सिर पर चुनाव है और ऊपर से विपक्षी दलों का दवाब, सबको साधने का प्रयास बजट के जरिए किया गया. घोषणाओं की भरमार है, लेकिन पिछले अनुभवों की तासीर से देखने तो क्या अगले 12 महीनों में ये सभी घोषणाएं धरातल पर उतर पाएंगी? वैसे कायदे से विश्लेषण करें तो बजट की कुछ बातें देशवासियों के पल्ले कतई नहीं पड़ी. एमएसपी का जिक्र हुआ, जिसमें धन को सीधे किसानों के खाते में ट्रांसफर करने की बात बजट पढ़ते वक्त वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कही. सवाल उठता है कि ये पॉसिबल कैसे होगा? जब कानून अमल में है ही नहीं, तो कौनसा पैसा खातों में जाएगा. बीते कई वर्षों से किसानों की सबसे बड़ी मांग एमएसपी ही तो है. अभी 23-24 विभिन्न फसलों पर एमएसपी है, मगर सरकार द्वारा निर्धारित दान किसानों को नहीं मिलता. कुल मिलाकर एमएसपी रेट पर ख़रीदारी होती ही नहीं. इसके अलावा मध्यम वर्ग फिर ठनठन गोपाल ही रहा, कुछ भी हिस्से नहीं आया.
टीवी पर निर्मला सीतारमण का सिर्फ मुंह देखता रह गया. रोजगार, महंगाई, स्वास्थ्य व शिक्षा में फिर हीलाहवाली हुई. पिछले बजट जैसा ही रहा. हालांकि 60 लाख लोगों को रोजगार देने का वायदा हुआ है, लेकिन ये भी संभव नहीं दिखता. क्योंकि सरकार का इंफ्रास्ट्रक्चर इस क्षेत्र में कभी कमजोर दिखता है, कोई रोडमैप नही है. प्रत्येक विभागों में रिक्तियों की भरमार है. इसके अलावा आयकरदाता को भी कोई ज्यादा सहूलियत नहीं दी गई.
जबकि, कोरोना जैसे महामारी में दी जानी चाहिए थीं. इनकम टैक्स में छूट नहीं दी गई. मगर पूंजीपतियों को कॉर्पोरेट टैक्स में भारी छूट दी गई है. इससे ऐसा लगता है एक सुनियोजित ढंग से भेदभाव किया गया. वहीं, इनकम टैक्स स्लैब में भी कोई बदलाव नहीं हुआ. एक और अटपटी घोषणा की गई है,...
सिर पर चुनाव है और ऊपर से विपक्षी दलों का दवाब, सबको साधने का प्रयास बजट के जरिए किया गया. घोषणाओं की भरमार है, लेकिन पिछले अनुभवों की तासीर से देखने तो क्या अगले 12 महीनों में ये सभी घोषणाएं धरातल पर उतर पाएंगी? वैसे कायदे से विश्लेषण करें तो बजट की कुछ बातें देशवासियों के पल्ले कतई नहीं पड़ी. एमएसपी का जिक्र हुआ, जिसमें धन को सीधे किसानों के खाते में ट्रांसफर करने की बात बजट पढ़ते वक्त वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कही. सवाल उठता है कि ये पॉसिबल कैसे होगा? जब कानून अमल में है ही नहीं, तो कौनसा पैसा खातों में जाएगा. बीते कई वर्षों से किसानों की सबसे बड़ी मांग एमएसपी ही तो है. अभी 23-24 विभिन्न फसलों पर एमएसपी है, मगर सरकार द्वारा निर्धारित दान किसानों को नहीं मिलता. कुल मिलाकर एमएसपी रेट पर ख़रीदारी होती ही नहीं. इसके अलावा मध्यम वर्ग फिर ठनठन गोपाल ही रहा, कुछ भी हिस्से नहीं आया.
टीवी पर निर्मला सीतारमण का सिर्फ मुंह देखता रह गया. रोजगार, महंगाई, स्वास्थ्य व शिक्षा में फिर हीलाहवाली हुई. पिछले बजट जैसा ही रहा. हालांकि 60 लाख लोगों को रोजगार देने का वायदा हुआ है, लेकिन ये भी संभव नहीं दिखता. क्योंकि सरकार का इंफ्रास्ट्रक्चर इस क्षेत्र में कभी कमजोर दिखता है, कोई रोडमैप नही है. प्रत्येक विभागों में रिक्तियों की भरमार है. इसके अलावा आयकरदाता को भी कोई ज्यादा सहूलियत नहीं दी गई.
जबकि, कोरोना जैसे महामारी में दी जानी चाहिए थीं. इनकम टैक्स में छूट नहीं दी गई. मगर पूंजीपतियों को कॉर्पोरेट टैक्स में भारी छूट दी गई है. इससे ऐसा लगता है एक सुनियोजित ढंग से भेदभाव किया गया. वहीं, इनकम टैक्स स्लैब में भी कोई बदलाव नहीं हुआ. एक और अटपटी घोषणा की गई है, क्रिप्टो को लेकर. क़ानून अभी बना भी नहीं है, पर टैक्स की वसूली शुरू कर दी.
मनी ट्रांसफर करते समय टीडीएस काटने का प्रावधान किया गया है. यानी दबे सुर में सही, सरकार ने इसे स्वीकार कर लिया है. सरकार ने इससे बचने की काफ़ी अपील की लेकिन ख़ास असर नहीं हुआ. बेहद वोलेटाइल होने के बावजूद इसकी उपयोगिता तेज़ी से बढ़ रही है और इससे आप आंख नहीं फेर सकते लेकिन वर्चुअल डिजिटल असैट्स पर 30% टैक्स काफ़ी ज़्यादा है.
इस बार भी डिजिटल पर ज्यादा फोकस किया गया है. खेतों में कीटनाशक दवाओं के छिड़काव के जगह अब ड्रोन का इस्तेमाल किया जाएगा. इस विधि को किसानों को समझना होगा, आखिर ये बला क्या है. अगले वर्ष को मोटा अनाज के तौर पर घोषित किया जाएगा, इसमें ये नही बताया गया कि वह कौन-कौन से मोटे अनाज हैं जिनकी ज्यादा पैदावार बढ़ने से ये जश्न मनाया जा रहा है.
वहीं, पुराने 4086 कानूनों को खत्म किया गया, पिछले साल ये संख्या 1500 सौ के आसपास थी, अब बढ़ गई है. फिलहाल ये अच्छा कदम है, पुराने और अंग्रेजों के जमाने के बेजा कानूनों की अब जरूरत नहीं, कानूनों को रिफॉर्म करना जरूरी भी है. आंगनबाड़ी कर्मचारियों को अपग्रेड किया जाएगा, ये बात भी आधी अधूरी सी है, ज्यादा समझ में नहीं आई.
क्या उनका वेतनमान बढ़ाया जाएगा, या सरकारी कर्मी का दर्जा दिया जाएगा या फिर कुछ और? 2 लाख महिला आंगनबाड़ी कर्मचारियों को ये तौफा है, पर बात अधूरी सी लगती है. इसके अलावा कई घोषणाएं तो पुरानी ही हैं, जैसे नई ट्रेनों को चलाना. 400 सौ वंदे भारत ट्रेनें चलाने की बात हुई है. जबकि, पिछले वर्ष भी 100 ट्रेनों को चलाने की बात हुई थी, जो कोरोना के बजह से नहीं चल सकी.
अंत मे सबसे बड़ी बात तो यही है घोषणाएं तो बहुत हुई, लाखों करोड़ रुपए खपेंगे. लेकिन इतना पैसा सरकार जनरेट कहां से करेगी. क्योंकि कोरोना काल में तो टूरिज्म, टैक्स, आयात-निर्यात जैसे कमाई वाले तमाम क्षेत्र औंधे मुंह गिरे हुए हैं. जीडीपी में करीब 20 से 22 फीसदी कंट्रीब्यूशन देने वाला कृषि क्षेत्र भी अभावों में कराह रहा है.
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