जिस वक्त सोनिया गांधी कांग्रेस नेताओं के साथ दिल्ली में मीटिंग कर रही थीं, उसी वक्त प्रवर्तन निदेशालय के अफसर डीके शिवकुमार की बेटी ऐश्वर्या से पूछताछ कर रहे थे. कांग्रेस के संकटमोचक और कर्नाटक के ताकतवर नेता डीके शिवकुमार को अगस्त में ही ED ने गिरफ्तार किया था. ठीक उसी वक्त रांची में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कांग्रेस के जमानत पर छूटे बाकी नेताओं को जेल भेजे जाने की जानकारी दे रहे थे.
सोनिया गांधी ने मीटिंग में ललकारते हुए कांग्रेस नेताओं का जोश बढ़ाने की कोशिश तो की ही, बंद वातानुकूलित कमरे की राजनीति से बाहर निकलने की नसीहतें भी लगातार देती रहीं. साथ ही, सोनिया गांधी ने कांग्रेस नेताओं को पार्टी की दमदार वापसी के लिए एक मास्टर प्लान भी सुझाया.
मीटिंग में हर निगाह जिस एक नेता को खोज रही थी वो थे राहुल गांधी जो नहीं पहुंचे थे - लेकिन प्रियंका गांधी वाड्रा पूरे वक्त शिद्दत से मौजूद रहीं.
कांग्रेस में RSS जैसे प्रचारक 'प्रेरक' कहलाएंगे
कांग्रेस बीजेपी नेताओं और RSS पर समाज को बांटने और नफरत फैलाने का आरोप लगाती रही है. लगता है कांग्रेस ऐसा सिर्फ दिखावे के लिए ऊपरी तौर पर करती है. अंदर से तो लगता है कांग्रेस भी वही सब करने को आतुर है जिसके लिए संघ कांग्रेस नेताओं के निशाने पर रहता है.
अब तक राहुल गांधी पर ही संघ और बीजेपी की तरह लोगों से कनेक्ट होने की कोशिश देखी जाती रही, सोनिया गांधी की अगुवाई में तो कांग्रेस लगता है दो कदम और भी आगे बढ़ चुकी है. सोनिया गांधी ने कांग्रेस को फिर खड़ा करने के लिए एक मास्टर प्लान तैयार किया है जिसमें कई कार्यक्रम हैं - और उन्हीं में से एक है - प्रेरकों की नियुक्ति.
ये प्रेरक कांग्रेस के नेताओं को प्रशिक्षित करेंगे ताकि वो राजनीतिक विरोधियों से मुकाबले के लिए तैयार हो सकें. ये प्रेरक कांग्रेस के एजेंडे पर ही काम करेंगे. प्रेरकों का कामकाज बिलकुल वैसा ही होगा जैसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक काम करते हैं.
कांग्रेस नेताओं की भक्ति की कौन कहे, सोनिया गांधी का मास्टर प्लान भी RSS जैसा!
कांग्रेस में अब तक सेवा दल का कंसेप्ट रहा, लेकिन पार्टी के भीतर पही बार ऐसी कोई नियुक्ति होने जा रही है. कांग्रेस के केंद्र की सत्ता से बाहर होने के बाद से लगातार महसूस किया जाता रहा है कि पार्टी का काडर बेस खत्म हो चला है. चुनावों के वक्त एक तरफ जहां बीजेपी के पन्ना प्रमुख लोगों को घरों से बुलाकर लाते हैं और वोट दिलवाते हैं - वहीं कांग्रेस को बूथ एजेंट तक के लिए कई जगह जूझना पड़ता है. कांग्रेस से बेहतर तो आम आदमी पार्टी ने कार्यकर्ता खड़े कर लिये हैं - दिल्ली में चुनावों के दौरान लंबी लाइनें और देर तक वोट डाले जाने की बातें आप कार्यकर्ताओं के कारण ही सुनने को मिले. वैसे अब तो दिल्ली में बीजेपी ने आप को फिर से पीछे छोड़ दिया है.
बताते हैं कि डिवीजन स्तर पर कांग्रेस तीन प्रेरक नियुक्त करेगी और उनमें से एक एक महिला प्रेरक जरूर होगी. महिला आरक्षण की पक्षधर कांग्रेस ने अभी तक यही एक तयशुदा फैसला लिया है. प्रेरकों की जो टीम बनेगी उसमें ST, SC, OBC और अल्पसंख्यक समुदाय से बैकग्राउंड प्रतिनिधि भी होंगे. चार से पांच जिलों को मिला कर एक डिवीजन बनाया जाएगा.
RSS प्रचारकों से कितने अलग होंगे कांग्रेस के 'प्रेरक'?
प्रेरकों को लेकर सबसे दिलचस्प होगा सीनियर नेता दिग्विजय सिंह के विचार सुनना? देखना होगा कि कैसे दिग्विजय सिंह समझाते हैं कि कांग्रेस के प्रेरक किस तरीके से आरएसएस वालों से अलग या बेहतर हैं. दिग्विजय सिंह संघ को लेकर हमेशा हमलावर रहे हैं. दिग्विजय सिंह की टिप्पणियां आरएसएस के पुराने गणवेष हाफ खाकी पैंट से लेकर प्रचारकों के रिश्तों तक को निशाना बनाते रहे हैं. वैसे संघ ने प्रचारकों का गणवेश हाफ से अब फुल कर दिया है.
राहुल गांधी तो आरएसएस के खिलाफ एक टिप्पणी को लेकर मानहानि का मुकदमा भी लड़ रहे हैं. एक बयान में राहुल गांधी ने आरएसएस को महात्मा गांधी की हत्या के लिए जिम्मेदार बताया था - जिसे लेकर एक आरएसएस कार्यकर्ता ने 2017 में मानहानि का केस कर दिया. मानहानि के केस के खिलाफ राहुल गांधी की लीगल टीम सुप्रीम कोर्ट तक अपील लेकर पहुंची. ये लगभग वही टीम रही जो फिलहाल पी. चिदंबरम के केस की पैरवी कर रही है. सुप्रीम कोर्ट में राहुल गांधी के सामने दो विकल्प रखे गये - या तो वो माफी मांग कर मामला खत्म करें या फिर ट्रायल फेस करें. राहुल गांधी ने दूसरा विकल्प चुना. संघ की ओर से ही राहुल गांधी के खिलाफ एक और मानहानि केस चल रहा है. ये भी महाराष्ट्र में ही चल रहा है. दूसरा केस कर्नाटक में गौरी लंकेश की हत्या के बाद राहुल गांधी के बयान को लेकर है.
एक तरफ तो राहुल गांधी आरएसएस के पीछे पड़े रहते हैं और दूसरी तरह वैसे ही प्रोग्राम बनाते हैं जैसा संघ की ओर से चलाये जाते रहे हैं. 2017 के गुजरात विधानसभा चुनावों से लेकर 2018 के कर्नाटक चुनाव के बीच कांग्रेस की ओर से राहुल गांधी के सॉफ्ट हिंदुत्व को खूब प्रचारित किया गया. राहुल गांधी को कांग्रेस नेताओं ने जनेऊधारी शिव भक्त के तौर पर पेश किया. राहुल गांधी भी मंदिरों और मठों का लगातार चक्कर लगाते रहे - और कर्नाटक चुनाव के दौरान फ्लाइट में एक बार ऐसी स्थिति आई कि राहुल गांधी को कैलाश मानसरोवर के लिए मन्नत तक मांगनी पड़ी. बाद में राहुल गांधी ने तीर्थयात्रा भी पूरी की - जो धार्मिक और आध्यात्मिक कम और राजनीतिक ज्यादा दिखी.
दरअसल, कांग्रेस खुद पर लगा मुस्लिम पार्टी का ठप्पा हटाना चाहती है. कांग्रेस नेतृत्व का कहना है कि संघ और बीजेपी ने ही कांग्रेस को इस रूप में पेश कर दिया है - तभी से राहुल गांधी खुद को कट्टर हिंदू साबित करने में जी जान से जुटे रहते हैं. जोश ऐसा भी होता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बारे में भी कह बैठते हैं कि उन्हें हिंदुत्व की अच्छी जानकारी नहीं है. मोदी पर नफरत फैलाने का आरोप लगाने वाले राहुल गांधी सारी मेहनत पर पानी भी खुद ही फेर देते हैं जब भरी संसद में लाइव टीवी पर मोदी से गले मिलते हैं और फिर आंख भी मार देते हैं.
अब सवाल ये है कि कांग्रेस के 'प्रेरक' राहुल गांधी के सॉफ्ट हिंदुत्व को ही आगे बढ़ाएंगे? या फिर प्रेरकों की भूमिका हार्ड-कोर हिंदुत्व के एजेंडे पर चलने वाली होगी?
क्या कांग्रेस के प्रेरकों के लिए भी संघ की तरह अविवाहित रहने की शर्त होगी?
अभी तक जितनी जानकारी मिली है उससे तो इतना ही मालूम होता है कि ये प्रेरक कांग्रेस नेताओं को प्रशिक्षित करेंगे - और उन्हें राजनीतिक विरोधियों से मुकाबले के गुर सिखाएंगे.
हैरानी की बात तो ये रही कि कांग्रेस की जिस मीटिंग में इतना बड़ा फैसला लिया गया, राहुल गांधी मौजूद ही नहीं थे. राहुल गांधी को लेकर कांग्रेस नेताओं की ओर से विराम देने की कोशिश भी की गयी, ‘चूंकि राहुल गांधी के पास कांग्रेस पार्टी में फिलहाल कोई पद नहीं है, इसलिए वो इस बैठक में शामिल नहीं हुए हैं.’
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