देश में हिन्दुत्व की लहर पर अपनी विरासत का हक़ हासिल करने के लिए शिवसेना अयोध्या को रणभूमि बनाने के मूड में नजर आ रही है. राम मंदिर मुद्दे की सरगर्मियों में यूपी में डेरा डाले शिव सैनिकों के तेवर तो कुछ यही इशारा कर रहे हैं. राम मंदिर को लेकर सुस्त सत्तारूढ़ भाजपा को ताने देते हुए महाराष्ट्र के शिव सैनिकों का कहना है कि विवादित ढांचा हमने ही तोड़ा था और राम मंदिर भी हम ही बनायेंगे.
किसी हद तक ये बात सच भी है. अयोध्या मुद्दे के सहारे शिखर पर पंहुचने वाली भाजपा ने राम मंदिर की हांडी पर कई बार सरकारें तो बना लीं लेकिन राम मंदिर नहीं बनाया.
बाबरी ढांचे के विध्वंस को यदि सफलता माना जाये तो इसमें सबसे बड़ा श्रेय हिन्दू सम्राट बाला साहब बाल ठाकरे और उनके शिव सैनिकों को ही जाता है. नहीं तो शायद भाजपा नेता अपने शपथ पत्र का पालन कर लेते. लेकिन शिव सैनिकों ने आगे आकर अपने उद्देश्य में सफलता हासिल कर ली थी. जिसके बाद कल्याण सिंह सरकार बर्खास्त हो गई थी. इस बार की भाजपाई खेप को सत्ता भी प्यारी है, राम मंदिर का मुद्दा भी दुलारा है और हिन्दुत्व की अलमबरदारी का हक भी न्यारा है.
यही बात शिव सेना और ठाकरे परिवार को नागवार गुजरने लगी है. नरेंद्र मोदी जी हिन्दुत्व के रास्ते से प्रधानमंत्री का पद हासिल करने के बाद उदारवाद के ट्रैक की ओर नजर आ रहे हैं. राम मंदिर बनवाना तो दूर उसपर एक शब्द भी नहीं बोलते. योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री का पद देकर हिन्दुत्व का अलख जलाये रखने की जिम्मेदारी तो दे दी पर आजादी नहीं दी.
सही मायने में देश में हिन्दुत्व का अलख जलाने वाले बाला साहब बाल ठाकरे की विरासत पर कब्जा जमाकर सत्ता की मलाई चाटने वालों के आमने-सामने आने को तैयार शिवसेना भाजपा सरकार को जमकर दबाव में लेने...
देश में हिन्दुत्व की लहर पर अपनी विरासत का हक़ हासिल करने के लिए शिवसेना अयोध्या को रणभूमि बनाने के मूड में नजर आ रही है. राम मंदिर मुद्दे की सरगर्मियों में यूपी में डेरा डाले शिव सैनिकों के तेवर तो कुछ यही इशारा कर रहे हैं. राम मंदिर को लेकर सुस्त सत्तारूढ़ भाजपा को ताने देते हुए महाराष्ट्र के शिव सैनिकों का कहना है कि विवादित ढांचा हमने ही तोड़ा था और राम मंदिर भी हम ही बनायेंगे.
किसी हद तक ये बात सच भी है. अयोध्या मुद्दे के सहारे शिखर पर पंहुचने वाली भाजपा ने राम मंदिर की हांडी पर कई बार सरकारें तो बना लीं लेकिन राम मंदिर नहीं बनाया.
बाबरी ढांचे के विध्वंस को यदि सफलता माना जाये तो इसमें सबसे बड़ा श्रेय हिन्दू सम्राट बाला साहब बाल ठाकरे और उनके शिव सैनिकों को ही जाता है. नहीं तो शायद भाजपा नेता अपने शपथ पत्र का पालन कर लेते. लेकिन शिव सैनिकों ने आगे आकर अपने उद्देश्य में सफलता हासिल कर ली थी. जिसके बाद कल्याण सिंह सरकार बर्खास्त हो गई थी. इस बार की भाजपाई खेप को सत्ता भी प्यारी है, राम मंदिर का मुद्दा भी दुलारा है और हिन्दुत्व की अलमबरदारी का हक भी न्यारा है.
यही बात शिव सेना और ठाकरे परिवार को नागवार गुजरने लगी है. नरेंद्र मोदी जी हिन्दुत्व के रास्ते से प्रधानमंत्री का पद हासिल करने के बाद उदारवाद के ट्रैक की ओर नजर आ रहे हैं. राम मंदिर बनवाना तो दूर उसपर एक शब्द भी नहीं बोलते. योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री का पद देकर हिन्दुत्व का अलख जलाये रखने की जिम्मेदारी तो दे दी पर आजादी नहीं दी.
सही मायने में देश में हिन्दुत्व का अलख जलाने वाले बाला साहब बाल ठाकरे की विरासत पर कब्जा जमाकर सत्ता की मलाई चाटने वालों के आमने-सामने आने को तैयार शिवसेना भाजपा सरकार को जमकर दबाव में लेने की रणनीति बना रही है.
एक शिव सैनिक की मानें तो बाबरी ढांचा ढाहने का इनाम भाजपा ने लिया और जख्म सहे महाराष्ट्र की जनता और शिवसेना ने. शिव सैनिक की दलील में दम भी था. उसने कहा कि यदि बाबरी ढांचा ढहाने में यूपी और यहां की सियासत का ही बड़ा श्रेय होता तो मुस्लिम कट्टरपंथी मुंबई में सीरियल बम ब्लास्ट नहीं करते यूपी में करते.
1992 में बाबरी ढांचा गिराने की घटने और अब मंदिर निर्माण की सरगर्मियों में बहुत अंतर नजर आ रहा है. 26 वर्षों में सरयू और गोमती का पानी बहुत बदला. इससे भी ज्यादा अयोध्या मसले पर मुसलमानों का रूख भी बदला है. मौके की नजाकत से कथित धर्मनिरपेक्ष सियासी दलों के सुर बदले तो मुस्लिम समाज को अब उकसाने वाले ही नहीं रहे. यही कारण है कि अब ना तो बाबरी विध्वंस के गिले-शिकवे और ना ही राम मंदिर निर्माण का विरोध कहीं नजर आ रहा है.
शायद इसलिए अब अयोध्या कूच बिना दूल्हा के बारात फीकी-फीकी सी लग रही है. विहिप नेतृत्व की दो पुरानी बड़ी ताकतों जैसा विकल्प अभी तैयार नहीं हुआ है. पिछड़ों पर हिन्दुत्व का रंग चढ़ाने के लिए कल्याण सिंह और उमा भारती जैसे दिग्गज लगभग पवेलियन में हैं.
अयोध्या की जमीन पर शिवसैनिक और न्यूज चैनलों की आसमानी हवाबाजी के सिवा अगर कुछ है तो वो शिव सेना के आक्रामक तेवर हैं. राम मंदिर की हवा में भाजपा हवा में है. वो कहां और कैसे नजर आये! किसी भी मांग से जुड़े आंदोलन की ताकत किसी के विरोध पर आधारित होती है. मुख्य रूप से सत्ता विरोध आंदोलनकारियों का हथियार होता है. ये विरोध ही आंदोलन में जोश और धार पैदा करता है. भाजपाई भाजपा सरकार पर तो अटैक करेंगे नहीं. क्योंकि अयोध्या पर फैसला देश की न्याय व्यवस्था के हाथ में है, राष्ट्रभक्ति और रामभक्ति संविधान और कानून के विरोध की इजाजत नहीं देती. शक्तिशाली मोदी सरकार ने साढ़े चार वर्षों में राम मंदिर निर्माण के लिए संसद में कानून पास करवाने की कोशिश भी नहीं की. इस बात का ही विरोध करने के लिए शिवसेना अयोध्या में डेरा डाले है.
25 नवम्बर के जमावड़े में भाजपा और विहिप के कार्यकर्ता आखिर क्या करेंगे ??? शिव सेना के सुर में सुर मिलाकर क्या सरकार का विरोध करेंगे! भाजपाई संस्कार देशभक्ति को सर्वोपरि मानते हैं. और देशभक्ति न्याय व्यवस्था पर उंगली उठाने या संविधान को तोड़ने की इजाजत तो नहीं देती. देशभक्ति ही नहीं मर्यादा पुरुषोत्तम राम भी संविधान की मर्यादा को आहत करने की अनुमति नहीं देते.
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