उद्धव ठाकरे (ddhav Thackeray) सरकार के साथ साथ शिवसेना के विधायकों को भी गंवा चुके हैं, फिर भी महाराष्ट्र में उनकी मुसीबतें खत्म नहीं हो सकी हैं. सत्ता परिवर्तन के बाद मुश्किलों का नया दौर शुरू होने जा रहा है - और ये सब राष्ट्रपति चुनाव के जरिये सामने आने वाला है.
पहले भी बाल ठाकरे के नाम पर ही शिवसेना में बगावत हुई. आगे के बगावत की रूप रेखा भी बाल ठाकरे के नाम पर ही बनायी जा रही नजर आती है - और ये भी दिलचस्प है कि एकनाथ शिंदे की टीम व्हिप के उल्लंघन को लेकर आदित्य ठाकरे (Aditya Thackeray) को बख्श देने की बात भी बाल ठाकरे के नाम पर ही कर रही है.
शिवसेना के एक सांसद ने उद्धव ठाकरे को सलाह दी है कि राष्ट्रपति चुनाव में वो एनडीए उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू का सपोर्ट करने का फैसला लें - क्योंकि ऐसा बाल ठाकरे भी कर चुके हैं. जैसे बाल ठाकरे राजनीतिक मतभेदों को किनारे रख कर राष्ट्रपति चुनाव में उम्मीदवार देख कर वोट देने का फैसला लेते रहे हैं, उद्धव ठाकरे से भी अब वैसी ही अपेक्षा की जा रही है.
जाहिर है ये सब उद्धव ठाकरे के खिलाफ चल रही साजिशों का ही हिस्सा है. उद्धव ठाकरे को गलत साबित कर शिवसेना सांसदों की बगावत को सही ठहराने की नये सिरे से कोशिश चल रही है - फिर तो उद्धव ठाकरे को भी मान कर चलना चाहिये कि अगर ऐसे सुझावों को नजरअंदाज करने की कोशिश किये तो नतीजा वैसा ही होगा जैसा विधायकों के मामले में देखने को मिला है.
ये तो है कि उद्धव ठाकरे भी ऐसी गतिविधियों से नावाकिफ नहीं हैं, लेकिन ऐसा भी नहीं लगता कि वो चीजों को दुरूस्त करने की कोई ठोस पहल या कोशिश कर रहे हों. ये भी सही है कि उद्धव ठाकरे के हाथ से बहुत कुछ छिन चुका है, लेकिन सच तो ये भी है कि अब भी उद्धव ठाकरे के हाथ में काफी कुछ है.
बचे खुचे ही सही, लेकिन जो भी लोग उद्धव ठाकरे के...
उद्धव ठाकरे (ddhav Thackeray) सरकार के साथ साथ शिवसेना के विधायकों को भी गंवा चुके हैं, फिर भी महाराष्ट्र में उनकी मुसीबतें खत्म नहीं हो सकी हैं. सत्ता परिवर्तन के बाद मुश्किलों का नया दौर शुरू होने जा रहा है - और ये सब राष्ट्रपति चुनाव के जरिये सामने आने वाला है.
पहले भी बाल ठाकरे के नाम पर ही शिवसेना में बगावत हुई. आगे के बगावत की रूप रेखा भी बाल ठाकरे के नाम पर ही बनायी जा रही नजर आती है - और ये भी दिलचस्प है कि एकनाथ शिंदे की टीम व्हिप के उल्लंघन को लेकर आदित्य ठाकरे (Aditya Thackeray) को बख्श देने की बात भी बाल ठाकरे के नाम पर ही कर रही है.
शिवसेना के एक सांसद ने उद्धव ठाकरे को सलाह दी है कि राष्ट्रपति चुनाव में वो एनडीए उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू का सपोर्ट करने का फैसला लें - क्योंकि ऐसा बाल ठाकरे भी कर चुके हैं. जैसे बाल ठाकरे राजनीतिक मतभेदों को किनारे रख कर राष्ट्रपति चुनाव में उम्मीदवार देख कर वोट देने का फैसला लेते रहे हैं, उद्धव ठाकरे से भी अब वैसी ही अपेक्षा की जा रही है.
जाहिर है ये सब उद्धव ठाकरे के खिलाफ चल रही साजिशों का ही हिस्सा है. उद्धव ठाकरे को गलत साबित कर शिवसेना सांसदों की बगावत को सही ठहराने की नये सिरे से कोशिश चल रही है - फिर तो उद्धव ठाकरे को भी मान कर चलना चाहिये कि अगर ऐसे सुझावों को नजरअंदाज करने की कोशिश किये तो नतीजा वैसा ही होगा जैसा विधायकों के मामले में देखने को मिला है.
ये तो है कि उद्धव ठाकरे भी ऐसी गतिविधियों से नावाकिफ नहीं हैं, लेकिन ऐसा भी नहीं लगता कि वो चीजों को दुरूस्त करने की कोई ठोस पहल या कोशिश कर रहे हों. ये भी सही है कि उद्धव ठाकरे के हाथ से बहुत कुछ छिन चुका है, लेकिन सच तो ये भी है कि अब भी उद्धव ठाकरे के हाथ में काफी कुछ है.
बचे खुचे ही सही, लेकिन जो भी लोग उद्धव ठाकरे के साथ बने हुए हैं, वे समझ नहीं पा रहे हैं कि करें तो क्या करें? ऐसे नेता उम्मीदों के साथ उद्धव ठाकरे की तरफ देख रहे हैं, लेकिन वो अपनी बेबसी ही ज्यादा प्रदर्शित कर रहे हैं. कहीं से भी ऐसा नहीं लग रहा है कि उद्धव ठाकरे अपनी चीजों को संभालने की जीतोड़ कोशिश कर रहे हों. एक्शन के नाम पर लोक सभा में चीफ व्हीप बदल दिया है, लेकिन जो हालात हैं उससे बहुत कुछ बदलने वाला तो है नहीं.
अब तो ऐसा लगने लगा है कि महाराष्ट्र की राजनीति में उद्धव ठाकरे की भी हालत राज ठाकरे (Raj Thackeray) जैसी ही होती जा रही है - और जिस तरीके से एकनाथ शिंदे ने विधायकों को साथ लेने के बाद उद्धव ठाकरे खेमे के विधायकों के खिलाफ जाल बिछाया है, उद्धव ठाकरे की शिवसेना में आदित्य ठाकरे के अलावा कोई और विधायक बचा नहीं लगता. ये हालत अभी न सही, लेकिन ऐसा होने में ज्यादा दिन दूर नहीं है.
उद्धव का अगला चैलेंज राष्ट्रपति चुनाव है
उद्धव ठाकरे की कश्ती जहां डूबी, वहां पानी कम था या ज्यादा अब तक पता नहीं लगा पाये हैं - और मुसीबतें हैं कि एक के बाद एक दस्तक दिये जा रही हैं. नयी मुसीबत राष्ट्रपति चुनाव के जरिये मातोश्री पहुंची है.
शिवसेना के ही एक सांसद राहुल शेवाले ने बाकायदा पत्र लिख कर उद्धव ठाकरे से मांग की है कि वो पार्टी सांसदों को एनडीए उम्मीदवार के पक्ष में वोट देने के लिए कहें - और ऐसा करने के पीछे बेहद सॉलिड लॉजिक भी दिया गया है.
द्रौपदी मुर्मू की उम्मीदवारी का समर्थन करते हुए राहुल शेवाले लिखते हैं, 'उनकी पृष्ठभूमि और सामाजिक क्षेत्र में योगदान पर विचार करते हुए मैं आपसे अनुरोध करता हूं कि द्रौपदी मुर्मू का समर्थन करने की घोषणा करें - और उसी के अनुसार सभी शिवसेना सांसदों को ऐसा करने का निर्देश दें.'
राहुल शेवाले ऐसा करने के पीछे शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे का ही हवाला दे रहे हैं. ये भी नहीं भूलना चाहिये कि उद्धव के खिलाफ अब तक जो कुछ हुआ है वो बाल ठाकरे की हिंदुत्व की राजनीति की दुहाई देकर ही किया गया है. ऐसा दावा पेश करने वाले शिवसेना विधायक और नेता खुद को ही बाल ठाकरे का असली राजनीतिक वारिस बता रहे हैं - महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे शिवसेना के ऐसे ही नेताओं के नेता बने हुए हैं.
उद्धव ठाकरे को राहुल शेवाले याद दिला रहे हैं कि कैसे एनडीए में रहते हुए भी बाल ठाकरे ने 2007 में प्रतिभा पाटिल के महाराष्ट्र से होने के नाते यूपीए के पक्ष में वोट दिया था - और 2012 में भी यूपीए के उम्मीदवार प्रणब मुखर्जी के प्रति समर्थन जताया था.
राहुल शेवाले का ये पत्र आग्रहयुक्त भले लग रहा हो, लेकिन असल में तो ये धमकीभरा पत्र ही है. अगर उद्धव ठाकरे उनकी बातें नहीं मानते तो वे लोग बाल ठाकरे की लाइन पर फिर से न चलने का इल्जाम लगा कर बगावत करेंगे. बेटे होने की वजह से आदित्य ठाकरे के रूप में उद्धव ठाकरे के पास एक विधायक तो बचा है, लेकिन सांसद बचेंगे या नहीं कोई भी अंदाजा नहीं लगता सकता. वैसे उद्धव ठाकरे ने इस बीच अपनी तरफ से एहतियाती एक्शन जरूर लिया है.
उद्धव ठाकरे ने शिवसेना सांसद भावना गवली की जगह राजन विचारे को चीफ व्हीप नियुक्त कर दिया है. ये यवतमाल-वाशिम से सांसद भावना गवली ही हैं जिन्होंने शिंदे की बगावत के बीच ही उद्धव ठाकरे को सुझाव दिया था कि वो बीजेपी से फिर से गठबंधन कर लें. कुछ दिन पहले ही उद्धव ठाकरे ने शिवसेना सांसदों की एक मीटिंग बुलायी थी, लेकिन भावना गवली नहीं पहुंची थीं.
उद्धव ठाकरे को लोक सभा में भी विधायकों जैसी ही चुनौती समझ में आ रही है. जैसे विधायकों की बगावत की अगुवाई एकनाथ शिंदे कर रहे थे, सांसदों का नेतृत्व उनके बेटे श्रीकांत शिंदे कर रहे हैं.
ये भगदड़ है कि रुकने का नाम ही नहीं ले रही
जिस आनंद दिघे का नाम कई बार एकनाथ शिंदे के मुंह से हाल फिलहाल कई बार सुना गया, उनको ठाणे का ठाकरे कहा जाता था. एकनाथ शिंदे असल में आनंद दिघे के ही शागिर्द हैं. आनंद दिघे के बताये राह पर चलते हुए ही एकनाथ शिंदे 1997 में पहली बार शिवसेना के पार्षद बने थे - और अब वही ठाणे एकनाथ शिंदे का गढ़ समझा जाने लगा है.
ठाणे महानगरपालिका में शिवसेना के 67 पार्षद हैं - और ताजा खबर ये है कि उनमें से 66 ने खुलेआम ऐलान करते हुए उद्धव ठाकरे को छोड़ कर एकनाथ शिंदे के साथ जाने का ऐलान कर दिया है - राष्ट्रपति चुनाव के दौरान सांसदों के साथ छोड़ने की आशंका से पहले उद्धव ठाकरे के लिए ये बहुत बड़ा अलर्ट है.
उद्धव ठाकरे वाली गठबंधन सरकार में मंत्री रह चुके गुलाब राव पाटिल के दावे तो और भी डराने वाले लगते हैं. भले ही संजय राउत उनको चाय-टपरीवाला बताते फिरें, लेकिन गुलाब राव पाटिल का दावा है कि शिवसेना के 16 सांसद अब एकनाथ शिंदे को नेता मानने लगे हैं.
मीडिया से बातचीत में गुलाब राव पाटिल पाटिल बताते हैं कि वो कई सांसदों से व्यक्तिगत तौर पर मिल भी चुके हैं. कहते हैं, 'हमारे पास 55 में से 40 विधायक हैं... 22 पूर्व विधायक भी हमारे साथ हैं.'
उद्धव ठाकरे की मुश्किल कुछ मीडिया रिपोर्ट से भी समझ में आती है. सूत्रों से बातचीत के आधार पर इंडियन एक्सप्रेस ने एक रिपोर्ट में लिखा है कि गुलाब राव पाटिल के दावे से कोई इनकार नहीं कर रहा है.
प्रेस कांफ्रेंस में उद्धव ठाकरे को टारगेट करते हुए, गुलाब राव पाटिल पूछते हैं, वे लोग किसके बूते पार्टी चला रहे थे? कहते हैं, 'जमीनी स्तर पर हम दिन रात बिना रुके और थके काम करते रहे... हमने पार्टी के लिए खून और पसीना लगाया, लेकिन शिवसैनिकों और कार्यकर्ताओं को पार्टी में हाशिये पर भेज दिया गया.'
मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे का भी दावा है कि संसद और कार्पोरेशन ही नहीं, , जिला परिषदों और ग्राम पंचायतों में ऐसे अनगिनत लोग हैं जो नाखुश हैं और वे लोग जल्दी ही फैसला लेने वाले हैं - ठाणे के 67 में से 66 पार्षदों का उद्धव ठाकरे से मुंह फेर लेना तो एकनाथ शिंदे के दावे की पुष्टि कर ही रहा है.
: महाराष्ट्र विधानसभा में हुए फ्लोर टेस्ट में एकनाथ शिंदे के पक्ष में 164 वोट पड़े थे, जबकि विपक्ष के हिस्से में 99 वोट ही आये थे. ध्यान देने वाली बात ये भी रही कि कांग्रेस और एनसीपी के कई विधायक फ्लोर टेस्ट में गैरहाजिर भी रहे.
कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण का रिएक्शन तो बड़ा ही मजेदार रहा. उनका कहना रहा कि शहर में ट्रैफिक के चलते उनको देर हो गयी और उनके पहुंचने के दो-तीन मिनट पहले ही विधानसभा के दरवाजे बंद कर दिये गये थे - और डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस ने तो गैरहाजिर विधायकों का शुक्रिया अदा कर रहस्य को और भी गहरा कर दिया.
मालूम हुआ कि फ्लोर टेस्ट के दौरान उद्धव ठाकरे गुट के 14 विधायकों ने एकनाथ शिंदे के खिलाफ वोटिंग की है, जिनमें आदित्य ठाकरे का नाम भी शामिल है. इसे लेकर 13 विधायकों को व्हिप का उल्लंघन करने को लेकर नोटिस दिया गया है. आदित्य ठाकरे को बाल ठाकरे के परिवार का बता कर छोड़ दिया गया है.
ये भी जरूरी नहीं कि नोटिस सदस्यता रद्द होने जैसे नतीजे तक पहुंचे भी. ये तो दबाव डाल कर अपने पक्ष में करने का तरीका भी हो सकता है. अगर ऐसे विधायक वास्तव में उद्धव ठाकरे के प्रति निष्ठावान होंगे तो अपनी सदस्यता गंवाएंगे - और अगर सदस्यता प्यारी होगी तो पाला बदल कर विधायक बने रहेंगे.
अगर ठीक ऐसा ही हुआ तो उद्धव ठाकरे की शिवसेना में विधायक के नाम पर एकमात्र आदित्य ठाकरे ही बच पाएंगे.
महाराष्ट्र विधानसभा में अभी राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के पास एक ही विधायक है - और शिवसेना विधायकों के पाला बदल लेने या सदस्यता रद्द हो जाने के बाद लगता है उद्धव ठाकरे के पास भी एक ही विधायक बच पाएगा - और वो कोई और नहीं बल्कि आदित्य ठाकरे ही होंगे.
हाथ पर हाथ धरे बैठे रहने पर तो ये सब होगा ही: हालत ये है कि अब भी उद्धव ठाकरे कैंप में समस्याओं को सही तरीके से सुलझाने की कोई भी कोशिश नहीं हो रही है - और इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट से तो ऐसा ही लगता है.
शिवसेना के एक सीनियर नेता ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा है, 'समस्या ये है कि हम अब तक ये मानने को तैयार ही नहीं हैं कि हमसे कोई गलती भी हुई है... जब तक हम आत्ममंथन नहीं करेंगे और ये जानने की कोशिश नहीं करेंगे कि हम अपने ही लोगों को साथ रखने में फेल क्यों हुए - हम सुधार कैसे करेंगे?'
शिवसेना नेता के मुताबिक, अब भी चीजों को ठीक करने की कोई कोशिश ही नहीं हो रही है - और ऐसी हालत में तो वही होगा जो मंजूर-ए-खुदा होगा.
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