महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री पद की लड़ाई लगता है गली-मोहल्ले के झगड़े का रूप लेने लगी है. मोहल्लों में बच्चों को लेकर झगड़ा करते करते बड़े लोग सच और झूठ का रंग चढ़ा देते हैं. फिर किसी न किसी के नाम पर कसमें खाने लगते हैं - महाराष्ट्र की राजनीति में भी वैसा ही होने लगा है.
उद्धव ठाकरे ने बीजेपी और शिवसेना के बीच 50-50 की जंग को सच और झूठ के तराजू पर चढ़ा दिया है. शिवसेना की तरफ से अब ये समझाने की कोशिश हो रही है कि सत्ता में 50-50 के मुद्दे पर एक पक्ष तो निश्चित तौर पर झूठ बोल रहा है.
साथ ही, शिवसेना की ओर से एक रणनीतिक चाल भी चली गयी है. आदित्य ठाकरे के लिए मुख्यमंत्री का पद मांग रही शिवसेना ने विधायक दल का नेता एकनाथ शिंदे को चुन लिया है.
झूठ कौन बोल रहा है?
चुनाव जीत कर आये शिवसेना के विधायकों की मीटिंग बुलायी गयी थी जिसमें उद्धव ठाकरे भी मौजूद रहे. उद्धव ठाकरे ने बीजेपी के साथ बातचीत पर विधायकों को अपडेट तो किया ही, लगे हाथ मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को भी कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की.
उद्धव ठाकरे ने साफ तौर पर बताया कि बीजेपी के साथ बातचीत में गतिरोध बना हुआ है - और उसमें कोई भी प्रोग्रेस नहीं है. इसकी वजह भी उद्धव ठाकरे ने समझायी - बीजेपी अपनी बातों से पीछे हट रही है.
उद्धव ठाकरे ने विधायकों से कहा कि शिवसेना के पास संख्या बल अच्छा है इसलिए घबराने की जरूरत नहीं है. अपने हाव-भाव और लहजे से उद्धव ठाकरे ने विधायकों को यकीन दिलाने की कोशिश की कि पीछे हटने की जरूरत नहीं है इसलिए वे मजबूती से डटे रहे.
फिर बोले - महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के पद पर हमारा हक है और हमारी जिद भी है. उद्धव ने कहा कि बालासाहेब ठाकरे से जो वचन दिया उसका पालन किया है. शिवसेना नेता ने एक बात जोर देकर कही कि पार्टी सत्ता की भूखी नहीं है, लेकिन बीजेपी से जो बात हुई उसका पालन होना चाहिये. बीजेपी और देवेंद्र फडणवीस को निशाने पर लेते हुए उद्धव ठाकरे ने कह डाला, 'अगर मुख्यमंत्री सच बोल रहे हैं कि क्या तय हुआ था...
महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री पद की लड़ाई लगता है गली-मोहल्ले के झगड़े का रूप लेने लगी है. मोहल्लों में बच्चों को लेकर झगड़ा करते करते बड़े लोग सच और झूठ का रंग चढ़ा देते हैं. फिर किसी न किसी के नाम पर कसमें खाने लगते हैं - महाराष्ट्र की राजनीति में भी वैसा ही होने लगा है.
उद्धव ठाकरे ने बीजेपी और शिवसेना के बीच 50-50 की जंग को सच और झूठ के तराजू पर चढ़ा दिया है. शिवसेना की तरफ से अब ये समझाने की कोशिश हो रही है कि सत्ता में 50-50 के मुद्दे पर एक पक्ष तो निश्चित तौर पर झूठ बोल रहा है.
साथ ही, शिवसेना की ओर से एक रणनीतिक चाल भी चली गयी है. आदित्य ठाकरे के लिए मुख्यमंत्री का पद मांग रही शिवसेना ने विधायक दल का नेता एकनाथ शिंदे को चुन लिया है.
झूठ कौन बोल रहा है?
चुनाव जीत कर आये शिवसेना के विधायकों की मीटिंग बुलायी गयी थी जिसमें उद्धव ठाकरे भी मौजूद रहे. उद्धव ठाकरे ने बीजेपी के साथ बातचीत पर विधायकों को अपडेट तो किया ही, लगे हाथ मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को भी कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की.
उद्धव ठाकरे ने साफ तौर पर बताया कि बीजेपी के साथ बातचीत में गतिरोध बना हुआ है - और उसमें कोई भी प्रोग्रेस नहीं है. इसकी वजह भी उद्धव ठाकरे ने समझायी - बीजेपी अपनी बातों से पीछे हट रही है.
उद्धव ठाकरे ने विधायकों से कहा कि शिवसेना के पास संख्या बल अच्छा है इसलिए घबराने की जरूरत नहीं है. अपने हाव-भाव और लहजे से उद्धव ठाकरे ने विधायकों को यकीन दिलाने की कोशिश की कि पीछे हटने की जरूरत नहीं है इसलिए वे मजबूती से डटे रहे.
फिर बोले - महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के पद पर हमारा हक है और हमारी जिद भी है. उद्धव ने कहा कि बालासाहेब ठाकरे से जो वचन दिया उसका पालन किया है. शिवसेना नेता ने एक बात जोर देकर कही कि पार्टी सत्ता की भूखी नहीं है, लेकिन बीजेपी से जो बात हुई उसका पालन होना चाहिये. बीजेपी और देवेंद्र फडणवीस को निशाने पर लेते हुए उद्धव ठाकरे ने कह डाला, 'अगर मुख्यमंत्री सच बोल रहे हैं कि क्या तय हुआ था - तो क्या मैं झूठ बोल रहा हूं?'
हाल फिलहाल एक दो बार नरमी दिखाने वाले शिवसेना सांसद संजय राउत फिर से बीजेपी को लेकर आक्रामक दिखे. संजय राउत ने बीजेपी-शिवसेना गठबंधन की सरकार को लेकर कहा था कि ऐसा होता है तो अच्छा रहेगा. कुछ देर के लिए इसे शिवसेना के यू-टर्न के तौर पर भी देखा जाने लगा था. वैसे कहने को तो संजय राउत लगातार कुछ न कुछ कह ही रहे हैं. संजय राउत ने कहा कि महाराष्ट्र की कुंडली तो वे ही बनाएंगे, 'कुंडली में कौन सा ग्रह कहां रखना है और कौन से तारे जमीन पर उतारने हैं, किस स्टार को चमकाना है, इतनी ताकत आज भी शिव सेना के पास है.'
बातों बातों में ही संजय राउत ने बीजेपी को चैलेंज भी कर दिया - '145 का नंबर है तो बीजेपी सरकार बना ले.'
आदित्य की जगह शिंदे का दांव
एक तरफ शिवसेना जहां बातचीत एक कदम भी आगे न बढ़ पाने का दावा कर रही है, वहीं कुछ मीडिया रिपोर्ट में बीजेपी की तरफ से सरकार का ब्लू प्रिंट तैयार कर लिये जाने की खबर है.
सूत्रों के हवाले से आ रही खबर के मुताबिक नयी सरकार में दो डिप्टी सीएम हो सकते हैं, जबकि देवेंद्र फडणवीस ही पूरे पांच साल के लिए मुख्यमंत्री रहेंगे. डिप्टी सीएम के बारे में माना जा रहा है कि दोनों में से एक शिवसेना तो दूसरा बीजेपी का हो सकता है. शिवसेना की नाराजगी दूर करने के लिए बीजेपी केंद्र की मोदी सरकार में पार्टी की हिस्सेदारी बढ़ाने पर भी विचार कर सकती है.
देवेंद्र फडणवीस से एक इंटरव्यू में आजतक का सवाल रहा - क्या गठबंधन सरकार में शिवसेना से कोई उप-मुख्यमंत्री होगा?
सवाल के जवाब में मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस का कहना है, 'उन्हें पद देने में हमें कोई कठिनाई नहीं है. हमारा केंद्रीय नेतृत्व भी ये राय रखता है कि हम उप-मुख्यमंत्री की कुर्सी शिवसेना को दे सकते हैं. अब ये उनका निर्णय होगा.'
देवेंद्र फडणवीस की बातचीत से ये तो समझ आ रहा है कि बीजेपी शिवसेना को साथ रखने की पूरी कोशिश में लेकिन डिप्टी सीएम का का ऑफर शिवसेना की स्वीकार्यता पर निर्भर होना बता रहा है कि गतिरोध खत्म नहीं हुआ है. दोनों पक्षों में बातचीत के दो मौके पहले ही खत्म हो चुके हैं. एक उद्धव ठाकरे के मीटिंग खत्म करने से और दूसरा अमित शाह का महाराष्ट्र दौरा रद्द होने से.
शिवसेना ने भी इस बीच एक रणनीतिक चाल चली है. अब तक माना जा रहा था कि मुख्यमंत्री पद पर दावेदारी या डिप्टी सीएम की कुर्सी पर समझौते की सूरत में आदित्य ठाकरे ही शिवसेना विधायक दल के नेता होंगे - लेकिन ऐसा नहीं हुआ है. शिवसेना ने सीनियर नेता एकनाथ शिंदे को विधायक दल का नेता चुन लिया है.
सवाल ये है कि एकनाथ शिंदे को विधायक दल का नेता चुने जाने की वजह क्या हो सकती है?
शिवसेना विधायकों की बैठक में उद्धव ठाकरे ने एक और महत्वपूर्ण बात कही जिस पर ध्यान देना जरूरी है. ऐसे में जबकि बीजेपी के एक नेता ने शिवसेना के 56 विधायकों में से 45 के अपने संपर्क होने का दावा किया है, उद्धव ठाकरे ने पार्टी विधायकों को आगाह भी कर दिया है.
विधायकों की मीटिंग में उद्धव ठाकरे ने बड़े ही सख्त लहजे में कहा कि अगर किसी ने बगावती रूख अख्तियार किया तो बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. इससे ये तो समझ ही लेना चाहिये कि उद्धव ठाकरे को विधायकों के बागी हो जाने की आशंका है. वैसे भी जो नेता एनसीपी और कांग्रेस छोड़ सत्ता के लालच में बीजेपी और शिवसेना में जा सकते हैं वे और आगे भी कदम बढ़ा सकते हैं. विधायकों की बगावत से शिवसेना के टूट जाने की आशंका 2014 में भी जतायी जा रही थी, लेकिन वैसा कुछ नहीं हुआ. पांच साल के दौरान बीजेपी ने महाराष्ट्र ही नहीं बल्कि पूरे देश में जिस तरीके से तोड़-फोड़ मचा रखी है, शिवसेना का डर तो स्वाभाविक ही लगता है.
तो क्या पार्टी टूटने के डर से ही शिवसेना ने आदित्य ठाकरे की जगह एकनाथ शिंदे को विधायकों का नेता चुना है?
हो सकता है उद्धव ठाकरे ने विधायकों नब्ज को पहचानने की कोशिश की हो. हो सकता है लगा हो विधायक ये न मान लें कि बेटे को मुख्यमंत्री बनाने की जिद वो सरकार न बना रहे हैं न बनने दे रहे हैं. हो सकता है उद्धव ठाकरे को लग रहा हो कि बीजेपी ये समझा कर विधायकों को बरगला सकती है. एकनाथ शिंदे को नेता बनाकर उद्धव ठाकरे विधायकों को ये संदेश देना चाहते हों कि वो जो कुछ भी कर रहे हैं शिवसैनिकों के लिए कर रहे हैं. वो जो कुछ भी कर रहे हैं बालासाहेब ठाकरे से किये गये वादे के चलते कर रहे हैं.
देखा जाये तो शिंदे को नेता बनाया जाना प्रतीकात्मक ही लगता है - राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी से मुलाकात में तो ऐसा ही हाव भाव दिखा. आदित्य ठाकरे की अगुवाई में शिवसेना और उसे समर्थन देने वाले विधायकों का एक प्रतिनिधिमंडल राज्यपाल से मिलने राजभवन गया था. राज्यपाल से मुलाकात में एकनाथ शिंदे खड़े तो आदित्य ठाकरे के ठीक बगल में ही थे, लेकिन उनसे पीछे. राज्यपाल से मुलाकात में आगे आदित्य ठाकरे ही नजर आये.
एकनाथ शिंदे को विधायकों का नेता बनाने के बाद राज्यपाल से मुलाकात शिवसेना की एक और रणनीतिक चाल लगती है. कहने को तो शिवसेना विधायकों के साथ आदित्य ठाकरे किसानों के मसले पर राज्यपाल से मुलाकात करने गये थे, लेकिन इसकी तात्कालिक जरूरत क्या हो सकती है. जाहिर है मकसद तो राजनीतिक ही है.
ये भी तो हो सकता है उद्धव ठाकरे बीजेपी के साथ साथ महाराष्ट्र के लोगों को और कांग्रेस-एनसीपी को भी संदेश देना चाहते हों कि उनके पास भी नंबर है. राज्यपाल के सामने जिन 63 विधायकों की परेड शिवसेना ने करायी है उनमें 56 तो पार्टी के हैं बाकी सात वे हैं जिन्होंने पार्टी को सपोर्ट किया है.
महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर चल रही तकरार के बीच ट्विटर पर लोग सलाह देने लगे हैं कि जब तक झगड़ा खत्म नहीं होता - नायक फिल्म वाले अनिल कपूर को ही कुर्सी पर बिठा दिया जाये. फिल्म नायक में एक पत्रकार का किरदार निभा रहे अनिल कपूर को एक दिन के लिए मुख्यमंत्री पद ऑफर किया जाता और वो स्वीकार कर लेते हैं - 24 घंटे में भी किरदार अपना कमाल दिखा देता है.
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