3 अक्टूबर को हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर में बोलते हुए, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने सर्जिकल स्ट्राइक की पहली वर्षगांठ पर शानदार कवरेज के लिए सराहना मीडिया की जमकर सराहना की. उरी कैंप पर हमले के बाद हमारी सेना ने पाकिस्तान में सर्जिकल स्ट्राइक की थी. 18 सितंबर 2016 को किए गए इस हमले में हमारी सेना के 18 जवानों की मौत हुई थी.
संयोग से जब पीएम मोदी इस मुद्दे तभी श्रीनगर में हमारे सुरक्षाकर्मी एक और उरी जैसे हमले से निपट रहे थे. तीन आतंकियों ने सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) की बटालियन मुख्यालय पर हमला कर दिया था. इस मुख्यालय में 200 सुरक्षाकर्मी और उनके परिवार मौजूद थे.
पूरा एक साल बीत गया लेकिन सर्जिकल स्ट्राइक के बाद भी न तो पाकिस्तान की तरफ से गोलीबारी में कमी आई, न ही पाकिस्तान समर्थक अलगाववादियों पर कोई फर्क पड़ा. लेकिन फिर भी इसमें से कोई भी सच्चाई लोगों और सरकार को सर्जिकल स्ट्राइक का 'जश्न मनाने' से नहीं रोक पाई!
क्या किसी ने ये पूछा कि उरी जैसी घुसपैठ को रोकने के लिए सारे उपायों को लागू किया गया? अगर हां, तो फिर अभी भी हमले क्यों हो रहे हैं? और अगर वो अभी तक लागू नहीं हुए हैं, तो क्यों?
इन हमलों कश्मीर में पाकिस्तान के आतंकवाद को खत्म करने के मकसद से एक ऑप्शन के रूम में पेश किया गया था. और कौन से विकल्प मौजूद थे? हमने उन्हें कैसे लागू किया है? उन वादों का क्या हुआ जो राज्य में बेहतर शासन प्रदान करने के लिए किए गए थे? ये कुछ ऐसे सवाल हैं जो मेरे दिमाग में लगातार कौंधते रहते हैं.
दिल्ली में लोगों का दावा है कि आतंकवाद पर सरकार का रूख ज्यादा कड़ा हुआ है जिसकी वजह से पिछले सालों की तुलना में इस बार ज्यादा आतंकवादियों को मौत के घाट उतारा गया है. अपने तर्क को धार देते हुए आंकड़े भी पेश किए जा रहे हैं. कहा जाता है कि 30 जून 2017 तक 167 घटनाएं रिकॉर्ड की गई. जबकि 2016 में 322 घटनाएं हुई थी जो पिछले पांच सालों में सबसे ज्यादा आंकड़ा है. श्रीनगर में एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, "हम चीजों को पहले से कहीं...
3 अक्टूबर को हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर में बोलते हुए, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने सर्जिकल स्ट्राइक की पहली वर्षगांठ पर शानदार कवरेज के लिए सराहना मीडिया की जमकर सराहना की. उरी कैंप पर हमले के बाद हमारी सेना ने पाकिस्तान में सर्जिकल स्ट्राइक की थी. 18 सितंबर 2016 को किए गए इस हमले में हमारी सेना के 18 जवानों की मौत हुई थी.
संयोग से जब पीएम मोदी इस मुद्दे तभी श्रीनगर में हमारे सुरक्षाकर्मी एक और उरी जैसे हमले से निपट रहे थे. तीन आतंकियों ने सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) की बटालियन मुख्यालय पर हमला कर दिया था. इस मुख्यालय में 200 सुरक्षाकर्मी और उनके परिवार मौजूद थे.
पूरा एक साल बीत गया लेकिन सर्जिकल स्ट्राइक के बाद भी न तो पाकिस्तान की तरफ से गोलीबारी में कमी आई, न ही पाकिस्तान समर्थक अलगाववादियों पर कोई फर्क पड़ा. लेकिन फिर भी इसमें से कोई भी सच्चाई लोगों और सरकार को सर्जिकल स्ट्राइक का 'जश्न मनाने' से नहीं रोक पाई!
क्या किसी ने ये पूछा कि उरी जैसी घुसपैठ को रोकने के लिए सारे उपायों को लागू किया गया? अगर हां, तो फिर अभी भी हमले क्यों हो रहे हैं? और अगर वो अभी तक लागू नहीं हुए हैं, तो क्यों?
इन हमलों कश्मीर में पाकिस्तान के आतंकवाद को खत्म करने के मकसद से एक ऑप्शन के रूम में पेश किया गया था. और कौन से विकल्प मौजूद थे? हमने उन्हें कैसे लागू किया है? उन वादों का क्या हुआ जो राज्य में बेहतर शासन प्रदान करने के लिए किए गए थे? ये कुछ ऐसे सवाल हैं जो मेरे दिमाग में लगातार कौंधते रहते हैं.
दिल्ली में लोगों का दावा है कि आतंकवाद पर सरकार का रूख ज्यादा कड़ा हुआ है जिसकी वजह से पिछले सालों की तुलना में इस बार ज्यादा आतंकवादियों को मौत के घाट उतारा गया है. अपने तर्क को धार देते हुए आंकड़े भी पेश किए जा रहे हैं. कहा जाता है कि 30 जून 2017 तक 167 घटनाएं रिकॉर्ड की गई. जबकि 2016 में 322 घटनाएं हुई थी जो पिछले पांच सालों में सबसे ज्यादा आंकड़ा है. श्रीनगर में एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, "हम चीजों को पहले से कहीं ज्यादा नियंत्रित कर रहे हैं."
एलओसी पर सर्जिकल स्ट्राइक के बाद सीमापार फायरिंग में तेजी ही आई. 2016 में 449 युद्धविराम का उल्लंघन. इनमें से ज्यादातर हमले सर्जिकल स्ट्राइक के बाद दर्ज किए गए थे. इन हमलों में 7 जवानों ने जान गंवाई. उन 29,000 सैनिकों की तो गिनती भूल ही जाइए जो इन हमलों में बुरी तरह घायल हुए या उन स्थानिय निवासियों की बात भी न ही करें तो अच्छा जिन्हें जान और माल का भारी नुकसान उठाना पड़ा. अगर अक्टूबर और नवंबर 2016 में हुए हताहतों की संख्या को किनारे कर देते हैं तो अप्रैल 2016 से मार्च 2017 के बीच फायरिंग में सिर्फ दो सैनिकों की जान गई है.
जम्मू-कश्मीर की पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च बजट एनालिसिस 2017-18 में बताया गया है कि राज्य में जहां 2009-10 से 2014-15 के बीच में सालाना 973 करोड़ रूपए की औसत से 4,866 करोड़ रूपए का निवेश हुआ था. लेकिन ये आंकड़ा 2015-16 में गिरकर 267 करोड़ रूपए हो गया. इसका क्या अर्थ है? राज्य में 18-29 साल के युवकों में बेरोजगारी 24.6 प्रतिशत है जबकि राष्ट्रीय स्तर पर ये संख्या 13.2 प्रतिशत है. 15 से 17 वर्ष के बीच युवाओं में यह 57.7 प्रतिशत था, जबकी राष्ट्रीय औसत में 19.8 प्रतिशत थी.
जम्मू-कश्मीर में 2005-10 और 2010-15 के बीच की औसत वृद्धि को देखे तो इसमें 5.8 प्रतिशत से 4.5 प्रतिशत तक की गिरावट आई है. कृषि में (जो आबादी के 64 प्रतिशत को रोजगार और अर्थव्यवस्था में 22 प्रतिशत का योगदान देती है), विनिर्माण (इस क्षेत्र में 11 प्रतिशत कार्यरत हैं और 25 प्रतिशत का इसमें योगदान होता है) और सर्विसेज (इसमें 25 प्रतिशत लोग कार्य करते हैं और 53 प्रतिशत लोगों का इसमें योगदान है). इन सभी क्षेत्रों में विकास का वर्तमान स्तर 2005-2010 के विकास की तुलना में गिरावट आई है.
श्रीनगर से हाल में आई दो खबरों पर मेरी नजर गई-
4 अक्टूबर को इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में कहा गया- "खाड़ी में स्कूल, खासकर उच्चतर माध्यमिक स्कूल पिछले 11 महीने के पूरे सत्र में सिर्फ 100 से अधिक दिन ही खुले रहे. यह लगातार दूसरा साल है जब घाटी में स्कूल किसी अकादमिक सत्र में अधिकांश समय के लिए बंद रही." वहीं एक और अखबार हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक, "2014 में नशीली दवाओं के दुरुपयोग और मनोवैज्ञानिक मुद्दों के मामले 14,500 से बढ़कर 2016 में 33,222 हो गया. मतलब दो साल में 130% की बढ़ोतरी. इस साल सिर्फ अप्रैल तक यह संख्या 13,352 था."
अक्टूबर 1947 में जम्मू और कश्मीर के तत्कालीन शासक महाराजा हरि सिंह ने राज्य के हस्तारांतरण पेपर पर हस्ताक्षर किए थे. जिसके बाद राज्य का भारत का हिस्सा बनने का रास्ता साफ हो गया था. रामचंद्र गुहा की किताब इंडिया आफ्टर गांधी में महाराजा हरि सिंह द्वारा प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु को लिखी गई चिट्ठी को छापा गया है. इसमें लिखा है:
"भले ही मिलिट्री आज कश्मीर में सैनिकों ने कश्मीर को अपने कब्जे में कर रखा है लेकिन आने वाले समय में इसके परिणाम बहुत ही खतरनाक होंगे. इसलिए ये लोगों के मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण की एक समस्या है और उन्हें ये महसूस कराने की जरुरत है कि भारतीय संघ के साथ जुड़कर उनका फायदा ही होगा. अगर औसत मुस्लिमों ये महसूस होने लगेगा कि यहां वो सुरक्षित नहीं हैं तो जाहिर है कि वो किसी सुरक्षित जगह की तलाश में इधर-उधर देखने लगेंगे. हमारी बेसिक पॉलिसी को इसका ध्यान जरुर रखना चाहिए नहीं तो हम फेल हो जाएंगे."
तो क्या हुआ?
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