राजनीति में 2+2 हमेशा 4 नहीं होता है. कई बार वह 1 या -1 भी साबित हो सकता है. गुजरात की आज की राजनीतिक स्थिति को देखें तो कई लोगों का मानना है कि अल्पेश ठाकोर, हार्दिक पटेल और जिग्नेश मेवाणी का भाजपा विरोध, कांग्रेस को गुजरात विधानसभा चुनाव में मदद करेगा. अल्पेश ठाकोर, हार्दिक पटेल और जिग्नेश मेवाणी तीन अलग-अलग जाति से संबंध रखते हैं.
अल्पेश, पिछड़ा वर्ग से संबंधित हैं. हार्दिक पटेल, पटेल समुदाय से और जिग्नेश, दलित समाज से ताल्लुक रखते हैं. गुजरात में प्रतिशत के हिसाब से पिछड़ा वर्ग 54%, पटेल समुदाय 16% और दलित 7% हैं. कुछ विश्लेषक इसे 54% + 16% + 7% = 77% के रूप में देख रहे हैं. जैसे की 77% गुजराती भाजपा के विरोध में खड़े हैं.
लेकिन ऊपर दिए गए तर्क में कई गलतियां हैं. पहला- ये तर्क की अल्पेश, हार्दिक और जिग्नेश के आहवाह्न पर उनका पूरा समुदाय भाजपा के विरोध में वोट डाल देगा बिल्कुल गलत है. हां ये सच है कि अपने-अपने समाज में उन सभी की पैठ है. लेकिन वो इतने भी बड़े नेता नहीं हैं कि उनके कहने पर पूरा समाज एक तरफ चल पड़े. तीनों अपने-अपने समाज में कुछ प्रभाव डालने की क्षमता तो रखते हैं, पर उससे ज़्यादा कुछ भी नहीं. दूसरा- अल्पेश और हार्दिक दोनों का ही कांग्रेस को समर्थन, खुद कांग्रेस को नुकसान ही पहुंचाएगा.
एक तरफ हार्दिक पटेल, अन्य पिछड़ा वर्ग में आरक्षण के मुद्दे पर संघर्ष कर रहे हैं. तो दूसरी तरफ अल्पेश ठाकोर और उनका संगठन किसी और नई जाति को 'अन्य पिछड़ा वर्ग' में शामिल करने के विरोध में खड़े हैं. इसके पहले अल्पेश और उनके संगठन ने पाटीदार समाज को अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल कर आरक्षण देने के प्रस्ताव का भी विरोध किया है.
ऐसी स्थिति में जब अल्पेश और हार्दिक कांग्रेस के...
राजनीति में 2+2 हमेशा 4 नहीं होता है. कई बार वह 1 या -1 भी साबित हो सकता है. गुजरात की आज की राजनीतिक स्थिति को देखें तो कई लोगों का मानना है कि अल्पेश ठाकोर, हार्दिक पटेल और जिग्नेश मेवाणी का भाजपा विरोध, कांग्रेस को गुजरात विधानसभा चुनाव में मदद करेगा. अल्पेश ठाकोर, हार्दिक पटेल और जिग्नेश मेवाणी तीन अलग-अलग जाति से संबंध रखते हैं.
अल्पेश, पिछड़ा वर्ग से संबंधित हैं. हार्दिक पटेल, पटेल समुदाय से और जिग्नेश, दलित समाज से ताल्लुक रखते हैं. गुजरात में प्रतिशत के हिसाब से पिछड़ा वर्ग 54%, पटेल समुदाय 16% और दलित 7% हैं. कुछ विश्लेषक इसे 54% + 16% + 7% = 77% के रूप में देख रहे हैं. जैसे की 77% गुजराती भाजपा के विरोध में खड़े हैं.
लेकिन ऊपर दिए गए तर्क में कई गलतियां हैं. पहला- ये तर्क की अल्पेश, हार्दिक और जिग्नेश के आहवाह्न पर उनका पूरा समुदाय भाजपा के विरोध में वोट डाल देगा बिल्कुल गलत है. हां ये सच है कि अपने-अपने समाज में उन सभी की पैठ है. लेकिन वो इतने भी बड़े नेता नहीं हैं कि उनके कहने पर पूरा समाज एक तरफ चल पड़े. तीनों अपने-अपने समाज में कुछ प्रभाव डालने की क्षमता तो रखते हैं, पर उससे ज़्यादा कुछ भी नहीं. दूसरा- अल्पेश और हार्दिक दोनों का ही कांग्रेस को समर्थन, खुद कांग्रेस को नुकसान ही पहुंचाएगा.
एक तरफ हार्दिक पटेल, अन्य पिछड़ा वर्ग में आरक्षण के मुद्दे पर संघर्ष कर रहे हैं. तो दूसरी तरफ अल्पेश ठाकोर और उनका संगठन किसी और नई जाति को 'अन्य पिछड़ा वर्ग' में शामिल करने के विरोध में खड़े हैं. इसके पहले अल्पेश और उनके संगठन ने पाटीदार समाज को अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल कर आरक्षण देने के प्रस्ताव का भी विरोध किया है.
ऐसी स्थिति में जब अल्पेश और हार्दिक कांग्रेस के लिए वोट मांगेंगे तो गुजरात की जनता असमंजस में पड़ जाएगी. पाटीदारों को लगेगा की कांग्रेस की सरकार बनने की सूरत में अल्पेश उन्हें कभी आरक्षण मिलने नहीं देगा. अल्पेश और उनका संगठन अन्य पिछड़ा वर्ग के आरक्षण को किसी नई जाति से बांटने के लिए कभी तैयार नहीं होगा.
अतः अल्पेश और हार्दिक का एकजुट होकर कांग्रेस का समर्थन करना विसंगतियों से भरा पड़ा है. अल्पेश और हार्दिक के उद्देश्य बिल्कुल अलग हैं. दोनों के विचारों में कोई तालमेल नहीं है. प्रचार के समय यह दोनों नेता, जनता को अपने विचार समझाने के बजाए उन्हें भ्रमित कर देंगे. कांग्रेस के चुनाव रणनीतिकारों को इस ग़लती को तुरंत सुधार लेना चाहिए अन्यथा 2+2= 4 न हो कर -1 हो जाएगा.
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