त्रिपुरा में 60 सीटों पर विधानसभा चुनावों की 16 फरवरी को वोटिंग होनी हैं. फिलहाल यहां भाजपा का राज है और माणिक साहा मुख्यमंत्री हैं. बता दें, भाजपा ने पिछले विधानसभा चुनावों में 36 सीटें जीतकर CPI(M) की 25 सालों की सत्ता को यहां से उखाड़ फेंका था. इस चुनाव में भी भाजपा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर यहां चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है. त्रिपुरा चुनाव की तारीख नजदीक आने के साथ ही भाजपा ने अपने स्टार प्रचारकों कि सेना की घोषणा कर दी हैं . इस लिस्ट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित कई बड़े भाजपा नेताओं की एक स्टार कास्ट है, जिनके प्रचार के आखिरी दिन 13 फरवरी 2023 को राज्य का दौरा करने की संभावना है. प्रधानमंत्री मोदी के पश्चिम त्रिपुरा और दक्षिण त्रिपुरा जिलों में रैलियों को संबोधित करने की संभावना है. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह एक बार फिर से राज्य का दौरा करने वाले हैं. उन्होंने उत्तर और दक्षिण त्रिपुरा दोनों से ‘जन विश्वास यात्रा’ नाम की रथ यात्रा को हरी झंडी दिखाने के लिए 5 जनवरी 2023 को त्रिपुरा का दौरा किया था.
पार्टी के एक अंदरूनी सूत्र ने कहा कि अमित शाह के 6 फरवरी और 12 फरवरी को आने की संभावना है, जहां वह पूरे त्रिपुरा में 10 रैलियों और जनसभाओं में शामिल होंगे. साथ ही इस समयभाजपा ने लेफ्ट के चुनाव घोषणापत्र की आलोचना कर रही है कह रही है कि विपक्ष जानता है कि वे सत्ता में नहीं आएंगे इसलिए छंटनी किए गए 10,323 स्कूल शिक्षकों को नौकरी देने जैसे असंभव वादे कर रहा है.
फिलहाल न तो भाजपा और न ही उसके गठबंधन सहयोगी आईपीएफटी ने अपने चुनाव घोषणापत्र की घोषणा की है. भाजपा , केंद्रीय सरकार की प्रधानमंत्री विकास योजना ,छोटे उद्योग और हस्तशिल्प सहित कई व्यवसायों का समर्थन करेगा और त्रिपुरा जैसे राज्य इससे सीधे लाभान्वित होने की बात कर रही है. भाजपा का प्रचार बिंदु बजट में पशुपालन और मत्स्य पालन के लिए भारी धनराशि आवंटित की गई है.
नबेंदु भट्टाचार्य ने कहा कि कृषि को अब कम्प्यूटरीकृत किया जाएगा और इसके लिए इसका डेटाबेस तैयार किया जाएगा. इतना ही नहीं हाल में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा ने शुक्रवार को त्रिपुरा का दौरा किया और पार्टी के मेगा अभियान में शामिल हुए. जहां केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी, केंद्रीय राज्य मंत्री प्रतिमा भौमिक, असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा सहित कई नेता शामिल हुए.
बंगाल के विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी, बंगाल भाजपा नेता दिलीप घोष, सांसद और भाजपा जनजाति मोर्चा के प्रमुख समीर उरांव सहित अन्य नेता विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों में 35 रैलियों में शामिल हुए.पार्टी सूत्र ने कहा कि जेपी नड्डा केंद्रीय मंत्रियों नितिन गडकरी, सर्बानंद सोनोवाल, किरेन रिजिजू, अर्जुन मुंडा और स्मृति ईरानी जैसे स्टार प्रचारकों के साथ फिर से त्रिपुरा आएंगे.
जबकि अन्य प्रमुख प्रचारक जैसे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह, अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू, अभिनेता हेमा मालिनी, मिथुन चक्रवर्ती, मनोज तिवारी, हिमंत बिस्वा सरमा भी पार्टी के चुनावी अभियान के लिए पहुंचेंगे. उत्तर-पूर्वी राज्य त्रिपुरा के राजनीतिक घटनाक्रम की बात करें तो राज्य में बीते साल मई में उस वक्त खलबली मच गई, जब अचानक प्रदेश का मुख्यमंत्री बदल दिया गया.
चुनाव से ठीक पहले मौजूदा मुख्यमंत्री बिप्लब देव ने पद से इस्तीफा दे दिया और उनकी जगह माणिक साहा को नया मुख्यमंत्री बनाया गया. माणिक साहा पेशे से दंत चिकित्सक हैं और कुछ साल पहले ही वह कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए थे. आपको बता दें, भारतीय जनता पार्टी ने यही फॉर्मुला अपने गढ़ गुजरात में भी अपनाया गया था जहां चुनावों से ठीक पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री विजय रूपाणी को हटाकर भूपेंद्रभाई पटेल को राज्य का मुख्यमंत्री बनाया गया था.
त्रिपुरा में भी कुछ ऐसा ही हुआ. हालांकि भाजपा चुनाव प्रधानमंत्री मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ेगी. वहीं पिछले चुनाव में त्रिपुरा में पहली बार भाजपा की सरकार बनी है, ऐसे में सत्ता रिपीट करना भाजपा के लिए चुनौती साबित होगी. यहां आपको बता दें कि कभी ऐसा भी समय था जब त्रिपुरा में भाजपा का एक भी विधायक नहीं था, लेकिन बीते चुनावों में भाजपा ने अपने शानदार प्रदर्शन से विरोधियों को चौंका दिया था.
इधर, पूर्वोत्तर के राज्यों में हाशिए पर पहुंची कांग्रेस भी त्रिपुरा में अपना दमखम लगाती दिख रही है. इसके लिए कांग्रेस ने त्रिगुट गठबंधन तैयार किया है जो भाजपा के लिए रास्ते का कांटा साबित हो सकता है. कांग्रेस यहां कर्नाटक फॉर्मुला पर चुनाव लड़ेगी. ऐसे में मकसद साफ है कि सत्ता की बागड़ौर मिले, न मिले लेकिन भाजपा को रोकना ही कांग्रेस का एकमात्र मकसद है.
कांग्रेस ने कर्नाटक फॉर्मुला अपनाते हुए भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी)- माकपा से गठबंधन किया है. पिछले कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने ज्यादा सीटें होने के बावजूद जेडीएस के मुखिया एचडी कुमारास्वामी को मुख्यमंत्री बनाया था. त्रिपुरा के विस चुनाव में अगर कांग्रेस और माकपा मिलकर सरकार बनाते हैं तो सीटें किसी की भी ज्यादा हो, माकपा के माणिक सरकार ही मुख्यमंत्री के दावेदार होंगे.
वहीं त्रिपुरा राज्य में नवगठित टिपरा मोथा पार्टी भी कांग्रेस और माकपा के साथ इस त्रिगुट में शामिल हो गई है. बता दें सूबे में नई नवेली टिपरा मोथा पार्टी अपने गठन के कुछ ही माह के अंदर स्वायत्त जिला परिषद चुनावों में जीत दर्ज करने में कामयाब रही है. इस पार्टी के गठबंधन में शामिल होने से माकपा-कांग्रेस-टिपरा मोथा का महा गठबंधन भाजपा के समक्ष काफी मजबूत लग रहा है.
सत्ताधारी भाजपा को हराने के लिए तीनों पार्टियां सीटों की बंटवारे की रणनीति को तैयार कर रहे हैं. इसमें ज्यादा मतभेद होने की आशंका न के बराबर है. यहां मुख्यमंत्री कोई भी बने लेकिन कांग्रेस का लक्ष्य आगामी चुनाव में केवल और केवल भाजपा को हराना है. वहीं इस त्रिगुट को कमजोर कर रही है ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस पार्टी. ममता ने पहले ही स्पष्ट कर दिया हे कि टीएमसी त्रिपुरा में होने वाले आगामी विधानसभा चुनाव में अकेले ही लड़ेगी. ऐसे में टीएमसी इस त्रिगुट के वोटों में सेंध लगाने का काम करने वाली है, जो कांग्रेस के लिए परेशानी का काम करेगी.
यहां गौर करने वाली बात ये भी है कि त्रिपुरा से पहले बंगाल के 2021 और 2016 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और वामदलों के मोर्चे का ममता बनर्जी के खिलाफ चुनावी गठबंधन हुआ था, मगर दोनों चुनावों में तृणमूल कांग्रेस इनके साझे गठबंधन पर भारी पड़ी. प्रयोग नाकाम होने के बावजूद कांग्रेस पार्टी ने त्रिपुरा में वामपंथी दलों और राज्य की जनजातीय पार्टी टिपरा मोथा के साथ चुनावी तालमेल कर आगे बढ़ने का फैसला किया है.
वहीं बात करें त्रिगुट के बीच सीटों के बंटवारे की तो 60 सदस्यीय वाली त्रिपुरा विधानसभा में कांग्रेस की कोशिश बराबर सीटें लेने की रहेगी, मगर शुरुआती संकेतों से साफ है कि माकपा इस गठबंधन की सीनियर पार्टनर की भूमिका में रहेगी. तीनों के बीच सीट बंटवारे पर सहमति बनने के बाद कांग्रेस-माकपा और जनजातीय दलों के मंच का संयुक्त रूप से चुनाव मैदान में उतरना भाजपा के लिए सशक्त चुनौती मानी जा रही है.
वैसे पिछले चुनाव में मिले वोट प्रतिशत को ध्यान में रखकर देखा जाए तो इस बार कांग्रेस और सीपीएम गठबंधन मजबूत स्थिति में है, बशर्ते वे पिछले चुनाव में मिले वोट प्रतिशत को बरकरार रख पाएं तो यह भाजपा के लिए मुश्किलें पैदा हो सकती हैं. पिछली बार के चुनाव में भाजपा को 43.5 वोट मिले थे जबकि सीपीएम औऱ कांग्रेस को सयंक्त रूप से लगभग 44 प्रतिशत, जोकि भाजपा के वोटों से .5 प्रतिशत ज्यादा है.
भाजपा और सीपीएम के वोट प्रतिशत में महज 1.25 प्रतिशत मामुली अंतर है. किसी भी दल को पूर्ण बहुमत न मिलने की स्थिति में पिछले चुनाव में तीसरे नंबर पर रही इंडिजेनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा, जिसे 7.38वोट मिले थे, इस बार के चुनाव में गेम चेंजर की भूमिका निभा सकती है. ऐसे में लंबे अर्से तक वामपंथी शासन का गढ़ रहे त्रिपुरा में सत्ताधारी भाजपा पार्टी के लिए अपनी सत्ता बचाने की राह आसान नहीं रहेगी.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.