बिहार विधानसभा में बीजेपी को अब अपना स्पीकर (Speaker Election) भी मिल गया है. बिहार के संसदीय इतिहास में ये स्पीकर के तीसरे चुनाव में लखीसराय से बीजेपी विधायक विजय सिन्हा बतौर एनडीए प्रत्याशी चुनाव जीत गये. 1967 में पहली बार वोटिंग के जरिये धनिक लाल मंडल और 1969 में दूसरी बार राम नारायण मंडल चुनाव जीत कर विधानसभा अध्यक्ष बने थे - बीच के बरसों में स्पीकर निर्विरोध चुने जाते रहे हैं. विजय सिन्हा ने महागठबंधन के प्रत्याशी अवध बिहारी चौधरी को 12 वोटों से हरा दिया.
स्पीकर के चुनाव से पहले बीजेपी नेता सुशील मोदी (Sushil Modi) ने जहां लालू यादव पर बड़ा इल्जाम लगाया, वहीं स्पीकर के चुनाव के दौरान तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) ने खूब हंगामा किया - हंगामे के चलते प्रोटेम स्पीकर जीतनराम मांझी को सदन को स्थगित भी करना पड़ा.
बिहार में अब बीजेपी का स्पीकर भी
तेजस्वी यादव को स्पीकर के चुनाव के दौरान सदन में नीतीश कुमार सहित तीन नेताओं की मौजूदगी पर आपत्ति जतायी थी. नीतीश कुमार की मौजूदगी पर तेजस्वी यादव की आपत्ति ही आपत्तिजनक रही. चूंकि नीतीश कुमार विधान परिषद के सदस्य हैं, इसलिए तेजस्वी यादव की डिमांड रही कि वो सदन से बाहर जायें. मगर, मुख्यमंत्री सदन का नेता होता है - और नीतीश कुमार मुख्यमंत्री पद की शपथ भी ले चुके हैं. ऐसे में स्पीकर के चुनाव के वक्त नीतीश कुमार की मौजूदगी कहीं से भी असंवैधानिक नहीं हो सकती. अगर ऐसा है, फिर तो मनमोहन सिंह ऐसे मौकों पर कभी लोक सभा में बैठ ही नहीं पाते क्योंकि वो तो राज्य सभा के सांसद होते रहे हैं.
रही बात अशोक चौधरी और मुकेश साहनी को लेकर आपत्ति की तो बात और है. वैसे तो वे दोनों भी मंत्री पद की शपथ ले चुके हैं, लेकिन उनकी स्थिति नीतीश कुमार जैसी नहीं है. अशोक चौधरी और मुकेश साहनी फिलहाल किसी भी सदन के सदस्य नहीं हैं. मुकेश साहनी तो विधानसभा का चुनाव भी हार चुके हैं. नैतिकता के आधार पर तो उनको मंत्री भी नहीं बनना चाहिये, लेकिन नियमों में मिली सुविधा के चलते चुनावी हार उनके लिए बाधा...
बिहार विधानसभा में बीजेपी को अब अपना स्पीकर (Speaker Election) भी मिल गया है. बिहार के संसदीय इतिहास में ये स्पीकर के तीसरे चुनाव में लखीसराय से बीजेपी विधायक विजय सिन्हा बतौर एनडीए प्रत्याशी चुनाव जीत गये. 1967 में पहली बार वोटिंग के जरिये धनिक लाल मंडल और 1969 में दूसरी बार राम नारायण मंडल चुनाव जीत कर विधानसभा अध्यक्ष बने थे - बीच के बरसों में स्पीकर निर्विरोध चुने जाते रहे हैं. विजय सिन्हा ने महागठबंधन के प्रत्याशी अवध बिहारी चौधरी को 12 वोटों से हरा दिया.
स्पीकर के चुनाव से पहले बीजेपी नेता सुशील मोदी (Sushil Modi) ने जहां लालू यादव पर बड़ा इल्जाम लगाया, वहीं स्पीकर के चुनाव के दौरान तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) ने खूब हंगामा किया - हंगामे के चलते प्रोटेम स्पीकर जीतनराम मांझी को सदन को स्थगित भी करना पड़ा.
बिहार में अब बीजेपी का स्पीकर भी
तेजस्वी यादव को स्पीकर के चुनाव के दौरान सदन में नीतीश कुमार सहित तीन नेताओं की मौजूदगी पर आपत्ति जतायी थी. नीतीश कुमार की मौजूदगी पर तेजस्वी यादव की आपत्ति ही आपत्तिजनक रही. चूंकि नीतीश कुमार विधान परिषद के सदस्य हैं, इसलिए तेजस्वी यादव की डिमांड रही कि वो सदन से बाहर जायें. मगर, मुख्यमंत्री सदन का नेता होता है - और नीतीश कुमार मुख्यमंत्री पद की शपथ भी ले चुके हैं. ऐसे में स्पीकर के चुनाव के वक्त नीतीश कुमार की मौजूदगी कहीं से भी असंवैधानिक नहीं हो सकती. अगर ऐसा है, फिर तो मनमोहन सिंह ऐसे मौकों पर कभी लोक सभा में बैठ ही नहीं पाते क्योंकि वो तो राज्य सभा के सांसद होते रहे हैं.
रही बात अशोक चौधरी और मुकेश साहनी को लेकर आपत्ति की तो बात और है. वैसे तो वे दोनों भी मंत्री पद की शपथ ले चुके हैं, लेकिन उनकी स्थिति नीतीश कुमार जैसी नहीं है. अशोक चौधरी और मुकेश साहनी फिलहाल किसी भी सदन के सदस्य नहीं हैं. मुकेश साहनी तो विधानसभा का चुनाव भी हार चुके हैं. नैतिकता के आधार पर तो उनको मंत्री भी नहीं बनना चाहिये, लेकिन नियमों में मिली सुविधा के चलते चुनावी हार उनके लिए बाधा नहीं बनी. हां, छह महीने के भीतर उनको या तो विधानसभा चुनाव लड़ कर या विधान परिषद का सदस्य बनना जरूरी होगा.
विजय सिन्हा के चुनाव जीतने के बाद तो सारे विवाद खत्म हो गये और विपक्ष का नेता होने के नाते तेजस्वी यादव ने भी नीतीश कुमार के साथ मिलकर उनको आसन पर बिठाया. साथ ही, जिम्मेदारी के साथ निष्पक्ष बने रहने की उम्मीद भी जतायी.
विजय सिन्हा को जहां 126 वोट मिले, वहीं अवध बिहार चौधरी को 114 वोट - समझने वाली बात ये है कि दोनों ही उम्मीदवारों को ज्यादा वोट कैसे मिले. वोटिंग के दौरान सदन में 240 विधायक मौजूद थे और चुनाव जीतने के लिए 121 वोट की जरूरत रही. एनडीए के 125 विधायक चुन कर आये हैं. हो सकता है जो एक अधिक वोट मिला है वो लोक जनशक्ति पार्टी का हो क्योंकि चिराग पासवान को तो नीतीश कुमार से परहेज है, स्पीकर उम्मीदवार तो बीजेपी के रहे. उसी तरह महागठबंधन को 110 सीटें मिली थीं और वोट मिले 114. मतलब, चार वोट बीएसपी और ओवैसी की पार्टियों के विधायकों के मिले होंगे. महागठबंधन का उम्मीदवार इस तरह जीत के नंबर से पांच अंक पीछे रह गया.
'सुमो' का 'ऑडियो' अटैक!
तेजस्वी यादव चाहते थे कि स्पीकर के चुनाव में गुप्त मतदान कराया जाये, लेकिन प्रोटेम स्पीकर जीतनराम मांझी ने उनकी डिमांड खारिज कर दी. विधायकों ने हाथ उठाकर स्पीकर के चुनाव में वोट दिया - और चुनावों में बहुमत हासिल करने वाले एनडीए की एक बार फिर जीत हुई.
स्पीकर के चुनाव से पहले बीजेपी नेता सुशील मोदी ने ट्विटर पर एक ऑडियो क्लिप पोस्ट कर बवाल मचा दिया. बिहार में सत्ता के गलियारों में 'सुमो' कहे जाने वाले सुशील मोदी का दावा है कि ऑडियो में लालू यादव की आवाज है. लालू यादव चारा घोटाले में रांची जेल में बंद हैं और फिलहाल खराब सेहत और कोरोना वायरस के प्रकोप की वजह से उनको रिम्स डायरेक्टर के बंगले में रखा गया है.
सुशील मोदी के ट्वीट के मुताबिक, लालू यादव ने जेल से बीजेपी विधायक ललन पासवान को फोन किया था - और उनकी कोशिश स्पीकर के चुनाव को प्रभावित करने की रही. ललन पासवान बिहार के भागलपुर जिले की पीरपैंती विधानसभा से बीजेपी के टिकट पर विधायक चुने गये हैं.
ललन पासवान के मुताबिक, 24 नवंबर, 2020 को शाम छह-साढ़े छह बजे के करीब उनके पास फोन आया था. ललन पासवान की मानें तो फोन पर बातचीत के बाद उन्होंने सुशील मोदी को पूरे मामले की जानकारी दी. ललन पासवान का दावा है कि सुशील मोदी ने उनसे नंबर मांगा और जब कॉल बैक किया तो फोन लालू यादव ने ही उठाया.
सुशील मोदी और ललन पासवान दावा कर रहे हैं कि फोन पर लालू यादव ही थे, लेकिन आरजेडी ने इसे फेक ऑडियो बताया है और ये सुशील मोदी का प्रोपेगैंडा है. आरजेडी की दलील है कि देश में लालू यादव की आवाज निकालने वाले कई लोग हैं - और उनकी मदद से ही ये ऑडियो क्लिप तैयार की गयी हो सकती है.
ऑडियो फेक है या सही, ये तो जांच के बाद ही पता चल सकेगा. वैसे ऑडियो में सुनने में आ रहा है कि बीजेपी विधायक ललन पासवान से स्पीकर चुनाव के दौरान गैरहाजिर रहने को कहा जा रहा है, लेकिन वो पार्टी का हवाला देकर टाल जाते हैं.
एक सवाल ये भी है कि ललन पासवान ने फोन के बारे में सुशील मोदी को ही क्यों बताया? सुशील मोदी को विधानसभा की आचार समिति का अध्यक्ष बनाया गया है और उसके नाते बाद में वो इस मामले में की जांच पड़ताल या अन्य कार्यवाही में शामिल हो सकते थे - उनसे पहले ये सूचना बीजेपी के किसी अन्य पदाधिकारी को मिलनी चाहिये थी.
बेहतर तो ये होता कि ललन पासवान फोन और उसकी बातों को लेकर बिहार बीजेपी अध्यक्ष संजय जायसवाल को सूचित करते. संजय जायसवाल के नहीं मिलने पर वो बिहार बीजेपी प्रभारी भूपेंद्र यादव या बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा को जानकारी देते - और फिर इस बारे में एक्शन लिया जाता.
फिर तो ये भी पता चलता कि ऐसा फोन सिर्फ ललन पासवान के पास ही आया था या किसी और के पास भी? सवाल ये भी है कि फोन सिर्फ ललन पासवान के पास ही क्यों आया - किसी और के पास क्यों नहीं? अगर बीजेपी के या जेडीयू के किसी और भी विधायक के पास फोन आता तो क्या इसकी जानकारी सामने नहीं आती? ये ऐसी बातें हैं जो ललन पासवान ही नहीं, सुशील मोदी के दावों को भी कमजोर करती हैं और आरजेडी को प्रोपेगैंडा कहना का मौका मिल गया है.
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