पश्चिम बंगाल में चौथे चरण के मतदान के दौरान सीतलकूची में हुई चार लोगों की मौत पर आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति जारी है. तृणमूल कांग्रेस मुखिया ने इस घटना को 'लोकतंत्र की हत्या' करार दिया है. निश्चित रूप से ये घटना लोकतंत्र की हत्या है और इसके लिए कहीं न कहीं ममता बनर्जी की जिम्मेदारी बनती ही है. पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में चार चरणों का मतदान हो चुका है और चार चरणों का मतदान बाकी है. पहले चार चरणों के बीच कई नाटकीय घटनाक्रम हुए हैं, जो ममता बनर्जी के खिलाफ जाते दिखे हैं.
भाजपा ने इन मौकों को अपने पक्ष में भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. इन तमाम कारणों से 'दीदी' को अपने हाथ से सत्ता फिसलती दिख रही है और इसी वजह से उनकी जबान भी लगातार फिसल रही है. सीआरपीएफ को लेकर दिए गए उनके बयान पर चुनाव आयोग ने उन्हें नोटिस जारी किया था. जिसके जवाब में उन्होंने खुद को क्लीन चिट देते हुए कहा कि घेरो शब्द का इस्तेमाल पश्चिम बंगाल की राजनीति में 1960 से होता रहा है. मेरे घेरो कहने का मतलब सीआरपीएफ को घेरने से नहीं था. ममता बनर्जी खुद को इस मामले से जितना दूर रखने की कोशिश कर लें, लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि 'लोकतंत्र की हत्या' करने की जिम्मेदारी 'दीदी' के कंधों पर ही आनी है.
पश्चिम बंगाल में भाजपा से मिल रही कड़ी चुनावी टक्कर ने ममता बनर्जी को बुरी तरह से बौखला दिया है. 'दीदी' के सत्ता में काबिज होने से लेकर वर्तमान विधानसभा चुनावों में केवल एक ही अहम बदलाव हुआ है और वह है उनके तेवरों का बेतरतीब हो जाना. ममता बनर्जी का गुस्सा उनकी सियासी जमीन को कमजोर करता जा रहा है. 'जय श्री राम' के नारों से लेकर 'बाहरी पार्टी' के आरोपों तक टीएमसी मुखिया का गुस्सा समझ में आ रहा था. लेकिन, विधानसभा चुनाव के लिए मतदान शुरू होते ही उन्होंने ऐसे मुद्दों पर भी बोलना शुरू कर दिया, जिसकी जरूरत शायद 'दीदी' को नहीं थी. एक मुख्यमंत्री के तौर पर उनके बयानों के मायने काफी बढ़ जाते हैं. यह तब और महत्वपूर्ण हो जाता है, जब आपके साथ मतदाताओं का एक...
पश्चिम बंगाल में चौथे चरण के मतदान के दौरान सीतलकूची में हुई चार लोगों की मौत पर आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति जारी है. तृणमूल कांग्रेस मुखिया ने इस घटना को 'लोकतंत्र की हत्या' करार दिया है. निश्चित रूप से ये घटना लोकतंत्र की हत्या है और इसके लिए कहीं न कहीं ममता बनर्जी की जिम्मेदारी बनती ही है. पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में चार चरणों का मतदान हो चुका है और चार चरणों का मतदान बाकी है. पहले चार चरणों के बीच कई नाटकीय घटनाक्रम हुए हैं, जो ममता बनर्जी के खिलाफ जाते दिखे हैं.
भाजपा ने इन मौकों को अपने पक्ष में भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. इन तमाम कारणों से 'दीदी' को अपने हाथ से सत्ता फिसलती दिख रही है और इसी वजह से उनकी जबान भी लगातार फिसल रही है. सीआरपीएफ को लेकर दिए गए उनके बयान पर चुनाव आयोग ने उन्हें नोटिस जारी किया था. जिसके जवाब में उन्होंने खुद को क्लीन चिट देते हुए कहा कि घेरो शब्द का इस्तेमाल पश्चिम बंगाल की राजनीति में 1960 से होता रहा है. मेरे घेरो कहने का मतलब सीआरपीएफ को घेरने से नहीं था. ममता बनर्जी खुद को इस मामले से जितना दूर रखने की कोशिश कर लें, लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि 'लोकतंत्र की हत्या' करने की जिम्मेदारी 'दीदी' के कंधों पर ही आनी है.
पश्चिम बंगाल में भाजपा से मिल रही कड़ी चुनावी टक्कर ने ममता बनर्जी को बुरी तरह से बौखला दिया है. 'दीदी' के सत्ता में काबिज होने से लेकर वर्तमान विधानसभा चुनावों में केवल एक ही अहम बदलाव हुआ है और वह है उनके तेवरों का बेतरतीब हो जाना. ममता बनर्जी का गुस्सा उनकी सियासी जमीन को कमजोर करता जा रहा है. 'जय श्री राम' के नारों से लेकर 'बाहरी पार्टी' के आरोपों तक टीएमसी मुखिया का गुस्सा समझ में आ रहा था. लेकिन, विधानसभा चुनाव के लिए मतदान शुरू होते ही उन्होंने ऐसे मुद्दों पर भी बोलना शुरू कर दिया, जिसकी जरूरत शायद 'दीदी' को नहीं थी. एक मुख्यमंत्री के तौर पर उनके बयानों के मायने काफी बढ़ जाते हैं. यह तब और महत्वपूर्ण हो जाता है, जब आपके साथ मतदाताओं का एक बड़ा वर्ग जुड़ा हुआ है और वो अभी तक आपको सत्ता की कुर्सी तक पहुंचाता आया है.
मुस्लिम समुदाय के मतदाताओं को एकजुट होकर वोट करने की अपील से लेकर तृणमूल कांग्रेस के चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की क्लबहाउस लीक चैट तक कुछ भी ममता बनर्जी के पक्ष में जाता नहीं दिख रहा है. यही सबसे बड़ी वजह है कि मुख्यमंत्री का गुस्सा सातवें आसमान पर जा पहुंचा है. कांग्रेस और वाम दलों के साथ मिलकर अब्बास सिद्दीकी उनके कोर वोटबैंक मुस्लिम मतदताओं में सेंध लगाने को तैयार हैं. ममता बनर्जी के हाल फिलहाल में सामने आए बयानों को उनकी रणनीति तो कदापि नहीं माना जा सकता है. प्रशांत किशोर क्लबहाउस चैट लीक होने के बाद डैमेज कंट्रोल करने के लिए लाख कहते नजर आएं कि भाजपा 100 सीटों के अंदर ही सिमट जाएगी, लेकिन भाजपा ने इसके सहारे तृणमूल कांग्रेस के साथ भरपूर 'खेला' कर दिया है.
ममता बनर्जी अपने द्वारा ही पैदा की गई मुश्किलों में गले तक घिर चुकी हैं. ममता बनर्जी नंदीग्राम विधानसभा सीट पर भाजपा कार्यकर्ता से अपने लिए समर्थन जुटाने की मांग कर रही थीं. इस बातचीत को भी भाजपा ने बखूबी वायरल किया. इस स्थिति में अगर ये कहा जाए कि 'दीदी' पर हुए हमले के बाद बंधे प्लास्टर ने उन्हें सच में 'व्हीलचेयर' पर पहुंचा दिया है, तो गलत नहीं होगा. इन तमा्म मुश्किलों से बचने का रास्ता खोजना ममता बनर्जी के लिए मुश्किल होता जा रहा है. रही-सही कसर सुजाता मंडल सरीखे टीएमसी उम्मीदवार निकाले दे रहे हैं. भाजपा ने 'दीदी' के सामने हालात इतने मुश्किल कर दिए हैं कि उन्हें न चाहते हुए भी ऐसे बयानों का सहारा लेना पड़ रहा है, जिससे पश्चिम बंगाल का चुनावी माहौल बिगड़ने की संभावना सौ फीसदी बढ़ जाती है.
सीआरपीएफ ने सीतलकूची की घटना पर सफाई देते हुए कहा है कि आत्मरक्षा में गोली चलाई गई. मामले में विवाद बढ़ने पर ममता बनर्जी ने केंद्रीय सुरक्षा बलों के सम्मान की बात जरूर कही, लेकिन यहां भी सीआरपीएफ पर महिलाओं के साथ अभद्रता का आरोप लगाने से नहीं चूकीं. एक अफवाह के चलते सीतलकूची में इतनी भयावह घटना हुई और इसको हवा देने में ममता बनर्जी के बयान का हाथ ही माना जाएगा. ममता बनर्जी खुद को क्लीन चिट दे सकती हैं, लेकिन 'लोकतंत्र की हत्या' की जिम्मेदारी ममता बनर्जी के कंधों पर ही आनी है.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.