प्याज कौन नहीं खाता? दाल-रोटी वाले खाते हैं. मटन दो प्याजा वाले खाते हैं. नून भात वाले खाते हैं. नाहरी वाले खाते हैं. सैलेड वाले खाते हैं. सड़क वाले खाते हैं. आपको लगता होगा कि जो प्याज इतनी जरूरी है उसे उगाने वाले तो मालामाल हो जाते होंगे. लेकिन लगने से क्या होता है. इसी लगने के चक्कर में मंडी के दलालों ने दमड़ी के दरख्त खड़े कर डाले. उपज किसान की. खरीदा सरकार ने. और करोड़ों कूट ले गए दलाल. जी हां ये कहानी है मध्यप्रदेश की, जो प्याज की पैदावार के लिए देशभर में जाना जाता है. किसानों का आंदोलन भी इसी प्याज को लेकर हुआ और उसकी बेदी में 7 किसानों की बली चढ गई. जिसके बाद शिवराज सिंह चौहान की सरकार ने 8 रुपए प्रतिकिलों के हिसाब से किसानों से प्याज खरीदा. इस साल मध्यप्रदेश में 32 लाख मैट्रिक टन प्याज की पैदावार हुई. आंदोलन के बाद किसानों से 9 लाख मैट्रिक टन से ज्यादा प्याज खरीदा गया.
होना यह था कि किसानों से आठ रुपए किलों खरीदे प्याज को बेचने के लिए टेंडर निकलना था. खुली बोली के जरिए इसे बेचा जाना था. तरीका तो ठीक था लेकिन आजतक ने जब पता लगाया तो पता चला कि यह तरीका अफसरों ने मंडी के दलालों और अपनी जेब भरने के लिए खोजा था.
यहीं से मध्यप्रदेश की प्याज मंडी करप्शन की मंडी बन गई, और सरकारी तन्खवा लेने वाले अधिकारी सरकारी दफ्तर में बैठ कर किसानों के खून-पसीने को नीलाम कर अपनी जेबे भरने लगे. पूरी सावधानी बरती गई कि पोल न खुले. लेकिन आजतक ने जब मध्य प्रदेश की मंडियों में प्याज की खरीद के नाम पर नीयत की नीलामी देखी तो सराकरी खजाने की लूट की परतें इसी प्याज के छिलके की तरह उतरती चली गई.
आजतक का स्टिंग ऑपरेशन में दिखाया गया कि कैसे सरकार मुनाफाखोरी और मुनाफाखोरों के लिए काम कर रही थी. कैसे सारी बोलियां काराबारियों को मुनाफा पहुंचाने के लिए फिक्स हो रही...
प्याज कौन नहीं खाता? दाल-रोटी वाले खाते हैं. मटन दो प्याजा वाले खाते हैं. नून भात वाले खाते हैं. नाहरी वाले खाते हैं. सैलेड वाले खाते हैं. सड़क वाले खाते हैं. आपको लगता होगा कि जो प्याज इतनी जरूरी है उसे उगाने वाले तो मालामाल हो जाते होंगे. लेकिन लगने से क्या होता है. इसी लगने के चक्कर में मंडी के दलालों ने दमड़ी के दरख्त खड़े कर डाले. उपज किसान की. खरीदा सरकार ने. और करोड़ों कूट ले गए दलाल. जी हां ये कहानी है मध्यप्रदेश की, जो प्याज की पैदावार के लिए देशभर में जाना जाता है. किसानों का आंदोलन भी इसी प्याज को लेकर हुआ और उसकी बेदी में 7 किसानों की बली चढ गई. जिसके बाद शिवराज सिंह चौहान की सरकार ने 8 रुपए प्रतिकिलों के हिसाब से किसानों से प्याज खरीदा. इस साल मध्यप्रदेश में 32 लाख मैट्रिक टन प्याज की पैदावार हुई. आंदोलन के बाद किसानों से 9 लाख मैट्रिक टन से ज्यादा प्याज खरीदा गया.
होना यह था कि किसानों से आठ रुपए किलों खरीदे प्याज को बेचने के लिए टेंडर निकलना था. खुली बोली के जरिए इसे बेचा जाना था. तरीका तो ठीक था लेकिन आजतक ने जब पता लगाया तो पता चला कि यह तरीका अफसरों ने मंडी के दलालों और अपनी जेब भरने के लिए खोजा था.
यहीं से मध्यप्रदेश की प्याज मंडी करप्शन की मंडी बन गई, और सरकारी तन्खवा लेने वाले अधिकारी सरकारी दफ्तर में बैठ कर किसानों के खून-पसीने को नीलाम कर अपनी जेबे भरने लगे. पूरी सावधानी बरती गई कि पोल न खुले. लेकिन आजतक ने जब मध्य प्रदेश की मंडियों में प्याज की खरीद के नाम पर नीयत की नीलामी देखी तो सराकरी खजाने की लूट की परतें इसी प्याज के छिलके की तरह उतरती चली गई.
आजतक का स्टिंग ऑपरेशन में दिखाया गया कि कैसे सरकार मुनाफाखोरी और मुनाफाखोरों के लिए काम कर रही थी. कैसे सारी बोलियां काराबारियों को मुनाफा पहुंचाने के लिए फिक्स हो रही थी.
इंडिया टूडे ग्रुप के खुफिया कैमरे में धूस लेत कैद हुए श्रीकांत सोनी कहने को मध्यप्रदेश सरकार के खाद्य नागरिक आपूर्ति विभाग के जीएम है लेकिन, सोनी साहब ने सूबे के गरीबों और किसानों के लिए कौन से खाद्य की आपूर्ति की है ये तो नहीं पता लेकिन खुद दबाकर खाने का शौक रखते हैं.
दलालों से मिलना, दलालों के लिए मंडियों की बोलियां फिक्स करना, दलालों के इशारे पर नाचना इनके शौकीन मिजाज के विविध आयाम है. और आप इस आयाम का दाम सुनेंगे तो शर्म आ जाएगी शिवराज सिंह की हुकूमत के नंगे दस्तूर पर. एक ट्रैन प्याज की बोली फिक्स करने के लिए सोनी साहब ने अंडरकवर रिपोर्टर से 5 लाख रुपए घूस मांगे. खबर चली और एक घंटे में सोनी साहब सस्पेंड हो गए, लेकिन इस खेल के सबसे बड़े खिलाड़ी का नेटवर्क मध्यप्रदेश की हर मंडी में है.
टैक्स देने वालो के पैसे की खुली लूट
व्यापारी पूरी ट्रेन भर के प्याज खरीदने लगे. एक ट्रेन में प्याज लगभग 22000 क्विंटल आता है यानि की 22 लाख किलों. यानी की अगर एक रुपए कम बोली लगती है तो सीधे सरकार को 22 लाख रुपयों का नुकासान होता है. 10 पैसे में भी दो लाख बीस हजार का चूना लग जाता है.
सरकारी नीलामी का तोड़
अब नीलामी में कोई घपला ना हो इसके लिए नीलामी की वीडियोंग्राफी का नियम है, बड़े प्रशासनिक अधिकारियों की मौजूदगी मे बोली लगनी होती है. अधिकारियों की मिलीभगत से किसी खास व्यापारी को बोली जीताने के लिए दूसरे डमी व्यापारी खड़े किए जाते थे और जो असल व्यापारी थे उन्हे मंडी अधिकारी इस बोली से दूर रखते थे. उन्हे बोल देते थे कि बोली लग ही नहीं रही है.
देशभर में प्याज की कीमतों में उछाल
व्यापारियों और अधिकारी मोटा मुनाफा कमाने लगे. प्याज मंडियों में सड़ने लगा या फिर बोले उसे जानबूझ कर खराब होने दिया गया. ताकि अधिकारी फाइलों में प्याज को बढ़ा- चढा कर खराब दिखाए और फाइलों में खराब प्याज व्यापारियों को और सस्ते में बेच सके ताकि एक बार फिर अधिकारियों की चांदी हो सके. पूरे देश को प्याज के इस गणित में फंसा कर कारोबारी सीधे उपभोक्ताओं की जेब पर डकैती डालते है. देश के दूसरे हिस्सों में दो रुपए 10 पैसे में खरीदा प्याज 20 से 25 रुपए किलों बिकने लगता है. मुनाफाखोरो को सिर्फ अपने मुनाफे से मतलब है देश का अर्थशास्त्र बिगड़े तो बिगड़े.
प्याज की जमाखोड़ी
मध्यप्रदेश की मंडियों से कोड़ियों के भाव प्याज उठाकर व्यापारी उसको स्टॉक करने की भी तैयारी कर रहे है. ताकि बारीश की वजह से प्याज की कमी हो तो वो अगस्त के बाद वो और मुनाफा कमा सके.
अधिकारी ही सरकारी नियमों का तोड़ निकालने लगे
मध्यप्रदेश सरकार से खरीदा प्याज मध्यप्रदेश में ना बिक सके. इसके लिए लोडेड ट्रक और ट्रेन पूरी सरकारी निगरानी के साथ बार्डर पार करती है और देश के दूसरी मंडियों में अनलोडिंग का वीडियो भी बनाया जाता है. ताकि एमपी में प्याज की रीसाइक्लिंग को रोका जा सके. सरकार को मालूम है कि कारोबारी इस प्याज को फिर से 8 रुपए के सरकारी दाम पर बेच देंगे. लेकिन मालूम होने से क्या होता है, प्याज बेचने वाले अधिकारी ही व्यापारियों के इशारे पर नाच रहे थे.
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