फिल्म 'द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर' का ट्रेलर जारी हो चुका है. फिल्म का ट्रेलर आए अभी चंद घंटे ही हुए हैं मगर जिस हिसाब से व्यूज आए हैं साफ है कि फिल्म एक बड़ी हिट साबित होगी. इस फिल्म का ट्रेलर देखकर जो सबसे पहली बात दिमाग में आती है वो ये कि ये एक प्रोपेगेंडा फिल्म है. इसकी कहानी कुल मिलाकर वही समझ आ रही है जो भाजपा कांग्रेस के बारे में पिछले 15 सालों से कहती रही है.
ये फिल्म अप्रैल 2014 में प्रकाशित 'द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर: दि मेकिंग ऑफ मनमोहन सिंह' नामक किताब का सिनेमाई संस्करण है जिसे मई 2004 से अगस्त 2008 तक तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार रहे संजय बारू ने लिखा है. पेंगुइन इंडिया द्वारा प्रकाशित इस किताब में आरोप लगाया गया है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री का अपने कैबिनेट और अपने कार्यालय पर कोई नियंत्रण नहीं था.
इस किताब का खौफ इतना ज्यादा था कि किताब जारी होने के तुरंत बाद प्रधानमंत्री कार्यालय ने वक्तव्य जारी कर संजय बारू के इस संस्मरण के दावों को नकार दिया. कहा गया कि, 'पूर्व मीडिया सलाहकार द्वारा लिखी गयी किताब एक विशेषाधिकृत पद का दुरुपयोग और विश्वसनीयता प्राप्त उच्च कार्यालय तक पहुंच का स्पष्ट तौर पर व्यावसायिक लाभ उठाने का प्रयास है.' जवाब में बारू ने 'द इंडियन एक्सप्रेस' को बताया था कि, 'किताब का ज्यादातर हिस्सा सकारात्मक है. इस किताब को लिखने का मुख्य कारण ही श्री सिंह (मनमोहन सिंह) का प्रशंसा के बजाय उपहास का विषय बन जाना है.'
भाजपा ने तब इस किताब को हाथों हाथ लिया था और अब अगर लोकसभा चुनावों से ठीक पहले इस किताब पर फिल्म बन रही है तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए. ट्रेलर से ही जाहिर...
फिल्म 'द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर' का ट्रेलर जारी हो चुका है. फिल्म का ट्रेलर आए अभी चंद घंटे ही हुए हैं मगर जिस हिसाब से व्यूज आए हैं साफ है कि फिल्म एक बड़ी हिट साबित होगी. इस फिल्म का ट्रेलर देखकर जो सबसे पहली बात दिमाग में आती है वो ये कि ये एक प्रोपेगेंडा फिल्म है. इसकी कहानी कुल मिलाकर वही समझ आ रही है जो भाजपा कांग्रेस के बारे में पिछले 15 सालों से कहती रही है.
ये फिल्म अप्रैल 2014 में प्रकाशित 'द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर: दि मेकिंग ऑफ मनमोहन सिंह' नामक किताब का सिनेमाई संस्करण है जिसे मई 2004 से अगस्त 2008 तक तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार रहे संजय बारू ने लिखा है. पेंगुइन इंडिया द्वारा प्रकाशित इस किताब में आरोप लगाया गया है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री का अपने कैबिनेट और अपने कार्यालय पर कोई नियंत्रण नहीं था.
इस किताब का खौफ इतना ज्यादा था कि किताब जारी होने के तुरंत बाद प्रधानमंत्री कार्यालय ने वक्तव्य जारी कर संजय बारू के इस संस्मरण के दावों को नकार दिया. कहा गया कि, 'पूर्व मीडिया सलाहकार द्वारा लिखी गयी किताब एक विशेषाधिकृत पद का दुरुपयोग और विश्वसनीयता प्राप्त उच्च कार्यालय तक पहुंच का स्पष्ट तौर पर व्यावसायिक लाभ उठाने का प्रयास है.' जवाब में बारू ने 'द इंडियन एक्सप्रेस' को बताया था कि, 'किताब का ज्यादातर हिस्सा सकारात्मक है. इस किताब को लिखने का मुख्य कारण ही श्री सिंह (मनमोहन सिंह) का प्रशंसा के बजाय उपहास का विषय बन जाना है.'
भाजपा ने तब इस किताब को हाथों हाथ लिया था और अब अगर लोकसभा चुनावों से ठीक पहले इस किताब पर फिल्म बन रही है तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए. ट्रेलर से ही जाहिर है कि कॉन्ट्रोवर्सी इस फिल्म का मूल तत्त्व है और विवादों में रहने के लिए ही यह फिल्म बनी है. सच तो यह है कि फिल्म के नायक और खलनायक की पहचान फिल्म के ट्रेलर में ही करवा दी गयी है.
फिल्म में मनमोहन सिंह का किरदार निभाने वाले अनुपम खेर की डायलॉग डिलीवरी ही ज़ाहिर कर देती है कि फिल्म केन्द्र की राजनीति में हुई घटनाओं का नाटकीय रूपांतरण और पैरोडी है. फिल्म में जाहिर तौर पर मनमोहन सिंह को एक कमजोर नायक दिखाया गया है, जो चाहता तो शुभ है परंतु पुत्रमोह में फंसी तत्कालीन कांग्रेस प्रमुख (सोनिया गांधी) की दबंगई के चलते अक्षम है.
स्पष्ट संदेश ये है कि मनमोहन सिंह स्वयं बुरे प्रधानमन्त्री नहीं थे और अपनी जिम्मेदारियां ईमानदारी से निभाना चाहते थे, परंतु उन्हें ऐसा करने नहीं दिया गया. छुपा हुआ संदेश ये है कि देश में अगर कोई भी अच्छा काम करना चाहेगा तो उसे करने नहीं दिया जायेगा.
ट्रेलर में 100 करोड़ की आबादी वाले देश को एक परिवार द्वारा चलाये जाने की बात पर खास जोर है. दिखाया गया है कि सभी घोटाले कांग्रेस की जानकारी में उसकी सहमति से हुए हैं. ट्रेलर के अन्तिम हिस्से में येन-केन-प्रकारेण राहुल गांधी को देश का प्रधानमन्त्री बनाना सोनिया गांधी का अन्तिम राजनीतिक उद्देश्य बताया गया है.
फिल्म का ट्रेलर आने के बाद से ही केन्द्र की राजनीति में गहमागहमी का माहौल है और यही तो फिल्म का उद्देश्य है. समझने की बात है कि बारू की लिखी किताब मूलतः अंग्रेजी भाषा में होने के चलते चाहे सिर्फ अंग्रेजीदां लोगों के बीच सीमित रह गयी हो, पर इस किताब पर बनी हिन्दी फिल्म भाजपा की तरफ से कांग्रेस पर लगाये गये सभी आरोपों को न सिर्फ हर व्यक्ति को बताएगी, बल्कि उसका नाट्य-रूपान्तरण कर उनके अवचेतन मन को कांग्रेस के खिलाफ ले जाने का प्रयास भी करेगी.
कोई बड़ी बात नहीं है कि सिनेमा पर अगाध भरोसा करने वाली देश की अधिकांश आबादी इसे 'कांग्रेस की काली करतूतों' के सुबूत की तरह ले. कांग्रेस अगर इस बात को हल्के में लेती है तो 2019 के लोकसभा चुनावों में इसका असर जरूर दिखेगा.
कांग्रेस को नहीं भूलना चाहिये कि सिनेमा इस देश का राष्ट्रीय मनोरंजन है.यहां 'रामायण' देखते-देखते राम की पूजा करने वाले और लक्ष्मण को बाण लगने पर राम के साथ रोने वाले लोग रहते हैं. और फिर वासेपुर वाले रामाधीर सिंह पहले ही कह चुके हैं कि "जब तक इस देस में सनीमा है, लोग ......... "
खैर , वेल प्लेड BJP
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