दोस्ती में मजाक भी खूब चलता है - और उद्धव ठाकरे (ddhav Thackarey) ने भी बीजेपी नेता राव साहब दानवे (Rao Saheb Danave) को लेकर अपने बयान को मजाक बता दिया है, लेकिन उनका मजाक बताना भी डिस्क्लेमर जैसा लग रहा है. ऐसा लग रहा है जैसे उद्धव ठाकरे बचाव के लिए किसी व्यावहारिक रास्ते के तकनीकी लूप-होल की मदद ले रहे हों.
दोस्ती जब दुश्मनी में बदल जाती है तो मजाक की बातें, मजाक न होकर मैसेज का शक्ल अख्तियार कर लेती हैं. शिवसेना और बीजेपी के मौजूदा रिश्तों के बीच उद्धव ठाकरे की बातें ऐसी ही लगती हैं.
बीजेपी को भूत और भविष्य के दोस्त के तौर पर पेश करने के उद्धव ठाकरे के अंदाज को बहुत ज्यादा तूल भी नहीं दिया जाता - अगर ठीक एक दिन पहले के महाराष्ट्र बीजेपी अध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल की बातों को शिवसेना नेतृत्व आगे बढ़ाते हुए नजर नहीं आता.
उद्धव ठाकरे से ठीक एक दिन पहले ही चंद्रकांत पाटिल (Chandrakant Patil) ने एक बड़ा शिगूफा छोड़ा था - '... दो तीन दिन में देखो'. अंदाज तो चंद्रकांत पाटिल का भी मजाकिया ही था, लेकिन बात नहीं. बात बहुत गंभीर थी. करीब करीब उतनी ही गंभीर जितनी उद्धव ठाकरे ने कही थी और फिर उसे मजाक बता दिया - आखिर उद्धव ठाकरे इतने गंभीर मजाक क्यों करने लगे हैं? आखिर क्या गम है जो हंसी-मजाक के पीछे छुपा रहे हैं?
ये दोस्ती - क्या गुल खिलाने वाली है?
औरंगाबाद के एक कार्यक्रम में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और रेल राज्य मंत्री राव साहेब दानवे के बीच चला हंसी-मजाक का दौर एक साथ कई इशारे कर रहा है - और ये सिर्फ शिवसेना और बीजेपी के रिश्ते तक ही सिमटा हुआ नहीं लगता.
शिवसेना नेतृत्व और महाराष्ट्र से मोदी कैबिनेट में शामिल सीनियर मराठा बीजेपी नेता के बीच खुशनुमा माहौल में हुई बातचीत और भी इशारे कर रही - और एक इशारा ये है कि गुजरे...
दोस्ती में मजाक भी खूब चलता है - और उद्धव ठाकरे (ddhav Thackarey) ने भी बीजेपी नेता राव साहब दानवे (Rao Saheb Danave) को लेकर अपने बयान को मजाक बता दिया है, लेकिन उनका मजाक बताना भी डिस्क्लेमर जैसा लग रहा है. ऐसा लग रहा है जैसे उद्धव ठाकरे बचाव के लिए किसी व्यावहारिक रास्ते के तकनीकी लूप-होल की मदद ले रहे हों.
दोस्ती जब दुश्मनी में बदल जाती है तो मजाक की बातें, मजाक न होकर मैसेज का शक्ल अख्तियार कर लेती हैं. शिवसेना और बीजेपी के मौजूदा रिश्तों के बीच उद्धव ठाकरे की बातें ऐसी ही लगती हैं.
बीजेपी को भूत और भविष्य के दोस्त के तौर पर पेश करने के उद्धव ठाकरे के अंदाज को बहुत ज्यादा तूल भी नहीं दिया जाता - अगर ठीक एक दिन पहले के महाराष्ट्र बीजेपी अध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल की बातों को शिवसेना नेतृत्व आगे बढ़ाते हुए नजर नहीं आता.
उद्धव ठाकरे से ठीक एक दिन पहले ही चंद्रकांत पाटिल (Chandrakant Patil) ने एक बड़ा शिगूफा छोड़ा था - '... दो तीन दिन में देखो'. अंदाज तो चंद्रकांत पाटिल का भी मजाकिया ही था, लेकिन बात नहीं. बात बहुत गंभीर थी. करीब करीब उतनी ही गंभीर जितनी उद्धव ठाकरे ने कही थी और फिर उसे मजाक बता दिया - आखिर उद्धव ठाकरे इतने गंभीर मजाक क्यों करने लगे हैं? आखिर क्या गम है जो हंसी-मजाक के पीछे छुपा रहे हैं?
ये दोस्ती - क्या गुल खिलाने वाली है?
औरंगाबाद के एक कार्यक्रम में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और रेल राज्य मंत्री राव साहेब दानवे के बीच चला हंसी-मजाक का दौर एक साथ कई इशारे कर रहा है - और ये सिर्फ शिवसेना और बीजेपी के रिश्ते तक ही सिमटा हुआ नहीं लगता.
शिवसेना नेतृत्व और महाराष्ट्र से मोदी कैबिनेट में शामिल सीनियर मराठा बीजेपी नेता के बीच खुशनुमा माहौल में हुई बातचीत और भी इशारे कर रही - और एक इशारा ये है कि गुजरे जमाने के गठबंधन साथियों के बीच टकराव की वजह बना नारायण राणे प्रकरण करीब करीब खत्म हो चुका है.
राव साहेब दानवे के रेल राज्य मंत्री होने के कारण ही उद्धव ठाकरे ने अपनी बात भी उसी भाषा में समझाने की कोशिश की. बोले, 'मुझे एक कारण से रेलवे पसंद है... आप ट्रैक नहीं छोड़ सकते और दिशा नहीं बदल सकते... हां, लेकिन अगर कोई डायवर्जन हो तो आप हमारे स्टेशन पर आ सकते हैं - लेकिन इंजिन पटरियों को नहीं छोड़ता...'
अब इन बातों का मतलब तो साफ साफ यही समझ आता है कि शिवसेना और बीजेपी की राजनीति ट्रैक पर ही है और ट्रैक पर ही रहने वाली है. डायवर्जन को शिवसेना और बीजेपी के गठबंधन के टूटने की तरह समझ सकते हैं - और स्टेशन पर आने की बात को आमंत्रण के भाव से भी देखा जा सकता है.
क्या उद्धव ठाकरे ऐसा बोल कर बीजेपी को इंजिन और शिवसेना को पटरी बताने की कोशिश कर रहे हैं - मतलब, ये कि बीजेपी बेशक बड़ी राजनीतिक पार्टी हो, बीजेपी भले ही नेतृत्व के काबिल हो लेकिन जमीन या कहें कि महाराष्ट्र में शिवसेना नींव की तरह है जिस पर बीजेपी की राजनीति टिकी हुई है.
ऐसे भी समझ सकते हैं कि उद्धव ठाकरे ने बातों बातों में अपना मैसेज मंजिल तक पहुंचाने की कोशिश निश्चित रूप से की है. मान कर चलना चाहिये कि उद्धव ठाकरे के शब्दों के मतलब बीजेपी में भी हाई लेवल पर निकाले जा रहे होंगे.
उद्धव ठाकरे बुलेट ट्रेन के बहाने फिर से बीजेपी के सपोर्ट में खड़े होने का इशारा भी किया है. कार्यक्रम में उद्धव ठाकरे ये कहना क्या संकेत देता है - 'अगर मेरे राज्य की राजधानी (मुंबई) और उप-राजधानी (नागपुर) को जोड़ने वाली ट्रेन - मुंबई-नागपुर बुलेट ट्रेन शुरू होती है तो रावसाहेब, मैं आपसे वादा करता हूं, मैं आपके साथ हूं.'
मतलब, बस बुलेट ट्रेन चलने से बीजेपी और शिवसेना के बीच हर बिगड़ी बात बन जाएगी. पूरा किस्सा सुनाने से पहले ही, अपने संबोधन की शुरुआत ही उद्धव ठाकरे ने ऐसे किया जैसे दोस्ती का हाथ बढ़ा रहे हों. रावसाहेब दानवे का नाम लेते हुए उद्धव ठाकरे ने उनको "मेरे पूर्व मित्र - और अगर हम फिर से एक साथ आते हैं, तो भविष्य के मित्र" - बोल कर किसी शक शुबहे की गुंजाइश छोड़ी है क्या? भला ऐसे भी कोई मजाक करता है क्या?
एनसीपी नेता और गठबंधन सरकार में सबसे दमदार हिस्सेदार शरद पवार को ये सब तो जरा भी नहीं सुहा रहा होगा, लेकिन ज्यादा कुछ कर भी तो नहीं सकते.
सब एक जैसे मजाक क्यों करने लगे हैं?
उद्धव ठाकरे के मजाकिया अंदाज से ठीक एक दिन पहले एक कार्यक्रम में महाराष्ट्र बीजेपी अध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल का मिजाज भी वैसा ही देखा गया - और बात दूर तलक तब जाने लगी जब कार्यक्रम का वीडियो वायरल हो गया.
जिस अंदाज में चंद्रकांत पाटिल ने बात आगे बढ़ायी वो किसी संयोग जैसा नहीं बल्कि प्रयोग जैसा ही लगा. हुआ ये था कि कार्यक्रम के संचालक की तरफ से चंद्रकांत पाटिल के बारे में पूर्व मंत्री कह कर संबोधित किया जा रहा था - ऐसा कई बार होने पर चंद्रकांत पाटिल ने कार्यक्रम संचालक को आगाह करते हुए टोक दिया.
कार्यक्रम में संचालक को बीच में ही टोकते हुए चंद्रकांत पाटिल बोले, 'मुझे बार बार पूर्व मंत्री... पूर्व मंत्री न कहें... दो-तीन दिन में सब समझ में आ जाएगा.'
ये अंदाज भी तो मजाकिया ही लगता है, लेकिन चंद्रकांत पाटिल के ऐसा बोलने के 24 घंटे बाद ही उद्धव ठाकरे भी ठीक वैसे ही पेश आयें तो कैसे मान लिया जाये कि ये कोई प्रयोग नहीं बल्कि महज एक संयोग हो सकता है - दोनों नेताओं के बयानों के जो सियासी मायने निकाले जा सकते थे, निकाले जाने लगे.
जब उद्धव ठाकरे और चंद्रकांत पाटिल की बातों पर चर्चा होने लगे तो देवेंद्र फडणवीस के भी बोलने का हम बनता ही है. देवेंद्र फडणवीस भी कह देते हैं, 'राजनीति में कभी भी कुछ भी संभव है... उद्धव जी ने हमारे मन की बात कही है - ये सुनकर अच्छा लगा.'
देवेंद्र फडणवीस ने चंद्रकांत पाटिल की तरह दावा तो नहीं किया, लेकिन उद्धव ठाकरे की तरह अपनी बातों के साथ डिस्क्लेमर भी नहीं लगाया. बल्कि, हल्की सी सफाई देते हुए ही नजर आये, 'अच्छी बात है... राजनीति में कभी भी कुछ भी हो सकता है... भाजपा की भूमिका बहुत स्पष्ट है... हम सत्ता की ओर नहीं देख रहे हैं - हम एक सक्षम विपक्ष की भूमिका निभा रहे हैं.'
ऐसी बातें पहली बार नहीं हो रही हैं, लेकिन मजाक के नाम पर गंभीर जरूर लग रही हैं. कभी रामदास आठवले, तो कभी महाराष्ट्र बीजेपी का कोई और नेता - ऐसे जताने की कोशिश करता है जैसे महाराष्ट्र की गठबंधन सरकार बस कुछ ही दिनों की मेहमान है. फिर बाकी नेताओं की प्रतिक्रियाएं भी आनी शुरू हो जाती हैं. शिवसेना की तरफ से कोई बीजेपी से हाथ मिलाने की सलाह देता है, तो एनसीपी और कांग्रेस नेता दावा करने लगते हैं कि उद्धव सरकार पूरे पांच साल चलेगी.
नारायण राणे की गिरफ्तारी को लेकर बीजेपी नेतृत्व और शिवसेना सुप्रीमो में जबरदस्त टकराव देखने को मिला था. केंद्रीय मंत्री नारायण राणे की गिरफ्तारी के तत्काल बाद जेपी नड्डा को क्विक एक्शन मोड में आना पड़ा, हालांकि, महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने बीच का रास्ता निकाला और धीरे से निकल भी लिये. देवेंद्र फडणवीस ने थप्पड़ वाली बात का तो सपोर्ट नहीं किया, लेकिन गिरफ्तारी को गलत जरूर बताया था. हां, ये भी कहा था कि बीजेपी राणे के साथ है.
नारायण राणे की गिरफ्तारी जैसे गंभीर टकराव वाले एपिसोड के बाद बीजेपी और शिवसेना में नये सिरे से हंसी-मजाक का दौर शायद इसलिए भी शुरू हो सका है - क्योंकि ठाकरे की तरफ से राणे से बदला पूरा हो चुका है. राणे पिता पुत्र ने सुशांत सिंह केस की जांच पड़ताल के दौरान ठाकरे पिता-पुत्र के साथ जो व्यवहार किया था - नारायण राणे की गिरफ्तारी उसी गुस्से का सार्वजनिक इजहार थी. अब बात उससे आगे निकल चुकी लगती है.
मुमकिन है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ हुई उद्धव ठाकरे की मुलाकात में भी रिश्तों की डोर मजबूत न हो पायी हो, लेकिन उद्धव ठाकरे के मुख्यमंत्री बने रहने के लिए महाराष्ट्र विधान परिषद के चुनावों के लिए ग्रीन सिग्नल एक फोन कॉल के बाद दिखा, वो शिवसेना नेतृत्व के लिए कभी न भूलने वाली बात है - और रेलवे के किस्से में इंजिन और पटरी की जो कहानी उद्धव ठाकरे सुना रहे हैं, बैकग्राउंड म्युजिक उसी फोन कॉल की सुनी जा सकती है.
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