सिर्फ डेढ़ दशक में उत्तर प्रदेश की सियासत में अर्श से फर्श पर आ गए दो क्षेत्रीय दल समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के बीच की दोस्ती क्या वास्तव में लम्बी चलेगी? सवाल बड़ा भी है और मौजू भी. सपा मुखिया अखिलेश यादव को पूरी उम्मीद है कि बसपा प्रमुख मायावती सपा के साथ गुजरे स्टेट गेस्ट हाउस काण्ड सरीखे पुराने बेहद कटु अनुभवों को भुलाकर उन्हें अपना सियासी शुभचिन्तक बना लेंगी. अखिलेश को बसपा की दोस्ती परखने के लिए लम्बे इंतजार की जरूरत नहीं. उत्तर प्रदेश में राज्यसभा की रिक्त हुई दस सीटों पर होने जा रहे चुनाव दोनों के भरोसे और दोस्ती, दोनों की परख करने जा रहे हैं.
देश की जनता के सामने इस बार का लोकसभा चुनाव भी काफी दिलचस्प होने वाला है
कैसे? इसका जवाब बेहद सीधा भी है और उलझा हुआ भी. उत्तर प्रदेश की दस सीटों पर होने जा रहे राज्यसभा सांसदों के चुनाव में समाजवादी पार्टी को कम से कम पांच सीटों का नुकसान होना तय है. जबकि भारतीय जनता पार्टी को इस मर्तबा बड़ा लाभ होगा. इस चुनाव में भाजपा के आठ राज्यसभा सांसदों का जीतना तय है. मौजूदा समय में उत्तर प्रदेश से समाजवादी पार्टी के छह राज्यसभा सांसद हैं. विधानसभा चुनाव में सिर्फ 47 सीटें जीतने की वजह से समाजवादी पार्टी को पांच सीटों का नुकसान होना तय है.
जबकि कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी बिना सियासी बैसाखी के प्रदेश से अपना एक भी प्रत्याशी जिता पाने की स्थिति में नहीं है. भारतीय जनता पार्टी के 325 विधायकों के जीतने की वजह से उसे कम से कम आठ सदस्यों को उच्च सदन में भेजने का मौका मिलेगा. ऐसा इस लिए क्योंकि एक राज्यसभा सांसद को जिताने के लिए 38 विधायकों के मतों की दरकार होती है.
बताया जा रहा है कि राज्य सभा चुनावों के मद्देनजर भाजपा ने अभी से तैयारी शुरू कर दी है
समाजवादी पार्टी ने छह बरस पहले राज्यसभा में अपने छह सदस्यों को भेजा था. इनमें पश्चिम बंगाल के किरणमय नन्दा, दर्शन सिंह यादव, नरेश अग्रवाल, जया बच्चन, चौधरी मुनव्वर सलीम और आलोक तिवारी के नाम शामिल थे. लेकिन इस बार इनमें से सिर्फ जया बच्चन ही सपा से राज्यसभा जाएंगी. यह तय हो चुका है. समाजवादी पार्टी के अलावा बहुजन समाज पार्टी के दो सदस्य राज्यसभा में हैं. इनमें से बसपा सुप्रीमों माायावती पहले ही इस्तीफा दे चुकी हैं. बसपा के एक राज्यसभा सांसद मुनकाद अली का कार्यकाल भी समाप्त हो रहा है. वहीं कांग्रेस के प्रमोद तिवारी और भाजपा के विनय कटियार का कार्यकाल भी पूरा हो रहा है.
बसपा के 19 और कांग्रेस के 7 विधायक होने की वजह से दोनों मिलकर भी किसी एक को उच्च सदन तक भेजने की स्थिति में नहीं हैं. ऐसे में इनके वोटों का मुनाफा किसे हासिल होगा? यह देखना दिलचस्प होगा. यहां एक बार गौर करने वाली है. करीब दो सालों से परिवार और पार्टी में तकरार झेल रहे अखिलेश यादव अपने 47 विधायकों में से सभी के प्रति आज भी पूरी तरह आश्वस्त नहीं हैं. उन्हें यह चिन्ता लगातार सता रही है कि आखिर उनके चाचा शिवपाल सिंह यादव और शिवपाल समर्थक पांच विधायक राज्यसभा चुनाव के दरम्यान किसे अपने मत देते हैं?
सपा की बसपा संग दोस्ती भी राज्य सभा चुनाव को एक दिलचस्प मोड़ देने वाली है
यहीं वो पेंच पैदा होता है जो सपा और बसपा की दोस्ती की मियाद तंय करेगा. क्योंकि बसपा ने सपा की दोस्ती के दम पर ही अपना एक प्रत्याशी राज्यसभा जाने के लिए मैदान में उतार दिया है. यदि उसे जिता पाने में अखिलेश यादव कामयाब हुए तो दोस्ती वर्ष 2019 के लोकसभा चुनावों में हकीकत की शक्ल अख्तियार कर लेगी. लेकिन यदि अपने सभी विधायों को साथ रख पाने में अखिलेश नाकाम रहे तो पूरा मामला आकार लेने से पहले ही टांय-टांय फिस हो सकता है.
दसवीं सीट के लिए मुकाबला बेहद दिलचस्प होगा। बसपा, सपा और कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती अपने विधायकों की क्रास वोटिंग को रोकना है. क्योंकि ऐसा होने पर इसका सीधा लाभ सत्ताधारी भाजपा को हो सकता है. भारतीय जनता पार्टी में समाजवादी पार्टी से आये यशवंत सिंह, अशोक बाजपेयी, सरोजनी अग्रवाल, बुक्कल नवाब के अलावा बसपा के जयवीर सिंह समेत कई ऐसे दिग्गज नेता हैं जो उच्च सदन तक पहुंचने की आस लगाये हैं. इनमें सपा छोड़कर आये नेताओं ने विधान परिषद से त्यागपत्र देकर भाजपा के पक्ष में अपनी वफादारी का इम्तहान पहले ही दे दिया है.
उत्तर प्रदेश में राज्यसभा की रिक्त दस सीटों पर होने वाले चुनाव में भाजपा का पलड़ा फिलहाल भारी है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ समेत पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने नौ सीटों पर अपने प्रत्याशियों को जिताने की रणनीति तैयार की है. ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि इस बार भाजपा को अन्य दलों के कितने विधायक अपना समर्थन देते हैं.
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