नूपुर शर्मा के बयान का कथित समर्थन करने पर हुए उदयपुर हत्याकांड पर पूरा देश नाराजगी जाहिर कर रहा है. इन सबके बीच उदयपुर हत्याकांड पर साउथ एक्ट्रेस प्रणीता सुभाष ने अपना विरोध दर्ज कराया है. प्रणीता सुभाष ने सोशल मीडिया पर 'हिंदू लाइव्स मैटर' की तख्ती थामे एक तस्वीर शेयर करते हुए लिखा है कि 'क्या कोई सुन रहा है?' वैसे, प्रणीता सुभाष का ये ट्वीट भारत के बहुसंख्यक हिंदू समाज के गाल पर एक तमाचे की तरह है. क्योंकि, जिस समय उदयपुर में दो मुस्लिम जिहादी कन्हैया लाल का गला रेतने में जुटे थे. आसपास मौजूद सभी लोग दहशत की वजह से अपनी जान बचाकर भाग गए थे. शायद उदयपुर के उस बाजार में कुछ सौ लोग तो होंगे ही. लेकिन, एक अकेले ईश्वर सिंह को छोड़कर किसी में हिम्मत नहीं हुई कि वह इन मुस्लिम कट्टरपंथियों की तलवार का सामना कर सके.
इस बात में कोई दो राय नहीं है कि ईश्वर सिंह ने बहुत बहादुरी से इन जिहादी मुस्लिमों का सामना किया. लेकिन, कन्हैया लाल की ही दुकान में कारीगर रहे ईश्वर सिंह के पास इसके अलावा रास्ता भी क्या था? आखिर में ईश्वर सिंह को भी अपनी जान बचाने के लिए पड़ोस की दुकान में ही शरण लेनी पड़ी. आसान शब्दों में कहा जाए, तो इन मुस्लिम जिहादियों ने भेड़ियों की तरह कन्हैया लाल पर हमला किया. और, इस हमले ने उस बाजार में मौजूद सभी लोगों को भेड़ों के समूह में बदल दिया. जो अपनी ही जान बचाने के लिए भागने लगे. और, ऐसा क्यों हुआ इसकी वजह भी प्रणीता सुभाष ने बता ही दी है. अपने एक अन्य ट्वीट में प्रणीता सुभाष ने लिखा है कि 'काश मैंने उदयपुर का वीडियो नहीं देखा होता. सच में यह आतंक है. पीछे से सुनाई देने वाली ये चीखें हमारे दिमाग में गूंजेंगी और लंबे समय तक हमें परेशान करेंगी.'
नूपुर शर्मा के बयान का कथित समर्थन करने पर हुए उदयपुर हत्याकांड पर पूरा देश नाराजगी जाहिर कर रहा है. इन सबके बीच उदयपुर हत्याकांड पर साउथ एक्ट्रेस प्रणीता सुभाष ने अपना विरोध दर्ज कराया है. प्रणीता सुभाष ने सोशल मीडिया पर 'हिंदू लाइव्स मैटर' की तख्ती थामे एक तस्वीर शेयर करते हुए लिखा है कि 'क्या कोई सुन रहा है?' वैसे, प्रणीता सुभाष का ये ट्वीट भारत के बहुसंख्यक हिंदू समाज के गाल पर एक तमाचे की तरह है. क्योंकि, जिस समय उदयपुर में दो मुस्लिम जिहादी कन्हैया लाल का गला रेतने में जुटे थे. आसपास मौजूद सभी लोग दहशत की वजह से अपनी जान बचाकर भाग गए थे. शायद उदयपुर के उस बाजार में कुछ सौ लोग तो होंगे ही. लेकिन, एक अकेले ईश्वर सिंह को छोड़कर किसी में हिम्मत नहीं हुई कि वह इन मुस्लिम कट्टरपंथियों की तलवार का सामना कर सके.
इस बात में कोई दो राय नहीं है कि ईश्वर सिंह ने बहुत बहादुरी से इन जिहादी मुस्लिमों का सामना किया. लेकिन, कन्हैया लाल की ही दुकान में कारीगर रहे ईश्वर सिंह के पास इसके अलावा रास्ता भी क्या था? आखिर में ईश्वर सिंह को भी अपनी जान बचाने के लिए पड़ोस की दुकान में ही शरण लेनी पड़ी. आसान शब्दों में कहा जाए, तो इन मुस्लिम जिहादियों ने भेड़ियों की तरह कन्हैया लाल पर हमला किया. और, इस हमले ने उस बाजार में मौजूद सभी लोगों को भेड़ों के समूह में बदल दिया. जो अपनी ही जान बचाने के लिए भागने लगे. और, ऐसा क्यों हुआ इसकी वजह भी प्रणीता सुभाष ने बता ही दी है. अपने एक अन्य ट्वीट में प्रणीता सुभाष ने लिखा है कि 'काश मैंने उदयपुर का वीडियो नहीं देखा होता. सच में यह आतंक है. पीछे से सुनाई देने वाली ये चीखें हमारे दिमाग में गूंजेंगी और लंबे समय तक हमें परेशान करेंगी.'
हिंदू धर्म की सहिष्णुता ने बना दिया 'भेड़'
दरअसल, मुस्लिम कट्टरपंथी जिस क्रूरता के साथ अपनी ताकत का प्रदर्शन करते हैं. वो सबके लिए एक मिसाल की तरह बन जाता है. जबकि, हिंदू धर्म को सहिष्णु, शांतिपूर्ण और अहिंसा का रास्ता अपनाने वाला माना जाता है. इस सहिष्णुता के चलते बहुसंख्यक हिंदू समाज भेड़ों का वह समूह बन चुका है. जो किसी भेड़िये के आते ही सबसे पहले अपनी जान बचाने को भागता है. इंडिया टुडे से बातचीत में प्रणीता सुभाष कहती हैं कि 'कश्मीर में होने वाली हिंदुओं की हत्याओं पर बहुसंख्यक आबादी आतंकवाद और अल्पसंख्यक हिंदू जैसी चीजों के चलते खुद को सांत्वना दे देती है. लेकिन, राजस्थान जैसे राज्य में जहां हिदू बहुसंख्यक हों. वहां कन्हैया लाल की गर्दन रेत दी जाती है. केवल अपनी शक्ति का प्रदर्शन करने के लिए.' कहना गलत नहीं होगा कि खुलेआम और दिनदहाड़े गला रेतकर हत्या करने से ये मुस्लिम जिहादी भारत में भेड़ की तरह प्रतिक्रिया करने वाले हिंदू समाज में दहशत को एक स्तर और ऊंचाई पर ले जाते हैं.
मुस्लिम नहीं हिंदू समाज में है डर
तालिबानी तरीके से हत्याकांड को अंजाम दिए जाने की अब तक दर्जनों घटनाएं पूरे देश में हो चुकी हैं. लेकिन, हिंदू समाज को ये दिखाई ही नहीं पड़ती हैं. क्योंकि, उस पर 80 फीसदी आबादी के साथ बहुसंख्यक होने का टैग जुड़ा हुआ है. जबकि, तमाम हत्याकांडों को देखा जाए, तो ये साफ है कि भारत में बहुसंख्यक हिंदू समाज ही डरा हुआ रहता है. हिंदुओं को इस बात की फिक्र रहती है कि कहीं किसी घटना पर उसके विरोध जताने से अल्पसंख्यकों की भावनाएं न आहत हो जाएं. वैसे भी किसी तरह के विरोध-प्रदर्शन पर हिंदुओं के खिलाफ चलने वाले सोशल मीडिया कैंपेन से लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चलने वाले वैचारिक युद्ध को समर्थन देने वाला भी तो कोई नहीं है.
कहना गलत नहीं होगा कि कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक होने वाली हिंदुओं की हत्याओं को बहुसंख्यक आबादी इन्हीं वजहों से सेकुलरिज्म के नाम पर तिलांजलि दे देती है. लेकिन, सेकुलरिज्म के नाम पर किया जाने वाला ये ढोंग इस्लाम में नजर नहीं आता है. बल्कि, ऐसे मामलों पर पूरी दुनिया के मुसलमानों का एक वर्ग इस्लामोफोबिया जैसे टर्म की आड़ ले लेता है. प्रणीता सुभाष कहती हैं कि 'अगर नूपुर शर्मा के मामले पर हो रही राजनीति को किनारे रख दिया जाए. तो, ये जो कुछ भी हुआ है, वह एक कथित ईशनिंदा के मामले में किया गया है. और, इस हत्याकांड को खुद को सही साबित करार देने के लिए अंजाम दिया गया है.'
भारत में ईशनिंदा पर हत्या नई बात नहीं
प्रणीता सुभाष ने सेलेक्टिव विरोध को लेकर भी अपनी बात खुलकर रखी. प्रणीता ने कहा कि 'एक ओर हिंदू हैं, जो हर मामले पर आपको सहिष्णु नजर आते हैं. जब लोग शिवलिंग का मजाक उड़ा रहे थे. हिंदू शांत थे. और, मजाक उड़ाने वालों में जर्नलिज्म का एक्सीलेंस अवार्ड पाने वाली भी शामिल थीं. लेकिन, किसी ने जब इस पर सवाल खड़ा किया. तो, अपनी बात को सही साबित करने के लिए हत्या कर दी जाती है. जबकि, उस शख्स ने ईशनिंदा की भी नहीं थी. ये बताता है कि हिंदू धर्म कितना सहिष्णु है. और, अन्य धर्म कैसे हैं?' वैसे, नूपुर शर्मा मामले में काफी हद तक सेलेक्टिव विरोध ही दिखा. जबकि, उसी दौरान कई लोगों को केवल नूपुर शर्मा का समर्थन करने भर के लिए जेलों में डाल दिया गया. उदयपुर में मारे गए कन्हैया लाल भी ऐसे ही लोगों का हिस्सा थे. क्या जेल में बंद इन लोगों को जमानत पर बाहर आने के बाद सुरक्षा की जरूरत नहीं पड़ेगी? क्योंकि, गुस्ताख-ए-रसूल की सजा तो पहले से ही मुकर्रर है. और, कमलेश तिवारी को भी जेल से बाहर आने के कई महीनों बाद ही सही, लेकिन सजा दी गई थी.
प्रणीता ने उदयपुर हत्याकांड पर गुस्सा जाहिर करते हुए कहा कि 'दो दिनों तक सोशल मीडिया पर हैशटैग ट्रेंड करेंगे. भाजपा इसके समर्थन में आएगी. लेकिन, कुछ दिनों बाद बहुसंख्यक हिंदू आबादी इस घटना को भी भूल जाएगी. इसका कोई हल नहीं निकलेगा. कुछ दिनों बाद फिर किसी निर्दोष की हत्या पर ऐसे ही मामला उठेगा.' देखा जाए, तो प्रणीता की बातें सही ही नजर आती हैं. क्योंकि, इस्लाम के नाम पर किया जा रहा कत्लेआम आज से नहीं 1400 साल पहले से ही जारी है. वैसे, बीते महीने ही हैदराबाद में सरेराह एक हिंदू दलित की हत्या चाकुओं से गोदकर कर दी जाती है. मामला ऑनर किलिंग का बताया जाता है. लेकिन, इस हत्याकांड के पीछे की अहम वजह धर्म ही था. दलित शख्स को एक मुस्लिम युवती से शादी करने की सजा दी गई. और, कन्हैया लाल की तरह ही उस हिंदू दलित को भी कत्ल कर दिया गया. लेकिन, इस मामले को ऑनर किलिंग माना गया. जबकि, असल में यह इस्लाम की उस जिहादी मानसिकता का ही नमूना था. जो उस दौरान वहां मौजूद भीड़ को भेड़ों के झुंड में बदलने के लिए लगातार अपने काम में लगी रहती है.
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