क्रिकेट में किसी भी टीम को अहम मौकों पर एक अदद 'फिनिशर' की जरूरत होती है. जो मुश्किल समय में अपनी ताबड़तोड़ बैटिंग से फंसे हुए मैच को भी निकाल ले जाता है. ठीक उसी तरह यूपी चुनाव 2022 के आखिरी दो चरणों की सियासी पिच पर ओबीसी मतदाता भी बड़े फिनिशर की भूमिका निभाने वाले हैं. यूपी चुनाव 2022 के आगामी दो चरणों में पूर्वांचल की 111 सीटों पर मतदान होना है. और, इन सीटों पर धर्म से ज्यादा जाति केंद्रित चुनाव होने की संभावना जताई जा रही है. वैसे, यूपी चुनाव 2022 के इन दो चरणों में भले ही भाजपा, समाजवादी पार्टी, बसपा और कांग्रेस जैसे मुख्य दलों के बीच ही सियासी लड़ाई मानी जा रही हो. लेकिन, इन चरणों में असली परीक्षा पिछड़ी जातियों के छोटे दलों की होनी है. दरअसल, ये पार्टियां अपने वोटबैंक से सियासी पिच पर खेल बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखती हैं.
जहां भाजपा के खेमे में अपना दल (सोनेलाल) और निषाद पार्टी शामिल हैं. वहीं, समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन में अपना दल (कमेरावादी), सुभासपा और जनवादी पार्टी ने कमर कस ली है. वहीं, यूपी चुनाव 2022 से ठीक पहले स्वामी प्रसाद मौर्य और दारा सिंह चौहान जैसे नेताओं ने भी दलबदल कर साइकिल की सवारी कर ली है. ये सभी दल और नेता पिछड़ी जातियों के एक बड़े वर्ग की नुमाइंदगी का दावा करते हैं. ओबीसी मतदाताओं पर प्रभाव रखने वाले ये सियासी दल 2017 के विधानसभा चुनाव में एक बड़ी ताकत बनकर उभरे थे. माना जा रहा है कि आखिरी के दो चरणों में पिछड़ी जातियों के ये मतदाता जिसके पक्ष में सियासी बैटिंग कर देंगे, उस राजनीतिक दल को सत्ता से दूर रखना आसान नहीं होगा. हालांकि, स्वामी प्रसाद मौर्य जैसे नेताओं से निपटने के लिए भाजपा ने आरपीएन सिंह जैसे नेताओं पर दांव खेला है. इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि पूर्वांचल में पिछड़ों का 'नेता' कौन साबित होगा?
ओबीसी मतदाताओं पर प्रभाव रखने वाले ये सियासी दल 2017 के विधानसभा चुनाव में एक बड़ी ताकत बनकर उभरे थे.
क्या राजभर वोट समाजवादी पार्टी के लिए होंगे लामबंद?
2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के सहयोगी के तौर पर सुभासपा के नेता ओमप्रकाश राजभर ने पूर्वांचल की चार सीटों पर जीत दर्ज की थी. ओमप्रकाश राजभर को इस जीत का इनाम योगी सरकार में मंत्री बनाकर दिया गया. लेकिन, लगातार सरकार विरोधी बयानों के चलते दो साल में ही मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर दिए गए. यूपी चुनाव 2022 से पहले छोटे दलों का एक अलग मोर्चा बनाने की कोशिशों में जुटे ओमप्रकाश राजभर ने अचानक ही समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव से मुलाकात की. और, गठबंधन तय हो गया. दरअसल, ओबीसी जातियों में से एक राजभर पूर्वांचल में भले ही छोटा वोटबैंक हो. लेकिन, बड़े दल के साथ मिलकर कई सीटों पर चुनावी नतीजे बदलने का माद्दा रखता है. राजभर मतदाताओं की आबादी करीब दो फीसदी है. चंदौली, भदोही, वाराणसी, मिर्जापुर, मऊ, आजमगढ़, गाजीपुर, बलिया जिलों में राजभर मतदाताओं की अच्छी-खासी संख्या है. ओमप्रकाश राजभर की सुभासपा पूर्वांचल की 18 सीटों सीटों पर चुनाव लड़ रही है. जबकि, 2017 में भाजपा के साथ गठबंधन के समय केवल 8 सीटों पर चुनाव लड़ी थी. उस दौरान सुभासपा को 6 लाख 7 हजार वोट मिले थे.
दो विपरीत ध्रुवों पर अपना दल (सोनेलाल) और अपना दल (कमेरावादी)
1995 में डॉ. सोनेलाल पटेल का बनाया अपना दल दो धड़ों में बंट चुका है. अपना दल (सोनेलाल) गुट का नेतृत्व केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल करती हैं. जो 2014 से ही भाजपा के साथ गठबंधन में हैं. वहीं, अपना दल (कमेरावादी) गुट की अगुवाई अनुप्रिया पटेल की मां कृष्णा पटेल करती हैं. यूपी चुनाव 2022 के मद्देनजर कृष्णा पटेल ने समाजवादी पार्टी से गठबंधन किया है. कुर्मी मतदाताओं पर प्रभाव रखने वाले इन गुटों में कृष्णा पटेल का गुट बहुत ज्यादा मजबूत नजर नहीं आता है. इसके बावजूद समाजवादी पार्टी ने गठबंधन में अपना दल (कमेरावादी) को सात सीटें दी हैं. पांचवें चरण में प्रतापगढ़ सदर सीट से कृष्णा पटेल और उनकी बेटी पल्लवी पटेल ने सिराथू सीट से यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के खिलाफ चुनाव लड़ा है. 2017 में अनुप्रिया पटेल के नेतृत्व वाले अपना दल (सोनेलाल) ने भाजपा के साथ गठबंधन में 11 सीटों पर चुनाव लड़ा था. और, करीब साढ़े 8 लाख वोटों के साथ 9 सीटों पर जीत हासिल की थी. इस बार भाजपा ने अनुप्रिया पटेल को 17 सीटें दी हैं. देखना दिलचस्प होगा कि पूर्वांचल के कुर्मी मतदाता इस बार किसे अपना समर्थन देते हैं.
डिप्टी सीएम बनने की मांग करने वाले संजय निषाद
मोदी सरकार के मंत्रिमंडल विस्तार में निषाद पार्टी के डॉ. संजय निषाद अपने बेटे संतकबीरनगर से भाजपा सांसद प्रवीण निषाद को शामिल नहीं करने पर उखड़ गए थे. इसके बाद निषाद पार्टी के संजय निषाद ने भाजपा से उनको डिप्टी सीएम बनाने की मांग कर दी थी. हालांकि, सीएम योगी आदित्यनाथ से मुलाकात के बाद संजय निषाद ने इस मांग को ठंडे बस्ते में डाल दिया था. इतना ही नहीं, इस दौरान संजय निषाद ने भाजपा को 2018 के लोकसभा उपचुनाव में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गढ़ यानी गोरखपुर की सीट पर प्रवीण निषाद द्वारा भाजपा प्रत्याशी को हराने की बात भी याद दिला दी थी. खैर, यूपी चुनाव 2022 में भाजपा की ओर से 16 सीटें मिलने पर सारी बातों को भूल चुके संजय निषाद का मानना है कि सूबे की 160 सीटों पर उनके मतदाताओं का प्रभाव है. पूर्वांचल के चंदौली, मिर्जापुर, वाराणसी, भदोही, प्रयागराज, जौनपुर, गोरखपुर, बलिया जैसे जिलों में निषाद और मल्लाह मतदाताओं की अच्छी-खासी आबादी है. जो चुनावी नतीजों को पलटने की ताकत रखती है. वैसे, 2017 के चुनाव में बिना किसी गठबंधन के अकेले लड़ने वाली निषाद पार्टी को करीब 5 लाख 40 हजार वोट मिले थे.
किसके साथ जाएगा नोनिया समाज?
यूपी में नोनिया समाज के चौहान मतदाताओं की आबादी करीब डेढ़ फीसदी है. पूर्वांचल के मऊ, गाजीपुर और जौनपुर जैसे जिलों की विधानसभा सीटों पर नोनिया समाज के चौहान मतदाताओं का वोट अच्छी-खासी संख्या में हैं. हालांकि, कुछ अन्य सीटों पर भी इस जाति के मतदाता हैं. लेकिन, उनकी संख्या बहुत ज्यादा प्रभावी नही है. जनवादी पार्टी के नेता संजय चौहान ने यूपी चुनाव 2022 के मद्देनजर समाजवादी पार्टी से गठबंधन कर रखा है.
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