इतिहास गवाह है कि यूपी के चुनावी नतीजे चौंकाने वाले होते हैं. यहां सभी एक्जिट पोल, ओपीनियन पोल और विश्लेषण फेल होते रहे हैं. मतगणना होते ही बड़े-बड़े राजनीतिक पंडितों के विश्लेषण और अनुमान धरे के धरे रह जाते हैं. इसकी वजह यही कहीं जा सकती है कि यहां की जनता का मन टटोलना मुश्किल है. कई बार जो दिखता है वो होता नहीं और जो होता है वो नज़र नहीं आता. एक्जिट पोल, ओपीनियन पोल या रायशुमारी में कैमरों के सामने आने वाली जनता की राय पर इसलिए भी पूरा विश्वास नहीं किया जा सकता क्योंकि एक अनुमान के अनुसार लाख लोगों में एक व्यक्ति का रुझान ही कैमरे के सामने आता है. 99999 लोगों का फैसला एवीएम खुलने के बाद ही पता चलता है. दूसरी बात ये कि टीवी और यूट्यूब चैनलों के कैमरों के सामने राजनीतिक पार्टियों के कार्यकर्ता गैर सियासी आम इंसान बन कर आ जाते हैं.
इन सब तकनीकी पक्षों के बावजूद विश्लेषकों और आम लोगों के नजरियों के हिसाब से दस मार्च के नतीजों की तुक्केबाजी और यूपी की अगली सरकार का स्वरूप तरह-तरह से सामने आ रहा है.
अनुमान ए -
एक आम राय ये भी बन रही है कि कोई एक गठबंधन ( भाजपा या सपा) बहुमत लाएगा, वो भी ढाई सौ पार. तर्क है कि पिछले कई चुनावों में यूपी की जनता बहुमत की सरकारें देती रहीं हैं. यहां की जनता खंडित जनादेश की क़ायल नहीं.
अनुमान बी-
एक आम धारणा और लगभग सभी राजनीतिक पंडितों का कहना है कि सपा-भाजपा की कांटे की टकराकर है. और ये चुनाव बाय पोलर है. चुनाव के इस मिजाज में आमने-सामने की लड़ाई में अन्य दल बहुत पीछे चले गए हैं. इसका सबसे ज्यादा नुकसान बसपा को हुआ है और दो दलों की सीधी टक्कर से कांग्रेस की प्रियंका गांधी की...
इतिहास गवाह है कि यूपी के चुनावी नतीजे चौंकाने वाले होते हैं. यहां सभी एक्जिट पोल, ओपीनियन पोल और विश्लेषण फेल होते रहे हैं. मतगणना होते ही बड़े-बड़े राजनीतिक पंडितों के विश्लेषण और अनुमान धरे के धरे रह जाते हैं. इसकी वजह यही कहीं जा सकती है कि यहां की जनता का मन टटोलना मुश्किल है. कई बार जो दिखता है वो होता नहीं और जो होता है वो नज़र नहीं आता. एक्जिट पोल, ओपीनियन पोल या रायशुमारी में कैमरों के सामने आने वाली जनता की राय पर इसलिए भी पूरा विश्वास नहीं किया जा सकता क्योंकि एक अनुमान के अनुसार लाख लोगों में एक व्यक्ति का रुझान ही कैमरे के सामने आता है. 99999 लोगों का फैसला एवीएम खुलने के बाद ही पता चलता है. दूसरी बात ये कि टीवी और यूट्यूब चैनलों के कैमरों के सामने राजनीतिक पार्टियों के कार्यकर्ता गैर सियासी आम इंसान बन कर आ जाते हैं.
इन सब तकनीकी पक्षों के बावजूद विश्लेषकों और आम लोगों के नजरियों के हिसाब से दस मार्च के नतीजों की तुक्केबाजी और यूपी की अगली सरकार का स्वरूप तरह-तरह से सामने आ रहा है.
अनुमान ए -
एक आम राय ये भी बन रही है कि कोई एक गठबंधन ( भाजपा या सपा) बहुमत लाएगा, वो भी ढाई सौ पार. तर्क है कि पिछले कई चुनावों में यूपी की जनता बहुमत की सरकारें देती रहीं हैं. यहां की जनता खंडित जनादेश की क़ायल नहीं.
अनुमान बी-
एक आम धारणा और लगभग सभी राजनीतिक पंडितों का कहना है कि सपा-भाजपा की कांटे की टकराकर है. और ये चुनाव बाय पोलर है. चुनाव के इस मिजाज में आमने-सामने की लड़ाई में अन्य दल बहुत पीछे चले गए हैं. इसका सबसे ज्यादा नुकसान बसपा को हुआ है और दो दलों की सीधी टक्कर से कांग्रेस की प्रियंका गांधी की मेहनत भी कोई ख़ास रंग नहीं दिखा सकेगी.
अनुमान सी-
सपा और भाजपा दोनों की ही बहुमत से दस-बीस सीटें कम होगी. ऐसे में ये कहा जा रहा है कि यदि ऐसा हुआ तो बसपा अपनी दस से तीस सीटों के समर्थन से भाजपा की सरकार बनवा देगी. बसपा सुप्रीमों के पिछले बयानों के मद्देनजर ऐसा सोचा जा रहा है. सपा को हराने के लिए भाजपा को जिताने जैसा बसपा का पुराना बयान ऐसे आशंका का आधार है.
अनुमान डी-
बसपा कभी किंग मेकर नहीं किंग बनने पर विश्वास रखती है. वो 180 सीटों वाली पार्टी को अपनी 20-30 सीटों का सहारा तब ही देगी जब बसपा को ही खुद किंग बनाया जाए. अतीत में जाईये तो पार्टी सुप्रीमों ने सुप्रीम कुर्सी हासिल करने की शर्त पर ही किसी के साथ आना स्वीकारा है.
अनुमान ई-
भाजपा की बहुमत से कुछ सीटें कम हुईं तो वो बसपा की अतिमहत्वाकांक्षी शर्तें मानने के बजाय सपा गठबंधन के ओम प्रकाश गठबंधन या जयंत चौधरी की पार्टी से हाथ मिलाकर सरकार बना सकती है. या बसपा को तोड़ने की चाल भी चल सकती है.
अनुमान एफ-
बहुमत से सपा की कुछ सीटें कम हुईं और कांग्रेस का समर्थन भी 203 का जादूई आंकड़ा हासिल नहीं कर पा रहा हो तब सपा बसपा से हाथ मिलाकर सरकार बनाने का दावा पेश कर सकती है. इसके एवज़ में सपा आगामी लोकसभा चुनाव में बसपा सुप्रीमों मायावती को प्रधानमंत्री का चेहरा पेश करने का गिव एंड टेक खेल कर सकती है.
पिछड़ों-दलितों के महागठबंधन से देश की राजनीति को नई दिशा देने की रणनीति के कमिटमेंट से बसपा का समर्थन हासिल कर सपा सरकार बनाकर साबित कर सकती है कि राजनीति में सबकुछ संभव है.
अनुमान जी-
जब ऐसे अनुमान आम हैं कि यदि भाजपा की बहुमत से कुछ सीटें कम हुई तो भाजपा सपा गठबंधन के ओमप्रकाश राजभर या जयंत चौधरी के रालोद को सपा गठबंधन से तोड़कर बहुमत हासिल कर सकती है. या बसपा तोड़कर 302 का आंकड़ा पार कर सकती है. तो इसी तरह सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव भी तो सरकार बनाने के लिए प्रर्याप्त नंबर पूरे करने के लिए बसपा के विधायक तोड़ सकते हैं. या फिर भाजपा गठबंधन की अनुप्रिया पटेल और संजय निषाद से हाथ मिलाकर सरकार बनाने का दावा कर सकते हैं.
ये भी पढ़ें -
P Election 2022: पूर्वांचल में कौन साबित होगा पिछड़ों का 'नेता'?
योगी के कपड़ों को 'जंग का रंग ' बताकर डिंपल ने अखिलेश की सारी मेहनत पर मट्ठा डाल दिया है!
छठे चरण में योगी आदित्यनाथ क्या 2017 के चुनाव का रिकॉर्ड तोड़ पाएंगे?
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.