तमिलनाडु के आरके नगर विधानसभा उपचुनाव में मौजूदा एआईएडीएमके सरकार को हार का मुहं देखना पड़ा है. जयललिता की दोस्त शशिकला के भतीजे टीटीवी दिनाकरन बतौर निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव जीत गए हैं, जबकि विपक्षी डीएमके न सिर्फ तीसरे स्थान पर रही, बल्कि उसके उम्मीदवार को जमानत राशि भी गंवानी पड़ी है.
जयललिता के निधन से खाली हुई आरके नगर सीट पर अप्रैल में उपचुनाव होना था, लेकिन वोट के बदले नोट की शिकायतों के बाद चुनाव आयोग ने उसे रद्द कर दिया था. इस बार भी ऐसी शिकायतें मिली थीं, जिसके बाद चुनाव आयोग ने वहां के संयुक्त पुलिस आयुक्त को हटा दिया था.
दिनाकरन की मजबूत होती दावेदारी
सुप्रीम कोर्ट से सजा होने के बाद शशिकला ने पार्टी की बागडोर अपने भतीजे टीटीवी दिनाकरन को सौंपी थी. शशिकला ने मुख्यमंत्री तो पहले ही अपनी पसंद का (ई पलानीसामी) बना दिया था. बाद में शशिकला के विरोधी खेमे जिसका नेतृत्व पूर्व मुख्यमंत्री ओ पनीरसेल्वम कर रहे थे, पलानीसामी गुट से समझौता कर सरकार में डिप्टी सीएम बन गए. आपस में मिल जाने के बाद दोनों गुटों ने दिनाकरन को बाहर का रास्ता दिखा दिया.
बीच में दिनाकरन कई विधायकों के अपने समर्थन में होने का दावा करते रहे और पलानीसामी की सरकार को चुनौती देने के लिए अदालत का भी दरवाजा खटखटाया, लेकिन बात नहीं बनी. ऐसे में दिनाकरन के पास जयललिता की विरासत पर दावेदारी का एक मात्र रास्ता बचा था - आरके नगर सीट से चुनाव में जीत, जिसे उन्होंने हासिल कर लिया.
वैसे तो महज एक विधानसभा सीट पूरे सूबे की प्रतिनिधि नहीं हो सकती, लेकिन आरके नगर की वीआईपी सीट पर दिनाकरन की जीत प्रतीकात्मक ही सही नैतिक रूप से तो बड़ी जीत है.
चुनाव को लेकर कोई ईवीएम पर तो कोई किसी और...
तमिलनाडु के आरके नगर विधानसभा उपचुनाव में मौजूदा एआईएडीएमके सरकार को हार का मुहं देखना पड़ा है. जयललिता की दोस्त शशिकला के भतीजे टीटीवी दिनाकरन बतौर निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव जीत गए हैं, जबकि विपक्षी डीएमके न सिर्फ तीसरे स्थान पर रही, बल्कि उसके उम्मीदवार को जमानत राशि भी गंवानी पड़ी है.
जयललिता के निधन से खाली हुई आरके नगर सीट पर अप्रैल में उपचुनाव होना था, लेकिन वोट के बदले नोट की शिकायतों के बाद चुनाव आयोग ने उसे रद्द कर दिया था. इस बार भी ऐसी शिकायतें मिली थीं, जिसके बाद चुनाव आयोग ने वहां के संयुक्त पुलिस आयुक्त को हटा दिया था.
दिनाकरन की मजबूत होती दावेदारी
सुप्रीम कोर्ट से सजा होने के बाद शशिकला ने पार्टी की बागडोर अपने भतीजे टीटीवी दिनाकरन को सौंपी थी. शशिकला ने मुख्यमंत्री तो पहले ही अपनी पसंद का (ई पलानीसामी) बना दिया था. बाद में शशिकला के विरोधी खेमे जिसका नेतृत्व पूर्व मुख्यमंत्री ओ पनीरसेल्वम कर रहे थे, पलानीसामी गुट से समझौता कर सरकार में डिप्टी सीएम बन गए. आपस में मिल जाने के बाद दोनों गुटों ने दिनाकरन को बाहर का रास्ता दिखा दिया.
बीच में दिनाकरन कई विधायकों के अपने समर्थन में होने का दावा करते रहे और पलानीसामी की सरकार को चुनौती देने के लिए अदालत का भी दरवाजा खटखटाया, लेकिन बात नहीं बनी. ऐसे में दिनाकरन के पास जयललिता की विरासत पर दावेदारी का एक मात्र रास्ता बचा था - आरके नगर सीट से चुनाव में जीत, जिसे उन्होंने हासिल कर लिया.
वैसे तो महज एक विधानसभा सीट पूरे सूबे की प्रतिनिधि नहीं हो सकती, लेकिन आरके नगर की वीआईपी सीट पर दिनाकरन की जीत प्रतीकात्मक ही सही नैतिक रूप से तो बड़ी जीत है.
चुनाव को लेकर कोई ईवीएम पर तो कोई किसी और बात पर चाहे तो सवाल उठा सकता है, लेकिन फिलहाल तो असली बात यही है कि दिनाकरन जीत गए हैं - और सत्ताधारी गुट को मुहं की खानी पड़ी है. रही बात विपक्ष की तो वो तो दूर-दूर तक कहीं नजर नहीं आ रहा है.
पलानीसामी सरकार की बढ़ेगी मुश्किल
आरके नगर चुनाव को लेकर मुख्य तौर पर तीन बातें देखने को मिलीं. एक, मतदाताओं पर वोट के बदले रिश्वत देने के आरोप लगे. दूसरा, जयललिता के अस्पताल में रहने के वक्त का एक वीडियो सामने आया और तीसरा, चुनाव के दिन ही 2G मामले में फैसला आया.
जयललिता के वीडियो का मकसद दिनाकरन के प्रति लोगों की सहानुभूति बटोरना रहा- और 2G में बरी होने के बाद लोगों में मैसेज जाने पर डीएमके के पक्ष में माहौल बन सकता था. देखा जाए तो 2G के फैसले से डीएमके को कोई भी फायदा नहीं हुआ. लगता है दिनाकरन को जयललिता के वीडियो का फायदा जरूर मिल गया.
मुमकिन है दिनाकरन को एआईएडीएमके की आपसी खींचतान का भी फायदा मिला हो. मधुसूदनन सत्ताधारी पार्टी के उम्मीदवार जरूर थे लेकिन पनीरसेल्वम कैंप के होने को चलते वो पलानीसामी की पसंद तो कतई नहीं थे. दरअसल, पलानीसामी एन बलनगंगा को चुनाव लड़ाना चाहते थे, लेकिन बात नहीं बन पाई. समझा जा सकता है अगर मधुसूदनन जीत जाते तो पनीरसेल्वम ही मजबूत होते और फिर भारी पड़ते. ऐसे में पलानीसामी ने उपचुनाव जीतने की जगह दूसरी चुनौतियों से दो चार होना बेहतर समझा होगा. खैर, अब पलानीसामी की मुश्किलें बढ़नी लाजिमी हो गई हैं.
दिनाकरन शुरू से ही कहते आ रहे थे कि वो निर्दलीय जरूर हैं, लेकिन मैदान में एआईएडीएमके के कार्यकर्ता - और 'अम्मा' का आशीर्वाद उनके साथ है. काउंटिंग के वक्त जैसे ही दिनाकरन ने बढ़त बनाई - जोर शोर से कहने लगे कि अम्मा के असली वारिस वही हैं और ये भी ऐलान कर दिया कि राज्य की पलानीसामी सरकार तीन महीने में गिर जाएगी. क्या वास्तव में ऐसा हो सकता है? एआईएडीएमके की आपसी खींचतान को देखते हुए ये नामुमकिन भी नहीं लगता!
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