16 जनवरी दिल्ली की टीम राज्यसभा सीटों पर वोटिंग होगी और पहली बार आम आदमी पार्टी अपने 3 सांसदों को राज्यसभा भेज पाएगी. 5 साल पुरानी आम आदमी पार्टी को 2014 में मिली बुरी हार के बाद पंजाब से 4 लोकसभा सांसद मिले थे और अब दिल्ली से तीन राज्य सभा सांसद मिलेंगे. अरविंद केजरीवाल के सांसद विधायकों में कुछ बागी हो चुके हैं लेकिन उनकी बगावत का इस राज्यसभा चुनाव पर कोई असर नहीं होगा. केजरीवाल के पास सिर्फ 4 जनवरी तक का वक्त बचा है क्योंकि 5 जनवरी को राज्यसभा चुनाव के लिए नामांकन दाखिल करने का आखिरी दिन है. अब सवाल यह उठता है कि आखिर दिल्ली की इन तीन राज्यसभा सीटों में ऐसा कौन सा पेंच फंसा है जो इसे इतना महत्वपूर्ण बना देता है. इस सवाल का जवाब है आम आदमी पार्टी के भीतर महत्वकांक्षाओं की लड़ाई है जिसका ट्रेलर हम पिछले 1 साल से लगातार देखते आ रहे हैं. उस ट्रेलर का जिक्र करें और महत्वकांक्षा की लड़ाई में शामिल उन लोगों की चर्चा करें उससे पहले यह जानना जरूरी है की इन तीन राज्यसभा सीटों के लिए आम आदमी पार्टी ने एक बड़ा दांव खेलते हुए पूर्व आरबीआई के गवर्नर रघुराम राजन को पेशकश की थी. आम आदमी पार्टी चाहती थी कि उनके कोटे से राज्यसभा में अर्थ जगत या सामाजिक जगत से कोई ऐसा बड़ा नाम राज्यसभा में जाए जो सरकार को आर्थिक जैसे अहम मुद्दों पर घेर सके और जिसके कहने का सदन के अंदर पॉजिटिव और गहरा असर हो.
केजरीवाल ने शायद सोचा होगा कि अगर रघुराम राजन राज्यसभा के अंदर प्रधानमंत्री मोदी और वित्त मंत्री अरुण जेटली को नोटबंदी और जीएसटी जैसे मुद्दों पर घेरेंगे तो पार्टी को राष्ट्रीय परिपेक्ष में और ज्यादा गंभीरता से देखा जाएगा. लेकिन रघुराम राजन ने आम आदमी पार्टी के कोटे से राज्यसभा जाने की पेशकश को ठुकरा दिया. राजन के बाद पार्टी ने समाज के कुछ और बड़े नामों पर चर्चा शुरु की. यहां तक की चर्चा में कुछ...
16 जनवरी दिल्ली की टीम राज्यसभा सीटों पर वोटिंग होगी और पहली बार आम आदमी पार्टी अपने 3 सांसदों को राज्यसभा भेज पाएगी. 5 साल पुरानी आम आदमी पार्टी को 2014 में मिली बुरी हार के बाद पंजाब से 4 लोकसभा सांसद मिले थे और अब दिल्ली से तीन राज्य सभा सांसद मिलेंगे. अरविंद केजरीवाल के सांसद विधायकों में कुछ बागी हो चुके हैं लेकिन उनकी बगावत का इस राज्यसभा चुनाव पर कोई असर नहीं होगा. केजरीवाल के पास सिर्फ 4 जनवरी तक का वक्त बचा है क्योंकि 5 जनवरी को राज्यसभा चुनाव के लिए नामांकन दाखिल करने का आखिरी दिन है. अब सवाल यह उठता है कि आखिर दिल्ली की इन तीन राज्यसभा सीटों में ऐसा कौन सा पेंच फंसा है जो इसे इतना महत्वपूर्ण बना देता है. इस सवाल का जवाब है आम आदमी पार्टी के भीतर महत्वकांक्षाओं की लड़ाई है जिसका ट्रेलर हम पिछले 1 साल से लगातार देखते आ रहे हैं. उस ट्रेलर का जिक्र करें और महत्वकांक्षा की लड़ाई में शामिल उन लोगों की चर्चा करें उससे पहले यह जानना जरूरी है की इन तीन राज्यसभा सीटों के लिए आम आदमी पार्टी ने एक बड़ा दांव खेलते हुए पूर्व आरबीआई के गवर्नर रघुराम राजन को पेशकश की थी. आम आदमी पार्टी चाहती थी कि उनके कोटे से राज्यसभा में अर्थ जगत या सामाजिक जगत से कोई ऐसा बड़ा नाम राज्यसभा में जाए जो सरकार को आर्थिक जैसे अहम मुद्दों पर घेर सके और जिसके कहने का सदन के अंदर पॉजिटिव और गहरा असर हो.
केजरीवाल ने शायद सोचा होगा कि अगर रघुराम राजन राज्यसभा के अंदर प्रधानमंत्री मोदी और वित्त मंत्री अरुण जेटली को नोटबंदी और जीएसटी जैसे मुद्दों पर घेरेंगे तो पार्टी को राष्ट्रीय परिपेक्ष में और ज्यादा गंभीरता से देखा जाएगा. लेकिन रघुराम राजन ने आम आदमी पार्टी के कोटे से राज्यसभा जाने की पेशकश को ठुकरा दिया. राजन के बाद पार्टी ने समाज के कुछ और बड़े नामों पर चर्चा शुरु की. यहां तक की चर्चा में कुछ बड़े वकीलों का नाम तक सामने आने लगे हैं. लेकिन पार्टी के सूत्र बताते हैं कि ज्यादातर बड़े नाम आप के कोटे से राज्यसभा जाने से ऐतराज कर रहे थे. पार्टी का मानना है कि सदन के भीतर कोई भी मौजूदा सरकार को आम आदमी पार्टी की स्टाइल में शायद घेर नहीं पाएगा.
तो आप पार्टी ने दांव बदलकर बड़े नामों की जगह समाज में निचले स्तर पर अलग-अलग क्षेत्र में काम करने वाले स्वयंसेवी संगठन और सामाजिक कार्यकर्ताओं की तलाश शुरू कर दी है. आप को लगता है कि बाहर से चेहरों की तलाश उसे अंदर की भीतरघात से बचा लेगी. साथ ही बाहर से किसी जनाधार वाली सामाजिक शक्ति को राज्यसभा भेजने से पार्टी का अपना जनाधार भी बाहर बढ़ेगा.
अब आते हैं सबसे अहम सवाल पर कि आखिर केजरीवाल को ऐसा क्यों लगता है कि बाहर से नेता इंपोर्ट करने पर आम आदमी पार्टी के भीतर का द्वंद खत्म हो जाएगा? दरअसल, ये द्वंद अब नया नहीं है. पार्टी के तीसरे सबसे मशहूर नेता और अब हिंदुस्तान में मशहूर कवि कुमार विश्वास राज्यसभा जाने की अपनी मंशा बहुत पहले ही जगा चुके हैं. आम आदमी पार्टी के शुरुआत से लेकर इन 5 सालों तक करीब से देखने के नाते हमेशा यह लगता था कि केजरीवाल अगर किन्ही 3 चेहरों को राज्यसभा भेजेंगे तो उनमें से एक नाम कुमार विश्वास का होगा. जब तक योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण पार्टी से बाहर नहीं निकाले गए तब तक उनके नामों पर भी चर्चा गाहे-बगाहे होती रहती थी. कुमार विश्वास का नाम केजरीवाल के सबसे करीबी नेताओं में से शुमार था. अन्ना आंदोलन से लेकर के पार्टी के गठन और चुनाव लड़ने तक विश्वास कंधे से कंधा मिलाकर केजरीवाल के साथ खड़े रहे. गाजियाबाद में रहने वाले कवि भीड़ बटोरने और जोश भरने के लिए हमेशा पार्टी के लिए एक संपत्ति के रूप में देखे गए.
विश्वास के बाद जिन दो नामों पर अक्सर ध्यान जाता था वह थे पूर्व पत्रकार पार्टी में वरिष्ठ नेता आशुतोष और केजरीवाल के सहयोगी संजय सिंह. लेकिन फिलहाल ऐसा नहीं लगता कि इन में से किसी को भी संसद की चौखट पर जाने का मौका मिलेगा. तो आखिर ऐसा क्या हुआ जिससे पार्टी के नेताओं का ही टिकट कट गया? ऐसा क्या हुआ कि विश्वास जैसे केजरीवाल के करीबी रहे नेता का भी मंसूबा धरा का धरा रह गया?
कई विधायकों को जमानत मिलने के साथ कई छोटे-मोटे मामलों में बरी भी होते गए जिसमें जज ने दिल्ली पुलिस की जमकर खिंचाई की थी. इसी दौरान नई दिल्ली में कुमार विश्वास ने अपने जन्मदिन पार्टी के मौके पर तत्कालीन दिल्ली पुलिस कमिश्नर को भी न होता दिया था बल्कि बीजेपी के कई केंद्रीय मंत्रियों को भी बुलाया था. विश्वास के सबसे करीबी मित्र और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी इस पार्टी में मेहमान बन कर जाने वाले थे लेकिन सूत्र बताते हैं कि जैसे उन्हें इस बात का पता चला कि विश्वास किस पार्टी में बस्सी और दूसरे बीजेपी के नेता और केंद्रीय मंत्री मेहमान हैं वह आधे रास्ते से ही अपने घर वापस लौट आए. इस बात की भनक अगले दिन पूरी पार्टी को लगी और सब में एकतरफा नाराजगी देखने को मिली. पार्टी के ज्यादातर विधायक नेता और कार्यकर्ता इस बात से नाराज थे कि जिस पुलिस कमिश्नर और बीजेपी नेताओं के कथित इशारों पर उनके विधायकों की गिरफ्तारी हो रही थी उन लोगों को विश्वास ने अपने जन्मदिन की पार्टी पर जश्न मनाने क्यों बुलाया? दरार की शुरुआत वहां हुई और वो खाई लगातार बढ़ती रही. इस बीच कुमार विश्वास गाहे-बगाहे अलग-अलग मौकों पर और अलग-अलग साक्षात्कार में यह लगातार कहते रहे कि वह आम आदमी पार्टी के कोटे से राज्यसभा जाना चाहते हैं. विश्वास ने कहा कि यह उनकी जिज्ञासा भी है और साथ ही उनको लगता है कि वह सदन में पार्टी के मुद्दों पर सरकार को बेहतर तरीके से कर पाएंगे. पंजाब और दिल्ली के नगर निगम चुनाव हारने के बाद विश्वास को लेकर पार्टी में बवाल तब बढ़ा जब अमानतुल्लाह खान ने विश्वास पर BJP और RSS के साथ-साथ गांठ होने का आरोप लगा दिया. नाराज कवि विश्वास गाजियाबाद में अपने आवास पर विधायकों से मेल मुलाकात करने लगे. हवा में आरोपों के तीर और सोशल मीडिया पर दोनों नेताओं के समर्थकों द्वारा एक दूसरे के खिलाफ हमले किए जाने लगे. लेकिन केजरीवाल ने आधी रात को पहल करके विश्वास के घर जाकर उनसे मुलाकात की और संदेश दे दिया की ऑल इज वेल. लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी.
हाल ही में पार्टी ने साफ किया है कि अब वह किसी भी हाल में अपनी पार्टी के नेताओं को राज्यसभा नहीं भेजेगी. जाहिर है इसका सीधा सीधा एक मतलब यह भी है कि अब विश्वास का आम आदमी पार्टी के कोटे से राज्यसभा जाने का टिकट कट चुका है. अब अगर इस हालत में अरविंद केजरीवाल पार्टी के दूसरे नेता यानी कि आशुतोष और संजय सिंह को राज्यसभा भेजते हैं तो विश्वास अपने समर्थकों के साथ बगावत कर सकते हैं. पार्टी अब किसी और विवादों से बचना चाहती है. पार्टी के नेता मानते हैं केस विवाद को खत्म करने का सबसे सही रास्ता यही है कि बाहर से अच्छे लोगों को पार्टी के टिकट पर सदन में भेजा जाए. राज्यसभा की उम्मीदवारी के लिए दो प्रबल दावेदारों में से एक संजय सिंह दूसरे राज्यों में संगठन की जिम्मेदारी में व्यस्त हो गए हैं और दूसरे नेता आशुतोष भी संजय सिंह के साथ संगठन के कामकाज में जुट गए हैं. वहीं महाराष्ट्र में पार्टी के नेता मीरा सान्याल के नाम पर भी चर्चा होती रही. मजे की बात है कि यह नेता राज्यसभा की उम्मीदवारी और दावेदारी के सवालों को हंसकर टालने की कोशिश करते हैं.
इन तमाम नामों के बीच दिल्ली की 13 राज्यसभा सीटें केजरीवाल के लिए सदन में जहां मजबूती का संकेत हैं वही पार्टी के अपने भीतर द्वंद का आमंत्रण है. अब कुछ दिन और बचे हैं और जाहिर है कि जब महत्वकांक्षा हारती है तो महाभारत की शुरुआत होती है.
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