यूपी चुनाव 2022 के सियासी रण का आरंभ पश्चिमी उत्तर प्रदेश से होना है. जाटलैंड के नाम से मशहूर पश्चिमी यूपी में किसान आंदोलन के बाद से हर बदलते दिन के साथ राजनीतिक दलों के समीकरण बनते और बिगड़ते नजर आ रहे हैं. वैसे, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और आरएलडी के बीच हुए गठबंधन को देखते हुए इस खेमे को मजबूत माना जा रहा है. आरएलडी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जयंत चौधरी भारतीय किसान यूनियन के नरेश टिकैत और राकेश टिकैत से मुलाकतें करते हुए नजर आ चुके हैं. तो, इसी पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुस्लिम वोटों को अपने पक्ष में लामबंद करने की नीयत से समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने मोहम्मद अली जिन्ना को महात्मा गांधी और जवाहर लाल नेहरू के समकक्ष भी बता दिया था. वहीं, जाटलैंड में अपनी पुरानी पकड़ को बनाए रखने के लिए भाजपा कैराना के हिंदू पलायन से लेकर मुजफ्फरनगर में हुए दंगों तक के मुद्दे के सहारे अपनी रणनीति पर आगे बढ़ती दिख रही है. लेकिन, किसी भी चुनाव में सियासी समीकरण से ज्यादा स्थानीय मुद्दे अहमियत रखते हैं. और, जाटलैंड में किसकी ठाठ होगी, तय करेंगी ये 3 चीजें...
किसान आंदोलन
दिल्ली की सीमाओं पर एक साल तक चले किसान आंदोलन का गढ़ पश्चिमी उत्तर प्रदेश रहा है. भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत के आंसुओं ने बीते साल 26 जनवरी को दिल्ली में हुई अराजकता के बाद खत्म हो चुके किसान आंदोलन को फिर से जीवित कर दिया था. माना जा रहा है कि किसान आंदोलन की वजह से भाजपा को पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है. भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष नरेश टिकैत ने तो समाजवादी पार्टी और आरएलडी गठबंधन के...
यूपी चुनाव 2022 के सियासी रण का आरंभ पश्चिमी उत्तर प्रदेश से होना है. जाटलैंड के नाम से मशहूर पश्चिमी यूपी में किसान आंदोलन के बाद से हर बदलते दिन के साथ राजनीतिक दलों के समीकरण बनते और बिगड़ते नजर आ रहे हैं. वैसे, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और आरएलडी के बीच हुए गठबंधन को देखते हुए इस खेमे को मजबूत माना जा रहा है. आरएलडी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जयंत चौधरी भारतीय किसान यूनियन के नरेश टिकैत और राकेश टिकैत से मुलाकतें करते हुए नजर आ चुके हैं. तो, इसी पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुस्लिम वोटों को अपने पक्ष में लामबंद करने की नीयत से समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने मोहम्मद अली जिन्ना को महात्मा गांधी और जवाहर लाल नेहरू के समकक्ष भी बता दिया था. वहीं, जाटलैंड में अपनी पुरानी पकड़ को बनाए रखने के लिए भाजपा कैराना के हिंदू पलायन से लेकर मुजफ्फरनगर में हुए दंगों तक के मुद्दे के सहारे अपनी रणनीति पर आगे बढ़ती दिख रही है. लेकिन, किसी भी चुनाव में सियासी समीकरण से ज्यादा स्थानीय मुद्दे अहमियत रखते हैं. और, जाटलैंड में किसकी ठाठ होगी, तय करेंगी ये 3 चीजें...
किसान आंदोलन
दिल्ली की सीमाओं पर एक साल तक चले किसान आंदोलन का गढ़ पश्चिमी उत्तर प्रदेश रहा है. भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत के आंसुओं ने बीते साल 26 जनवरी को दिल्ली में हुई अराजकता के बाद खत्म हो चुके किसान आंदोलन को फिर से जीवित कर दिया था. माना जा रहा है कि किसान आंदोलन की वजह से भाजपा को पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है. भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष नरेश टिकैत ने तो समाजवादी पार्टी और आरएलडी गठबंधन के उम्मीदवारों के लिए खुलकर समर्थन का ऐलान भी कर दिया था. लेकिन, संयुक्त किसान मोर्चा से बाहर निकाले जाने की कार्रवाई का खतरा देखते हुए अगले ही दिन नरेश टिकैत ने इस बयान से यू-टर्न ले लिया था. लेकिन, किसान आंदोलन का बड़ा चेहरा रहे राकेश टिकैत इस मामले में बिना किसी लाग-लपेट के खुलकर अपनी बात कहते नजर आते हैं. हाल ही में किसान नेता राकेश टिकैत ने कहा कि 'किसानों की 13 महीनें ट्रेनिंग हुई है. और, अगर अब भी बताना पड़े कि वोट कहां देना है, तो इसका मतलब हमारी ट्रेनिंग कच्ची रह गई.'
वैसे, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों का वोट किस ओर जाएगा, ये तो चुनावी नतीजे बताएंगे. लेकिन, इतना तय है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भारतीय किसान यूनियन के दो नेता नरेश टिकैत और राकेश टिकैत परोक्ष रूप से ही सही समाजवादी पार्टी और आरएलडी गठबंधन के पक्ष में खड़े नजर आते हैं. लेकिन, यहा अहम बात ये है कि इन दोनों ही किसान नेताओं का रुख खासतौर से आरएलडी की ओर झुका हुआ हुआ लगता है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो भले ही टिकैत बंधुओं के मुंह से समर्थन के लिए किसी सियासी दल का नाम न निकलता हो. लेकिन, उनकी ओर से किसानों को इशारा भरपूर दिया जाता है. और, यूपी चुनाव 2022 से पहले इस तरह के इशारे किसी के लिए मुश्किल, तो किसी के लिए जाटलैंड की राह आसान बना सकते हैं. वैसे, किसान आंदोलन से इतर जाटलैंड में एक ही चीज भाजपा के पक्ष में नजर आती है. और, वो है गन्ना किसानों का भुगतान. सूबे की योगी आदित्यनाथ सरकार में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गन्ना किसानों को पिछली सरकारों की तुलना में रिकॉर्ड भुगतान किया गया है.
जाट-मुस्लिम एकता
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और आरएलडी गठबंधन की सियासी धुरी जाट और मुस्लिम मतदाताओं के एकजुट होकर वोट देने पर टिकी हुई है. लेकिन, 2013 में हुए मुजफ्फरनगर दंगों की तपिश आज भी पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आसानी से महसूस की जा सकती है. किसान आंदोलन के बाद भले ही जाट-मुस्लिम एकता के तमाम नजारें देखने को मिले हों. लेकिन, जाटों और मुसलमानों के बीच मुजफ्फरनगर दंगों के बाद पैदा हुई खाई समाजवादी पार्टी और आरएलडी गठबंधन के प्रत्याशियों को नामों के सामने आने के साथ ही फिर से दिखने लगी है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश की करीब दो दर्जन सीटों पर जाट और मुस्लिम मतदाताओं को भाईचारे के नाम पर एकजुट करने की कोशिशें इस गठबंधन का समीकरण बिगाड़ रही हैं. इन सीटों के जाट मतदाता भड़के हुए हैं.
वहीं, मुजफ्फरनगर की 6 विधानसभा सीटों पर एक भी मुस्लिम प्रत्याशी न उतारे जाने से मुस्लिम मतदाताओं में भी गुस्सा नजर आ रहा है. आरएलडी के उम्मीदवारों का विरोध केवल इस बात को लेकर हो रहा है कि जयंत चौधरी ने उस सीट पर मुस्लिम नेता को प्रत्याशी बना दिया है या आरएलडी की टिकट पर समाजवादी पार्टी के नेता को प्रत्याशी बना दिया है. कैराना पलायन के आरोपों से घिरे समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी नाहिद हसन को दरकिनार भी कर दिया जाए, तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गठबंधन की ओर से भाईचारे के नाम पर उतारे गए मुस्लिम प्रत्याशियों को लेकर जाट मतदाता भड़के हुए नजर आते हैं. पश्चिमी उत्तर प्रदेश की करीब 70 विधानसभा सीटों पर 29 फीसदी मुस्लिम और 7 फीसदी जाट आबादी है. अगर ये मतदाता एकजुट होकर वोट करते हैं, तो सियासी परिणाम बदल सकते हैं. लेकिन, दोनों के बीच भरोसे की कमी साफ नजर आती है.
हिंदुत्व
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा का पूरा चुनावी कैंपेन हिंदुत्व के इर्द-गिर्द ही नजर आता है. हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और सीएम योगी आदित्यनाथ ने एक ही दिन में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अलग-अलग हिस्सों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई. अमित शाह और योगी आदित्यनाथ अपने अंदाज के अनुसार, ही कैराना पलायन और मुजफ्फरनगर दंगों का जिक्र कर हिंदुत्व की अलख जगाने में जुट गए. वहीं, जेपी नड्डा ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश के पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं से मुलाकात कर इस हिस्से की नब्ज टटोलने का काम किया. किसान आंदोलन की वजह से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा बैकफुट पर थी. लेकिन, तीनों कृषि कानूनों की वापसी के बाद अब पार्टी अपने नेताओं के सहारे अंदरखाने जाटों को साधने की कोशिश में जुटी है.
योगी आदित्यनाथ का 80 बनाम 20 फीसदी का बयान बहुत ज्यादा पुराना नही हुआ है. और, वह इसे कई जगहों पर दोहरा भी चुके हैं. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा अब हिंदुत्व के एजेंडे पर चलते हुए जाटों को फिर से साधने की कवायद तो कर ही रही है. लेकिन, इन सबसे इतर उसका लक्ष्य सूबे की अन्य जातियों के वोटों पर भी हैं. भाजपा से नाराज मतदाताओं का वोट बांटने के बसपा सुप्रीमो मायावती और कांग्रेस भी यहां ताल ठोंक रहे हैं. मुस्लिम वोटबैंक में सेंध लगाने के लिए असदुद्दीन ओवैसी ने मुस्लिम बहुल सीटों पर प्रत्याशी उतारने की घोषणा कर रखी है. जिसकी वजह से समाजवादी पार्टी और आरएलडी गठबंधन के लिए पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुश्किलें खड़ी होना तय है. अगर भाजपा का हिंदुत्व का दांव इस बार भी चल गया, तो इसका फायदा किसे होगा, ये बताने की जरूरत नही है.
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