तेजस्वी यादव (Tejashwi Yaday) के नेतृत्व में चुनाव लड़ रहे महागठबंधन के चुनाव घोषणा पत्र में सबसे ज्यादा जोर बेरोजगारी पर है. ये आरजेडी, कांग्रेस और वाम दलों का साझा चुनाव घोषणा पत्र (Grand Alliance Joint Manifesto) है जिसे नाम दिया गया है - 'प्रण हमारा संकल्प बदलाव का'.
तेजस्वी यादव ने चुनावी वादों की बौछार तो दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की तरह ही की है, लेकिन मैनिफेस्टो में कांग्रेस नेता राहुल गांधी (Rahul Gandhi) की भी स्पष्ट छाप देखने को मिल रही है. तेजस्वी के साथ मैनिफेस्टो जारी करने के मौके पर मौजूद कांग्रेस महासचिव रणदीप सुरजेवाला की बातों से ये चीज और भी साफ हो गयी - 'यदि हम तेजस्वी यादव के नेतृत्व में सरकार बनाते हैं, तो हम तीन कृषि विरोधी कानूनों को समाप्त करने के लिए पहले विधानसभा सत्र में एक विधेयक पारित करेंगे.'
रणदीप सुरजेवाला के निशाने पर नीतीश कुमार और सुशील मोदी दोनों ही रहे, लेकिन तेजस्वी यादव ने तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी घेरने की कोशिश की - '15 साल से डबल इंजन की सरकार रहने के बावजूद नीतीश कुमार बिहार को विशेष राज्य का दर्जा नहीं दिला सके हैं - डोनाल्ड ट्रंप तो इसके लिए नहीं आएंगे!'
बेरोजगारी को मुख्य मुद्दा बनाने की पूरी तैयारी है
महागठबंधन के मैनिफेस्टो में तेजस्वी यादव ने बेरोजगारी को सबसे ऊपर जगह दी है - और इसके साथ ही ये साफ हो चुका है कि तेजस्वी यादव की अगुवाई में आरजेडी के साथी विपक्षी दलों ने इसे मुख्य चुनावी मुद्दा बनाने की पूरी तैयारी कर चुके हैं.
महागठबंधन के मैनिफेस्टो में जो सबसे बड़ी बात है वो है - 10 लाख नौकरियां देने का वादा. संकल्प पत्र जारी करते हुए भी तेजस्वी यादव ने दोहराया कि महागठबंधन की सरकार बनने की सूरत में कैबिनेट की पहली बैठक में पहली दस्तखत से नौकरियों का ही आदेश जारी किया जाएगा.
2019 के आम चुनाव के दौरान कांग्रेस ने भी ऐसे ही एक बड़ा चुनावी वादा किया था - NYAY योजना. चुनावी राजनीति के हिसाब से ये योजना बड़ी ही...
तेजस्वी यादव (Tejashwi Yaday) के नेतृत्व में चुनाव लड़ रहे महागठबंधन के चुनाव घोषणा पत्र में सबसे ज्यादा जोर बेरोजगारी पर है. ये आरजेडी, कांग्रेस और वाम दलों का साझा चुनाव घोषणा पत्र (Grand Alliance Joint Manifesto) है जिसे नाम दिया गया है - 'प्रण हमारा संकल्प बदलाव का'.
तेजस्वी यादव ने चुनावी वादों की बौछार तो दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की तरह ही की है, लेकिन मैनिफेस्टो में कांग्रेस नेता राहुल गांधी (Rahul Gandhi) की भी स्पष्ट छाप देखने को मिल रही है. तेजस्वी के साथ मैनिफेस्टो जारी करने के मौके पर मौजूद कांग्रेस महासचिव रणदीप सुरजेवाला की बातों से ये चीज और भी साफ हो गयी - 'यदि हम तेजस्वी यादव के नेतृत्व में सरकार बनाते हैं, तो हम तीन कृषि विरोधी कानूनों को समाप्त करने के लिए पहले विधानसभा सत्र में एक विधेयक पारित करेंगे.'
रणदीप सुरजेवाला के निशाने पर नीतीश कुमार और सुशील मोदी दोनों ही रहे, लेकिन तेजस्वी यादव ने तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी घेरने की कोशिश की - '15 साल से डबल इंजन की सरकार रहने के बावजूद नीतीश कुमार बिहार को विशेष राज्य का दर्जा नहीं दिला सके हैं - डोनाल्ड ट्रंप तो इसके लिए नहीं आएंगे!'
बेरोजगारी को मुख्य मुद्दा बनाने की पूरी तैयारी है
महागठबंधन के मैनिफेस्टो में तेजस्वी यादव ने बेरोजगारी को सबसे ऊपर जगह दी है - और इसके साथ ही ये साफ हो चुका है कि तेजस्वी यादव की अगुवाई में आरजेडी के साथी विपक्षी दलों ने इसे मुख्य चुनावी मुद्दा बनाने की पूरी तैयारी कर चुके हैं.
महागठबंधन के मैनिफेस्टो में जो सबसे बड़ी बात है वो है - 10 लाख नौकरियां देने का वादा. संकल्प पत्र जारी करते हुए भी तेजस्वी यादव ने दोहराया कि महागठबंधन की सरकार बनने की सूरत में कैबिनेट की पहली बैठक में पहली दस्तखत से नौकरियों का ही आदेश जारी किया जाएगा.
2019 के आम चुनाव के दौरान कांग्रेस ने भी ऐसे ही एक बड़ा चुनावी वादा किया था - NYAY योजना. चुनावी राजनीति के हिसाब से ये योजना बड़ी ही दमदार नजर आयी थी, लेकिन मोदी लहर के आगे चारों खाने चित्त हो गयी. न्याय योजना के नाकाम होने के पीछे सबसे बड़ी वजह रही इसे देर से पेश किया जाना और बचे हुए वक्त में लोगों तक इसकी खासियत न पहुंचा पाना. इसी साल पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की पुण्यतिथि पर ये स्कीम छत्तीसगढ़ में लागू की गयी है.
तेजस्वी यादव के 10 लाख नौकरी देने के वादे और न्याय में बुनियादी फर्क ये है कि तेजस्वी यादव नौकरी का वादा पहले से ही शुरू कर दिया है - और जैसे 2014 के आम चुनाव में बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी 'अच्छे दिन' और 'काले धन से हर खाते में 15 लाख' याद दिलाना नहीं भूलते थे, महागठबंधन के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार तेजस्वी यादव भी ठीक वैसा ही कर रहे हैं - माना जाता है कि ऐसा बार बार करने से बातें वोटर के दिमाग में अच्छी तरह रजिस्टर हो जाती हैं और बूथ पर पहुंचने के बाद ईवीएम का बटन दबाते वक्त भी याद रहती हैं. नीतीश कुमार के बार बार जंगलराज की याद दिलाने के पीछे भी यही लॉजिक लगता है.
आरजेडी ने पहले से ही बेरोजगारी पोर्टल लांच कर रखा है जिस पर मिस कॉल के जरिये लाखों युवाओं ने रजिस्ट्रेशन कराया है - आरजेडी के मुताबिक, पोर्टल पर ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन भी बड़ी संख्या में कराये गये हैं. महागठबंधन के संकल्प पत्र में जो सरकारी नौकरी के योग्य नहीं होंगे उनके लिए भी रोजगार के उपाय का वादा किया गया है -
1. सरकारी नौकरी के लिए छात्र-छात्राओं को किसी तरह का आवेदन शुल्क नहीं देना होगा - परीक्षा के लिए भरे जाने वाले फॉर्म तो मुफ्त होंगे ही, परीक्षा केंद्रों तक आने-जाने का किराया भी सरकारी तौर पर ही वहन किये जाने का वादा किया गया है.
2. स्थायी और नियमित नौकरी के इंतजाम का भी वादा किया गया है - और सभी विभागों में निजीकरण को खत्म करने की बात कही गयी है.
3. संविदा प्रथा खत्म किये जाने के साथ साथ नियोजित शिक्षकों को स्थायी नौकरी के साथ ही समान वेतन की नीति लागू करने की भी बात है.
4. आशा वर्कर, आंगनबाड़ी सेविकाओं और सहायकों सहित उस कैटेगरी में आने वाले काम करने वाले सभी लोगों को नियमित वेतन पक्की नौकरी का भी वादा है.
5. फूड प्रोसेसिंग यूनिट, आईटी पार्क और स्पेशल इकनॉमिक जोन हर बाजार के पास तैयार करने के साथ ही बंद पड़ी चीनी-जूट-पेपर मिल और उद्योग धंधे दोबारा शुरू किये जाने का भी चुनावी वादा किया गया है.
मैनिफेस्टो पर राहुल गांधी का प्रभाव भी है
बेरोजगारी को अगर तेजस्वी यादव ने चुनावी मुद्दा बनाने की तैयारी की है, तो ये भी समझा जाना चाहिये कि ये कांग्रेस नेता राहुल गांधी का पसंदीदा मुद्दा है. तमाम चुनावों के अलावा लॉकडाउन के दौरान भी राहुल गांधी बेरोजगारी का किसी न किसी बहाने जिक्र करते ही हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार को निशाना बनाते हैं. महागठबंधन के मैनिफेस्टो में और भी कुछ चीजें हैं जो कांग्रेस की ही पहल लगती हैं.
1. मनरेगा योजना - कोरोना काल में ही राहुल गांधी ने मनरेगा फंड बढ़ाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का शुक्रिया अदा किया था, लेकिन एक मांग भी लगातार की थी - मनरेगा के तहत कार्य दिवस को 100 दिनों से बढ़ा कर 200 दिन करने का.
मैनिफेस्टो में चीजें दो कदम आगे ही नजर आ रही हैं - मनरेगा के तहत प्रति परिवार की जगह प्रति व्यक्ति काम के प्रावधान की बात की जा रही है और न्यूनतम वेतन की गारंटी भी. सिर्फ गांव ही नहीं, इसी तर्ज पर शहरी रोजगार योजना बनाने का भी वादा किया गया है.
कांग्रेस ने ये स्कीम यूपीए के पहले कार्यकाल में शुरू की थी और आरजेडी नेता रघुवंश प्रसाद सिंह ग्रामीण विकास मंत्री रहे. यूपीए 2 के रूप में सत्ता में वापसी के पीछे मनरेगा की बहुत बड़ी भूमिका मानी गयी थी. जब तक विपक्ष में बीजेपी रही इसकी आलोचक रही, लेकिन सत्ता में आने के बाद मोदी सरकार ने भी इस पर अमल जारी रखा है. रघवंश प्रसाद सिंह ने आखिरी दिनों में आरजेडी से इस्तीफा दे दिया था लेकिन लालू यादव ने नामंजूर कर दिया था - और अब उनके बेटे सत्य प्रकाश सिंह जेडीयू में नीतीश कुमार का नेतृत्व स्वीकार कर चुके हैं.
2. कृषि बिलों पर स्टैंड - महागठबंधन के सत्ता में आने पर बिहार विधानसभा में ऐसे कानून बनाने का वादा किया गया है जो केंद्र सरकार की तीन कृषि कानूनों को राज्य में बेअसर कर सके. प्रस्तावित कानून के तहत राज्य की मंडियों में फसलों की लागत मूल्य के डेढ़ गुणा दाम पर किसानों से सरकारी खरीद की गारंटी देने की बात है और हर पंचायत में खरीद केंद्र की स्थापना करने की भी.
3. किसान कर्जमाफी - महागठबंधन के मैनिफेस्टो में किसानों की कर्जमाफी को भी जगह दी गयी है और इसके पीछे भी कांग्रेस नेतृत्व की ही सोच लगती है. साथ ही, कृषि भूमि लगान भी माफ किये जाने का वादा किया गया है.
महागठबंधन के मैनिफेस्टो में कई वादे ऐसे भी हैं जिनमें दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की छाप नजर आ रही है - बिजली, स्वास्थ्य सेवाएं और मुफ्त की चीजें. महागठबंधन के नेताओं में इस बात पर आम राय बनी है कि बिहार जैसे गरीब राज्य में बिजली महंगी दर पर मिल रही है, इसलिए सत्ता में आने पर बिजली दरें कम किये जाने का भी वादा है. शिक्षा का बजट बढ़ा कर कुल बजट का 12 फीसदी करने के साथ ही स्कूलों में 30-35 छात्रों के अनुपात में एक शिक्षक की व्यवस्था सुनिश्चित करना भी शामिल है. बिहार में ब्लॉक स्तर पर सुपर स्पेशलिटी अस्पताल बनवाने के साथ ही गरीबों के लिए मुफ्त डायलिसिस की सुविधा मुहैया कराने का भी वादा किया गया है.
अगर जातीय समीकरण और नीतीश कुमार के चेहरे से भरोसा टूटता है तो मान कर चलना होगा बेरोजगारी सबसे बड़ा मुद्दा बन सकता है. समझने वाली बात ये है कि युवा वोट बिहार चुनाव 2020 में निर्णायक भूमिका निभाने वाला है और उनके लिए तो नौकरी से बड़ा कोई मुद्दा हो भी नहीं सकता - सरकारी नौकरी का क्रेज तो कुछ ज्यादा ही है.
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