विवेक अग्निहोत्री की चर्चित फिल्म The Kashmir Files थियेटर में रिलीज हो गयी है. साथ ही शुरू हो गई हैं वो बातें जो भारत जैसे देश के भविष्य के लिए ठीक नहीं हैं. ऐसे में हमारे लिए भी कुछ बेहद अहम बातों को गांठ बांधकर रख लेना चाहिए ताकि हमारा देश भारत, भारत ही रहे.
1- सन 1990 में कश्मीरियों संग जो हुआ उसे बिना लाग-लपेट ग़लत कहें. ब्रह्माण्ड में व्याप्त किसी भी तर्क के आधार पर उसका बचाव करने की चेष्टा न करें.
2- समूचे भारतवर्ष के मुसलमानों को उस क़त्लेआम पर तर्क-वितर्क करने की ज़रूरत नहीं है. आप वहां नहीं थे, न आपसे सफ़ाई मांगी जा सकती है, न आपको सफ़ाई देनी चाहिए. वकालत करने की कोशिश न करें. आप कठघरे में नहीं हैं इसलिए बेकार के तर्क देकर बचाव का प्रयास भी न करें. ऐसी मारकाट का बचाव किसी सूरत में नहीं किया जाना चाहिए.
3- कश्मीरी पंडितों के साथ जो हुआ वह मुसलमानों ने किया लेकिन भटिंडा, बाराबंकी, बिलासपुर के मुसलमानों ने नहीं किया, कश्मीर के लोगों ने किया इसलिए जब यह विषय उठे तो धर्म के आधार पर चिह्नित कर नफ़रत फैलाने की रवायत न शुरू हो. कश्मीर के कृत्य के लिये समूचे भारत के मुसलमानों को कटघरे में नहीं रखा जा सकता है.
4- फ़िल्म देखकर आ रहे लोग उन्मादी हो रहे हैं. इस ऊर्जा को सही जगह लगायें. धार्मिक लड़ाई समाधान नहीं हो सकता. उन शरणार्थियों के हित में कदम उठायें, किसी के अहित में नहीं.
5- देश के वो तमाम कश्मीरी पंडित जो तीन दशक से अपनी ही मिट्टी में शरणार्थी बने हुए हैं, उनके पुनर्वास की बात हो और यह बात बिना किन्तु-परन्तु की जाए. अपना सबकुछ उजड़ते हुए देखना और वहाँ कभी न लौट पाने की पीड़ा आप चाहकर भी नहीं समझ सकते. फ़िल्म देखकर दहाड़ लगाने से...
विवेक अग्निहोत्री की चर्चित फिल्म The Kashmir Files थियेटर में रिलीज हो गयी है. साथ ही शुरू हो गई हैं वो बातें जो भारत जैसे देश के भविष्य के लिए ठीक नहीं हैं. ऐसे में हमारे लिए भी कुछ बेहद अहम बातों को गांठ बांधकर रख लेना चाहिए ताकि हमारा देश भारत, भारत ही रहे.
1- सन 1990 में कश्मीरियों संग जो हुआ उसे बिना लाग-लपेट ग़लत कहें. ब्रह्माण्ड में व्याप्त किसी भी तर्क के आधार पर उसका बचाव करने की चेष्टा न करें.
2- समूचे भारतवर्ष के मुसलमानों को उस क़त्लेआम पर तर्क-वितर्क करने की ज़रूरत नहीं है. आप वहां नहीं थे, न आपसे सफ़ाई मांगी जा सकती है, न आपको सफ़ाई देनी चाहिए. वकालत करने की कोशिश न करें. आप कठघरे में नहीं हैं इसलिए बेकार के तर्क देकर बचाव का प्रयास भी न करें. ऐसी मारकाट का बचाव किसी सूरत में नहीं किया जाना चाहिए.
3- कश्मीरी पंडितों के साथ जो हुआ वह मुसलमानों ने किया लेकिन भटिंडा, बाराबंकी, बिलासपुर के मुसलमानों ने नहीं किया, कश्मीर के लोगों ने किया इसलिए जब यह विषय उठे तो धर्म के आधार पर चिह्नित कर नफ़रत फैलाने की रवायत न शुरू हो. कश्मीर के कृत्य के लिये समूचे भारत के मुसलमानों को कटघरे में नहीं रखा जा सकता है.
4- फ़िल्म देखकर आ रहे लोग उन्मादी हो रहे हैं. इस ऊर्जा को सही जगह लगायें. धार्मिक लड़ाई समाधान नहीं हो सकता. उन शरणार्थियों के हित में कदम उठायें, किसी के अहित में नहीं.
5- देश के वो तमाम कश्मीरी पंडित जो तीन दशक से अपनी ही मिट्टी में शरणार्थी बने हुए हैं, उनके पुनर्वास की बात हो और यह बात बिना किन्तु-परन्तु की जाए. अपना सबकुछ उजड़ते हुए देखना और वहाँ कभी न लौट पाने की पीड़ा आप चाहकर भी नहीं समझ सकते. फ़िल्म देखकर दहाड़ लगाने से बेहतर है उचित कदम उठाना. फ़िल्म देखकर द्वेष न फैलायें, पीड़ितों के हित में कुछ कर सकें तो करें. ज़रूरत उन्हें इसी की है.
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