बीते दिनों आये उत्तर प्रदेश चुनाव के परिणाम को सुन रहे थे. घर के काम में मदद करने वाली कुछ कम पढ़ी लिखी सी हमारी सहयोगी खुश होते हुए बोल पड़ी, 'देखा जात है दीदी सब खुश हएं. हमरे मोहल्ले में लड्डू बटत है. होली के पहिले होली होय गयी' उसकी ख़ुशी में उम्मीद थी. सर्वेक्षणों की माने तो योगी जी की इस तरह की वापसी में उत्तर प्रदेश की माताओं बहनो का योगदान रहा है. पुरुषो के मुकाबले भाजपा को वोट देने में महिलाएं आगे रही है वो भी पूरे 16% प्रतिशत ! इस बार महिला मतदाताओं का लोहा राजनीतिक विशेषज्ञों ने भी मान लिया. ये कहना गलत होगा की फ्री की चीज़ों का असर है क्योंकि सपा के फ्री बिजली के वादे को नकारा गया. माना जा सकता है की महिला सुरक्षा का मुद्दा सबसे ऊपर रहा और सपा की गुंडागर्दी के दिनों को याद कर महिलाओं ने अपना मत दिया है.
ये और बात है की सुरक्षा शिक्षा स्वास्थ्य नागरिकों का अधिकार है. जब तक कोई भी सरकार उसे अपनी खासियत बतायेगी यकीनन फेल होते सिस्टम की याद आएगी. ये हक है और अब इसे मेमोरेंडम से हटा कर 100 % लागू करने की स्थिति बनानी होगी और इसकी ज़िम्मेदारी हम सब पर है.
2022 के आगे क्या
ये समय बीते समय के विश्लेषण का ही नहीं बल्कि आगे की सुध लेने का भी है. पार्टी के मेनिफेस्टो से भी महिलाओं की उम्मीदें बढ़ी, जिसमे प्रदेश की महिलाओं के लिए कुछ खास सुविधाओं का ज़िक्र किया गया है. मेनिफेस्टो में शिक्षा स्वास्थ्य और सुरक्षा के साथ स्वावलंबन का भी ज़िक्र है.
यथार्थ में महिलाओं के स्वावलंबन में उत्तर प्रदेश कई राज्यों से बहुत पीछे है. जहां एक ओर कर्नाटक और केरल में 20% महिलाएं कामकाजी हैं. वहीं उत्तर...
बीते दिनों आये उत्तर प्रदेश चुनाव के परिणाम को सुन रहे थे. घर के काम में मदद करने वाली कुछ कम पढ़ी लिखी सी हमारी सहयोगी खुश होते हुए बोल पड़ी, 'देखा जात है दीदी सब खुश हएं. हमरे मोहल्ले में लड्डू बटत है. होली के पहिले होली होय गयी' उसकी ख़ुशी में उम्मीद थी. सर्वेक्षणों की माने तो योगी जी की इस तरह की वापसी में उत्तर प्रदेश की माताओं बहनो का योगदान रहा है. पुरुषो के मुकाबले भाजपा को वोट देने में महिलाएं आगे रही है वो भी पूरे 16% प्रतिशत ! इस बार महिला मतदाताओं का लोहा राजनीतिक विशेषज्ञों ने भी मान लिया. ये कहना गलत होगा की फ्री की चीज़ों का असर है क्योंकि सपा के फ्री बिजली के वादे को नकारा गया. माना जा सकता है की महिला सुरक्षा का मुद्दा सबसे ऊपर रहा और सपा की गुंडागर्दी के दिनों को याद कर महिलाओं ने अपना मत दिया है.
ये और बात है की सुरक्षा शिक्षा स्वास्थ्य नागरिकों का अधिकार है. जब तक कोई भी सरकार उसे अपनी खासियत बतायेगी यकीनन फेल होते सिस्टम की याद आएगी. ये हक है और अब इसे मेमोरेंडम से हटा कर 100 % लागू करने की स्थिति बनानी होगी और इसकी ज़िम्मेदारी हम सब पर है.
2022 के आगे क्या
ये समय बीते समय के विश्लेषण का ही नहीं बल्कि आगे की सुध लेने का भी है. पार्टी के मेनिफेस्टो से भी महिलाओं की उम्मीदें बढ़ी, जिसमे प्रदेश की महिलाओं के लिए कुछ खास सुविधाओं का ज़िक्र किया गया है. मेनिफेस्टो में शिक्षा स्वास्थ्य और सुरक्षा के साथ स्वावलंबन का भी ज़िक्र है.
यथार्थ में महिलाओं के स्वावलंबन में उत्तर प्रदेश कई राज्यों से बहुत पीछे है. जहां एक ओर कर्नाटक और केरल में 20% महिलाएं कामकाजी हैं. वहीं उत्तर प्रदेश में ग्रामीण में 8.2 % और शहरी इलाकों में केवल 9. 4 % महिलाएं ही कामकाजी है. सरकारी व्यवस्था में कर्नाटक में महिलाओं की संख्या 35 % से बढ़कर 50% होने को है वहीं ये स्थिति उत्तरप्रदेश में सोचनीय है.
प्रदेश के सामजिक ताने बाने का असर है की आज भी महिलाओं के आर्थिक स्वालंबन को तरजीह नहीं दी जाती.
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ बेटी को स्वावलम्बी बनाओ
ये कहना गलत नहीं प्रदेश की बेटियों ने अपना मत सरकार को एक निवेश के रूप में दिया है. अब इस निवेश पर रिटर्न की बारी है. अगर अपने खुद के खाते में 500 या 1500 रूपये इनमें सुरक्षा व् आर्थिक सशक्तिकरण की भावना जगा सकता है और आपको वोट दिला सकता है तो सोचे की अगर इनके स्वालंबन को आप अपना ध्येय बना ले तो शायद 300 पार का नारा दे कर मशक्क्त ही न करनी पड़े. शिक्षा को अगले स्तर तक ले जाने का बीड़ा उठाने की ज़िम्मेदारी भो अब इस सरकार को लेनी होगी.
सीमित परिधि की सोच
महिलाओं के कामकाज की परिधि इस प्रदेश में बहुत सिमित है. ज़्यादातर महिलाएं शिक्षण के क्षेत्र में जाने को चुनती है या कहें की इसी क्षेत्र की अनुमति मिलती है. अनुमति मिलना और इस सोच को बदलना एक धीमी सामाजिक प्रक्रिया है किन्तु स्कूलों और कॉलेजों में अलग अलग करियर क्षेत्रो के बारे में जानकारी देना और उससे संबंधित शिक्षा व् रोज़गार को उपलब्ध कराने के ध्येय को अब सर्वोपरि रखा जाये.
जर्नलिस्ज़्म, रेडियो जॉकी, फैशन डिज़ाइनिंग, आर्किटेक्चर, पुलिस, भारतीय फ़ौज - विज्ञानं आईटी इन क्षेत्रो को न सिर्फ राज्य में लाना होगा जिससे राज्य की बेटियों को इस क्षेत्र में जाने के लिए दूसरे राज्यों में न जाना पड़े. इस कार्यकाल को बेटियों के स्वावलंबन की ओर समर्पित होना होगा.
स्वरोज़गार
गांवों कस्बो में महिलाओं के स्व उद्यम की कोशिशों को बढ़ावा देना आर्थिक स्तर पर परिवार और प्रदेश को भी मज़बूत करेगा. महिला उद्यमियों को बढ़ावा केवल कागज़ों पर नहीं बल्कि ज़मीनी मदद दे कर हो. इसे गांवों में पंचायत के ज़रिये टारगेट दे कर इम्प्लीमेंट (क्रियांवहित) किया जाये.
शहरों और गांवों में छोटे रोज़गार में लिप्त महिलाओं के लिए ऐसी ट्रेनिंग की व्यवस्था कराई जाये जहां उन्हें अपने व्यवसाय को आगे बढ़ाने, मार्केटिंग एडवर्टाइज़मेंट आदि का प्रशिक्षण मिले. छोटे लोन कैसे और कहां से मिले, टेक्नोलॉजी का उपयोग और उसके द्वारा व्यवसाय को आगे बढ़ाने के प्रशिक्षण की व्यवस्था और एक नेटवर्क की स्थापना करने की तरफ एक ईमानदार कोशिश हो.
इसके लिए पब्लिक गवर्नमेंट कॉलोब्रेशन किया जाये और इस क्षेत्र कार्य करने वाले संगठनों को छोटे छोटे एरिया दिए जाये ताकि बदलाव के इस कार्य पर फोकस हो और उसके नाकामयाब होने की कोई गुंजाईश न रहे. टार्गेटेड ग्रोथ एंड डेवेलपमेंट का कार्य इस सरकार ने पहले भी कर के दिखाया है.
हां वो धार्मिक क्षेत्र को नए रूप में लाने का था लेकिन क्या इसी समर्पण से उत्तर प्रदेश की महिलाओं के भविष्य के प्रति कार्य किया जा सकता है? 255 सीटों के बहुमत और विश्वास के साथ ही महिलाओं ने ये सवाल भी योगी आदित्यनाथ के सामने रखा गया है.
अबकी बारी, प्रदेश की नारी
शिक्षा रोजगार की अधिकारी
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