगता है कांग्रेस नेतृत्व को अब हारते रहने की आदत पड़ चुकी है. कपिल सिब्बल भी कांग्रेस के उन 23 नेताओं में शुमार रहे जिन्होंने सोनिया गांधी को पत्र लिख कर दरख्वास्त की थी कि कांग्रेस में CWC सदस्यों का भी चुनाव कराया जाये और एक स्थायी अध्यक्ष चुनने की भी कोशिश हो. पत्र के जरिये नेताओं ने कांग्रेस अध्यक्ष की निम्नतम योग्यता भी बतायी थी - वास्तव में काम करता हुआ नजर भी आये.
चिट्ठी पर हस्ताक्षर करने वाले नेताओं का नेतृत्व राज्य सभा में कांग्रेस के नेता गुलाम नबी आजाद ने किया था - और उनको भी कांग्रेस की एक कमेटी में शामिल किया गया है. गुलाम नबी आजाद को राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर बनी कमेटी में शामिल किया गया है, लेकिन उनको संयोजक नहीं बनाया गया है.
गुलाम नबी आजाद के साथ ही समूह-23 के बागी कांग्रेस ब्रिगेड के तीन सदस्यों - आनंद शर्मा, शशि थरूर और एम. वीरप्पा मोइली को भी नयी कमेटियों में जगह मिली है. कमेटियों में जयराम रमेश के साथ साथ मल्लिकार्जुन खड़गे और दिग्विजय सिंह जैसे कांग्रेस नेतृत्व के करीबी और भरोसेमंद नेता शामिल हैं.
सवाल ये है कि ये कमेटियां भी पहले की तरह ही टाइमपास इंतजाम हैं या फिर कुछ ठोस चीज निकल कर आने की उम्मीद है? अगर ऐसा कुछ नहीं है, फिर तो ऐसा ही लगता है जैसे बच्चों को व्यस्त रखने के लिए जैसे झुनझुना थमा दिया जाता है, सोनिया गांधी ने कमेटियां बना कर कागजों और बैठकों में उलझाने की कोशिश की है - इस हिसाब से ये कमेटियां तो झुनझुने से ज्यादा नहीं लग रही हैं.
न राहुल न प्रियंका - लेकिन ऐसा क्यों?
कोरोना वायरस और लॉकडाउन से पैदा समस्याओं ओर मुद्दों पर कांग्रेस अध्यक्ष को सलाह देने के लिए भी 11 सदस्यों वाली एक कमेटी बनायी गयी थी. कमेटी की अगुवाई मनमोहन सिंह को करने को कहा गया था. हाल फिलहाल ये ऐसी पहली कमेटी देखने को मिली थी जिसमें अहमद पटेल जैसे नियमित सदस्य बनने की रस्म निभाने वालें नेताओं को दूर रखा गया था.
एक और खास बात ये रही कि कमेटी में राहुल गांधी को तो शामिल किया गया था, लेकिन प्रियंका गांधी वाड्रा का नाम नदारद दिखा था. बहरहाल, कांग्रेस की वो कमेटी अब भी है या खत्म हो गयी कोई अपडेट नहीं आया. वैसे कमेटी ने कोई उल्लेखनीय काम किया हो, ऐसा भी नहीं देखने को मिला.
बड़ा सवाल ये है कि तीनों ही कमेटियों में से किसी में भी राहुल गांधी या सोनिया गांधी को शामिल क्यों नहीं किया गया है?
अगर राहुल गांधी और प्रियंका गांधी दोनों नहीं तो कम से कम किसी एक को तो कोरोना संकट के दौरान बनी कमेटी की तरह शामिल किया ही जा सकता था - क्या इन कमेटियों के गठन और कमेटियों से राहुल-प्रियंका को दूर रखने के पीछे कोई खास राजनीतिक मकसद भी हो सकता है?
कहीं ऐसा तो नहीं कि राहुल गांधी और असंतुष्ट नेताओं के बीच टकराव टालने के लिए सोनिया गांधी ने ऐसा किया हो. प्रियंका गांधी भी तो ऐसे मसलों में राहुल गांधी के साथ ही खड़ी नजर आयी हैं. सीडब्ल्यूसी की धारा 370 को लेकर हुई मीटिंग रही हो, या फिर ऐसे मौके जब प्रधानमंत्री मोदी पर निजी हमले के खिलाफ कांग्रेस नेताओं की तरफ से सलाह दी गयी हो.
या फिर ये कमेटियां इतनी महत्वपूर्ण या इस लायक नहीं हैं कि राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा जैसे कांग्रेस नेताओं को शामिल किया जाना उनके कद के हिसाब से उचित नहीं हो - और अगर ऐसा है तो ऐसे झुनझुने से न कांग्रेस को लेकर चिंतित नेता चुप बैठने वाले हैं और न ही कांग्रेस का भला होने वाला है.
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