संसद सत्र के दौरान बरसों से लोक सभा स्पीकर को ज्यादातर एक ही शब्द दोहराते देखने को मिलता रहा है - प्लीज, प्लीज, प्लीज! मोदी सरकार 2.0 में अव्वल तो स्पीकर ओम बिड़ला अंग्रेजी की जगह हिंदी के शब्दों को तरजीह देते हैं, दूसरे ऐसी नौबत ही नहीं आने देते.
संसद में हंगामा तो किरण बेदी के तमिलनाडु पर बयान को लेकर जरूर हुआ, लेकिन AAP सांसद भगवंत मान को जिस अंदाज में स्पीकर ने चुप कराया कि सब हंस पड़े.
किसी को चुप कराने की नौबत आने से पहले ही ओम बिड़ला अपने सेंस ऑफ ह्यूमर का इस्तेमाल करते हुए सदस्यों की बोलती ही बंद कर देते हैं - और फर्क इस बात से भी नहीं पड़ता कि अनुशासन तोड़ने की कोशिश कर रहा सदस्य महज सांसद है या कोई मंत्री.
माननीयों को मालूम हो - 'पढ़ा लिखा स्पीकर हूं'
ओम बिड़ला के स्पीकर चुने जाने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तारीफों के पुल तो बांधे ही, लेकिन एक बाद को लेकर अपना डर भी जाहिर किया था. प्रधानमंत्री मोदी ने हंसते हंसते ही आशंका जतायी थी कि कहीं कोई उनकी विनम्रता का बेजा फायदा न उठाने की कोशिश करे. ओम बिड़ला ये सुन कर सिर्फ मुस्कुरा भर दिये थे. शायद उन्हें मालूम था कि क्या और कैसे करना है कि ऐसी स्थिति न आने पाये.
प्रधानमंत्री मोदी ने स्पीकर ओम बिड़ला के बारे में कहा था, 'ओम बिड़ला जी बहुत विनम्र हैं और सदैव मुस्कुराते रहते हैं. मुझे डर है कि इनके विवेक और नम्रता का कोई गलत प्रयोग न करे.'
थोड़े ही दिन हुए और स्पीकर ओम बिड़ला ने लोक सभा में सदस्यों को इस बात का बखूबी एहसास करा दिया है कि सदन में जो चेयर है वही सब कुछ है - और चेयर की मर्जी के बगैर वहां पत्ता भी नहीं हिलने वाला है.
बजट से एक दिन पहले 4 जुलाई को शून्यकाल के दौरान तमाम सांसद अलग-अलग मुद्दे सदन में उठा रहे थे. उसी क्रम में AAP सांसद भगवंत मान को भी स्पीकर ने बोलने की इजाजत दी थी. भगवंत मान विदेशों में बसे भारतीयों की समस्याओं पर बोलना शुरू कर दिया.
भगवंत मान अभी ज्यादा कुछ बोल पाते कि स्पीकर ओम...
संसद सत्र के दौरान बरसों से लोक सभा स्पीकर को ज्यादातर एक ही शब्द दोहराते देखने को मिलता रहा है - प्लीज, प्लीज, प्लीज! मोदी सरकार 2.0 में अव्वल तो स्पीकर ओम बिड़ला अंग्रेजी की जगह हिंदी के शब्दों को तरजीह देते हैं, दूसरे ऐसी नौबत ही नहीं आने देते.
संसद में हंगामा तो किरण बेदी के तमिलनाडु पर बयान को लेकर जरूर हुआ, लेकिन AAP सांसद भगवंत मान को जिस अंदाज में स्पीकर ने चुप कराया कि सब हंस पड़े.
किसी को चुप कराने की नौबत आने से पहले ही ओम बिड़ला अपने सेंस ऑफ ह्यूमर का इस्तेमाल करते हुए सदस्यों की बोलती ही बंद कर देते हैं - और फर्क इस बात से भी नहीं पड़ता कि अनुशासन तोड़ने की कोशिश कर रहा सदस्य महज सांसद है या कोई मंत्री.
माननीयों को मालूम हो - 'पढ़ा लिखा स्पीकर हूं'
ओम बिड़ला के स्पीकर चुने जाने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तारीफों के पुल तो बांधे ही, लेकिन एक बाद को लेकर अपना डर भी जाहिर किया था. प्रधानमंत्री मोदी ने हंसते हंसते ही आशंका जतायी थी कि कहीं कोई उनकी विनम्रता का बेजा फायदा न उठाने की कोशिश करे. ओम बिड़ला ये सुन कर सिर्फ मुस्कुरा भर दिये थे. शायद उन्हें मालूम था कि क्या और कैसे करना है कि ऐसी स्थिति न आने पाये.
प्रधानमंत्री मोदी ने स्पीकर ओम बिड़ला के बारे में कहा था, 'ओम बिड़ला जी बहुत विनम्र हैं और सदैव मुस्कुराते रहते हैं. मुझे डर है कि इनके विवेक और नम्रता का कोई गलत प्रयोग न करे.'
थोड़े ही दिन हुए और स्पीकर ओम बिड़ला ने लोक सभा में सदस्यों को इस बात का बखूबी एहसास करा दिया है कि सदन में जो चेयर है वही सब कुछ है - और चेयर की मर्जी के बगैर वहां पत्ता भी नहीं हिलने वाला है.
बजट से एक दिन पहले 4 जुलाई को शून्यकाल के दौरान तमाम सांसद अलग-अलग मुद्दे सदन में उठा रहे थे. उसी क्रम में AAP सांसद भगवंत मान को भी स्पीकर ने बोलने की इजाजत दी थी. भगवंत मान विदेशों में बसे भारतीयों की समस्याओं पर बोलना शुरू कर दिया.
भगवंत मान अभी ज्यादा कुछ बोल पाते कि स्पीकर ओम बिड़ला ने उन्हें टोक दिया. फिर समझाया कि जिस शून्य काल में जिस विषय का नोटिस दिया है उसी को उठायें - अगर बदलना भी है तो पहले अनुमति ले लें. स्पीकर ने भगवंत मान को बताया कि वो पंजाब में अध्यापकों की सैलरी के विषय में नोटिस दिया है, ये ध्यान रहे.
आखिर में बोले - मैं पढ़ा लिखा स्पीकर हूं. ये सुनते ही सदन में ठहाके गूंजने लगे और भगवंत मान चुप हो गये. करते भी क्या वो.
कोटा से बीजेपी के टिकट पर दूसरी बार संसद पहुंचे ओम बिड़ला ने महर्षि दयानंद सरस्वती यूनिवर्सिटी, अजमेर से एमकॉम की डिग्री ले रखी है. और उनकी पत्नी अमिता बिड़ला कोटा के ही एक सरकारी अस्पताल में गाइनकोलॉजिस्ट हैं.
17वीं लोकसभा का पहला सत्र खत्म होने के बाद स्पीकर ओम बिड़ला सभी राज्यों के विधानसभा अध्यक्षों की एक मीटिंग बुलाने जा रहे हैं. ओम बिड़ला चाहते हैं कि विधानसभाओं की बैठकों की संख्या बढ़ाने की कोशिश हो. हालांकि, उससे पहले वो लोकसभा की कार्यवाही अच्छे से चलाकर विधानसभाओं के सामने मिसाल के तौर पर पेश करना चाहते हैं.
मंत्री भी सिर्फ अपने काम से मतलब रखें!
सिर्फ सदस्यों को ही नहीं स्पीकर ओम बिड़ला मंत्रियों को भी नहीं बख्श रहे हैं. स्पीकर के इस कठोर अनुशासनात्मक नियम के ताजा शिकार हुए हैं मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक.
रमेश पोखरियाल बोल रहे थे तभी एनसीपी सांसद सुप्रिया सुल ने कुछ कहना चाहा. रमेश पोखरियाल ने हाथ से इशारा कर बोलने को कह दिया. सुप्रिया सुले ने अपनी बात कह भी दी. जैसे रमेश पोखरियाल अपनी बात आगे बढ़ाने को हुए, स्पीकर ने उन्हें टोक दिया और हिदायत भरी चेतावनी देकर ही छोड़ी.
स्पीकर ने रमेश पोखरियाल को रोकते हुए कहा, 'मंत्री जी आप आज्ञा न दिया करें, सदन में आज्ञा देने का काम मेरा है.'
रमेश पोखरियाल अवाक रह गये, करते भी तो क्या सदन में लगे ठहाकों में खुद भी शामिल हो गये.
जो हुआ वो हुआ, अब नहीं चलेगा
किसी भी मुद्दे पर सदन में खड़े होकर बोलना होता है. एक दिन एक सांसद बैठे बैठे बोलना शुरू कर दिया. नियमों के पक्के स्पीकर ओम बिड़ला को भला ये कैसे बर्दाश्त होता. फटकार लगाते देर न लगी - 'आप यहां बैठकर ज्ञान नहीं दे, सदन नियमों से चलेगा. पहले कैसे भी होता आया हो, लेकिन अब ऐसा नहीं होगा.'
एक वाकया ये भी हुआ कि कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई और बीजेपी सांसद रमेश बिधूड़ी एक-दूसरे से उलझ गये. अब तक तो ऐसे मामलों में स्पीकर को खड़े होकर प्लीज-प्लीज बोल कर सदस्यों से चुप होने की गुजारिश सुनने को मिलता रहा है. स्पीकर ओम बिड़ला ने दोनों सांसदों को ऐसे डपटा की चुप ही हो गये.
सांसद बोल सकें, इसलिए लंच लेट करने लगे
स्पीकर ओम बिड़ला लोक सभा के कामकाज के तरीके में लगातार बदलाव कर रहे हैं - एक बड़ा बदलाव है नये सांसदों को बोलना का पूरा मौका देना. इस बात की सीख में उन्हें खुद के अनुभव से ही मिली है.
2014 में ओम बिड़ला चुनाव जीत कर लोक सभा पहुंचे थे - लेकिन सदन में बोलने के पहले मौके के लिए उन्हें साल भर तक इंतजार करना पड़ा था. ओम बिड़ला ने ये बाद याद रखी थी और जैसे ही मौका मिला उस पर अमल करने लगे.
ओम बिड़ला की पहल से संसद में अब तक सौ से ज्यादा नये सांसदों को शून्य काम में बोलने का मौका मिल चुका है. निर्विरोध स्पीकर बने ओम बिड़ला लोक सभा में लगातार अनुशासन बनाये रखने की कोशिश कर रहे हैं और इसमें कामयाबी भी मिल रही है. ओम बिड़ला की कोशिश ये भी है कि वो सांसदों को ज्यादा से ज्यादा बोलने का मौका दें - क्योंकि वो नहीं चाहते कि जैसा उनके साथ हुआ वैसा बाकी नये सांसदों के साथ भी हो.
स्पीकर इस बात का भी ख्याल रखते हैं कि हर किसी को बोलने का मौका मिले - लेकिन बीच में कोई टपक पड़े ये उन्हें बर्दाश्त नहीं. किसी सदस्य के बीच में बोलने का मतलब कार्यवाही में व्यवधान होना हुआ. ऐसे में वो खुद दखल देकर बाद में मौका मुहैया कराने का आश्वासन देते हैं और उसे पूरा भी करते हैं.
डीएमके नेता टीआर बालू को के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ था. स्पीकर ने टीआर बालू को बीच में बोलने से तो मना कर दिया था लेकिन बाद में भरपूर मौका दिया.
भला ऐसा कौन होगा जो इस बात से खुश नहीं होगा. वो भी तब जब नये सदस्यों को बोलने में बाधा न पहुंचे इसके लिए स्पीकर लगातार आसन पर बैठे रहें - और ये सुनिश्चित करने के लिए अपने लंच का समय भी आगे बढ़ा दें.
सदन में नारेबाजी नहीं चलेगी
स्पीकर ओम बिड़ला ने सदन में धार्मिक नारे लगाने पर भी पाबंदी लगा दी है, ये समझाते हुए कि ये शौक नेता सार्वजनिक सभाओं में जाकर ही पूरा करें. हालांकि, इसमें 'वंदे मातरम' और 'भारत माता की जय' नहीं शामिल है. ऐसा देखने को मिला था कि सदस्यों के शपथ के मौके पर खूब धार्मिक नारे लगाये गये थे.
वैसे ये भी जान लेना चाहिये कि संसद में खुद भी ओम बिड़ला ने अपने भाषण की शुरुआत और अंत वंदे मातरम से ही की थी. ऐसा करने वाले वो शायद पहले स्पीकर भी हैं.
स्पीकर चेयर तक जाने की जरूत नहीं है
स्पीकर ओम बिड़ला ने लोक सभा में एक विशेष व्यवस्था और भी लागू की है. नयी व्यवस्था के तहत अब कोई भी सदस्य चेयर के पास पहुंच कर या चेयर के पीछे खड़े मार्शल से भी बात नहीं कर सकता.
किसी मंत्री को भी स्पीकर तक अपनी बात पहुंचानी है तो वो लिखित रूप में सदन में मौजूद स्टाफ के जरिये भेज सकता है. खास बात ये है कि ऐसा करने से पहले सभी राजनीतिक दलों की सहमति ली गयी है.
संसद और बंगाल विधानसभा का फर्क!
एक वाकया ऐसा भी हुआ जब तृणमूल कांग्रेस के सांसद और पश्चिम बंगाल से चुन कर आये बीजेपी सांसद किसी बात को लेकर आपस में उलझ गये. देखते देखते तेज दोनों पक्षों में तेज नोकझोंक होने लगी. जब आरोप-प्रत्यारोप का दौर थोड़ा लंबा दिखा तो स्पीकर ने दखल दी.
स्पीकर ओम बिड़ला बोले, 'सदन को बंगाल विधानसभा मत बनाइए.'
हंगामे के चलते संसद में कामकाज ही न हो, ये ठीक नहीं होता. बरसों से सदन की कार्यवाही में विपक्षी दलों का हंगामा बहुत बड़ी बाधा रही है लेकिन अब तस्वीर बदलने लगी है. अच्छा तो ये भी नहीं लगेगा कि संसद सत्र के दौरान हंगामा ही न हो - फिर तो सन्नाटे जैसा ही लगेगा.
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