उत्तर प्रदेश नगरीय निकाय चुनाव के परिणाम कुछ अहम संकेत दे रहे हैं. यूपी में बीजेपी की हवा है, यह तो न्यूज चैनल दिखा रही रहे हैं. लेकिन देश के इस सबसे बड़े राज्य में कुछ ऐसा भी हो रहा है, जिसे सबको जानने की जरूरत है:
- नगर निगम चुनावों में बीजेपी को यूं तो 16 में से 13 सीटों पर बढ़त है, लेकिन जिन तीन सीटों पर वह पीछे है वहां मुस्लिम और दलित वोटों का अच्छा खासा ध्रुवीकरण बीजेपी की विरोधी पार्टियों की तरफ हुआ है. खासतौर पर बसपा और कांग्रेस के पक्ष में.
- राज्य के 16 नगर निगम के अलावा 198 नगर पालिकाओं के लिए भी वोट डाले गए हैं. जहां दोपहर 12.30 बजे तक बीजेपी को 77 नगर पालिकाओं में तो बीजेपी को बढ़त है, लेकिन बसपा 42 और सपा 22 नगर पालिकाओं में आगे हैं. नगर निगमों में जहां सबसे बड़ा झटका समाजवादी पार्टी को लगा है, जिसे कहीं से उम्मीद नहीं दिख रही है. वहीं यूपी की नगर पालिकाओं में कांग्रेस को एक बार फिर मुंह की खानी पड़ी है. उसे सिर्फ चार नगर पालिकाओं में ही बढ़त है. ट्विटर पर तो यहां तक कहा गया कि कांग्रेस को अब 'अन्य' के साथ मिला देना चाहिए. चूंकि राज्य में 25 नगर पालिकाओं के अध्यक्ष पद के लिए निर्दलीय ही आगे हैं.
- सबसे अहम है नगर पालिका चुनावों में बसपा का प्रदर्शन. बीजेपी को सबसे नजदीकी चुनौती मायावती की पार्टी से ही मिली है, जो कि लंबे अरसे से न तो केंद्रीय स्तर पर और न ही राज्य की राजनीति में कहीं चर्चा में रही हैं. ऐसे में यह साबित हो रहा है कि बीजेपी के पक्ष में व्यापक लहर होने के बावजूद उत्तर प्रदेश में यदि किसी को लोगों ने एक विकल्प के रूप में देखा है वो न तो सपा है और न ही कांग्रेस. वे हैं मायावती और उनकी पार्टी बसपा.
यूपी नगरीय निकाय चुनाव : भाजपा की लहर अब भी कायम...
- इन नगरीय निकाय चुनाव में सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने प्रचार नहीं किया. ऐसे में लोगों ने समाजवादी पार्टी का वॉकआउट मान लिया और उन्हें रेस में गिना ही नहीं. वरिष्ठ पत्रकार शरत प्रधान अपने विश्लेषण में इसी बात को रेखांकित भी कर रहे हैं. उनका मानना है कि चूंकि बीजेपी को किसी पार्टी से चुनौती ही नहीं मिली, इसलिए उनका चुनाव में जीतना लाजमी है.
- यूपी के नगरीय निकाय चुनाव में एक और खास बात यह रही थी कि इनमें प्रचार के दौरान बीजेपी ने तो अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी. लेकिन सपा और कांग्रेस में सारा दारोमदार तीसरी-चौथी पंक्ति के स्थानीय नेताओं पर ही था. प्रचार का सारा जिम्मा उन्होंने ही संभाल रखा था. जबकि इन चुनावों के लिए बीजेपी की रणनीति ने बताया दिया कि वह किसी भी चुनाव को हलके में नहीं लेती है. पार्टी ने हर स्तर पर अपने नेताओं को तैनात किया था. और हर सीट पर उन्होंने जीत के इरादे से ही ये चुनाव लड़ा.
- योगी आदित्यनाथ के कार्यकाल के दौरान अयोध्या और आगरा सबसे ज्यादा चर्चा में रहे. दिवाली पर योगी आदित्यनाथ सरकार ने भव्य दिवाली का आयोजन किया. जबकि आगरा में ताजमहल को लेकर पार्टी के नेताओं ने काफी विवादास्पद बयान दिए. लेकिन इन दोनों ही जगहों पर बीजेपी को नगरीय निकाय चुनाव में लोगों ने जमकर समर्थन दिया. हालांकि, बीजेपी नेता सुब्रमण्यन स्वामी ने तो इन चुनाव के नतीजों को राम मंदिर के लिए जनादेश करार दिया.
किस्मत भी साथ दे रही है:
मथुरा के वार्ड नंबर 26 में दो उम्मीदवारों को बराबर-बराबर वोट मिले. दोनों उम्मीदवार 874 वोट लेकर बराबर-बराबर आ गए. इसके बाद टाई ब्रेकर के लिए लकी ड्रा किया गया. जिसमें बीजेपी उम्मीदवार मीरा अग्रवाल विजय रहीं. इस जीत से हतप्रथ मीरा अग्रवाल ने इतना ही कहा कि यह ठाकुर जी (भगवान कृष्ण) की कृपा है.
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