श्रीलंका में हुए बम धमाकों में मरने वालों की संख्या बढ़कर 359 तक पहुंच गई है, लेकिन अगर श्रीलंका ने भारत की बातों को गंभीरता से लिया होता, तो शायद किसी की जान नहीं जाती. दरअसल, तीन सूत्रों ने इस बात की पुष्टि की है कि रविवार को हुए धमाकों से पहले शनिवार को भी भारत ने हमले के बारे में श्रीलंका को चेतावनी दी थी. ऐसा नहीं है कि पहली बार ये चेतावनी दी गई. इससे पहले 4 अप्रैल और 20 अप्रैल को भी श्रीलंका को ऐसे किसी हमले के बारे में चेताया गया था.
शुरुआत में तो तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे थे कि किसने ये धमाका किया, लेकिन कुछ दिनों बाद इस हमले की जिम्मेदारी आतंकी संगठन आईएस (इस्लामिक स्टेट) ने ली. ये धमाका करने के लिए आतंकियों ने ईस्टर रविवार का दिन चुना था, ताकि चर्चों में अधिक से अधिक ईसाई लोग पहुंचें और हमले में अधिक से अधिक लोग मारे जाएं. हुआ भी वैसा ही. 2009 में लिट्टे के खत्म हो जाने के बाद श्रीलंका काफी शांत था, लेकिन 21 अप्रैल रविवार को एक के बाद एक हुए 8 धमाकों ने श्रीलंका को फिर से अशांत कर दिया है. लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि जब भारत ने श्रीलंका को चेतावनी दी थी, तो फिर उन्होंने भारत की बात मानी क्यों नहीं? क्यों आतंकी हमले जैसी चेतावनी को भी नजरअंदाज कर दिया गया?
हमले से चंद घंटे पहले ही कर दिया था अलर्ट !
श्रीलंका में ईस्टर संडे को हुए आतंकी हमले से जुड़े तीन सूत्रों ने इस बात की पुष्टि की है कि हमले से पहले ही चेतावनी मिल चुकी थी. श्रीलंका डिफेंस के एक सूत्र और एक भारतीय सरकार के सूत्र के अनुसार भारतीय खुफिया अधिकारियों ने श्रीलंका के अपने समकक्ष से पहले हमले से करीब 2 घंटे पहले संपर्क कर के हमले की...
श्रीलंका में हुए बम धमाकों में मरने वालों की संख्या बढ़कर 359 तक पहुंच गई है, लेकिन अगर श्रीलंका ने भारत की बातों को गंभीरता से लिया होता, तो शायद किसी की जान नहीं जाती. दरअसल, तीन सूत्रों ने इस बात की पुष्टि की है कि रविवार को हुए धमाकों से पहले शनिवार को भी भारत ने हमले के बारे में श्रीलंका को चेतावनी दी थी. ऐसा नहीं है कि पहली बार ये चेतावनी दी गई. इससे पहले 4 अप्रैल और 20 अप्रैल को भी श्रीलंका को ऐसे किसी हमले के बारे में चेताया गया था.
शुरुआत में तो तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे थे कि किसने ये धमाका किया, लेकिन कुछ दिनों बाद इस हमले की जिम्मेदारी आतंकी संगठन आईएस (इस्लामिक स्टेट) ने ली. ये धमाका करने के लिए आतंकियों ने ईस्टर रविवार का दिन चुना था, ताकि चर्चों में अधिक से अधिक ईसाई लोग पहुंचें और हमले में अधिक से अधिक लोग मारे जाएं. हुआ भी वैसा ही. 2009 में लिट्टे के खत्म हो जाने के बाद श्रीलंका काफी शांत था, लेकिन 21 अप्रैल रविवार को एक के बाद एक हुए 8 धमाकों ने श्रीलंका को फिर से अशांत कर दिया है. लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि जब भारत ने श्रीलंका को चेतावनी दी थी, तो फिर उन्होंने भारत की बात मानी क्यों नहीं? क्यों आतंकी हमले जैसी चेतावनी को भी नजरअंदाज कर दिया गया?
हमले से चंद घंटे पहले ही कर दिया था अलर्ट !
श्रीलंका में ईस्टर संडे को हुए आतंकी हमले से जुड़े तीन सूत्रों ने इस बात की पुष्टि की है कि हमले से पहले ही चेतावनी मिल चुकी थी. श्रीलंका डिफेंस के एक सूत्र और एक भारतीय सरकार के सूत्र के अनुसार भारतीय खुफिया अधिकारियों ने श्रीलंका के अपने समकक्ष से पहले हमले से करीब 2 घंटे पहले संपर्क कर के हमले की चेतावनी दी थी. श्रीलंका डिफेंस के एक अन्य सूत्र ने भी कहा है कि यह चेतावनी पहले हमले से कुछ घंटे पहले ही मिल गई थी. वहीं दूसरी ओर श्रीलंका के एक सूत्र ने कहा है कि ये चेतावनी शनिवार को दी गई थी. बार-बार चेतावनी दी गई, लेकिन श्रीलंका ने गंभीरता से नहीं लिया. भारत की ओर से दी गई चेतावनी में कहा गया था कि भारतीय दूतावास और कुछ चर्चों पर हमले की योजना है. भारतीय दूतावास में सुरक्षा कड़ी कर के उसे तो बचा लिया गया, लेकिन सुरक्षा में चूक के कारण चर्चों में धमाकों नहीं रोका जा सका.
RAW पर भरोसा नहीं करता श्रीलंका !
श्रीलंका के राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना के अक्टूबर 2018 के बयान को देखें तो ये साफ हो जाता है कि क्यों श्रीलंका ने भारत की चेतावनी को गंभीरता से नहीं लिया. उन्होंने कहा था कि भारतीय रिसर्च एंड एनालिसिस विंग यानी RAW उनकी हत्या की साजिश रच रहा है. कैबिनेट मीटिंग के दौरान कही थी, जहां बैठा एक सूत्र उनके मुंह से ऐसी बात सुनकर हैरान रह गया था. 'द हिंदू' अखबार ने इस खबर को छापा भी है. हालांकि, किसी भी वरिष्ठ अधिकारी ने इस बात की पुष्टि नहीं की थी.
अब जो श्रीलंका RAW पर ही भरोसा नहीं करता है, वह उनके द्वारा दी गई जानकारी को विश्वसनीय क्यों मानेगा. बस यहीं पर श्रीलंका के सुरक्षा अधिकारी गलती कर गए और अपना ही नुकसान कर बैठे. ये बात सिरिसेना ने तब कही थी, जिसके चंद दिनों बाद ही श्रीलंका के प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे भारत के तीन दिवसीय दौरे पर आने वाले थे. वैसे अगर एक बार मान भी लें कि RAW को लेकर चल रही वह खबर सही नहीं थी तो भी ये बात साफ है कि श्रीलंका RAW पर भरोसा नहीं करता है. श्रीलंका की ओर से RAW पर पहली बार आरोप नहीं लग रहे हैं. इससे पहले पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे ने भी 2015 के चुनावों के बाद सत्ता परिवर्तन के लिए RAW को जिम्मेदार ठहराया था.
श्रीलंका में प्रधानमंत्री vs राष्ट्रपति
श्रीलंका की राजनीति पर एक नजर डालें तो ये साफ दिखता है कि वहां प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति ही एक दूसरे के खिलाफ हैं. आए दिन राष्ट्रपति सिरिसेना पीएम विक्रमसिंघे के बारे में कुछ ना कुछ कहते हैं. अभी हुए हमले पर विक्रमसिंघे ने कहा है कि भारत ने तो चेतावनी दी थी, लेकिन कुछ लोगों द्वारा उस सूचना को आगे नहीं बढ़ाने की वजह श्रीलंका में सिलसिलेवार धमाके हुए, जिनमें सैकड़ों लोगों की मौत हो गई. वहीं दूसरी ओर राष्ट्रपति सिरिसेना ने कहा है कि उन्हें सूचना ही नहीं दी गई. यूं लग रहा है कि पीएम और राष्ट्रपति के बीच की लड़ाई का फायदा आतंकियों ने उठा लिया. श्रीलंका का मीडिया भी यही कह रहा है कि पीएम और राष्ट्रपति के बीच की राजनीतिक लड़ाई के चलते ही आतंकी हमले के नहीं रोका जा सका.
आपको बता दें कि पिछले साल ही अभूतपूर्व संवैधानिक संकट के चलते श्रीलंका में पीएम और राष्ट्रपति के बीच एक राजनीतिक लड़ाई शुरू हो चुकी है. राष्ट्रपति ने प्रधानमंत्री विक्रमसिंघे को बर्खास्त कर दिया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के दबाव के बाद दिसंबर में उन्हें बहाल किया गया. द आईलैंड अखबार के अनुसार श्रीलंका के पीएम और राष्ट्रपति राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों को लेकर हमेशा से एक-दूसरे पर आरोप मढ़ने के लिए बदनाम हैं. इस बार भी वही हो रहा है. पहले रक्षा मंत्रालय प्रधानमंत्री विक्रमसिंघे के पास था, लेकिन उनकी बर्खास्तगी के बाद वह राष्ट्रपति सिरिसेना के पास आ गया. यानी सेना पर प्रधानमंत्री का नहीं, बल्कि राष्ट्रपति का कमांड है. लेकिन जब हमला हुआ, उस दौरान सिरिसेना एक निजी विदेश यात्रा पर थे और अब वह बोल रहे हैं कि सेना के जिम्मेदार अधिकारियों को बर्खास्त करेंगे. श्रीलंका हमले की पहली वजह तो भारत की चेतावनी को नजरअंदाज करना है, लेकिन पीएम और राष्ट्रपति की राजनीतिक लड़ाई ने भी आग में घी का काम किया है.
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