पटना चौक सहित कई जगहों पर लगे पोस्टर काफी चर्चा में हैं. पोस्टर में पूरे लालू परिवार के चेहरे हैं - लालू यादव के अलावा राबड़ी देवी, तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav), तेज प्रताप यादव और मीसा भारती. लालू को सलाखों के अंदर दिखाया गया है और लिखा है - 'सजायाफ्ता कैदी नंबर 3351'.
पोस्टर पर सबसे ऊपर एक लाइन लिखी है - 'एक ऐसा परिवार जो बिहार पर भार.'
अमूमन राजनीतिक पोस्टर जिसकी तरफ से लगाये जाते हैं उसके नाम बड़े अक्षरों में और तस्वीर भी अलग से बड़ी सी दिखायी देती, लेकिन ये गुमनाम पोस्टर है. किसी को नहीं मालूम किसने ये पोस्टर लगवाये हैं.
बिहार के चुनावी माहौल (Bihar Election 2020) में जिसने भी पोस्टर लगवाया हो, देख कर ये तो पता चलता ही है कि जो कोई भी हो वो लालू परिवार और आरजेडी का राजनीतिक विरोधी ही होगा. ये तो विरोधी राजनीति का पोस्टर है, लेकिन आरजेडी की तरफ से जो पोस्टर लगाये गये हैं उसमें लालू यादव का नदारद होना भी राजनीतिक तौर पर सही फैसला नहीं लगता.
आरजेडी की तरफ से जो चुनावी पोस्टर देखने को मिल रहे हैं उसमें तेजस्वी यादव की बड़ी सी तस्वीर है - होनी भी चाहिये, लेकिन लालू यादव की कोई तस्वीर न होना हैरान करता है. क्या तेजस्वी यादव आरजेडी को लालू यादव की छाया से वैसे ही अलग कर पेश करने की कोशिश कर रहे हैं जैसे राहुल गांधी कांग्रेस के लिए गांधी परिवार से अलग के अध्यक्ष की जिद पकड़े हुए हैं? अगर तेजस्वी यादव ऐसा कर रहे हैं तो वो भी राहुल गांधी (Rahul Gandhi) वाली ही गलती दोहरा रहे हैं - आरजेडी के पोस्टर में लालू प्रसाद यादव नहीं होंगे तो तो लोग वोट क्यों देंगे?
आरजेडी के पोस्टर में लालू क्यों नहीं
2015 के बिहार चुनाव से पहले काफी दिनों तक मुलायम सिंह यादव भी खासे एक्टिव रहे. बल्कि, नीतीश कुमार को महागठबंधन का नेता घोषित करने की प्रेस कांफ्रेंस के लिए भी वही पहले सामने आये, लेकिन उसके फौरन बाद राजनीति ने ऐसी करवट बदली कि सीन से पूरी तरह गायब ही हो गये - बाद में तो वो नीतीश कुमार को हराने की अपील तक...
पटना चौक सहित कई जगहों पर लगे पोस्टर काफी चर्चा में हैं. पोस्टर में पूरे लालू परिवार के चेहरे हैं - लालू यादव के अलावा राबड़ी देवी, तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav), तेज प्रताप यादव और मीसा भारती. लालू को सलाखों के अंदर दिखाया गया है और लिखा है - 'सजायाफ्ता कैदी नंबर 3351'.
पोस्टर पर सबसे ऊपर एक लाइन लिखी है - 'एक ऐसा परिवार जो बिहार पर भार.'
अमूमन राजनीतिक पोस्टर जिसकी तरफ से लगाये जाते हैं उसके नाम बड़े अक्षरों में और तस्वीर भी अलग से बड़ी सी दिखायी देती, लेकिन ये गुमनाम पोस्टर है. किसी को नहीं मालूम किसने ये पोस्टर लगवाये हैं.
बिहार के चुनावी माहौल (Bihar Election 2020) में जिसने भी पोस्टर लगवाया हो, देख कर ये तो पता चलता ही है कि जो कोई भी हो वो लालू परिवार और आरजेडी का राजनीतिक विरोधी ही होगा. ये तो विरोधी राजनीति का पोस्टर है, लेकिन आरजेडी की तरफ से जो पोस्टर लगाये गये हैं उसमें लालू यादव का नदारद होना भी राजनीतिक तौर पर सही फैसला नहीं लगता.
आरजेडी की तरफ से जो चुनावी पोस्टर देखने को मिल रहे हैं उसमें तेजस्वी यादव की बड़ी सी तस्वीर है - होनी भी चाहिये, लेकिन लालू यादव की कोई तस्वीर न होना हैरान करता है. क्या तेजस्वी यादव आरजेडी को लालू यादव की छाया से वैसे ही अलग कर पेश करने की कोशिश कर रहे हैं जैसे राहुल गांधी कांग्रेस के लिए गांधी परिवार से अलग के अध्यक्ष की जिद पकड़े हुए हैं? अगर तेजस्वी यादव ऐसा कर रहे हैं तो वो भी राहुल गांधी (Rahul Gandhi) वाली ही गलती दोहरा रहे हैं - आरजेडी के पोस्टर में लालू प्रसाद यादव नहीं होंगे तो तो लोग वोट क्यों देंगे?
आरजेडी के पोस्टर में लालू क्यों नहीं
2015 के बिहार चुनाव से पहले काफी दिनों तक मुलायम सिंह यादव भी खासे एक्टिव रहे. बल्कि, नीतीश कुमार को महागठबंधन का नेता घोषित करने की प्रेस कांफ्रेंस के लिए भी वही पहले सामने आये, लेकिन उसके फौरन बाद राजनीति ने ऐसी करवट बदली कि सीन से पूरी तरह गायब ही हो गये - बाद में तो वो नीतीश कुमार को हराने की अपील तक करते सुने गये थे. बिहार में फिर से चुनावी माहौल जोर पकड़ चुका है और फिलहाल न तो मुलायम सिंह यादव की कोई भूमिका है न किसी तरह की चर्चा. एक प्रसंग ऐसा जरूर है जो आरजेडी को लेकर समाजवादी पार्टी को प्रासंगिक बना देता है. याद कीजिये जब 2017 के यूपी विधानसभा चुनावों से पहले समाजवादी पार्टी में झगड़ा चल रहा था, चीजें मुलायम सिंह यादव की पकड़ से धीरे धीरे बाहर होने लगी थीं और अखिलेश यादव खुद को पार्टी का नेता घोषित करने के साथ साथ अध्यक्ष बन चुके थे और उनका पूरी तरह कब्जा भी हो चुका था. ये सब सिर्फ इसलिए हो रहा था क्योंकि उनका अपने चाचा शिवपाल यादव से झगड़ा चल रहा था. सारी बातों के बीच गौर करने वाली बात ये रही कि कभी भी अखिलेश यादव ने मुलायम सिंह यादव और समाजवादी पार्टी को अलग नहीं होने दिया - न तो कभी ऐसा कोई पोस्टर दिखा जिसमें मुलायम सिंह यादव की तस्वीर न हो. सही भी है - क्या मुलायम सिंह यादव के बगैर समाजवादी पार्टी की कोई पहचान भी है? लेकिन पटना में आरजेडी का जो पोस्टर लगा है उस पर सिर्फ तेजस्वी यादव की बड़ी सी तस्वीर है और एक स्लोगन लिखा है - 'नयी सोच नया बिहार, युवा सरकार, अबकी बार.'
अखिलेश यादव तो पांच साल मुख्यमंत्री रहने के बाद भी इतनी हिम्मत नहीं जुटा पाये, तेजस्वी यादव तो मुश्किल से सवा साल तक डिप्टी सीएम भर रहे हैं. वैसे भी डिप्टी सीएम नाम भर का ही होता है. जैसे कैबिनेट के बाकी मंत्री होते हैं वैसे ही एक और मंत्री. अगर तेजस्वी यादव डिप्टी सीएम रहते कुछ कर पाते थे या बोल पाते थे वो सिर्फ लालू यादव का बेटा होने की वजह से, वरना डिप्टी सीएम की हैसियत क्या होती है सचिन पायलट कुछ ही दिन पहले बता चुके हैं. न तो कोई अफसर उनकी बात सुनता था न ही कोई और. ये बातें कई इंटरव्यू के जरिये सचिन पायलट खुद मीडिया को बता चुके हैं.
देखा जाये तो पटना में लालू यादव के राजनीतिक विरोधियों ने जो पोस्टर लगा रखे हैं और आरजेडी ने तेजस्वी का जो पोस्टर तैयार कराया है एक ही कहानी कह रहे हैं. जो बात एक पोस्टर में लालू यादव के राजनीतिक विरोधी बता रहे हैं वहीं बातें तेजस्वी यादव दूसरे पोस्टर में छिपाना चाह रहे हैं.
तेजस्वी यादव भी अपने राजनीतिक विरोधियों से वैसे ही परेशान लगते हैं जैसे कांग्रेस नेता राहुल गांधी. बीजेपी और कांग्रेस के दूसरे विरोधी राजनीति दल और उनके नेता राहुल गांधी पर गांधी परिवार का होने की वजह से उनका अस्तित्व बताते हैं. सोशल मीडिया पर हर तरह के मजाक उड़ाये जाते हैं कि अगर राहुल गांधी कांग्रेस का नेतृत्व कर रहे गांधी परिवार से न होते तो क्या होते. हालांकि, राहुल गांधी ने विदेश में एक कार्यक्रम में भारत में परिवारवाद की राजनीति को स्वीकार करते हुए भारतीय राजनीति की एक हकीकत के तौर पर माना था, लेकिन आम चुनाव के बाद वो इतने परेशान हो उठे कि हार की जिम्मेदारी लेते हुए कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दो दिया ही, ये घोषणा भी कर डाली कि आगे से कांग्रेस का जो भी अध्यक्ष बनेगा गांधी परिवार से नहीं होगा. ये बात अलग है कि न तो अब तक ऐसा हो पाया है और न ही आगे ऐसी किसी संभावना के संकेत मिले हैं - बल्कि, संकेत यही मिल रहे हैं कि अगले आम चुनाव से पहले राहुल गांधी की दोबारा ताजपोशी हो सकती है.
तेजस्वी यादव को भी आरजेडी के किसी भी पोस्टर से लालू यादव की तस्वीर हटानी नहीं चाहिये - क्योंकि लालू यादव से ही तेजस्वी यादव की भी पहचान है और आरजेडी का भी अस्तित्व बना हुआ है. जैसे ट्विटर पर काफी समय से तेजस्वी यादव एक ट्वीट को पिन टॉप किये हुए हैं, वैसे ही बगैर लालू यादव के कोई पोस्टर छपवाना ही नहीं चाहिये.
आरजेडी छोड़ कर ही बीजेपी में गये पाटलिपुत्र से सांसद रामकृपाल यादव ने कहा है कि तेजस्वी यावद तो चांदी की चम्मच लेकर पैदा हुए - उनकी एकमात्र पहचान लालू प्रसाद यादव का बेटा होना है. तेजस्वी की योग्यता पर सवाल खड़ा करते हुए रामकृपाल यादव ने कहा कि लालू का बेटा होने के अलावा तेजस्वी यादव की पहचान क्या है?
काफी पहले एक बार लालू परिवार प्रशांत किशोर से काफी उलझ रहा था, तभी प्रशांत किशोर ने दो ट्वीट किये और बात आई गई हो गयी. उनमें से एक ट्वीट तेजस्वी यादव को लेकर था. प्रशांत किशोर ने लिखा था - "तेजस्वी यादव आज भी लोगों के लिए आपकी पहचान और उपलब्धि बस इतनी है कि आप लालू जी के लड़के हैं. इसी एक वजह से पिता की अनुपस्थिति में आप आरजेडी के नेता हैं और नीतीशजी की सरकार में डिप्टी सीएम बनाये गये थे. पर सही मायनों आपकी पहचान तब होगी जब आप छोटा सा ही सही पर अपने दम पर कुछ करके दिखाएंगे."
ऐसा लगता है राहुल गांधी भी देर सबेर अपनी गलती सुधारने वाले हैं, तेजस्वी यादव को भी हकीकत को स्वीकार कर विरोधियों से राजनीतिक मुकाबले के लिए मजबूत बनना चाहिये - और ध्यान रहे लालू यादव उनकी कमजोरी नहीं मजबूती हैं. तेजस्वी यादव ने बिहार में जंगल राज के लिए माफी मांग ली है - ये कम नहीं है.
जंगलराज के लिए माफी काफी है
2015 में डिप्टी सीएम बनने के बाद तेजस्वी यादव ने आरजेडी में करीब करीब वैसे ही बदलाव की कोशिश की थी जैसे उद्धव ठाकरे ने बाल ठाकरे की शिवसेना में किया और नयी छवि पेश की. हालांकि, पूर्व नौसेना अधिकारी पर शिवसैनिकों के हमले के बाद एक बार फिर उस पर सवाल उठे हैं.
तेजस्वी यादव ने आरजेडी को सोशल मीडिया से जोड़ा और खुद भी खासे एक्टिव रहते हैं. हाल फिलहाल चाहे वो सुशांत सिंह राजपूत का मुद्दा उछालने की बात हो या फिर दलितों के घर हत्या होने पर सरकारी नौकरी देने का मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का वादा हो - तेजस्वी यादव ने आक्रामक रूख दिखाया है. दलितों को नौकरी दिये जाने के मामले में तेजस्वी यादव को एलजेपी नेता चिराग पासवान का सपोर्ट भी मिला है और यही हाल सुशांत सिंह राजपूत के मामले में भी देखने को मिला था.
नीतीश कुमार के महागठबंधन से पाला बदल कर एनडीए में चले जाने के बाद लालू यादव की गैरमौजूदगी में तेजस्वी यादव को कई उपचुनावों में सफलता भी मिली थी, लेकिन आम चुनाव में कई गलत फैसले भारी पड़े और तेजस्वी यादव पूरी तरह चूक गये समझे गये. उसके बाद गलती ये भी कर दी कि काफी दिनों तक सार्वजनिक तौर पर नजर नहीं आये. कोरोना वायरस के चलते लॉकडाउन के दौरान भी तेजस्वी यादव से ऐसी ही गलती हुई जिसका उनके विरोधियों ने फायदा भी उठाया. वैसे तेजस्वी यादव ने भी नीतीश कुमार के मुख्यमंत्री आवास से बाहर न निकलने को लेकर लगातार सोशल मीडिया पर कैंपेन चलाया था.
तेजस्वी की ही तरह 2009 के आम चुनाव में राहुल गांधी की भी तारीफ हुई थी जब यूपी में पहले के मुकाबले कांग्रेस को ज्यादा सीटें मिली थीं. 2009 में यूपी में कांग्रेस ने 21 सीटें जीती थी जबकि 2004 में जब कांग्रेस अटल बिहारी वाजयेपी की अगुवाई वाली बीजेपी को हराकर केंद्र की सत्ता में वापसी की थी तब यूपी से कांग्रेस को सिर्फ 9 सीटें मिली थीं. जैसे बाद में राहुल गांधी को नाकामियों से जूझना पड़ा, तेजस्वी यादव के साथ भी वैसा ही हुआ है.
तेजस्वी यादव जंगलराज को लेकर कई बार माफी मांग चुके हैं - और अब उसका जो असर पड़ना होगा उतना ही पड़ेगा. बहुत ज्यादा की उम्मीद भी नहीं रखनी चाहिये. बिहार में एक पुराना स्लोगन प्रचलित रहा है - जब तक समोसे में आलू रहेगा, बिहार में लालू भी रहेगा. ये भी सही है कि लालू यादव बिहार से बहुत दूर रांची जेल में चारा घोटाले में सजा काट रहे हैं, लेकिन क्या आज भी बिहार में कोई भी चुनावी कार्यक्रम होता है जो बगैर लालू स्मरण के खत्म हो जाता हो. तेजस्वी ये क्यों नहीं समझते उनसे ज्यादा तो राजनीतिक विरोधी ही लालू यादव की चर्चा किया करते हैं.
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