देश की राजनीति में तुष्टिकरण का अपना अलग महत्त्व है. यहां एक नेता तभी सम्पूर्ण है जब वो रणनीति के अलावा तुष्टिकरण करना बखूबी जानता हो. कल सकते हैं कि कल जब इतिहास लिखा जाएगा तो माया, ममता, मुलायम, राहुल सोनिया, लालू, अखिलेश कहीं बौने साबित होने उस वटवृक्ष के आगे जिसे KCR के नाम से जाना जाता है. तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव (KCR) एक विशाल यज्ञ का आयोजन करने जा रहे हैं. मामले पर जो जानकारी मुख्यमंत्री कार्यालय से आई है. उसके अनुसार यदाद्री भुवनगरी जिले में भगवान नरसिम्हा के मशहूर श्री लक्ष्मी नारायण मंदिर के पास ‘महा सुदर्शन यज्ञ’ होगा. यज्ञ की तारीख और मुहूर्त जल्द ही तय किए जाएंगे. आपको बताते चलें कि हैदराबाद से करीब 65 किलोमीटर दूर इस जगह पर 100 एकड़ की यज्ञ वाटिका का निर्माण कर 1,048 कुंड बनाए गए हैं. सीएमओ प्रवक्ता के अनुसार 1000 से ज्यादा ऋत्विक और उनके 3,000 से ज्यादा सहायक इस यज्ञ को अंजाम देंगे.
बताया जा रहा है कि KCR ने इसके लिए देशभर के वैष्णव मठों के पीठाधिपतियों को बुलाया है. दुनिया भर के साधु-संत इस यज्ञ में हिंसा लेंगे. KCR ने केंद्र सरकार के बड़े नेताओं, सभी राज्यों के राज्यपालों, मुख्यमंत्रियों, मंत्रियों को न्योता भेजा है. ध्यान रहे कि तेलंगाना राष्ट्र समिति के सुप्रीमो के चंद्रशेखर राव का शुमार उन व्यक्तियों में है जो धार्मिक अनुष्ठानों में रूचि लेते हैं. बात आगे बढ़ाने से पहले हमारे लिए ये बताना बहुत जरूरी है कि ये कोई पहली बार नहीं है जब तेलंगाना के सीएम के चंद्रशेखर राव ने ऐसा कुछ कुछ है. इससे पहले 2011 और 2015 में भी केसीआर ने यज्ञ किया था और खूब सुर्खियां बटोरी थीं.
देश की राजनीति में तुष्टिकरण का अपना अलग महत्त्व है. यहां एक नेता तभी सम्पूर्ण है जब वो रणनीति के अलावा तुष्टिकरण करना बखूबी जानता हो. कल सकते हैं कि कल जब इतिहास लिखा जाएगा तो माया, ममता, मुलायम, राहुल सोनिया, लालू, अखिलेश कहीं बौने साबित होने उस वटवृक्ष के आगे जिसे KCR के नाम से जाना जाता है. तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव (KCR) एक विशाल यज्ञ का आयोजन करने जा रहे हैं. मामले पर जो जानकारी मुख्यमंत्री कार्यालय से आई है. उसके अनुसार यदाद्री भुवनगरी जिले में भगवान नरसिम्हा के मशहूर श्री लक्ष्मी नारायण मंदिर के पास ‘महा सुदर्शन यज्ञ’ होगा. यज्ञ की तारीख और मुहूर्त जल्द ही तय किए जाएंगे. आपको बताते चलें कि हैदराबाद से करीब 65 किलोमीटर दूर इस जगह पर 100 एकड़ की यज्ञ वाटिका का निर्माण कर 1,048 कुंड बनाए गए हैं. सीएमओ प्रवक्ता के अनुसार 1000 से ज्यादा ऋत्विक और उनके 3,000 से ज्यादा सहायक इस यज्ञ को अंजाम देंगे.
बताया जा रहा है कि KCR ने इसके लिए देशभर के वैष्णव मठों के पीठाधिपतियों को बुलाया है. दुनिया भर के साधु-संत इस यज्ञ में हिंसा लेंगे. KCR ने केंद्र सरकार के बड़े नेताओं, सभी राज्यों के राज्यपालों, मुख्यमंत्रियों, मंत्रियों को न्योता भेजा है. ध्यान रहे कि तेलंगाना राष्ट्र समिति के सुप्रीमो के चंद्रशेखर राव का शुमार उन व्यक्तियों में है जो धार्मिक अनुष्ठानों में रूचि लेते हैं. बात आगे बढ़ाने से पहले हमारे लिए ये बताना बहुत जरूरी है कि ये कोई पहली बार नहीं है जब तेलंगाना के सीएम के चंद्रशेखर राव ने ऐसा कुछ कुछ है. इससे पहले 2011 और 2015 में भी केसीआर ने यज्ञ किया था और खूब सुर्खियां बटोरी थीं.
बात अगर 2015 में हुए यज्ञ की हो तो अयुथ महाचंडी नाम के इस यज्ञ का आयोजन केसीआर ने अपनी ताकत दिखाने के लिए किया था. तब हुए उस यज्ञ में 1500 ऋत्विक और 500 पुजारियों ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई थी यज्ञ का आयोजन के चंद्रशेखर राव ने अपने घर पर किया था और अपनी भव्यता से लोगों को रू ब रू कराया था. इसके अलावा इन्होंने 2015 में ही और यज्ञ किया था जिसका खर्च करीब 15 करोड़ रुपए आया था.
कहा गया था कि ये यज्ञ के चंद्रशेखर राव ने इसलिए करवाया ताकि तब सूखे का सामना कर रहे तेलंगाना में बारिश हो. इस यज्ञ के बाद के चंद्रशेखर राव की खूब आलोचना हुई थी और उनपर आरोप लगा था कि वो धन का दुरूपयोग कर रहे हैं.
हमने बात की शुरुआत तुष्टिकरण से की थी और कहा था कि एक नेता कामयाब तभी है जब उसे तुष्टिकरण में महारत हासिल हो. अब इस बात के बाद जैसा रवैया केसीआर का है और जैसी उनकी कार्यप्रणाली है,यदि उसका अवलोकन किया जाए तो मिलता है कि तुष्टिकरण के मामले में उन्हें महारत हासिल है. चाहे हिन्दुओं को खुश करने के लिए यज्ञ करना हो या फिर मुस्लिम वोटों के लिए रमजान में मुसलमानों के बीच गिफ्ट बांटने हों केसीआर का वाकई इसमें कोई जवाब नहीं है.
बात अप्रैल 2019 की है. तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर ने उस वक़्त सुर्खियां बटोरीं जब उन्होंने रमजान के ठीक पहले तेलंगाना के मुसलमानों के बीच गिफ्ट पैकेट बंटवाए. आपको बताते चलें कि टीआरएस ने तेलंगाना की 832 मस्जिदों में न सिर्फ गिफ्ट पैकेट बंटवाए बल्कि प्रत्येक मस्जिद को इफ्तार के लिए 1-1 लाख रुपए का फंड भी दिया.
बात केसीआर के ताजे फैसले पर हो रही है तो बता दें कि मामले पर विरोध शुरू हो गया है. केसीआर लगातार आलोचना का शिकार हो रहे हैं. विरोध में भाजपा भी आई है मगर क्योंकि इस बार तुष्टिकरण स्वयं हिंदुओं के लिए हुआ है और तीन तलाक विधेयक पर टीआरएस ने राज्य सभा में भाजपा को फायदा दिया है इसलिए भाजपा इस मुद्दे को एक बड़ा मुद्दा नहीं बना पा रही है. लेकिन उसके द्वारा भी कहा यही जा रहा है कि ये यज्ञ केसीआर का निजी प्रोग्राम है. इसके खर्च में जो पैसा इस्तेमाल हुआ है वो जनता का है. यानी साफ तौर पर कहें तो निजी फायदे के लिए केसीआर पब्लिक का पैसा पानी की तरह बहा रहे हैं जो कि सरासर गलत और संविधान के खिलाफ है.
भाजपा के लोगों या ये कहें कि भाजपा के वो नेता जो केसीआर के खिलाफ लामबध हुए हैं वो शायद ये भूल गए कि तुष्टिकरण के नाम पर इस देश में ऐसा बहुत कुछ हुआ है जिसने एक नहीं बल्कि कई बार लोकतंत्र को शर्मिंदा किया है. बाक़ी अगर तेलंगाना और केसीआर को देखें तो मिलता है कि भले ही इस यज्ञ और तुष्टिकरण को लेकर लोगों को आपत्ति हो. मगर राज्य की जनता को इससे कोई ऐतराज नहीं है उन्होंने केसीआर को पहले भी बल देकर मजबूत किया था आगे भी वो इसी परंपरा को दोहरएंगे.
बात समझने के लिए हमें तेलंगाना के इतिहास को समझना और उसके अन्दर झांकना होगा. इस बार भी केसीआर ने विशाल महायज्ञ करने और तमाम हिंदूवादी नेताओं और हिंदू धर्म प्रमुखों को उसमें बुलाने की बात कही है. इसी तरह उन्होंने जब मुस्लिम तुष्टिकरण के नाम पर मुसलमानों के बीच तोहफे बंटवाए थे तब उस वक़्त भी उनके मंच पर मुस्लिम धर्म से जुड़े प्रभावशाली लोग मौजूद थे.
ये इत्तेफाक नहीं है. केसीआर एक कुशल राजनेता हैं वो सबको साथ लेकर चलने का हुनर इन्हें औरों से अलग करता है. जैसा कि हम बता चुके हैं तुष्टिकरण लगभग सभी नेता करते हैं तो यदि इस परिदृश्य में हम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को लें तो उनका मामला अलग है. वो इस मामले में केसीआर के सामने दूर दूर तक खादी नहीं होतीं. वो बंगाल में मुहर्रम के जुलुस पर मुसलमानों का साथ देती हैं साथ ही वो दुर्गा विसर्जन के लिए भी सामने आती हैं मगर दुर्गा विसर्जन में उनके द्वारा कही गई बात कहीं दूर हो जाती है मुद्दा मुहर्रम का जुलुस बन जाता है और वो आलोचनाओं का सामना करती हैं.
सवाल होगा कि आखिर उनके तुष्टिकरण पर विरोध क्यों होता है? तो जवाब वही है उनका अकेले चलना वो अपने फैसले अकेले लेती हैं. ऐसा ही कुछ हाल अन्य नेताओं का भी रहा है. इन सबके विपरीत केसीआर हैं. जिनका जैसा राजनीतिक रुख रहा है साफ हो जाता है कि वो सही वक़्त पर जलते लोहे पर हथौड़ा मारना और उसे एक सही स्वरुप पर लाना जानते हैं. बाक़ी बात सरकारी धन की हुई है तो जैसा हमारे नेताओं का बर्ताव रहा है तो उन्हें बस अपने फायदे से मतलब है. वो इसके लिए सरकारी या ये कहें कि पब्लिक का पैसा पानी की तरह बहाने से भी गुरेज नहीं करते.
गौरतलब है कि तुष्टिकरण पर चल रहे इस खेल में टीआरएस और उसके मुखिया केसीआर अन्य के मुकाबले कहीं पक्के खिलाड़ी हैं. बहरहाल अब इस यज्ञ का फायदा केसीआर को कितना होगा इसका फैसला आने वाला वक़्त करेगा. मगर जिस हिसाब से वो तुष्टिकरण की कढ़ाई में अपनी राजनीति को पका रहे हैं साफ है कि वो लम्बा खेल खेलेंगे और एक ऐसी राजनीति करेंगे जो लंबे समय तक याद की जाएगी.
केसीआर ने वही परंपरा दोहराई है जिसे देश के कई प्रमुख नेताओं ने बरसों से अंजाम दिया है और जिनकी राजनीति का आधार ही तुष्टिकरण हैं. चूंकि इस कहानी के सूत्रधार खुद केसीआर हैं तो जैसे ही इस यज्ञ की घोषणा होगी और यज्ञ का दिन आएगा. हम ऐसा बहुत कुछ सुनेंगे जो हमें इस बात से अवगत कराएगा कि राजनीति केवल अवसर का खेल है और यहां कामयाब वही है तो मौके पर चौका मारना और चौके की बदौलत मैच को जीतना जानता हो.
ये भी पढ़ें -
आजम ने गलती की है, माफ़ी मांगकर उन्होंने कोई एहसान नहीं किया!
यूपी में नए रूप में उतरीं प्रियंका गांधी नए अस्त्र लेकर आई हैं
इंसान को छोड़िए... गाय हिंदू और बकरी मुसलमान हो गई!
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.