डोनाल्ड ट्रंप ने अपने शपथ लेने के हफ्ते भर बाद ही वो आदेश जारी कर दिया जिसका वादा उन्होंने अपने प्रचार अभियान के दौरान बड़े जोर-शोर से किया था. ट्रंप ने बड़ा निर्णय लेते हुए सात मुस्लिम बहुल देशों के नागरिकों के अमेरिका में प्रवेश पर रोक लगा दी है. ट्रंप ने जिन सात देशों के नागरिकों के अमेरिका आने पर रोक लगाई है उनके ईरान, इराक, सीरिया, लीबिया, यमन, सूडान और सोमालिया हैं. फ़िलहाल यह पाबंदी 90 दिनों के लिए लगाई गई है जिसे बढ़ाया भी जा सकता है. सात देशों की रोक के अलावा अन्य देशों से अमेरिका आने वालों की कड़ी जांच की जाएगी. उनके आने का उद्देश्य स्पष्ट किया जाएगा. कुछ देशों के खास वर्गो को वीजा साक्षात्कार में छूट मिली हुई थी, उसे भी तत्काल प्रभाव से खत्म कर दिया गया है. सात देशों पर रोक के अलावा ट्रंप ने अमेरिका के शरणार्थी पुनर्वास कार्यक्रम पर भी चार माह के लिए रोक लगा दी है. इस फैसले के बाद अमेरिका में किसी भी देश के शरणार्थी प्रवेश नहीं कर सकेंगे. हालांकि, अभी इस ऑर्डर पर फेडरल कोर्ट ने अस्थाई तौर पर प्रतिबंध लगा दिया है.
डोनाल्ड ट्रंप ने इन फैसलों के पीछे अमेरिकी नागरिकों को इस्लामिक आतंकवादियों के हमलों से बचाने का एक कदम बताया है. ‘प्रोटेक्शन ऑफ द नेशन फ्रॉम फॉरेन टेररिस्ट एंट्री इन टू द यूनाइटेड स्टेट्स’ शीर्षक से जारी आदेश में कहा गया है कि 9/11 हमले के बाद उठाए गए कदम कट्टरपंथियों को अमेरिका में आने से नहीं रोक पाए. जिन विदेशियों ने वर्ल्ड ट्रेड सेंटर और उसके बाद के आतंकी हमलों को अंजाम दिया, वे कट्टरपंथी अमेरिका में पर्यटन, पढ़ाई, नौकरी करने इत्यादि का वीजा लेकर आए थे. हालाँकि, ट्रंप के इस आदेश का चहुँओर विरोध होने लगा है, जहाँ अमेरिका में विपक्षी डेमोक्रेटिक पार्टी ने इन फैसलों पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है तो वहीं फेसबुक के मार्क जकरबर्ग और गूगल के सुन्दर पिचाई ने भी ट्रंप के फैसले का विरोध किया है.
डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति निर्वाचित होने के साथ ही अमेरिका के लोगों के साथ विश्व भर में उनके हाथों में अमेरिका का क्या भविष्य होगा इसकी चर्चा होने लगी थी. ट्रंप के इस फैसले के जो तर्क दिए गए हैं वो अपने आप में कमजोर लगते हैं. ट्रंप प्रशासन ने 9/11 को ध्यान में रखते हुए अमेरिका को ज्यादा सुरक्षित बनाने के उद्देश से यह फैसला लिया है. हालाँकि, 10-20 चरमपंथी लोगों को अमेरिका आने से रोकने के लिए कई देशों के ऊपर बैन लगाना कहीं से तर्कसंगत नहीं लगता. ट्रंप ने ये फैसला लेते समय शायद उन चरमपंथियों के बारे में तो सोचा जो अमेरिका के सुरक्षा के नजरिये से घातक हो सकते हैं, मगर ट्रंप इन देशों के उन लाखों लोगों के बारे में भूल गए जिन्होंने अमेरिका के विकास में भी अपना योगदान दिया है. अभी ट्रंप का ये फैसला पूरी तरह से मुस्लिम बैन नहीं कहा जा सकता मगर उनके इस फैसले से विश्व के बाकि मुस्लिम देशों में भी गलत संदेश ही जायेगा.
हो सकता ये फैसला लेते समय ट्रंप की नियत आतंकवाद के खिलाफ कड़े कदम उठाने की रही हो मगर इस तरह के तुगलकी फैसले लेकर आतंकवादी गतिविधियों को रोका जा सकता है ऐसा लगता नहीं, हाँ इस तरह के फैसले से अमेरिका की संकट बढ़ जरूर सकता है. ट्रंप का ये फैसला कई मायनों में महाराष्ट्र में वोटों की राजनीती करते राज ठाकरे और शिव सेना की लोगों की याद दिलाता है जो मुम्बई में हो रही सारी परेशानियों के लिए उत्तर प्रदेश और बिहार के लोगों को जिम्मेदार मानते हैं और इनको बाहर करना ही सारी समस्याओं का हल मानते हैं. फिलहाल ट्रंप के इस फैसले को लागू होने के लिए कई तरह के कानूनी दावपेंच से गुजरना होगा इसकी पूरी सम्भावना है, क्योंकि ट्रंप के इस फैसले को काफी विरोध का सामना करना पड़ रहा है.
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