कोरोना वायरस (Coronavirus) महामारी के भी देश के लोगों ने नयी पारी शुरू कर दी है. 25 मार्च से 31 मई तक घरों में बंद रहने के बाद अब बाहर निकल पड़े हैं. हफ्ते भर बाद लोग मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा और चर्च भी जाने लगेंगे. जाहिर है प्रार्थनाओं में कोरोना वायरस से निजात दिलाने की कामना भी शामिल होगी ही.
अब एक तरीके से कोरोना वायरस के साथ जीने की शुरुआत हो चुकी है - और सरकारी स्तर पर भी अब महामारी से ज्यादा अर्थव्यवस्था पर ध्यान दिया जाने लगा है. लगता है सरकार ने मान लिया है कि कोरोना से जंग के टास्क पूरे हो चुके हैं और जरूरी चीजें ऑटोमेशन मोड में चल रही है. फिर तो वास्तव में निश्चिंत होकर काम पर जुट जाना चाहिये, लेकिन क्या वास्तव में ऐसा ही है.
दिल्ली में कोरोना संक्रमितों की संख्या 20 हजार पार कर चुकी है, हालांकि, देश में ये तादाद 2 लाख से अभी कम है. वैसे दिल्ली में करीब एक हजार नये मामले सामने आये हैं, फिर भी शराब की दुकाने अब रोज खुलेंगी, अगर दुकान मालिक सरकारी शर्तें पूरी करते हैं. दिल्ली में डॉक्टर तो कोरोना संक्रमण से जूझ ही रहे हैं, 445 पुलिसकर्मी भी शिकार हो चुके हैं - और तीन की तो मौत भी हो चुकी है. कोविड 19 प्रोटोकॉल के तहत हुए अंतिम संस्कारों को लेकर भी सवाल खड़े हो रहे हैं. एक अपडेट ये भी है कि एम्स में कोरोना वायरस से संक्रमित होने वाले स्वास्थ्यकर्मियों की संख्या 200 के पार पहुंच चुकी है.
यूपी में भी सुबह 10 बजे से रात 9 बजे तक शराब बिकने वाली है. शराब ठेकों का जो हाल आम दिनों में नजर आता है क्या कोरोना काल में सब बदल चुका होगा? जो लोग ठेकों के पास पीकर नालियों में गिरे पड़े मिलते थे या झगड़ा करते पाये जाते थे वे अब इतने होश में होंगे कि मास्क लगाकर सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कर रहे होंगे?
दिल्ली की सीमा सील करने को लेकर हरियाणा के मंत्री अनिल विज दिल्ली सरकार से वैसे ही उलझे हुए हैं जैसे योगी आदित्यनाथ के बयानों पर राज ठाकरे टूट पड़े थे. योगी आदित्यनाथ ने कह दिया था कि यूपी के मजदूरों को दूसरे...
कोरोना वायरस (Coronavirus) महामारी के भी देश के लोगों ने नयी पारी शुरू कर दी है. 25 मार्च से 31 मई तक घरों में बंद रहने के बाद अब बाहर निकल पड़े हैं. हफ्ते भर बाद लोग मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा और चर्च भी जाने लगेंगे. जाहिर है प्रार्थनाओं में कोरोना वायरस से निजात दिलाने की कामना भी शामिल होगी ही.
अब एक तरीके से कोरोना वायरस के साथ जीने की शुरुआत हो चुकी है - और सरकारी स्तर पर भी अब महामारी से ज्यादा अर्थव्यवस्था पर ध्यान दिया जाने लगा है. लगता है सरकार ने मान लिया है कि कोरोना से जंग के टास्क पूरे हो चुके हैं और जरूरी चीजें ऑटोमेशन मोड में चल रही है. फिर तो वास्तव में निश्चिंत होकर काम पर जुट जाना चाहिये, लेकिन क्या वास्तव में ऐसा ही है.
दिल्ली में कोरोना संक्रमितों की संख्या 20 हजार पार कर चुकी है, हालांकि, देश में ये तादाद 2 लाख से अभी कम है. वैसे दिल्ली में करीब एक हजार नये मामले सामने आये हैं, फिर भी शराब की दुकाने अब रोज खुलेंगी, अगर दुकान मालिक सरकारी शर्तें पूरी करते हैं. दिल्ली में डॉक्टर तो कोरोना संक्रमण से जूझ ही रहे हैं, 445 पुलिसकर्मी भी शिकार हो चुके हैं - और तीन की तो मौत भी हो चुकी है. कोविड 19 प्रोटोकॉल के तहत हुए अंतिम संस्कारों को लेकर भी सवाल खड़े हो रहे हैं. एक अपडेट ये भी है कि एम्स में कोरोना वायरस से संक्रमित होने वाले स्वास्थ्यकर्मियों की संख्या 200 के पार पहुंच चुकी है.
यूपी में भी सुबह 10 बजे से रात 9 बजे तक शराब बिकने वाली है. शराब ठेकों का जो हाल आम दिनों में नजर आता है क्या कोरोना काल में सब बदल चुका होगा? जो लोग ठेकों के पास पीकर नालियों में गिरे पड़े मिलते थे या झगड़ा करते पाये जाते थे वे अब इतने होश में होंगे कि मास्क लगाकर सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कर रहे होंगे?
दिल्ली की सीमा सील करने को लेकर हरियाणा के मंत्री अनिल विज दिल्ली सरकार से वैसे ही उलझे हुए हैं जैसे योगी आदित्यनाथ के बयानों पर राज ठाकरे टूट पड़े थे. योगी आदित्यनाथ ने कह दिया था कि यूपी के मजदूरों को दूसरे राज्यों में ले जाने के लिए सरकारी परमिशन जरूरी होगा.
हो सकता है अनिल विज भूल गये हों कि दिल्ली से लगने वाली सीमाओं पर कई जगह हरियाणा के पुलिसवालों ने गड्डे खोद रखे थे - ताकि दिल्ली के लोग गुड़गांव और राज्य के दूसरे हिस्सों में एंट्री न पा सकें. अनिल विज का कहना है कि दिल्ली पर सबका अधिकार है, तो क्या हरियाणा पर सबका अधिकार नहीं है?
कांग्रेस नेता राहुल गांधी लॉकडाउन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से सवाल पूछने के मामले में सबसे ज्यादा सक्रिय रहे हैं, लेकिन 30 मई के बाद से उनका कोई ट्वीट नहीं आया है - हालांकि, कांग्रेस के ट्विटर हैंडल से लगातार मोदी सरकार पर हमले हो रहे हैं - लॉकडाउन के दौरान ज्यादा ढील दिये जाने को लेकर सरकार के फैसले पर सवाल खड़े किये जा रहे हैं.
लॉकडाउन 5.0 और अनलॉक 1.0 - ये दोनों नाम एक ही चीज के हैं. ये दोनों नाम एक ही दौर के हैं. नाम में क्या रखा है. नाम से कुछ नहीं होता. नाम कुछ भी हो क्या फर्क पड़ता है? लेकिन अगर नाम बदल दिया जाये तो?
असल में कोरोना वायरस के प्रकोप से जूझ रहे देश का सूरत-ए-हाल फिलहाल यही है - और इसी बात से चिंतित देश के जाने माने स्वास्थ विशेषज्ञों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) को पत्र (Letter from Experts) लिख कर कोरोना वायरस के खतरे को लेकर आगाह किया है.
विशेषज्ञ तो कम्युनिटी ट्रांसमिशन की स्थिति मान रहे हैं!
हाल फिलहाल ICMR ने पिछले दो महीने में कोरोना वायरस पर दो अध्ययन से जुड़े कुछ आंकड़े सामने रखा है - 22 जनवरी से 30 अप्रैल के बीच जो लोग पॉजिटिव मिले, उनमें से 28 फीसदी एसिम्प्टोमेटिक थे, यानी जिनमें संक्रमण के कोई लक्षण नहीं पाये गये थे. उनसे जुड़े कॉन्टैक्ट्स में भी कोरोना के लक्षण नहीं देखने को मिले . इस अवधि में 40,184 लोग पॉजिटिव टेस्ट हुए जिनमें से 2.8 फीसदी स्वास्थ्यकर्मी रहे. तीन महीने से कुछ ज्यादा की अवधि में 10.21 लाख लोगों का टेस्ट हुआ और उनमें से 3.9 फीसदी कोविड-19 पॉजिटिव पाये गये.
कोरोना वायरस को लेकर लॉकडाउन की शुरुआत से ही हर्ड इम्युनिटी और इम्युनिटी पासपोर्ट से लेकर कम्युनिटी ट्रांसमिशन तक - हर बात पर मेडिकल एक्सपर्ट अपनी राय देते रहे हैं. हर्ड इम्यूनिटी का कॉन्सेप्ट ये है कि अगर 60 फीसदी से ज्यादा आबादी में एंटीबॉडी विकसित हो जाये तो फिर कोरोना वायरस के संक्रमण का दायरा अपनेआप सीमित हो सकता है. हालांकि, CSIR के महानिदेशक शेखर मंडे का कहना है कि कोरोना वायरस से जंग में हर्ड इम्युनिटी (Herd Immunity) या सामुदायिक प्रतिरक्षा विकसित करने का रास्ता काफी जोखिमभरा हो सकता है.
न्यूज एजेंसी पीटीआई के साथ एक इंटरव्यू में शेखर मंडे ने कहा कि हर्ड इम्यूनिटी आम तौर पर तब काम करता है, जब किसी देश की 60-70 फीसदी आबादी प्रभावित हो चुकी हो - और किसी भी देश के लिए ये बहुत बड़ा रिस्क है.
औपचारिक तौर पर भले ही कुछ भी परिभाषित न हो. आधिकारिक तौर भले ही कुछ भी न कहा गया हो, लेकिन जो वस्तुस्थिति नजर आ रही है - क्या ऐसा नहीं लग रहा है कि हम हर्ड इम्यूनिटी की तरफ अघोषित तौर पर बढ़ने लगे हों?
बहरहाल, आधिकारिक तौर पर तो ये भी नहीं माना गया है कि देश में कोरोना वायरस का प्रकोप कम्युनिटी ट्रांसमिशन के स्तर तक पहुंच भी पाया है, लेकिन देश के जाने माने विशेषज्ञ ये बात सुनने को तैयार नहीं लगते.
25 मई को मेडिकल क्षेत्र से जुड़ी तीन नामी संस्थाओं के मौजूदा और पूर्व प्रोफेसरों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिख कर अपनी चिंता जाहिर की है, ये संस्थायें हैं - एम्स, बीएचयू और जेएनयू. पत्र पर हस्ताक्षर करने वालों में स्वास्थ्य मंत्रालय के पूर्व सलाहकार और कोरोना पर अध्ययन के लिए गठित कमेटी के प्रमुख डॉक्टर डीसीएस रेड्डी भी शामिल हैं. पत्र में कोरोना महामारी पर काबू पाने को लेकर केंद्र सरकार के तौर तरीकों की आलोचना की गयी है.
प्रधानमंत्री को लिखे इस पत्र में कम्युनिटी ट्रांसमिशन की आशंका तो जतायी ही गयी है, ये भी कहा गया है कि नीतियों में समन्वय की कमी की कीमत अब देश को चुकानी पड़ रही है. पत्र में लिखा गया है, 'ये सोचना कि इस स्तर पर कोरोना वायरस पर काबू पा लिया जा सकेगा हकीकत से परे होगा - क्योंकि भारत के कई क्लस्टर में कम्युनिटी ट्रांसमिशन पूरी तरह से होने लगा है.' पत्र को लेकर एम्स के कम्युनिटी मेडिसिन के प्रमुख और रिसर्च ग्रुप के सदस्य डॉक्टर शशिकांत कहते हैं, 'ये पत्र तीन मेडिकल संस्थाओं द्वारा जारी किया गया एक संयुक्त बयान है, ये कोई निजी राय नहीं है.' डॉ शशिकांत भी प्रधानमंत्री को भेजे गये पत्र पर हस्ताक्षर करने वालों में से एक हैं.
nlock 1.0 में सूरत-ए-हाल तो देखिये
टाइम्स नाउ की एक रिपोर्ट में दिखाया गया है कि किस तरह दिल्ली के LNJP अस्पताल में के मुर्दाघर में कोरोना वायरस से हुई मौतों के बाद लाशें एक के ऊपर एक रखी गयी हैं. दरअसल, रिपोर्ट के मुताबिक, LNJP अस्पताल के मुर्दाघर की क्षमता 45 की ही है और वहां 108 शव पहुंच गये थे.
बीबीसी ने कोरोना वारियर्स से बातचीत के आधार पर एक रिपोर्ट प्रकाशित की है. बातचीत में कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों के इलाज में शामिल स्वास्थ्यकर्मी आने वाले दिनों को लेकर खासे चिंतित और परेशान नजर आते हैं. विस्तृत रिपोर्ट में कोरोना वायरस से उपजे हालात की विस्तृत जानकारी है, लेकिन कुछ बातें ऐसी भी हैं जो काफी हैरान करने वाली हैं.
1. "किसी को शायद इस बात का अंदाजा नहीं होगा कि पीपीई सूट में काम करना कितना मुश्किल होता है. इसमें आप छह घंटे से ज्यादा समय तक बिना पानी पिये और खाये लगातार काम करते हैं. बढ़ती गर्मी के साथ काम करना और मुश्किल होता जा रहा है - क्योंकि आप पानी पीयें या नहीं, गर्मी की वजह से आप पीपीई किट के अंदर पसीने से नहाते रहते हैं."
2. "कोई कुछ भी कह सकता है. कितने भी बड़े बड़े दावे कर सकता है, लेकिन हम स्वास्थ्यकर्मियों से कोई पूछे तब पता चलेगा कि अस्पतालों के अंदर का हाल क्या है. अगर आप मुझसे ये कहते कि मेरी बात मेरे नाम से जाएगी तो मैं भी कहता कि सब कुछ बढ़िया है."
3. "पहले 14 दिन का क्वारंटीन हुआ करता था. तीन टेस्ट होते थे. आखिरी टेस्ट में सैंपल निगेटिव आने पर व्यक्ति को घर जाने दिया जाता है. अब पहले टेस्ट के बाद अगर व्यक्ति में कोई लक्षण नहीं दिखते हैं तो उसे घर भेज दिया जाता है."
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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.