सबरीमाला फैसले पर आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने फैसला (Supreme Court Verdict) सुना ही दिया. सीजेआई रंजन गोगोई ने अपने रिटायरमेंट (Ranjan Gogoi Retirement) से पहले अधिकतर काम पूरे कर दिए हैं. पहले अयोध्या केस (Ayodhya Case) में फैसला सुनाते हुए राम मंदिर (Ram Mandir Verdict) के निर्माण को हरी झंडी दी, फिर सीजेआई (CJI) के दफ्तर को आरटीआई (RTI) के दायरे में ला दिया और अब एक साथ तीन मामले निपटाए हैं. सबरीमाला (Sabrimala), राफेल डील (Rafale Deal) और राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के खिलाफ अवमानना केस में सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया है. वैसे देखा जाए तो फैसला राफेल डील और राहुल गांधी के खिलाफ अवमानना केस में ही आया है, सबरीमाला मामले में तो केस के बड़ी बेंच को ट्रांसफर कर दिया है. अब इस मामले पर बड़ी बेंच की सुनवाई के बाद फैसला आएगा. यानी एक बात तो तय है कि सुप्रीम कोर्ट ने एक ओर राफेल का किस्सा खत्म कर दिया, तो दूसरी ओर सबरीमाला पर सियासत का रास्ता खुला छोड़ दिया है.
सबरीमाला मामले पर भाजपा और अय्यप्पा भक्तों को मिली ताकत
सुप्रीम कोर्ट ने केरल के प्रसिद्ध सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर दायर पुनर्विचार याचिका पर फैसला बड़ी बेंच को सौंप दिया है. बता दें कि अभी ये मामला 5 जजों की बेंच के पास था, अब इस मामले पर 7 जजों की बेंच फैसला करेगी. इसका मतलब ये हुआ कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से अय्यप्पा भक्तों और भाजपा को ताकत मिली है. उनकी मांग थी कि मंदिर के नियम धर्म और परंपरा के हिसाब से हों. हो सकता है कि 7 जजों वाली बेंच इस मामले में पुराने फैसले को रद्द कर दें और फिर से 10-50 साल की महिलाओं की मंदिर में एंट्री ब्लॉक कर दी जाए. यानी एक बात साफ है कि फिलहाल सबरीमाला मंदिर पर पुराना ही फैसला लागू रहेगा, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने सभी महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की इजाजत दी थी. 28 सितंबर तक को जब सुप्रीम कोर्ट ने ये फैसला दिया था, तो उस पर खूब राजनीति हुई थी,...
सबरीमाला फैसले पर आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने फैसला (Supreme Court Verdict) सुना ही दिया. सीजेआई रंजन गोगोई ने अपने रिटायरमेंट (Ranjan Gogoi Retirement) से पहले अधिकतर काम पूरे कर दिए हैं. पहले अयोध्या केस (Ayodhya Case) में फैसला सुनाते हुए राम मंदिर (Ram Mandir Verdict) के निर्माण को हरी झंडी दी, फिर सीजेआई (CJI) के दफ्तर को आरटीआई (RTI) के दायरे में ला दिया और अब एक साथ तीन मामले निपटाए हैं. सबरीमाला (Sabrimala), राफेल डील (Rafale Deal) और राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के खिलाफ अवमानना केस में सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया है. वैसे देखा जाए तो फैसला राफेल डील और राहुल गांधी के खिलाफ अवमानना केस में ही आया है, सबरीमाला मामले में तो केस के बड़ी बेंच को ट्रांसफर कर दिया है. अब इस मामले पर बड़ी बेंच की सुनवाई के बाद फैसला आएगा. यानी एक बात तो तय है कि सुप्रीम कोर्ट ने एक ओर राफेल का किस्सा खत्म कर दिया, तो दूसरी ओर सबरीमाला पर सियासत का रास्ता खुला छोड़ दिया है.
सबरीमाला मामले पर भाजपा और अय्यप्पा भक्तों को मिली ताकत
सुप्रीम कोर्ट ने केरल के प्रसिद्ध सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर दायर पुनर्विचार याचिका पर फैसला बड़ी बेंच को सौंप दिया है. बता दें कि अभी ये मामला 5 जजों की बेंच के पास था, अब इस मामले पर 7 जजों की बेंच फैसला करेगी. इसका मतलब ये हुआ कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से अय्यप्पा भक्तों और भाजपा को ताकत मिली है. उनकी मांग थी कि मंदिर के नियम धर्म और परंपरा के हिसाब से हों. हो सकता है कि 7 जजों वाली बेंच इस मामले में पुराने फैसले को रद्द कर दें और फिर से 10-50 साल की महिलाओं की मंदिर में एंट्री ब्लॉक कर दी जाए. यानी एक बात साफ है कि फिलहाल सबरीमाला मंदिर पर पुराना ही फैसला लागू रहेगा, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने सभी महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की इजाजत दी थी. 28 सितंबर तक को जब सुप्रीम कोर्ट ने ये फैसला दिया था, तो उस पर खूब राजनीति हुई थी, जो अभी भी जारी रहेगी.
जारी रहेगी सबरीमाला पर राजनीति
28 सितंबर को जब सबरीमाला मंदिर पर फैसला आया था और मंदिर सी परंपरा तोड़ते हुए 10-50 साल की महिलाओं को मंदिर में जाने की इजाजत दे दी गई थी, तो पूरे केरल में खूब हिंसा हुई थी. इस हिंसा की आग पर राजनीतिक दलों ने अपनी सियासी रोटियां भी सेंकीं. भाजपा इस फैसले के खिलाफ अय्यप्पा भक्तों की आस्था के साथ खड़ी दिखी, जबकि कांग्रेस सुप्रीम कोर्ट के आदेश को मानते हुए राजनीति खेली. हालांकि, बाद में कांग्रेस भी अय्यप्पा भक्तों को सही ठहराने लगी. केरल सरकार तो सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर अडिग बनी हुई है, जिसके लिए सुप्रीम कोर्ट का फैसला मुसीबत बढ़ाने वाला है, क्योंकि हो सकता है आने वाले दिनों में सुप्रीम कोर्टी की बड़ी बेंच इस मामले में पुराना फैसला पलट दे. इस फैसले ने जहां एक ओर भाजपा और अय्यप्पा भक्तों को ताकत देने का काम किया है, वहीं केरल की कम्युनिस्ट सरकार की मुसीबत और बढ़ती हुई सी दिख रही है.
राफेल डील मामले में मोदी सरकार पर लगे दाग धुले
कांग्रेस पिछले कई सालों में राफेल डील मामले को भाजपा के खिलाफ इस्तेमाल करती आ रही है. चुनावी दौर में वह राफेल डील में घोटाला होने की बात जोर-शोर से उठाती है. इसी को लेकर तो राहुल गांधी पीएम मोदी पर निशाना साधते हुए बोलते हैं कि चौकीदार चोर है. राफेल डील ही है, जिस पर कांग्रेस ने इतनी राजनीति की कि मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान की सत्ता अपने हाथ ले ली. वैसे कांग्रेस ने राफेल डील का दाव लोकसभा चुनाव के दौरान भी चला था, लेकिन बाजी उल्टी पड़ गई और खुद राहुल गांधी पर कोर्ट की अवमानना का मामला चल पड़ा और लोकसभा चुनाव में कांग्रेस बुरी तरह हारी भी. अब सुप्रीम कोर्ट ने राफेल डील मामले में याचिका खारिज कर दी है, जिसके बाद ये कहना गलत नहीं होगा कि भाजपा के दामन पर राफेल डील के लेकर जो भी दाग लगे थे, वह धुल गए हैं, जबकि कांग्रेस एंड कंपनी कुछ कहने लायक नहीं बची.
राहुल गांधी को भी राहत मिली, लेकिन चेतावनी के साथ
जब राफेल डील मामले में सुप्रीम कोर्ट ने गोपनीय दस्तावेजों को भी स्वीकार करते हुए समीक्षा करने को मंजूरी दी तो राहुल गांधी अतिउत्साह में पड़कर बोल गए कि सुप्रीम कोर्ट ने भी मान लिया है चौकीदार चोर है. राहुल गांधी का इस तरह का बयान ये जताने वाला था कि सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि पीएम मोदी ने राफेल डील मामले में घोटाला किया है, जबकि सुप्रीम कोर्ट ने सिर्फ उस मामले की समीक्षा में गोपनीय दस्तावेजों को शामिल किए जाने को मंजूरी दी थी. फिर क्या था, मीनाक्षी लेखी ने राहुल गांधी के खिलाफ मानहानी का केस दायर करते हुए कहा कि उन्होंने कोर्ट की अवमानना की है. इसके बाद राहुल गांधी पर भी केस चला, जिसका फैसला आज सुप्रीम कोर्ट ने सुना दिया है. अपने इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने राहुल गांधी को राहत देते हुए मामला तो खारिज कर दिया, लेकिन साथ ही चेतावनी भी दी कि ऐसी गलती दोबारा ना हो और कोई भी इस तरह के बयान ना दे.
ये भी पढ़ें-
Karnataka Rebel MLA पर फैसले के बाद तो दल-बदल कानून बेमानी लगने लगा
महाराष्ट्र में बीजेपी-शिवसेना का हाफ-गठबंधन फिलहाल बाकी है!
Maharashtra politics: महाराष्ट्र में सत्ता संघर्ष का राउंड-2 शुरू
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.