जिहाद का दामन थाम अपने मिशन पर निकले विश्व के दुर्दांत आतंकी संगठनों में से एक तालिबान ने अफगानिस्तान की सत्ता से राष्ट्रपति अशरफ गनी को खदेड़ दिया है और मुल्क के निजाम पर कब्जा कर लिया है. मामला सामने आने के बाद अमेरिका, रूस , भारत जैसे सभी देश अवाक रह गए हैं. हर कोई हैरत में है कि तालिबान ने ये किया कैसे? वैश्विक राजनीति को समझने वाले सभी राजनीतिक पंडितों के बीच भी विमर्श तेज है कि तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा कर तो लिया है लेकिन क्या वो एक देश और उस देश की सत्ता को चला पाएगा? सवाल इसलिए भी लाजमी है क्योंकि सत्ता हासिल करते ही जो हाल तालिबान ने अफगानिस्तान का किया है उसे दुनिया ने देख लिया है. यूं तो दुनिया तालिबान और उसके इस घिनौने कृत्य की आलोचना ही कर रहा है लेकिन इस दुनिया में सिरफिरों की कोई कमी नहीं है. दिलचस्प ये कि ये सिरफिरे और कहीं नहीं बल्कि हिंदुस्तान में हैं और जी भरकर तालिबान की शान में कसीदे पढ़ रहे हैं. जी हां जो चीज सोचने मात्र में ही घिनौनी है वो हो रही है और भारत देश में हो रही है. साफ है कि तालिबान का समर्थन करने वाले भारतीय कभी हो ही नहीं सकते.
सबसे पहले रुख करते हैं ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) के सदस्य सज्जाद नोमानी का. सज्जाद नोमानी तालिबान के अफगानिस्तान पर कब्जे के बाद बौखला गए हैं और शायद अपनी खुशी छुपा नहीं पा रहे हैं. दरअसल सज्जाद नोमानी ने तालिबान के समर्थन में बयान दिया है और कहा है कि एक निहत्थी कौम ने दुनिया की मजबूत फौजों को शिकस्त दी, उन्होंने अफगानिस्तान पर कब्जे के लिए तालिबान मुबारकबाद भी दी.
क्या कहा है नोमानी ने
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) के सदस्य सज्जाद...
जिहाद का दामन थाम अपने मिशन पर निकले विश्व के दुर्दांत आतंकी संगठनों में से एक तालिबान ने अफगानिस्तान की सत्ता से राष्ट्रपति अशरफ गनी को खदेड़ दिया है और मुल्क के निजाम पर कब्जा कर लिया है. मामला सामने आने के बाद अमेरिका, रूस , भारत जैसे सभी देश अवाक रह गए हैं. हर कोई हैरत में है कि तालिबान ने ये किया कैसे? वैश्विक राजनीति को समझने वाले सभी राजनीतिक पंडितों के बीच भी विमर्श तेज है कि तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा कर तो लिया है लेकिन क्या वो एक देश और उस देश की सत्ता को चला पाएगा? सवाल इसलिए भी लाजमी है क्योंकि सत्ता हासिल करते ही जो हाल तालिबान ने अफगानिस्तान का किया है उसे दुनिया ने देख लिया है. यूं तो दुनिया तालिबान और उसके इस घिनौने कृत्य की आलोचना ही कर रहा है लेकिन इस दुनिया में सिरफिरों की कोई कमी नहीं है. दिलचस्प ये कि ये सिरफिरे और कहीं नहीं बल्कि हिंदुस्तान में हैं और जी भरकर तालिबान की शान में कसीदे पढ़ रहे हैं. जी हां जो चीज सोचने मात्र में ही घिनौनी है वो हो रही है और भारत देश में हो रही है. साफ है कि तालिबान का समर्थन करने वाले भारतीय कभी हो ही नहीं सकते.
सबसे पहले रुख करते हैं ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) के सदस्य सज्जाद नोमानी का. सज्जाद नोमानी तालिबान के अफगानिस्तान पर कब्जे के बाद बौखला गए हैं और शायद अपनी खुशी छुपा नहीं पा रहे हैं. दरअसल सज्जाद नोमानी ने तालिबान के समर्थन में बयान दिया है और कहा है कि एक निहत्थी कौम ने दुनिया की मजबूत फौजों को शिकस्त दी, उन्होंने अफगानिस्तान पर कब्जे के लिए तालिबान मुबारकबाद भी दी.
क्या कहा है नोमानी ने
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) के सदस्य सज्जाद नोमानी ने तालिबान को उनके कृत्य के लिए मुबारकबाद दी है और कहा है कि, '15 अगस्त 2021, यह तारीख का दिन बन गया, जब अफगानिस्तान की सर जमीन पर एक बार फिर यह तारीख रकम हुई, एक निहत्थी और गरीब कौम ने जिसके पास न साइंस न टेक्नोलॉजी न व्यवसाय न दौलत न हथियार और न तादात, उसने पूरी दुनिया की सबसे ज्यादा मजबूत फौजों को शिकस्त दी.
जो कौम मरने के लिए तैयार हो जाए, उसे दुनिया में कोई शिकस्त नहीं दे सकता, मुबारक हो इमालते इस्लामिया अफगानिस्तान के कायदीन को, आपका दूर बैठा हुआ यह हिंदी मुसलमान आपको सलाम करता है, आपकी अजमत को सलाम करता है, आपके हौंसले को सलाम करता है.'
चूंकि ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड भारत के मुसलमानों के लिए उस चिराग की तरह है. जो उन्हें अंधेरे में रौशनी की किरण दिखाता है इसलिए नोमानी का बयान खासा अहम है. अब क्योंकि बयान एक जिम्मेदार संस्था से था इसलिए लोगों ने भी इसे हाथों हाथ लिया और सज्जाद नोमानी और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड दोनों की खूब लानत मलामत हुई.
बाद में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने नोमानी के इस बयान को 'व्यक्ति विशेष' का बयान बताया और इससे कन्नी काट ली. भले ही मुस्लिम लॉ बोर्ड ने इस बयान से किनारा कर लिया हो लेकिन अब जबकि बात निकल गयी है तो फिर इसका दूर तक जाना स्वाभाविक है.
क्यों नोमानी के बयान पर हैरत नहीं होती.
नोमानी ने तालिबान का समर्थन किया और सुदूर अफगानिस्तान में अपना सलाम भेजा है. ऐसे में अब हैरत क्या ही करना. सवाल हो सकता है क्यों? जवाब बहुत सिंपल है. सज्जाद नोमानी शक्ल सूरत, लिखाई पढ़ाई के लिहाज से मौलाना हैं. मदरसे में रहे हैं और वहां उन्होंने ये ही सब देखा सुना है. जिहाद का गाजर दिखाकर सिर्फ अफगानिस्तान में ही लड़कों को नहीं बरगलाया गया है कई हैं जो चाल, चरित्र और चेहरे से हद दर्जे के कट्टर हैं. साफ है कि नोमानी का शुमार भी ऐसे ही लोगों में है.
बात सीधी और साफ है नोमानी उन्हीं बातों को जगजाहिर कर रहे हैं जिनकी शिक्षा एक मौलवी के रूप में उन्होंने बरसों ली है. तो जब एक नागरिक के रूप में हम उनके विचार और विचारधारा दोनों को जानते हैं तो फिर उनकी बातों का क्या ही बुरा मानना.
नोमानी जैसे लोगों के इदारों और दर्सगाहों में कट्टरता किस हद तक है इसका अंदाजा आगरा की शाही मस्जिद में तिरंगा फहराए जाने की घटना और उसके बाद उपजे विवाद को देखकर आसानी से लगाया जा सकता है.
भारत एक लोकतांत्रिक देश है जिसने अखंडता और एकता पर न केवल बल दिया बल्कि उसपर गर्व भी करता है. लेकिन ये गर्व उस वक़्त सवालों के घेरे में आता है जब हम ये देखते हैं कि एक मस्जिद में बड़ी शान से तिरंगा फहराया तो जाता है लेकिन वो शहर, जहां पर वो मस्जिद है. उसका शहर मुफ़्ती इसके विरोध में आ जाता है. एक सेक्युलर देश में ऐसी बातें हैरत पैदा करती हैं लेकिन होनी को कौन भला टाल सकता है. उत्तर प्रदेश के आगरा में ठीक ऐसा ही हुआ है.
आगरा की शाही मस्जिद में तिरंगा फहराए जाने को शहर मुफ़्ती मजदुल खुबैब रूमी ने हराम करार दिया है. आगरा में हुआ कुछ यूं था कि भाजपा नेता और अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष अशरफ सैफी ने शाही मस्जिद में तिरंगा फहराया और राष्ट्रगान गया और भारत माता की जय के नारे लगाए. अशरफ सैफी द्वारा ऐसा करने से शहर मुफ़्ती मजदुल खुबैब रूमी की भावनाएं आहत हो गईं और इसे उन्होंने हराम करार दे दिया.
अब जनता इस सवाल का जवाब दे कि भारत माता की जय के नारे भारत में नहीं लगेंगे तो कहां लगेंगे. ऐसा तो हरगिज़ नहीं था कि तिरंगे को लहराकर जन गण मन पाकिस्तान के किसी मदरसे में गया गया. साफ है कि चाहे वो मुस्लिम लॉ बोर्ड के मेंबर सज्जाद नोमानी हों या फिर आगरा के शहर मुफ़्ती मजदुल खुबैब रूमी दोनों ही एक ही स्कूल ऑफ थॉट से आते हैं. कट्टरता इनकी नस नस में है और ये पूरी बेशर्मी के साथ तालिबान या आईएस आईएस के गलत को सही ठहराएंगे और उसका पुरजोर समर्थन करेंगे.
तो जब नोमानी और रूमी नहीं तो हमें किसकी बात पर आहत होना चाहिए?
जैसा कि हम ऊपर इस बात की पुष्टि कर चुके हैं कि चाहे वो नोमानी हों या फिर रूमी हमें दोनों में से किसी की भी बात का बुरा नहीं मानना चाहिए लेकिन एक नागरिक के रूप में हमें असली हैरत तो तब होती है जब हम उत्तर प्रदेश के संभल से सांसद शफीकुर्रहमान बर्क की वो बातें सुनते हैं जो उन्होंने तालिबान के लिए कहीं हैं और जिसपर उनके खिलाफ देशद्रोह का मुकदमा हुआ है.
समाजवादी पार्टी से लोकसभा सांसद शफीकुर्रहमान बर्क ने तालिबानी आतंकियों की तुलना देश के स्वतंत्रता सेनानियों के साथ की थी. शफीकुर्रहमान ने तालिबानी आतंकियों को देश के स्वतंत्रता सेनानियों की तरह बताया था. सपा सांसद ने तालिबानी आतंकियों का पक्ष लेते हुए कहा था कि हिंदुस्तान में जब अंग्रेजों का शासन था और उन्हें हटाने के लिए हमने संघर्ष किया, ठीक उसी तरह तालिबान ने भी अपने देश को आजाद किया. इसके अलावा बर्क ने तालिबान की शान में कसीदे पढ़ते हुए ये भी कहा था कि, इस संगठन ने रूस, अमेरिका जैसे ताकतवर मुल्कों को अपने देश में ठहरने नहीं दिया.
मामले को संभल के एसपी ने गंभीरता से लिया है और बताया है कि ऐसे बयान देशद्रोह की श्रेणी में आते हैं. इसलिए उनके खिलाफ धारा 124ए (देशद्रोह), 153ए, 295 आईपीसी के तहत केस दर्ज हुआ है.
बर्क की बातों पर हमें आहत इसलिए होना चाहिए क्योंकि बर्क किसी मस्जिद या मदरसे से नहीं आते हैं बल्कि वो एक नेता हैं. उन्हें मुसलमानों के साथ साथ हिंदुओं ने भी चुना है. बतौर संसद उनकी बात दूर तक जाती है. इसलिए बतौर सांसद बर्क ने तालिबान को सपोर्ट करते हुए न केवल लोकतंत्र को शर्मिंदा किया है बल्कि ये भी बता दिया है कि जब व्यक्ति पर कट्टरता हावी होती है तो चाहे वो पब्लिक डोमेन हो या फिर दीनी डोमेन व्यक्ति अपनी असलियत दिखाने से बाज नहीं आता.
कुल मिलाकर चाहे वो नोमानी और रूमी हों या बर्क ये सब चीजें इतिहास में दर्ज हो चुकी हैं. कल जब बात इस दौर की होगी तो इन लोगों कस भी जिक्र होगा और तब दुनिया को पता लगेगा कि कैसे चंद मुट्ठी भर लोग थे जो जिस थाली में खाते थे डंके की चोट पर उसी में छेद करते थे.
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