एक अर्सें से हम पढ़ते आ रहे हैं, सुनते आ रहे हैं और इसी डाटा के आधार पर लिखते आ रहे हैं कि यूपी में पिछड़ों की जनसंख्या 52 फीसद है और दलित 22 फीसद जबकि मुस्लिम 20 फीसद. यानी यूपी की 94 फीसद आबादी में पिछड़े, दलित और मुस्लिम ही शामिल हैं. अगर ये सच माना जाए तो ये भी सच मानना पड़ेगा कि 94 फीसद से बची 6 फीसद आबादी में ब्राह्मण, क्षत्रिय, कायस्थ-वैश्य, जाट, सिक्ख, ईसाई..सब सिमट गए हैं. बिना किसी आधार के ऐसे आंकड़े पर आधारित ख़बरों से गूगल पटा पड़ा है. गूगल सर्च करके या धर्म जाति के नेता या कथित जानकारों की जानकारी के हिसाब से ऐसे गलत और आधारहीन आंकड़े पर आधारित खबरें लगातार गलत जानकारी से दिग्भ्रमित कर रही हैं.
इस आंकड़े के हिसाब से ही अनुमान लगाया जा रहा है कि यूपी में कौन सी जाति किसके साथ है और कौन जीत रहा है, कौन हार रहा है. किसकी सरकार में कितना विकास हुआ और कितना विनाश ऐसे मुद्दे धर्म और जाति के पीछे पिछड़े जा रहे हैं. यूपी की जनता योगी सरकार की बेहतर कानून व्यवस्था और मुफ्त राशन जैसे जनहित कार्यों के इनाम में भाजपा को वोट देगी?
या मंहगाई, बेरोजगारी, कोविड में अव्यवस्था, रेप केस और किसानों के दर्द को महसूस करके वोट किया जा रहा है ? ये राज़ है जो दस मार्च को खुलने के लिए ईवीएम में बंद हो रहे हैं. फिलहाल चुनावी पंडित दस मार्च के इंतेज़ार का टाइम पास करने के लिए कयासों का शतरंज खेल रहे हैं. और इस शतरंज के घोड़े, हाथी, राजा, रानी... हैं धर्म और जातियां.
कौन धर्म और कौन-कौन जातियां किस दल के साथ हैं,ये तुक्के बाजी हो रही है. तुक्केबाजी में एक और तुक्केबाजी ये कि यूपी में किस जाति की कितनी जनसंख्या है! इस बात का...
एक अर्सें से हम पढ़ते आ रहे हैं, सुनते आ रहे हैं और इसी डाटा के आधार पर लिखते आ रहे हैं कि यूपी में पिछड़ों की जनसंख्या 52 फीसद है और दलित 22 फीसद जबकि मुस्लिम 20 फीसद. यानी यूपी की 94 फीसद आबादी में पिछड़े, दलित और मुस्लिम ही शामिल हैं. अगर ये सच माना जाए तो ये भी सच मानना पड़ेगा कि 94 फीसद से बची 6 फीसद आबादी में ब्राह्मण, क्षत्रिय, कायस्थ-वैश्य, जाट, सिक्ख, ईसाई..सब सिमट गए हैं. बिना किसी आधार के ऐसे आंकड़े पर आधारित ख़बरों से गूगल पटा पड़ा है. गूगल सर्च करके या धर्म जाति के नेता या कथित जानकारों की जानकारी के हिसाब से ऐसे गलत और आधारहीन आंकड़े पर आधारित खबरें लगातार गलत जानकारी से दिग्भ्रमित कर रही हैं.
इस आंकड़े के हिसाब से ही अनुमान लगाया जा रहा है कि यूपी में कौन सी जाति किसके साथ है और कौन जीत रहा है, कौन हार रहा है. किसकी सरकार में कितना विकास हुआ और कितना विनाश ऐसे मुद्दे धर्म और जाति के पीछे पिछड़े जा रहे हैं. यूपी की जनता योगी सरकार की बेहतर कानून व्यवस्था और मुफ्त राशन जैसे जनहित कार्यों के इनाम में भाजपा को वोट देगी?
या मंहगाई, बेरोजगारी, कोविड में अव्यवस्था, रेप केस और किसानों के दर्द को महसूस करके वोट किया जा रहा है ? ये राज़ है जो दस मार्च को खुलने के लिए ईवीएम में बंद हो रहे हैं. फिलहाल चुनावी पंडित दस मार्च के इंतेज़ार का टाइम पास करने के लिए कयासों का शतरंज खेल रहे हैं. और इस शतरंज के घोड़े, हाथी, राजा, रानी... हैं धर्म और जातियां.
कौन धर्म और कौन-कौन जातियां किस दल के साथ हैं,ये तुक्के बाजी हो रही है. तुक्केबाजी में एक और तुक्केबाजी ये कि यूपी में किस जाति की कितनी जनसंख्या है! इस बात का कोई भी आंकड़ा नहीं है. बल्कि समाजवादी पार्टी ने यूपी में जाति जनगणना होने की मांग और जरुरत को चुनावी मुद्दा भी बनाया.
पिछले तीन दशक से देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश की सियासत बहुत निराली हो गई है. धर्म और जाति की सियासत के लिए बदनाम यूपी में समाजवादी पार्टी और बसपा पर जातिवाद के आरोप लगते हैं, जबकि भाजपा धार्मिक एजेंडा चलाने की तोहमतों से घिरी रहती है.
कहा जाता है कि अयोध्या विवाद और राम मंदिर के बहाने भाजपा ने हिंदुत्व को धार देकर जातियों में बंटे हिन्दुओं का बिखराव कम करके उन्हें एकजुट किया. और इस सफलता का पूरा फायदा उठाकर भाजपा फर्श से अर्श पर आ गई.
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