दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल लगभग हफ्ते भर से उपराज्यपाल के घर पर धरने पर बैठे हैं. केजरीवाल के साथ मनीष सिसोदिआ, गोपाल राय और सत्येंद्र जैन भी हैं. केजरीवाल के अनुसार दिल्ली के आईएएस अफ़सर हड़ताल पर हैं, जिसकी वजह से दिल्ली सरकार जन कल्याण की योजनाएं लागू नहीं कर पा रही है. इसलिए, केजरीवाल और उनके मंत्री धरने पर बैठ इस बात की मांग कर रहे हैं कि न सिर्फ अफ़सरों की हड़ताल खत्म हो, बल्कि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्ज़ा भी दिया जाए. शनिवार की रात केजरीवाल की इसी मांग का समर्थन करने देश के चार राज्यों के मुख्यमंत्री केजरीवाल के आवास पर थे.
हालांकि, भले ही केजरीवाल आरोप लगा रहे हों कि दिल्ली के आईएएस अधिकारी काम नहीं कर रहे हैं, मगर कुछ मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो वास्तव में ऐसी कोई स्थिति दिल्ली में है ही नहीं. द प्रिंट की एक खबर के अनुसार जब उसके रिपोर्टर्स ने 13 और 14 जून को दिल्ली के विभिन्न दफ्तरों का दौरा किया तो उन्हें हर जगह अफसर काम करते मिले. अफसरों ने तो अपने 1 महीने के कार्यक्रमों की भी बाकायदा सूचना दी, जबकि केजरीवाल एंड कंपनी का आरोप हैं कि दिल्ली के अफसर पिछले चार महीनों से हड़ताल पर हैं. हां ये जरूर है कि अधिकारियों ने मंत्रियों द्वारा बुलाई गई बैठकों का हिस्सा बनने से इनकार कर दिया है. जिसके पीछे अधिकारी यह वजह बताते हैं कि दिल्ली सरकार उनकी सुरक्षा को लेकर कोई ठोस आश्वासन नहीं दे सकी है. यानि वाकई में कोई ऐसी स्थिति है नहीं, जैसा केजरीवाल पेश कर रहे हैं. तो फिर आखिर वजह क्या है जो केजरीवाल अपने पुराने अवतार में वापस आ गए हैं?
दरअसल, केजरीवाल सरकार की अफसरों से किरकिरी कोई नई बात नहीं है. पहले भी समय-समय पर अरविन्द केजरीवाल मनचाहे अफसरों की पोस्टिंग ना मिलने पर केंद्र सरकार और उपराज्यपाल पर आरोप लगाते रहे हैं. ऐसा बवाल शकुंतला गामलिन के चीफ...
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल लगभग हफ्ते भर से उपराज्यपाल के घर पर धरने पर बैठे हैं. केजरीवाल के साथ मनीष सिसोदिआ, गोपाल राय और सत्येंद्र जैन भी हैं. केजरीवाल के अनुसार दिल्ली के आईएएस अफ़सर हड़ताल पर हैं, जिसकी वजह से दिल्ली सरकार जन कल्याण की योजनाएं लागू नहीं कर पा रही है. इसलिए, केजरीवाल और उनके मंत्री धरने पर बैठ इस बात की मांग कर रहे हैं कि न सिर्फ अफ़सरों की हड़ताल खत्म हो, बल्कि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्ज़ा भी दिया जाए. शनिवार की रात केजरीवाल की इसी मांग का समर्थन करने देश के चार राज्यों के मुख्यमंत्री केजरीवाल के आवास पर थे.
हालांकि, भले ही केजरीवाल आरोप लगा रहे हों कि दिल्ली के आईएएस अधिकारी काम नहीं कर रहे हैं, मगर कुछ मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो वास्तव में ऐसी कोई स्थिति दिल्ली में है ही नहीं. द प्रिंट की एक खबर के अनुसार जब उसके रिपोर्टर्स ने 13 और 14 जून को दिल्ली के विभिन्न दफ्तरों का दौरा किया तो उन्हें हर जगह अफसर काम करते मिले. अफसरों ने तो अपने 1 महीने के कार्यक्रमों की भी बाकायदा सूचना दी, जबकि केजरीवाल एंड कंपनी का आरोप हैं कि दिल्ली के अफसर पिछले चार महीनों से हड़ताल पर हैं. हां ये जरूर है कि अधिकारियों ने मंत्रियों द्वारा बुलाई गई बैठकों का हिस्सा बनने से इनकार कर दिया है. जिसके पीछे अधिकारी यह वजह बताते हैं कि दिल्ली सरकार उनकी सुरक्षा को लेकर कोई ठोस आश्वासन नहीं दे सकी है. यानि वाकई में कोई ऐसी स्थिति है नहीं, जैसा केजरीवाल पेश कर रहे हैं. तो फिर आखिर वजह क्या है जो केजरीवाल अपने पुराने अवतार में वापस आ गए हैं?
दरअसल, केजरीवाल सरकार की अफसरों से किरकिरी कोई नई बात नहीं है. पहले भी समय-समय पर अरविन्द केजरीवाल मनचाहे अफसरों की पोस्टिंग ना मिलने पर केंद्र सरकार और उपराज्यपाल पर आरोप लगाते रहे हैं. ऐसा बवाल शकुंतला गामलिन के चीफ सेक्रेटरी बनाने के दौर से ही देखने को मिल रहा है. दरअसल, अरविन्द केजरीवाल देश के बाकी राज्यों की तरह अफसरों की ट्रांसफर पोस्टिंग का सारा अधिकार अपने पास रखना चाहते मगर चूंकि दिल्ली खुद में एक पूर्ण राज्य नहीं है, इसी कारण केजरीवाल को ये सब सहूलियत नहीं मिल पाती है. जिसका नतीजा यह होता है कि दिल्ली के अफसरों पर केजरीवाल और उनके मंत्री उनकी धौंस सहने को लेकर उतना दबाव नहीं बना पाते. और शायद यही चीज केजरीवाल को नागवार गुजरती है. केजरीवाल और उनके मंत्रियों के समय-समय पर अधिकारियों से उलझने की ख़बरें भी आती रहती हैं. फ़रवरी के महीने में ही दिल्ली के मुख्य सचिव अंशु प्रकाश ने आम आदमी पार्टी के विधायक अमानुल्ला खान और दूसरे विधायकों द्वारा एक बैठक में उनके साथ धक्का-मुक्की और बदसलूकी का आरोप लगाया था. इसके अलावा कई अन्य मौकों पर भी आम आदमी पार्टी के नेताओं का नाम इस तरह की घटना में आता रहा है.
यानी केजरीवाल खुद को दिल्ली का सुपरबॉस बनाना चाहते हैं, जबकि वर्तमान संविधान उन्हें इस बात की इजाजत नहीं देता. यही वजह है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अपना काम छोड़ कर उपराज्यपाल के घर धरने पर बैठ गए हैं. हालांकि, भले ही केजरीवाल का यह धरना दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने में नाकाम रहे मगर यह जरूर है कि इस धरने के माध्यम से केजरीवाल फिर से एक बार राष्ट्रीय मीडिया के कैमरों कि नजर में आ जायेंगे, जिनकी उनको इस वक़्त ख़ास जरूरत भी है.
ये भी पढ़ें-
राहुल गांधी की 'चिट्ठियां' बीजेपी के 'संपर्क फॉर समर्थन' से बिलकुल अलग हैं
2019 के मोदी के खिलाफ महागठबंधन तो बन गया पर गांठ रह गई
कर्नाटक और कैराना के हिसाब से तो राहुल गांधी की इफ्तार पार्टी फ्लॉप ही रही
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.