कोई भी व्यक्ति विरोध प्रदर्शन के मक़सद से किसी सार्वजनिक स्थान या रास्ते को नहीं रोक सकता. सार्वजनिक स्थानों पर अनिश्तिचकालीन के लिए इस तरह धरना या प्रर्दशन स्वाकीर्य नहीं है और ऐसे मामलों में सम्बन्धित अधिकारियों को इससे निबटना चाहिए.
उपरोक्त पंक्तियां देश की सर्वोच्च अदालत (Supreme Court) का वो फैसला है जो उसने देश की राजधानी दिल्ली (Delhi) में बीते दिनों चले शाहीनबाग़ धरने (Shaheenbagh Protest) के संदर्भ में दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि, 'शाहीन बाग़ को खाली कराना दिल्ली पुलिस (Delhi Police) की ज़िम्मेदारी थी. विरोध प्रदर्शनों के लिए किसी भी सार्वजनिक स्थान का अनिश्चितकाल के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता, चाहे वो शाहीन बाग़ हो या कोई और जगह. प्रदर्शन निर्धारित जगहों पर ही होने चाहिए.' ध्यान रहे कि बीते दिनों दिल्ली का शाहीनबाग़ चर्चा में था. कारण बना था वो धरना जो शाहीनबाग के लोगों ने जामिया मिल्लिया इस्लामिया (Jamia Millia Islamia) के उन छात्रों के समर्थन में दिया था जो दिल्ली पुलिस की लाठियों के निशाने पर थे. जामिया के छात्रों ने लाठी क्यों खाई ? क्यों शहर के बीचों बीच एक धरना स्थल के रूप में शाहीनबाग़ का निर्माण हुआ? इसका कारण था नागरिकता संशोधन कानून (Citizenship Amendment Act) और इस कानून के मद्देनजर हुए विरोध प्रदर्शन.
जब जब बात देश मे नागरिकता संशोधन कानून के मद्देनजर होगी तब तब जामिया मिल्लिया इस्लामिया का नाम आएगा. गत दिनों जैसे हालात थे जामिया को एन्टी सीएए प्रोटेस्ट का गढ़ माना गया था. कानून के मद्देनजर क्रांति की सभी इबारतों का निर्माण जामिया मिल्लिया में ही हुआ और यही से उठी चिंगारी ने देश की कानून व्यवस्था और...
कोई भी व्यक्ति विरोध प्रदर्शन के मक़सद से किसी सार्वजनिक स्थान या रास्ते को नहीं रोक सकता. सार्वजनिक स्थानों पर अनिश्तिचकालीन के लिए इस तरह धरना या प्रर्दशन स्वाकीर्य नहीं है और ऐसे मामलों में सम्बन्धित अधिकारियों को इससे निबटना चाहिए.
उपरोक्त पंक्तियां देश की सर्वोच्च अदालत (Supreme Court) का वो फैसला है जो उसने देश की राजधानी दिल्ली (Delhi) में बीते दिनों चले शाहीनबाग़ धरने (Shaheenbagh Protest) के संदर्भ में दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि, 'शाहीन बाग़ को खाली कराना दिल्ली पुलिस (Delhi Police) की ज़िम्मेदारी थी. विरोध प्रदर्शनों के लिए किसी भी सार्वजनिक स्थान का अनिश्चितकाल के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता, चाहे वो शाहीन बाग़ हो या कोई और जगह. प्रदर्शन निर्धारित जगहों पर ही होने चाहिए.' ध्यान रहे कि बीते दिनों दिल्ली का शाहीनबाग़ चर्चा में था. कारण बना था वो धरना जो शाहीनबाग के लोगों ने जामिया मिल्लिया इस्लामिया (Jamia Millia Islamia) के उन छात्रों के समर्थन में दिया था जो दिल्ली पुलिस की लाठियों के निशाने पर थे. जामिया के छात्रों ने लाठी क्यों खाई ? क्यों शहर के बीचों बीच एक धरना स्थल के रूप में शाहीनबाग़ का निर्माण हुआ? इसका कारण था नागरिकता संशोधन कानून (Citizenship Amendment Act) और इस कानून के मद्देनजर हुए विरोध प्रदर्शन.
जब जब बात देश मे नागरिकता संशोधन कानून के मद्देनजर होगी तब तब जामिया मिल्लिया इस्लामिया का नाम आएगा. गत दिनों जैसे हालात थे जामिया को एन्टी सीएए प्रोटेस्ट का गढ़ माना गया था. कानून के मद्देनजर क्रांति की सभी इबारतों का निर्माण जामिया मिल्लिया में ही हुआ और यही से उठी चिंगारी ने देश की कानून व्यवस्था और अमन/शांति को प्रभावित किया.
चूंकि नागरिकता संशोधन कानून को लेकर सारा बवाल जामिया से शुरू हुआ था. इसलिए स्थिति को नियंत्रित करने के लिए पुलिस ने भी सख्ती दिखाई थी. प्रदर्शन के नाम पर अराजकता पर उतरे छात्रों को सही या ये कहें कि 'लोकतांत्रिक' रास्ते पर लाने के लिए पुलिस ने एक्शन लिया था. इसी एक्शन के बाद दिल्ली का शाहीनबाग़ रातों रात पिक्चर में आया.
जब ये धरना शुरू हुआ तो ये गैर राजनीतिक इवेंट था. जैसे जैसे दिन बीते धरने ने करवट ली. फिर चाहे वो बड़ी बिंदी गैंग या जेएनयू के वाम समर्थकों का समूह हो या फिर अपने को बुद्धिजीवी कहने वाले लोगों की भीड़ इस धरने ने उन तमाम लोगों का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित किया जो पीएम मोदी और भाजपा के विरोधी थे या फिर जिन्हें देश और देश की सरकार की नीतियां एक फूटी आंख भी नहीं भाती थीं.
कह सकते हैं कि सरकार बल्कि मोदी विरोध को धरने का नाम देकर जो ड्रामा हुआ वो किसी से छुपा नहीं है और अब जबकि शाहीनबाग़ पर फैसला देकर सुप्रीम कोर्ट ने अपना रुख स्पष्ठ कर दिया है साफ हो जाता है कि इस फैसले के जरिये 'शाहीनबाग़' को अराजकता का पर्याय बनाने वाले बड़ी बिंदी गैंग, जेएनयू के वामपंथियों और बुद्धिजीवियों के मुंह पर सुप्रीम कोर्ट ने करारा तमाचा जड़ा है.
हो सकता है कि इन तमाम बातों के बाद हमारी आलोचना हो और हमें शाहीनबाग़ जैसे 'शांतिपूर्ण' धरने का विरोधी बताया जाए. यदि स्थिति ऐसी होती है तो हमारे लिए भी ये बताना बहुत जरूरी हो जाता है कि हमें धरने से नहीं बल्कि उसके स्वरूप से तकलीफ़ है.गौरतलब है कि दिल्ली के शाहीनबाग़ में धरने के नाम पर लोकतंत्र का ये नंगा नाच 100 दिनों से ऊपर चला है. खुद कल्पना कीजिये कि मोदी सरकार और उसके द्वारा पारित किए गए एक कानून के विरोध में जब शाहीनबाग़ में धरना चल रहा था तो क्या उससे आम लोगों को दिक्कत नहीं हुई? क्या इस धरने के जरिये जन जीवन नहीं प्रभावित हुआ?
शाहीनबाग़ धरने के समर्थक धरने के मद्देनजर लाख दलीलें दे दें मगर सच यही है कि इस धरने ने न केवल दिल्ली बल्कि एनसीआर तक के लोगों का जनजीवन प्रभावित किया. लोग दफ्तरों के लिए लेट हुए, बच्चे स्कूल नही जा पाए, जो बीमार थे उन्हें इलाज नहीं मिला जिसके कारण उनकी मौत हुई. बहरहाल वाक़ई सुप्रीम कोर्ट ने शाहीन बाग़ के सन्दर्भ में जो फैसला दिया है वो अपने आप में एक ऐतिहासिक फैसला है.
कुल मिलाकर इस फैसले के बाद कहा यही जा सकता है कि देश की सर्वोच्च अदालत का ये निर्णय उन लोगों के लिए नजीर बन गया है जो सरकार के विरोध में आकर सरकार नहीं बल्कि देश जे खिलाफ प्रोपोगेंडा चला रहे थे. फैसले ने इन सभी लोगों को एक बड़ा सबक दिया है और बता दिया है कि अगर विरोध के नाम पर वो लोग सार्वजानिक संपत्ति को नुकसान पहुंचा रहे हैं, रोड जाम कर रहे हैं तो इसकी इजाजत लोकतंत्र में बिलकुल नहीं है.
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