सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) और राहुल गांधी से प्रवर्तन निदेशालय नये सिरे से पूछताछ कर सकता है. मीडिया में सूत्रों के हवाले से आई कई रिपोर्ट में ऐसी संभावना जतायी गयी है कि प्रवर्तन निदेशालय सोनिया गांधी और राहुल गांधी के बयानों की दोबारा जांच पड़ताल की तैयारी कर रहा है. बताते हैं कि ईडी को जो दस्तावेज मिले हैं उनमें मुंबई और कोलकाता के हवाला लिंक जुड़ रहे हैं.
नेशनल हेराल्ड से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग केस में सोनिया गांधी से तीन दिन में 12 घंटे और राहुल गांधी से पांच दिन में 50 घंटे तक पूछताछ हो चुकी है - लेकिन अब यंग इंडिया के दफ्तर की छानबीन के दौरान जांच अधिकारियों को कुछ ऐसे दस्तावेज मिले हैं, जो नेशनल हेराल्ड और उससे जुड़ी कंपनियों के अन्य स्रोतों से हवाला ट्रांजैक्शन की तरफ मजबूत इशारे कर रहे हैं.
ईडी अफसरों को एक और बात को लेकर शक हो रहा है. दरअसल, सोनिया गांधी और राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के अलावा पूछताछ के लिए बुलाये गये सारे ही नेताओं ने वित्तीय लेनदेन के बारे में पूछे जाने पर दिवंगत कांग्रेस नेता मोतीलाल वोरा का नाम लेकर पल्ला झाड़ लेने की कोशिश की है, लेकिन अधिकारियों को लगता है कि ये फर्जी दावा किया गया है - क्योंकि अब तक उनको ऐसा कोई सबूत नहीं मिला है.
जो हालात हैं, उनमें कई तरह की आशंकाओं और कयासों को बल अपनेआप मिल रहा है. खासकर, राज्य सभा के उपसभापति एम. वेंकैया नायडू के बयान और बीजेपी नेता सुब्रह्मण्यन स्वामी के दावे के बाद. स्वामी का बयान इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि ये केस उनकी पहल से ही यहां तक पहुंचा है. सबसे पहले स्वामी ही शिकायत लेकर कोर्ट पहुंचे थे और फिर अदालत के आदेश पर ही प्रवर्तन निदेशालय की जांच चल रही है.
हाल ही में एक इंटरव्यू में सुब्रह्मण्यन स्वामी (Subramanian Swamy) ने बीजेपी के ही कुछ नेताओं पर आरोप लगाया है कि वे सोनिया गांधी और राहुल गांधी को बचाना चाहते हैं, लेकिन लगे हाथ ये दावा भी करते हैं कि वे बचा नहीं पाएंगे क्योंकि नेशनल हेराल्ड हाउस बिल्डिंग की चौथी मंजिल पर भ्रष्टाचार के सबूत भरे पड़े हैं. असल में चौथी मंजिल पर ही यंग इंडिया का दफ्तर है जिसे प्रवर्तन निदेशालय ने अस्थाई तौर पर सील कर दिया था.
दैनिक भास्कर ने इंटरव्यू के दौरान सुब्रह्मण्यन स्वामी से पूछा था - केस में अब आगे क्या होगा? और स्वामी ने सोनिया गांधी और राहुल गांधी की तरफ इशारा करते हुए जवाब दिया, "ये जेल जाएंगे... इनको पहले जेल में रखा जाएगा, फिर कोर्ट में आना होगा... बहस के बाद प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट के तहत सजा होगी."
ऐसी लड़ाई से कुछ नहीं हासिल होने वाला
जब प्रवर्तन निदेशालय ने नेशनल हेराल्ड बिल्डिंग में यंग इंडिया का दफ्तर सील कर दिया - और राहुल गांधी, सोनिया गांधी के घरों पर सुरक्षा बढ़ाये जाने को लेकर टीवी पर ब्रेकिंग न्यूज चलने लगी तो कांग्रेस में ऊपर से नीचे तक हड़कंप मच गया. सारे सीनियर नेता दौड़ते भागते कांग्रेस दफ्तर पहुंचने लगे.
गांधी परिवार के खिलाफ प्रवर्तन निदेशालय के बड़े ऐक्शन के बादल छाने लगे हैं
राहत की सांस सब ने तब ली जब मालूम हुआ कि यंग इंडिया का दफ्तर अस्थायी तौर पर सील किया गया है. ऐसा इसलिए करना पड़ा क्योंकि कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे वहां मौजूद नहीं थे. प्रवर्तन निदेशालय के अधिकारियों से मालूम हुआ कि सर्च की कार्रवाई किसी एक प्रतिनिधि की मौजूदगी जरूरी होती है - और यंग इंडिया में कर्मचारी के नाम पर ले देकर सिर्फ सीईओ मल्लिकार्जुन खड़गे ही हैं.
दफ्तर जाने से पहले राज्य सभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने अपनी पीड़ा शेयर की, ‘सदन की बैठक हो रही है... मैं भी इस सदन का एक सदस्य हूं - और विपक्ष का नेता भी हूं, लेकिन मुझे इस वक्त ईडी का समन आता है कि जल्दी आइये.’
मल्लिकार्जुन खड़गे ने पहुंचने का वक्त तो बताते हुए संकेत दिया कि वो समय से पहुंच जाएंगे क्योंकि वो कानून का पालन करना चाहते हैं, लेकिन निकलने से पहले एक सवाल जरूर छोड़ दिया, ‘जब सदन चल रहा है... उस वक्त ED द्वारा मुझे बुलाना... क्या ये उचित है?’
और उसी बीच ट्विटर पर कांग्रेस के मीडिया प्रभारी महासचिव जयराम रमेश ने कई पोस्ट की - और उसी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह को भी लपेट लिया.
आपको ध्यान होगा, शिवसेना के राज्य सभा सांसद संजय राउत भी ऐसे ही संसद सत्र का हवाल देकर दो बार पेशी पर नहीं गये. वकील के जरिये मैसेज भेजा था कि मॉनसून सत्र में व्यस्त होने के चलते वो ईडी दफ्तर में पेश नहीं हो सकते - लेकिन तीसरी बार ईडी के अफसर सीआरपीएफ लेकर खुद उनके घर पहुंच गये और उठा लाये. फिर गिरफ्तार भी कर लिया.
सवाल ये है कि क्या सांसद सत्र चालू होने का बहाना बना कर जांच एजेंसियों की कार्रवाई को ऐसे टाल सकते हैं? राज्य सभा के सभापति एम. वेंकैया नायडू ने सदस्यों में ऐसा कोई भ्रम है तो दूसर करने की कोशिश की है.
आपराधिक मामलों में विशेषाधिकार का कवच काम नहीं करता: वेंकैया नायडू ने 1966 के पीठासीन अधिकारी की तरफ से दी गयी व्यवस्था का हवाल देते हुए सांसदों के विशेषाधिकार पर स्थिति स्पष्ट करने की कोशिश की है.
तत्कालीन पीठासीन अधिकारी डॉक्टर जाकिर हुसैन द्वारा दी गयी व्यवस्था में कहा गया है, कोई भी सदस्य संसदीय कर्तव्यों का निर्वहन करने का हवाला देकर जांच एजेंसी के समक्ष पेश होने से इनकार नहीं कर सकता है.
सभापति वेंकैया नायडू ने साफ कर दिया है कि आपराधिक मामलों में सांसदो के लिए कोई विशेषाधिकार नहीं होते, हां - सिविल केस में एक समय सीमा जरूर निर्धारित की गयी है.
वेंकैया नायडू ने कहा कि पिछले कुछ दिनों से सांसदों के विशेषाधिकार को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है - और ये गलत धारणा बन रही है कि जांच एजेंसी संसद के सत्र के दौरान सांसदों के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर सकती है.
आपराधिक मामलों में सांसदों को किसी तरह की छूट न मिलने को लेकर विस्तार से समझाते हुए सभापति ने कहा कि ऐसे समझने की कोशिश होनी चाहिये कि आपराधिक मामलों की कार्रवाई में सांसद भी सामान्य नागरिक की तरह होते हैं - और संसदीय सत्र या समिति की बैठक के दौरान उनको गिरफ्तार किया जा सकता है. ध्यान रहे संजय राउत के मामले में प्रवर्तन निदेशालय ने ऐसा ही किया है.
सिविल मामलों को लेकर संविधान के अनुच्छेद 105 का हवाला देते हुए वेंकैया नायडू ने बताया कि किसी भी सांसद को संसदीय कर्तव्यों के निर्वहन के लिए विशेषाधिकार दिये गये हैं... एक विशेषाधिकार ये है कि किसी भी सांसद को संसद का सत्र या संसदीय समिति की बैठक शुरू होने से 40 दिन पहले - और 40 दिन बाद तक दीवानी मामलों में गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है.
जनता के भरोसे से बड़ा कोई बल नहीं है
मतलब, ये समझ लेना चाहिये कि सांसदों के लिए विशेषाधिकार नहीं, बल्कि जनता का भरोसा ही सबसे बड़ा कवच होता है - शरद पवार और संजय राउत के केस इसी बात की मिसाल देते हैं.
संजय राउत की ही तरह एक दिन ईडी की टीम ने छापेमारी की और महाराष्ट्र सरकार में तत्कालीन मंत्री और एनसीपी नेता नवाब मलिक को उठा ले गयी, लेकिन शरद पवार को अब तक हाथ तक नहीं लगा सकी है.
2019 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के दौरान ईडी ने शरद पवार को भी समन भेजा था, लेकिन जब एनसीपी नेता ने प्रेस कांफ्रेंस बुला कर ऐलान कर दिया कि वो खुद जांच एजेंसी के दफ्तर पहुंच कर पेश होंगे तो पूरे शहर में हड़कंप मच गया. बड़े बड़े अधिकारी शरद पवार से अपील करने लगे कि वो अपना प्रोग्राम रद्द कर दें. ईडी की तरफ से भी औपचारिक तौर पर आश्वस्त किया गया कि उनको पेश होने के लिए दफ्तर आने की जरूरत नहीं है. तब जाकर मामला शांत हुआ.
अब इन वाकयों की कड़ियां जोड़ते हुए अगर सोनिया गांधी और राहुल गांधी के सामने आने वाली परिस्थितियों को समझने की कोशिश करें तो बहुत कुछ उनके पक्ष में दिखायी नहीं पड़ रहा है. राहुल गांधी से पूछताछ के दौरान भी कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने विरोध प्रदर्शन किया था - और सोनिया गांधी से पूछताछ के दौरान भी, लेकिन दोनों में काफी फर्क देखा गया.
सोनिया गांधी की पेशी के दौरान कांग्रेस कार्यकारिणी के सदस्यों ने भी विरोध में गिरफ्तारी दी - और विपक्षी दलों के नेताओं की तरफ से भी प्रवर्तन निदेशालय की कार्रवाई के विरोध में साझा बयान जारी किया गया.
सारी बातें अपनी जगह ठीक हैं, लेकिन सबसे बड़ी बात ये है कि इन सब में जनता कहां है?
जनता की सहानुभूति हासिल करने के लिए ही कांग्रेस ने महंगाई के मुद्दे पर ब्लैक प्रोटेस्ट की तैयारी की थी, लेकिन राहुल गांधी ने बार बार जांच एजेंसियों का नाम लेकर लोगों के मन में उन आशंकाओं को ही मजबूत किया है, जो बीजेपी की तरफ से प्रचारित किया जाता है.
अपनी तरफ से राहुल गांधी भी कम कोशिश नहीं करते, लेकिन वो लोगों को समझा ही नहीं पाते कि 'चौकीदार चोर है' - और बीजेपी नेता लोगों को आसानी से समझा देते हैं कि सोनिया गांधी और राहुल गांधी तो पहले से ही जमानत पर हैं.
समझाइश ये भी है कि जांच एजेंसियां तो कोर्ट के आदेश पर काम कर रही हैं. करप्शन के प्रति जीरो टॉलरेंस और जो भ्रष्टाचारी हैं उनको जेल भेजना मोदी सरकार का मिशन है - लोग ये बात समझ लेते हैं और सुब्रह्मण्यन स्वामी भी ऐसी बातों से उत्साहित होकर सोनिया गांधी और राहुल गांधी के जेल जाने भर नहीं, सजा मिलने तक के दावे करते हैं.
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