तेलंगाना में एक नयी जंग छिड़ चुकी है - 'TRS' बनाम TRS, हालांकि, हैरानी की वजह बिलकुल अलग है. ये कोई टीआरएस की अंदरूनी लड़ाई नहीं है, न ही बीजेपी तेलंगाना में भी महाराष्ट्र जैसा कोई खेल कर चुकी है.
ये लड़ाई दरअसल, TRS यानी ठाकुर राजा सिंह (Thakur Raja Singh) और दूसरे TRS यानी तेलंगाना राष्ट्र समिति से है. तेलंगाना में टीआरएस की ही सरकार और उसके नेता के. चंद्रशेखर राव मुख्यमंत्री हैं. ठाकुर राजा सिंह फिलहाल तेलंगाना में बीजेपी के अकेले विधायक हैं. 2018 के चुनाव में ठाकुर राजा सिंह ही अकेले नेता रहे जो बीजेपी के टिकट पर विधानसभा दोबारा पहुंचे थे. पांच विधायकों में से चुनाव हारने वालों ने केंद्रीय मंत्री जी. किशन रेड्डी और के. लक्ष्मण भी शामिल हैं. बीजेपी के संसदीय बोर्ड में शामिल किये जाने की वजह से के. लक्ष्मण का नाम अभी अभी सुर्खियों में रहा. वो तेलंगाना बीजेपी के अध्यक्ष रह चुके हैं और फिलहाल पार्टी के ओबीसी मोर्चे के अध्यक्ष हैं.
देखा जाये तो टी. राजा सिंह, किशन रेड्डी और के. लक्ष्मण के साथ तेलंगाना में बीजेपी (BJP) की तरफ से फ्रंट पर मोर्चा संभाले हुए हैं - ऐसे में सवाल ये उठता है कि क्या राजा सिंह के सस्पेंड हो जाने के बाद बीजेपी की लड़ाई तेलंगाना में कमजोर नहीं पड़ेगी?
सवाल ये भी है कि आखिर राजा सिंह ने जान बूझ कर ऐसा काम क्यों किया? राजा सिंह को तो अच्छी तरह मालूम है कि मोहम्मद साहब पर बयान देने के बाद नुपुर शर्मा (Nupur sharma) का क्या हाल हो रखा है. बीजेपी का राष्ट्रीय प्रवक्ता होने के बावजूद उनको फ्रिंज एलिमेंट करार दिया गया. जगह जगह एफआईआर दर्ज होने के बाद उन पर गिरफ्तारी की तलवार लटकने लगी थी, वो तो राहत की बात ये रही कि सुप्रीम कोर्ट ने उनकी अर्जी मंजूर कर ली और सुनवाई चल रही है.
क्या राजा सिंह को ये अंदाजा नहीं रहा होगा कि जो वीडियो बनाकर वो पोस्ट करने जा रहे हैं, उस पर कैसा रिएक्शन होगा? क्या अंजाम होगा? क्या राजा सिंह के इस ऐक्ट की वजह से तेलंगाना में बीजेपी की लड़ाई कमजोर नहीं पड़...
तेलंगाना में एक नयी जंग छिड़ चुकी है - 'TRS' बनाम TRS, हालांकि, हैरानी की वजह बिलकुल अलग है. ये कोई टीआरएस की अंदरूनी लड़ाई नहीं है, न ही बीजेपी तेलंगाना में भी महाराष्ट्र जैसा कोई खेल कर चुकी है.
ये लड़ाई दरअसल, TRS यानी ठाकुर राजा सिंह (Thakur Raja Singh) और दूसरे TRS यानी तेलंगाना राष्ट्र समिति से है. तेलंगाना में टीआरएस की ही सरकार और उसके नेता के. चंद्रशेखर राव मुख्यमंत्री हैं. ठाकुर राजा सिंह फिलहाल तेलंगाना में बीजेपी के अकेले विधायक हैं. 2018 के चुनाव में ठाकुर राजा सिंह ही अकेले नेता रहे जो बीजेपी के टिकट पर विधानसभा दोबारा पहुंचे थे. पांच विधायकों में से चुनाव हारने वालों ने केंद्रीय मंत्री जी. किशन रेड्डी और के. लक्ष्मण भी शामिल हैं. बीजेपी के संसदीय बोर्ड में शामिल किये जाने की वजह से के. लक्ष्मण का नाम अभी अभी सुर्खियों में रहा. वो तेलंगाना बीजेपी के अध्यक्ष रह चुके हैं और फिलहाल पार्टी के ओबीसी मोर्चे के अध्यक्ष हैं.
देखा जाये तो टी. राजा सिंह, किशन रेड्डी और के. लक्ष्मण के साथ तेलंगाना में बीजेपी (BJP) की तरफ से फ्रंट पर मोर्चा संभाले हुए हैं - ऐसे में सवाल ये उठता है कि क्या राजा सिंह के सस्पेंड हो जाने के बाद बीजेपी की लड़ाई तेलंगाना में कमजोर नहीं पड़ेगी?
सवाल ये भी है कि आखिर राजा सिंह ने जान बूझ कर ऐसा काम क्यों किया? राजा सिंह को तो अच्छी तरह मालूम है कि मोहम्मद साहब पर बयान देने के बाद नुपुर शर्मा (Nupur sharma) का क्या हाल हो रखा है. बीजेपी का राष्ट्रीय प्रवक्ता होने के बावजूद उनको फ्रिंज एलिमेंट करार दिया गया. जगह जगह एफआईआर दर्ज होने के बाद उन पर गिरफ्तारी की तलवार लटकने लगी थी, वो तो राहत की बात ये रही कि सुप्रीम कोर्ट ने उनकी अर्जी मंजूर कर ली और सुनवाई चल रही है.
क्या राजा सिंह को ये अंदाजा नहीं रहा होगा कि जो वीडियो बनाकर वो पोस्ट करने जा रहे हैं, उस पर कैसा रिएक्शन होगा? क्या अंजाम होगा? क्या राजा सिंह के इस ऐक्ट की वजह से तेलंगाना में बीजेपी की लड़ाई कमजोर नहीं पड़ जाएगी?
जिस लड़ाई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नेतृत्व हासिल हो और उसके लिए वो कई बार तेलंगाना का दौरा भी कर चुके हैं. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह खुद तेलंगाना एक्शन प्लान में दिलचस्पी ले रहे हैं. हैदराबाद में बीजेपी की कार्यकारिणी का आयोजित भी नेतृत्व की गंभीरता की तरफ इशारा करता है.
जब इतना सब हो रहा है तो ठाकुर राजा सिंह ने क्या सोच कर वीडियो जारी किया होगा? और जो हुआ वो तो हुआ, जमानत पर छूट जाने के बाद भी राजा सिंह कह रहे हैं कि वो अपने बयान पर कायम हैं और एक और वीडियो बनाकर अपनी बात रखेंगे - क्या ये सब नेतृत्व की मर्जी के खिलाफ हो रहा है? आपको क्या लगता है?
'TRS' को नोटिस जो मिला है
हैदराबाद की गोशामहल विधानसभा सीट से विधायक टी. राजा सिंह को भी बीजेपी संविधान के उसी नियम के तहत नोटिस जारी किया गया है, जिसके तहत नुपुर शर्मा से जवाब मांगा गया था. टी. राजा सिंह के बयान को प्रथमदृष्टया भारतीय जनता पार्टी के संविधान के नियम XXV 10 (ए) के उल्लंघन माना गया है. नुपुर शर्मा को भी ऐसा ही नोटिस मिला था. नोटिस के जरिये राजा सिंह को बताया गया है कि उनके विचार विभिन्न मुद्दों पर बीजेपी के स्टैंड के खिलाफ हैं. राजा सिंह को तत्काल प्रभाव से निलंबित करते हुए 2 सितंबर, 2022 तक अपना पक्ष रखने को कहा गया है.
कई बार देखा गया है कि विवादित टिप्पणियों के लिए पुलिस लोगों को गिरफ्तार तो कर लेती है, लेकिन मामला अदालत पहुंचते ही आरोपी को जमानत पर छोड़ दिया जाता है - क्योंकि मामला संगीन नहीं होता. पुलिस बस एक एफआईआर के चलते उठा लायी होती है, लेकिन टी. राजा सिंह का मामला ऐसा बिलकुल भी नहीं है. हैदराबाद पुलिस ने बीजेपी विधायक को पेश कर रिमांड की भी अर्जी दी थी, लेकिन कोर्ट ने नामंजूर कर दी. ऐसा इसलिए क्योंकि गिरफ्तारी से पहले CrPC के सेक्शन 41A के तहत विधायक को नोटिस नहीं दिया गया था.
बीजेपी से मिले नोटिस पर लिखित जवाब जो भी दें, लेकिन अपना स्टैंड राजा सिंह ने पहले ही साफ कर दिया है. राजा सिंह का कहना है कि उनकी ताजा टिप्पणी तेलंगाना सरकार के फैसले के खिलाफ थी, न कि जैसा समझा और समझाया जा रहा है.
क्या है राजा सिंह का मामला: हैदराबाद में बवाल की शुरुआत हुई स्टैंड-अप कॉमेडियन मुनव्वर फारूकी के शो को लेकर बीजेपी विधायक राजा सिंह के विरोध के चलते. बीजेपी विधायक के विरोध को देखते हुए तेलंगाना सरकार ने कड़ी सुरक्षा में मुनव्वर फारूकी का शो कराया और वो बस देखते रह गये.
मुनव्वर फारूकी के शो के खिलाफ अपने कैंपेन के तरत बीजेपी विधायक ने सोशल मीडिया पर एक वीडियो पोस्ट किया था - और उसी को लेकर राजा सिंह पर आपत्तिजनक टिप्पणी का इल्जाम लगा है.
आपको याद होगा मुनव्वर फारूकी को भी अपमानजनक धार्मिक टिप्पणी के लिए मध्य प्रदेश की पुलिस गिरफ्तार कर चुकी है. मुनव्वर फारूकी के रिहा होने के बाद बेंगलुरू में उनका शो रद्द कर दिया गया था. हैदराबाद शो को लेकर तेलंगाना सरकार के मंत्री टीटी रामा राव ने आश्वस्त किया था कि शो रद्द नहीं होने दिया जाएगा.
बीजेपी विधायक टी. राजा सिंह शो के लिए परमिशन दिये जाने का ही विरोध कर रहे थे. फिर भी 20 अगस्त को मुनव्वर फारूकी का शो हुआ. विरोध भी थोड़ा बहुत हुआ लेकिन कड़ी सुरक्षा व्यवस्था से कोई असर नहीं हुआ.
बड़बोले नेताओं पर लगाम क्यों नहीं
जिस बात के लिए बीजेपी ने टी. राजा सिंह को शो कॉज नोटिस जारी कर 10 दिन के भीतर जवाब मांगा है, धार्मिक मामलों को लेकर ऐसी मिलती जुलती के लिए वो पहले से ही कुख्यात रहे हैं. फिर भी बीजेपी की तरफ से उनके खिलाफ कभी सख्ती नहीं दिखायी गयी. ऐसा होने की एक वजह उनके समर्थकों की भारी तादाद भी मानी जा रही है.
बीजेपी में कई नेता ऐसे हैं जो ऐसी बयानबाजी करते रहते हैं. हालांकि, कुछ मौकों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ऐसे नेताओं से संयम बरतने की सलाह भी देते रहे हैं, लेकिन कभी फर्क महसूस नहीं किया गया.
ऐसे बड़बोले नेताओं की बीजेपी में एक लंबी फेहरिस्त है, लेकिन उनमें भी दो कैटेगरी देखी जाती है. एक कैटेगरी साक्षी महाराज और साध्वी निरंजन ज्योति जैसे नेताओं की है - और दूसरी श्रेणी में बिहार बीजेपी के अध्यक्ष डॉक्टर संजय जायसवाल, हरियाणा सरकार के मंत्री अनिल विज और मध्य प्रदेश के बीजेपी नेता कैलाश विजयवर्गीय को देखा जा सकता है. ये ऐसे नेता हैं जिनकी निष्ठा को लेकर कभी कोई सवाल नहीं खड़े कर पाता और ये ऐसी वैसी तमाम हरकतों के बाद भी बने रहते हैं. कैलाश विजयवर्गीय को अग्निवीरों को गार्ड रखने से लेकर बिहार के मामले में लड़कियों के बॉयफ्रेंड बदलने वाली टिप्पणी पर बवाल भले हो, लेकिन कोई रोक टोक नहीं होती.
हैदराबाद के गोशामहल से दोबारा विधायक बने टी. राजा सिंह को लेकर माना जाता है कि भड़काऊ बयान उनकी राजनीति का ही हिस्सा है. राजा सिंह के खिलाफ कई केस दर्ज हैं और उनमें कई तो विधायक के बयानों की वजह से ही हैं.
ऐसे में किसी का भी एक सवाल हो सकता है कि आखिर बीजेपी राजा सिंह को भड़काऊ बयानों परहेज करने को कहती क्यों नहीं?
असल बात तो ये है कि राजा सिंह के बयान बिलकुल उसी तरीके के होते हैं जो पार्टीलाइन है. अपने बयानों की वजह से ही राजा सिंह अपने इलाके में पसंद किये जाते हैं - और 2028 में बीजेपी के पांच सीटिंग विधायकों में से अकेले जीत कर आने की सबसे बड़ी वजह भी यही मानी जाएगी.
मसलन, टी. राजा सिंह डंके की चोट पर कहते हैं कि चुनाव जीतने के लिए उनको मुस्लिम वोटों की कतई दरकार नहीं है.
बीजेपी की राजनीतिक लाइन भी तो ऐसी ही समझी जा सकती है. आखिर बीजेपी मुस्लिम उम्मीदवारों को चुनावों में टिकट क्यों नहीं देती? यूपी में तो एक मुस्लिम मंत्री रखने की मजबूरी है. बिहार में नीतीश कुमार के साथ गठबंधन की सरकार में जरूरत भी बन गयी थी और जम्मू-कश्मीर में डीडीसी चुनावों के बाद सैयद शाहनवाज हुसैन को ऐडजस्ट भी करना था. दिल्ली में तो ले देकर मुख्तार अब्बास नकवी और सैयद जफर इस्लाम बचे थे. कार्यकाल खत्म होते ही वे भी पैदल कर दिये गये.
टी राजा सिंह का एक बयान था, 'मैं धर्म की रक्षा के लिए मार भी सकता हूं - और मर भी सकता हूं.'
आप चाहें तो थोड़ी देर के लिए ठाकुर राजा सिंह को तेलंगाना का योगी आदित्यनाथ भी कह सकते हैं - कट्टर हिंदुत्व की राजनीति वाला मिजाज तो दोनों का मिलता जुलता ही नजर आता है.
ये बीजेपी के लिए चुनौती है या कोई रणनीति?
नुपुर शर्मा केस में एक्शन लेकर बीजेपी ने जो मैसेज देने की कोशिश की थी - वो आखिर किसके लिए था? खुद पर उठते सवालों से बचने के लिए या बीजेपी नेताओं और कार्यकर्ताओं के लिए भी कोई सख्त संदेश रहा?
ठाकुर राजा सिंह के बयान के बाद ऐसा तो नहीं लगता कि नुपुर शर्मा और नवीन जिंदल के खिलाफ एक्शन में बीजेपी नेताओं के लिए कोई अंदरूनी संदेश रहा होगा. अगर ऐसा होता तो भला टी. राजा सिंह वैसा ही ऐक्ट क्यों करते जिसके लिए नुपुर शर्मा को सार्वजनिक और घोषित तौर पर बीजेपी का साथ न मिल पा रहा हो. शुरू में नुपुर शर्मा ने नेतृत्व का सपोर्ट होने का दावा जरूर किया था, लेकिन सस्पेंड किये जाने के बाद तो चुप्पी साध ही लेनी पड़ी.
नुपुर शर्मा को तो सुप्रीम कोर्ट से मदद भी मिल गयी, लेकिन राजा सिंह को तो गिरफ्तार भी होना पड़ा. राजा सिंह के बयान को लेकर मुस्लिम समुदाय की तरफ से जोरदार विरोध तो हो ही रहा था, फटाफट गिरफ्तारी की एक वजह तेलंगाना में बीजेपी की राजनीतिक विरोधी टीआरएस का शासन भी है.
फिर भी एक बात नहीं समझ में आ रही है कि क्या बीजेपी नेतृत्व ने स्थानीय नेताओं को वो सब करने की छूट दे रखी है जिसका राजनीतिक फायदा मिल सकता हो - और बवाल मचने पर एक्शन का ऑप्शन तो खुला है ही.
बिलकिस बानो केस को ही लें, लोकल बीजेपी नेताओं ने बलात्कार के दोषियों को जेल से रिहा करा दिया. जब भी नेतृत्व के सामने ये सवाल उठेगा, वो केंद्र सरकार की गाइडलाइन का हवाला देकर बरी हो जाएंगे - लेकिन एक ही केस में बीजेपी के ही कुछ नेताओं ने ऐसा खेल कर दिया जिसका आने वाले गुजरात चुनावों के लिए फायदेमंद माना जाने लगा है.
अगर बीजेपी नेतृत्व की तरफ से नुपुर शर्मा केस के बाद कोई खास हिदायत या दिशानिर्देश दिये गये होते तो निश्चित तौर पर राजा सिंह भी फॉलो करते ही, ऐसी अपेक्षा तो होनी ही चाहिये - लेकिन नुपुर शर्मा केस में हुई फजीहत के बाद भी कोई ऐसा कदम नहीं उठाया जाता तो बीजेपी नेतृत्व की मंजूरी से ही ये सब हो रहा है समझा जाएगा.
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