'क्या यह तुम्हारे बाप का है?' फारूक अब्दुल्ला ने कश्मीर के संबंध में ये बात चेनाब घाटी में एक कार्यक्रम में कही. फारूक के साथ उनके बेटे उमर अब्दुल्ला भी थे. फारूक अब्दुल्ला खुद तो जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री रह ही चुके हैं, उनसे पहले उनके पिता शेख अब्दुल्ला और उनके बाद उमर भी सूबे के सीएम रह चुके हैं.
कश्मीर पर फारूक के इस विवादित बयान को पहले तो जबान फिसलने के तौर पर ट्रीट किया गया. फिर उन्होंने राज्य के अलगाववादी नेताओं के फोरम हुर्रियत को भी खुले सपोर्ट का एलान कर दिया. आखिर फारूक अब्दुल्ला का इरादा क्या है - और उनकी सियासत किस दिशा में बढ़ रही है?
महबूबा विरोध की मजबूरी या...
जम्मू-कश्मीर की मौजूदा बीजेपी-पीडीपी सरकार से पहले कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस की साझा सरकार रही और उमर अब्दुल्ला मुख्यमंत्री रहे. मौजूदा सीएम महबूबा मुफ्ती के पिता और तत्कालीन मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद के निधन के बाद राज्य में कुछ दिन तक गवर्नर रूल लागू रहा. ऐसा महबूबा के खुद सीएम बनने को लेकर फैसले में देर के चलते हुआ.
इसे भी पढ़ें : कश्मीर देश कब बन गया ?
जब गवर्नर रूल लंबा खिंचने लगा तो विपक्ष काफी हमलावर हो गया था. उमर अब्दुल्ला तो कुछ ज्यादा ही तेज अटैक कर रहे थे. एक वक्त ऐसा भी आया कि उमर अब्दुल्ला फिर से चुनाव कराने की मांग के साथ चैलेंज करने लगे.
तभी बीजेपी नेताओं से कई दौर की बातचीत के बाद महबूबा मुफ्ती ने मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने का फैसला किया - और कुछ दिन बाद ही उनका बदला हुआ रूप भी दिखा.
'क्या यह तुम्हारे बाप का है?' फारूक अब्दुल्ला ने कश्मीर के संबंध में ये बात चेनाब घाटी में एक कार्यक्रम में कही. फारूक के साथ उनके बेटे उमर अब्दुल्ला भी थे. फारूक अब्दुल्ला खुद तो जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री रह ही चुके हैं, उनसे पहले उनके पिता शेख अब्दुल्ला और उनके बाद उमर भी सूबे के सीएम रह चुके हैं. कश्मीर पर फारूक के इस विवादित बयान को पहले तो जबान फिसलने के तौर पर ट्रीट किया गया. फिर उन्होंने राज्य के अलगाववादी नेताओं के फोरम हुर्रियत को भी खुले सपोर्ट का एलान कर दिया. आखिर फारूक अब्दुल्ला का इरादा क्या है - और उनकी सियासत किस दिशा में बढ़ रही है? महबूबा विरोध की मजबूरी या... जम्मू-कश्मीर की मौजूदा बीजेपी-पीडीपी सरकार से पहले कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस की साझा सरकार रही और उमर अब्दुल्ला मुख्यमंत्री रहे. मौजूदा सीएम महबूबा मुफ्ती के पिता और तत्कालीन मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद के निधन के बाद राज्य में कुछ दिन तक गवर्नर रूल लागू रहा. ऐसा महबूबा के खुद सीएम बनने को लेकर फैसले में देर के चलते हुआ. इसे भी पढ़ें : कश्मीर देश कब बन गया ? जब गवर्नर रूल लंबा खिंचने लगा तो विपक्ष काफी हमलावर हो गया था. उमर अब्दुल्ला तो कुछ ज्यादा ही तेज अटैक कर रहे थे. एक वक्त ऐसा भी आया कि उमर अब्दुल्ला फिर से चुनाव कराने की मांग के साथ चैलेंज करने लगे. तभी बीजेपी नेताओं से कई दौर की बातचीत के बाद महबूबा मुफ्ती ने मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने का फैसला किया - और कुछ दिन बाद ही उनका बदला हुआ रूप भी दिखा.
राजनाथ सिंह के साथ उस साझा प्रेस कांफ्रेंस में महबूबा का बिलकुल नया रूप दिखा. महबूबा ने राजनाथ को ये कह कर रोका कि उन्हें सबकी हकीकत अच्छी तरह मालूम है. उस दिन महबूबा ने सीधे सीधे हुर्रियत को कश्मीर की ताजा अशांति के लिए जिम्मेदार ठहराया. महबूबा ने इल्जाम लगाया कि हुर्रियत नेता अपने बच्चों को बाहर के स्कूलों में पढ़ने भेजते हैं और गरीबों के बच्चों को अपने एजेंडे का हिस्सा बना रहे हैं. अब्दुल्ला की हुर्रियत पॉलिसी जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री शेख मोहम्मद अब्दुल्ला की 111वीं जयंती के मौके पर उनकी कब्र पर नेशनल कॉन्फ्रेंस कार्यकर्ता जुटे थे. अपनी कश्मीरी स्पीच में फारूक ने कहा, "मैं इन हुर्रियत नेताओं से भी कहता हूं कि आप अलग रास्तों पर मत चलिए. एकजुट हों. वैसे कश्मीर के हक के लिए हम भी आपके साथ खड़े हैं. हमें अपना दुश्मन मत समझें." अपने खानदानी संघर्षों की दुहाई देते हुए फारूक ने कहा, "हमने कश्मीर के लिए बहुत संघर्ष किया है. जिंदगी खपा दी. आज मैं आपको इस मुकद्दस जगह से कहना चाहता हूं कि आप आगे बढ़िए, हम आपके साथ खड़े हैं. जब तक आप सही रास्ते पर चलते रहेंगे, हमें अपने साथ पाएंगे." इसे भी पढ़ें : पीओके पर बर्दाश्त नहीं बेसुरा राग पिछले महीने फारूक ने संघ प्रमुख मोहन भागवत को लेकर कहा था कि अगर वह भारत को एक हिंदू राष्ट्र बताते हैं तो कश्मीर भारत का हिस्सा नहीं रहेगा. कश्मीर में जारी बवाल में हिस्सा ले रहे नौजवानों का जिक्र करते हुए फारूक ने कहा, "वे पूरी आजादी मांग रहे हैं और यह अब उनके खून में है." यहां तक कि फारूक ने न्यूटन के तीसरे नियम का भी हवाला दे डाला, "आप कितनों को जेल में डालेंगे, और कितनों को अंधा करोगे और कितने ज्यादा घरों को लूटोगे. न्यूटन का नियम याद करो कि हर क्रिया की प्रतिक्रिया होती है. अगर आप ज्यादा दबाओगे, तो यह ज्यादा फूटेगा और तब आपकी ताकत इसे नहीं दबा पाएगी. मैंने बार-बार कहा है कि अगर वे पूरे देश की सेना यहां ले आएंगे, तब भी वे कश्मीर की आकांक्षाओं को नहीं दबा पाएंगे.’ वैसे तो केंद्र की मोदी सरकार 'जम्हूरियत, कश्मीरियत और इंसानियत' के वाजपेयी फॉर्मूले की पक्षधर रही है लेकिन इधर बीच कुछ ऐसे बढ़ी है कि हुर्रियत थोड़ा अलग थलग नजर आने लगा. इस दरम्यान बातचीत के कुछ बैकडोर चैनल भी एक्टिव दिखे, मसलन - कुछ विपक्षी सांसद, श्रीश्री रविशंकर और बीजेपी नेता यशवंत सिन्हा. लगता है इस राजनीतिक गहमागहमी को देखकर अब्दुल्ला परिवार को अपने सियासी वजूद पर खतरे की आशंका दिखी - और फिर उसने नये सिरे से रणनीतिक बदलाव का फैसला किया जिसमें अभी हुर्रियत का सपोर्ट साफ तौर पर नजर आ रहा है. इससे पहले महबूबा अलगाववादियों के प्रति नरम रुख और घाटी में उनके समर्थकों के साथ हमेशा सहानुभूति के साथ खड़ी रहा करती थीं. यहां तक कि अपने पिता के मुख्यमंत्री रहते भी महबूबा के रवैये में कोई तब्दीली नहीं देखी गयी - लेकिन खुद सत्ता संभालने के बाद उनमें बड़ा बदलाव देखा गया. फारूक अब्दुल्ला के हुर्रियत के सपोर्ट के पीछे क्या सिर्फ महबूबा विरोध है? या महबूबा के नये स्टैंड के चलते कश्मीरी लोग और हुर्रियत के इर्द गिर्द बने गैप को पाटने की कोशिश? इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है. ये भी पढ़ेंRead more! संबंधित ख़बरें |