महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे (Maharashtra CM ddhav THackeray) की सरकार तो चल पड़ी है लेकिन धीरे धीरे कुछ वाकये ऐसे भी हो रहे हैं जिन पर सवाल उठने लगे हैं - और विवादों की वजह बनते जा रहे हैं. सीनियर अधिकारियों की एक मीटिंग में ठाकरे परिवार के रिश्तेदार (Varun Sardesai) की मौजूदगी को लेकर विवाद खड़ा हो गया है.
साथ ही महाविकास अघाड़ी सरकार (Maha Vikas Aghadi Government) में सहयोगी NCP नेता शरद पवार (Sharad Pawar) भी उद्धव ठाकरे पर दबाव बनाने लगे हैं, साथ ही, कांग्रेस (Congress) के नेता भी नयी नयी मांग करने लगे हैं - अब ये उद्धव ठाकरे पर निर्भर करता है कि वो कैसे इन सभी चुनौतियों पर काबू पाते हैं.
1. वरुण सरदेसाई का सरकारी बैठक में क्या काम
उद्धव ठाकरे के सत्ता संभालने के हफ्ते भर बाद ही एक सरकारी बैठक में ठाकरे परिवार के रिश्तेदार की मौजूदगी पर विवाद हो रहा है. सोशल मीडिया पर भी सवाल उठ रहे हैं कि मुख्यमंत्री के साथ सीनियर अफसरों की मीटिंग में वरुण सरदेसाई के मौजूद रहने का क्या मतलब है भला?
वरुण सरदेसाई, दरअसल, आदित्य ठाकरे के मौसेरे भाई हैं और शिवसेना के यूथ विंग युवा सेना के सचिव हैं. आदित्य ठाकरे के चुनाव कैंपेन में वरुण सरदेसाई को काफी एक्टिव देखा जा रहा था.
राज ठाकरे की पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना ने भी इस पर सवाल उठाया है - एक MNS नेता ने बैठक से जुड़ी तस्वीर पोस्ट की है.
हालांकि, महाविकास अघाड़ी में शिवसेना की सहयोगी पार्टी NCP की नजर में ये कोई बड़ी चूक नहीं है. नवाब मलिक का कहना है कि नई सरकार में प्रशासनिक अनुभव की कमी से ऐसा हुआ है लेकिन ऐसी घटनाएं दोहरायी नहीं जानी चाहिये.
2. शरद पवार क्यों बोले - हमें क्या मिला?
महाराष्ट्र में उद्धव सरकार की नींव रखने से लेकर अब तक एनसीपी नेता शरद पवार रिंग मास्टर बने हुए हैं - और मीडिया में बयान देकर भी दबाव बनाने में कामयाब हो रहे हैं.
सत्ता में भागीदारी के सवाल पर शरद पवार ने पलट कर खुद ही सवाल पूछ लिया - 'हमें क्या मिला?' समझा भी दिया - शिवसेना के पास मुख्यमंत्री है जबकि कांग्रेस के पास स्पीकर है, लेकिन मेरी पार्टी को क्या मिला? डिप्टी सीएम के पास कोई अधिकार तो होता नहीं. वो एक मंत्री ही होता है.
सियासत में जो मिला उससे संतोष होता कहां है?
वैसे शरद पवार के दबाव बनाने का असर ये होते लग रहा है कि अब महाराष्ट्र कैबिनेट में एनसीपी को 16, शिवसेना को 15 और कांग्रेस को 12 मंत्रालय मिलने वाले हैं - और डिप्टी सीएम भी एनसीपी नेता को ही बनाया जाएगा.
3. शिवसैनिक के मुख्यमंत्री बनने पर भी नाराजगी
उद्धव ठाकरे ने अपने पिता से किया गया वादा भले ही निभा लिया हो, लेकिन शिवसैनिक के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने के तरीके से शिवसेना कार्यकर्ता बहुत नाराज हैं. नाराजगी की मिसाल देखने को तब मिली जब मुंबई के धारावी में करीब 400 शिवसैनिकों ने पार्टी छोड़कर BJP की सदस्यता ग्रहण कर ली.
असल में ये कार्यकर्ता कांग्रेस और एनसीपी के साथ मिलकर उद्धव ठाकरे के सरकार बना लेने से नाराज थे. कार्यकर्ताओं का कहना है कि पिछले सात साल से वे एनसीपी और कांग्रेस के खिलाफ लड़ रहे थे. हाल के विधानसभा चुनाव में भी वे लोगों के घर-घर जाकर वोट मांगे थे लेकिन अब वे उनसे कैसे चेहरा मिला पाएंगे जिनसे उन्होंने ईमानदार सरकार बनाने के लिए वोट मांगे थे.
कार्यकर्ताओं के लिए ये बड़ी ही मुश्किल घड़ी होती है. बड़े नेता तो कैमरे के सामने हंसते-मुस्कुराते हाथ मिलाकर एक होने का ऐलान कर देते हैं, कीमत जमीनी कार्यकर्ताओं को चुकानी पड़ती है. वैसे नतीजे जरूरी नहीं कि एक से आयें - 2015 में बिहार में जेडीयू और आरजेडी कार्यकर्ताओं के सामने भी ऐसी ही मुश्किलें थीं - और 2019 में यूपी में सपा और बसपा कार्यकर्ताओं के सामने भी.
4. लोन पर सरकारी आदेश के लपेटे में पंकजा मुंडे भी
कई दिनों से पंकजा मुंडे के बीजेपी छोड़ कर शिवसेना में जाने की चर्चा रही - लेकिन उनके मान जाने से ये चर्चा बंद हो गयी है. वैसे उद्धव सरकार के एक ताजा फैसले के लपेटे में पंकजा मुंडे भी आ गयी हैं.
उद्धव ठाकरे कैबिनेट की एक मीटिंग में देवेंद्र फडणवीस सरकार की तरफ से चार बड़े नेताओं की चीनी मिलों को कर्ज के लिए दी गई गारंटी रद्द कर दी गयी है. फैसले की आंच पंकजा मुडे के अलावा विनय कोरे, धनंजय महाडिक और कांग्रेस नेता कल्याण काले से जुड़ी शुगर मिलों पर पड़ी है. फडणवीस सरकार ने नेशनल कोऑपरेटिव डेवेलपमेंट कॉर्पोरेशन से 135 करोड़ रुपये कर्ज देने के लिए बैंक गारंटी दी थी - ठाकरे सरकार ने इसे रद्द कर दिया है.
5. सफाई क्यों देनी पड़ रही है?
उद्धव ठाकरे के मुख्यमंत्री बनने के बाद खबर आई थी कि महाविकास अघाड़ी सरकार फडणवीस सरकार के बहुचर्चित बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट की समीक्षा का आदेश दिया गया है. साथ ही आरे के जंगलों को लेकर भी सरकारी आदेश की खबर रही क्योंकि चुनाव के दौरान शिवसेना नेतृत्व ने उसे लेकर वादा भी किया था.
ऐसी ही एक महत्वपूर्ण सरकारी बैठक के बाद जब उद्धव ठाकरे मीडिया के सामने आये तो साफ किया कि महाराष्ट्र में बुनियादी ढांचे की किसी भी प्रोजेक्ट को रोका नहीं गया है, सिर्फ आरे कॉलोनी में मेट्रो रेल कारशेड पर काम रोकने का आदेश दिया गया है. जब भी कोई नयी सरकार सत्ता संभालती है तो अपने हिसाब से पिछली सरकार के कामकाज की समीक्षा तो करती ही है, उसे चालू रखने और रोक लगाने के बारे में भी फैसला हो ही जरूरी तो नहीं - लेकिन सवाल ये है कि उद्धव ठाकरे को इस तरह सफाई देने की जरूरत क्यों पड़ रही है?
6. ये तो होता ही है
उद्धव ठाकरे सरकार में कैबिनेट कुल जमा छह मंत्रियों वाली है - और ऐसी ही एक बैठक के बारे में खबर है कि चार घंटे की जद्दोजहद के बाद भी कोई ठोस फैसला सामने नहीं आया. देवेंद्र फडणवीस सरकार ने 9 सितंबर की मंत्रिमंडल की बैठक में 34 फैसले लिये थे और इस मीटिंग में उन्हीं की समीक्षा हो रही थी.
मीटिंग के बारे में जानकारी देते हुए एकनाथ शिंदे ने बताया कि पिछले पांच साल में फडणवीस सरकार के कार्यकाल में जो आंदोलन हुए और उनमें आंदोलनकारियों के खिलाफ जो केस दर्ज किए गए वो केस वापस लेने फैसला लिया जा चुका है. जब मराठा आंदोलन करने वालों के खिलाफ दर्द मामलों को लेकर सवाल हुआ तो शिंदे ने कहा कि महाविकास अघाड़ी सरकार किसी के खिलाफ पूर्वाग्रह से ग्रस्त होकर कार्रवाई नहीं करेगी.
7. कांग्रेस-NCP दबाव बनाने ही लगे
उद्धव ठाकरे अपनी सेक्युलर सरकार की गाड़ी को रफ्तार पकड़ाने की कोशिश तो कर रहे हैं लेकिन अभी से कदम कदम पर स्पीड ब्रेकर सामने आने लगे हैं. कांग्रेस और NCP की ओर से ऐसी डिमांड रखी जाने लगी है जो ठाकरे राज के लिए मुसीबत का सबब देर सवेर बन सकती है.
कांग्रेस के राज्य सभा सांसद हुसैन दलवई ने नरेंद्र दाभोलकर मर्डर केस को लेकर हिेंदूवादी संगठन सनातन संस्था पर बैन लगाने की मांग कर चुके हैं. इतना ही नहीं, दलवई जनवरी, 2018 की हिंसा को लेकर संभाजी भिड़े सहित दो हिंदूवादी नेताओं को गिरफ्तार कर जेल भेजने की भी मांग कर रहे हैं.
एनसीपी के दो नेताओं जयंत पाटिल और धनंजय मुंडे तो मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के सामने भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले में आरोपियों के खिलाफ दर्ज मामले वापस लेने की मांग रख ही चुके हैं. वैसे एकनाथ शिंदे जिन फैसलों की बात कर रहे थे उनको लेकर ज्यादा जानकारी आने पर ही ठीक ठीक मालूम हो सकेगा - अभी तो यही लगता है कि सरकार एक्शन में आ चुकी है.
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के रूप में शिवसैनिक उद्धव ठाकरे की ताजपोशी की अगली सुबह सामना के संपादकीय में बड़े दिनों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ देखने को मिली थी. शिवसेना ने मोदी और उद्धव को भाई-भाई बताया और लिखा था - प्रधानमंत्री मोदी उद्धव के बड़े भाई हैं और अब उनकी जिम्मेदारी ज्यादा है. ये जिम्मेदारी महाराष्ट्र के सिलसिले में बतायी गयी थी.
बहरहाल, 10 दिन के भीतर ही दोनों भाइयों की मुलाकात की घड़ी भी आ गयी है. 7 दिसंबर को बतौर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे प्रधानमंत्री मोदी की पुणे में अगवानी करेंगे. प्रधानमंत्री मोदी पुलिस अफसरों के एक सम्मेलन में हिस्सा लेने पहुंच रहे हैं. वैसे प्रधानमंत्री मोदी से ठीक एक दिन पहले गृह मंत्री और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह भी उस सम्मेलन में शामिल हो रहे हैं - लेकिन उद्धव ठाकरे से मुलाकात होने को लेकर कोई सूचना नहीं है.
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