महाराष्ट्र सियासी संकट के बीच सुप्रीम कोर्ट ने फ्लोर टेस्ट कराने का आदेश देकर उद्धव ठाकरे की राह मुश्किल कर दी थी. उन्होंने विधानसभा में अपनी बेइज्जती से बचने के लिए पहले ही इस्तीफा दे दिया. लेकिन, इससे पहले महाविकास आघाड़ी सरकार (MVA Government) की कैबिनेट बैठक में शिवसेना ने औरंगाबाद का नाम बदलकर संभाजीनगर और उस्मानाबाद को धाराशिव करने का प्रस्ताव पारित किया है. वैसे, उद्धव ठाकरे की ये कवायद महाविकास आघाड़ी सरकार को बचाने से ज्यादा शिवसेना के वोटबैंक को बचाने की कवायद नजर आ रही है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो औरंगाबाद को संभाजीनगर बनाकर उद्धव ठाकरे ने अपनी किरकिरी में चार चांद ही लगाए हैं.
अपनी बनाई 'जलेबी' में फंस गए उद्धव ठाकरे
शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने भाजपा के साथ मिलकर महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव लड़ा था. लेकिन, नतीजे आने के बाद शिवसेना का मुख्यमंत्री बनाने की जिद पकड़ ली. मुख्यमंत्री पद पर शिवसेना को काबिज कराने के लिए उद्धव ठाकरे ने भाजपा से किनारा कर कांग्रेस और एनसीपी के साथ गठबंधन की महाविकास आघाड़ी सरकार बना ली. भाजपा ने महाविकास आघाड़ी सरकार का खुलकर विरोध किया. पूर्व सीएम और भाजपा नेता देवेंद्र फडणवीस ने दावा किया था कि यह सरकार अपने ही अंर्तविरोध से गिर जाएगी. और, देखा जाए, तो एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में हुई बगावत इसी अंर्तविरोध का नतीजा है. क्योंकि, भाजपा के साथ मुखर होकर हिंदुत्व की राह पर चलती शिवसेना को उद्धव ठाकरे की एनसीपी और कांग्रेस के साथ बनाई गई इस 'जलेबी' की वजह से अचानक ही सेकुलर रुख अपनाना पड़ गया. हिंदुत्व को किनारे रख दिया जाए, तो भी जो शिवसेना लंबे समय तक एनसीपी और कांग्रेस का विरोध कर सत्ता में भागीदार बनी रही. उसने मुख्यमंत्री पद के लिए अपने ही मानकों से समझौता कर लिया.
महाराष्ट्र सियासी संकट के बीच सुप्रीम कोर्ट ने फ्लोर टेस्ट कराने का आदेश देकर उद्धव ठाकरे की राह मुश्किल कर दी थी. उन्होंने विधानसभा में अपनी बेइज्जती से बचने के लिए पहले ही इस्तीफा दे दिया. लेकिन, इससे पहले महाविकास आघाड़ी सरकार (MVA Government) की कैबिनेट बैठक में शिवसेना ने औरंगाबाद का नाम बदलकर संभाजीनगर और उस्मानाबाद को धाराशिव करने का प्रस्ताव पारित किया है. वैसे, उद्धव ठाकरे की ये कवायद महाविकास आघाड़ी सरकार को बचाने से ज्यादा शिवसेना के वोटबैंक को बचाने की कवायद नजर आ रही है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो औरंगाबाद को संभाजीनगर बनाकर उद्धव ठाकरे ने अपनी किरकिरी में चार चांद ही लगाए हैं.
अपनी बनाई 'जलेबी' में फंस गए उद्धव ठाकरे
शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने भाजपा के साथ मिलकर महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव लड़ा था. लेकिन, नतीजे आने के बाद शिवसेना का मुख्यमंत्री बनाने की जिद पकड़ ली. मुख्यमंत्री पद पर शिवसेना को काबिज कराने के लिए उद्धव ठाकरे ने भाजपा से किनारा कर कांग्रेस और एनसीपी के साथ गठबंधन की महाविकास आघाड़ी सरकार बना ली. भाजपा ने महाविकास आघाड़ी सरकार का खुलकर विरोध किया. पूर्व सीएम और भाजपा नेता देवेंद्र फडणवीस ने दावा किया था कि यह सरकार अपने ही अंर्तविरोध से गिर जाएगी. और, देखा जाए, तो एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में हुई बगावत इसी अंर्तविरोध का नतीजा है. क्योंकि, भाजपा के साथ मुखर होकर हिंदुत्व की राह पर चलती शिवसेना को उद्धव ठाकरे की एनसीपी और कांग्रेस के साथ बनाई गई इस 'जलेबी' की वजह से अचानक ही सेकुलर रुख अपनाना पड़ गया. हिंदुत्व को किनारे रख दिया जाए, तो भी जो शिवसेना लंबे समय तक एनसीपी और कांग्रेस का विरोध कर सत्ता में भागीदार बनी रही. उसने मुख्यमंत्री पद के लिए अपने ही मानकों से समझौता कर लिया.
मिमियाहट में बदली शिवसेना के 'बाघ' की दहाड़
बालासाहेब ठाकरे के दौर में हिंदुत्व से लेकर मराठाओं के स्वाभिमान तक के लिए खुलकर दहाड़ने वाला शिवसेना का 'बाघ' एनसीपी और कांग्रेस के साथ गठबंधन के साथ ही सेकुलर होता चला गया. और, इसकी वजह महाविकास आघाड़ी सरकार को बचाये रखने का दबाव था. शिवसेना हिंदुत्व या मराठी मानुष वाली विचारधारा को आगे बढ़ाने का कोई भी कदम उठाती तो, एनसीपी और कांग्रेस की ओर से घुड़की मिलते ही चुप बैठ जाती. आसान शब्दों में कहा जाए, तो उद्धव ठाकरे के सामने शिवसेना के साथ ही महाविकास आघाड़ी सरकार को भी बचाये रखने की दुविधा थी. जिसके चलते न चाहते हुए भी उद्धव ठाकरे कई मामलों पर ढाई साल की सरकार के दौरान चुप्पी ही साधे रहे. वैसे सवाल ये अहम है कि औरंगाबाद और उस्मानाबाद के नाम बदलने का प्रस्ताव पारित करने के बाद सीएम के तौर पर उद्धव ठाकरे को एनसीपी और कांग्रेस का आभार जताने की जरूरत क्यों पड़ी?
औरंगाबाद से लेकर वीर सावरकर का मामला दबा ही रहा
शिवसेना की लंबे समय से मांग रही है कि औरंगाबाद का नाम बदलकर संभाजीनगर किया जाए. लेकिन, ढाई साल की महाविकास आघाड़ी सरकार में उद्धव ठाकरे और शिवसेना की ओर से जब भी इस मांग को उठाया गया. तो, कांग्रेस ने इसका विरोध करते हुए कहा था कि भावनात्मक मुद्दों की जगह महाविकास आघाड़ी सरकार को राज्य के विकास के बारे में सोचना चाहिए. यहां बताना जरूरी है कि शिवसेना के दिग्गज नेता एकनाथ शिंदे के साथ बागी हुए सभी विधायकों लंबे समय से ऐसा किये जाने की मांग कर रहे थे. लेकिन, कांग्रेस और एनसीपी ने ऐसा नहीं होने दिया. लेकिन, जब महाविकास आघाड़ी सरकार पर खतरा मंडराने लगा, तो एनसीपी और कांग्रेस ने भी बागी विधायकों को खेमे में वापस लाने के लिए इस दांव पर अपनी मुहर लगा दी.
महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा और शिवसेना ने घोषणा पत्र में वीर सावरकर को 'भारत रत्न' देने का वादा किया था. महाविकास आघाड़ी सरकार के कार्यकाल के दौरान केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार की ओर से वीर सावरकर को 'भारत रत्न' दिए जाने की चर्चाओं ने जोर पकड़ा था. जिसका कांग्रेस ने विरोध किया था. इस मामले पर शिवसेना प्रवक्ता और सांसद संजय राउत ने कहा था कि वीर सावरकर को भारत देने का विरोध कर रहे लोगों को एक बार अंडमान निकोबार की सेलुलर जेल में डाल देना चाहिए. जिससे उन्हें वीर सावरकर होने का अहसास हो सके. इस बयान के बाद ही शिवसेना और कांग्रेस के बीच टकराव की स्थिति बन गई थी. मामले को ठंडा करने के लिए आदित्य ठाकरे ने संजय राउत की प्रतिक्रिया को उनका निजी बयान बताते हुए मुद्दों पर अलग विचारों को ही लोकतंत्र का हिस्सा बताया था.
उद्धव ठाकरे को अब क्या हासिल होगा?
वैसे, ढाई साल की महाविकास आघाड़ी सरकार में एनसीपी नेताओं के भ्रष्टाचार जैसे मामलों में फंसने और हिंदुत्व के मामले पर मुखर होते ही कांग्रेस के विरोध के चलते शिवसेना घुटनों पर आ चुकी थी. बालासाहेब ठाकरे के समय में जो शिवसेना विचारधारा या पार्टी का विरोध करने वालों को उठाकर बाहर करने के लिए जानी जाती थी. वो शिवसेना, उद्धव ठाकरे के सीएम बनने के बाद अपने ही बागी विधायकों से मान-मनुहार करती नजर आई. फ्लोर टेस्ट में फेल होने पर महाविकास आघाड़ी सरकार का गिरना तय था. ऐसे में उद्धव ठाकरे ने इस्तीफा देना तय किया. लेकिन, उनके लिए असली समस्या अगले विधानसभा चुनाव में खड़ी होगी. लिखी सी बात है कि शिवसेना के टूटने से पार्टी सिंबल समेत कई चीजें उद्धव ठाकरे की पकड़ से दूर चली जाएंगी. जिसका फायदा एकनाथ शिंदे गुट को मिलेगा.
वहीं, अगले विधानसभा चुनाव में ये भी जरूरी नहीं है कि एनसीपी और कांग्रेस की ओर से उद्धव ठाकरे को इतनी तवज्जो दी जाए. वो उद्धव ठाकरे को आगे बढ़ने का मौका क्यों देगी? कहना गलत नहीं होगा कि औरंगाबाद को संभाजीनगर बनाकर उद्धव ठाकरे ने अपनी किरकिरी में चार चांद ही लगाए हैं. क्योंकि, शिवसेना का ये फैसला उस पर बैकफायर भी कर सकता है. वैसे, उद्धव ठाकरे की स्थिति को दर्शाने के लिए कबीरदास के दोहे की ये लाइनें ज्यादा मुफीद होंगी कि- दुविधा में दोनों गए, माया मिली न राम.
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