राम नाम सत्य है. ये अंतिम यात्रा का उच्चारण ही नहीं, प्रारंभ से अनंतकाल के जीवन का शास्वत सत्य है. देश में रामभक्ति को गति देने वाले रामभक्त कल्याण सिंह की अंतिम यात्रा ये एहसास दिला रही है कि जो प्रारंभ है वो अंत है. और लक्ष्य पवित्र हो तो अंत भी अनंत काल का एक्टेंशन ले लेता है. अब राम मंदिर के साथ कल्याण सिंह का नाम अमर रहेगा. अयोध्या में राम जन्म भूमि का कल्याण करने वाले पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व राज्यपाल कल्याण सिंह आज पवित्र अग्नि के सिपुर्द हो गए लेकिन राजनीति में रामभक्ति को जन्म देने वाला रामभक्तों का ये जननायक जाते-जाते बहुत कुछ सिखा गया. वो हमेशां अयोध्या में राम मंदिर के इतिहास की भव्यता में जिंदा रहेंगे. उनके जीवन ने ये भी अभ्यास करा दिया कि जन्म, मृत्यु, आध्यात्म, जीवन के हर मोड़ और सृष्टि के कण-कण मे ही नहीं सियासत और हुकुमत मे भी राम का नाम होना जरुरी है. कांग्रेस, सपा, बसपा, आप इत्यादि ग़ैर भाजपाई दलों के नेता राहुल गांधी, प्रियंका गांधी वाड्रा, अखिलेश यादव, अरविंद केजरीवाल इत्यादि को मंदिर-मंदिर जाते देखना भी 'कल्याण राजनीति संस्कृति' का एक हिस्सा है.
यूपी की शिक्षा पद्धति में सुधार के लिए नकल अध्याधेश लाने वाले कल्याण सिंह भले ही नकल के ख़िलाफ थे किंतु उनके जीवन की सियासी खुली किताब नकल करने लायक़ है. सियासत के किसी भी विद्यार्थी के लिए कल्याण की सियासत के सबक़ कल्याणकारी साबित हो सकते हैं. उन्होंने साबित कर दिया था कि राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं. जिस यूपी के चुनावों में भाजपा के लिए अपना खाता खोलने मे पसीने आ जाते थे उस सूबे में कल्याण सिंह ने भाजपा के पहले मुख्यमंत्री बनने का रिकार्ड बनाया.
जिस राष्ट्रीय स्वयं...
राम नाम सत्य है. ये अंतिम यात्रा का उच्चारण ही नहीं, प्रारंभ से अनंतकाल के जीवन का शास्वत सत्य है. देश में रामभक्ति को गति देने वाले रामभक्त कल्याण सिंह की अंतिम यात्रा ये एहसास दिला रही है कि जो प्रारंभ है वो अंत है. और लक्ष्य पवित्र हो तो अंत भी अनंत काल का एक्टेंशन ले लेता है. अब राम मंदिर के साथ कल्याण सिंह का नाम अमर रहेगा. अयोध्या में राम जन्म भूमि का कल्याण करने वाले पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व राज्यपाल कल्याण सिंह आज पवित्र अग्नि के सिपुर्द हो गए लेकिन राजनीति में रामभक्ति को जन्म देने वाला रामभक्तों का ये जननायक जाते-जाते बहुत कुछ सिखा गया. वो हमेशां अयोध्या में राम मंदिर के इतिहास की भव्यता में जिंदा रहेंगे. उनके जीवन ने ये भी अभ्यास करा दिया कि जन्म, मृत्यु, आध्यात्म, जीवन के हर मोड़ और सृष्टि के कण-कण मे ही नहीं सियासत और हुकुमत मे भी राम का नाम होना जरुरी है. कांग्रेस, सपा, बसपा, आप इत्यादि ग़ैर भाजपाई दलों के नेता राहुल गांधी, प्रियंका गांधी वाड्रा, अखिलेश यादव, अरविंद केजरीवाल इत्यादि को मंदिर-मंदिर जाते देखना भी 'कल्याण राजनीति संस्कृति' का एक हिस्सा है.
यूपी की शिक्षा पद्धति में सुधार के लिए नकल अध्याधेश लाने वाले कल्याण सिंह भले ही नकल के ख़िलाफ थे किंतु उनके जीवन की सियासी खुली किताब नकल करने लायक़ है. सियासत के किसी भी विद्यार्थी के लिए कल्याण की सियासत के सबक़ कल्याणकारी साबित हो सकते हैं. उन्होंने साबित कर दिया था कि राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं. जिस यूपी के चुनावों में भाजपा के लिए अपना खाता खोलने मे पसीने आ जाते थे उस सूबे में कल्याण सिंह ने भाजपा के पहले मुख्यमंत्री बनने का रिकार्ड बनाया.
जिस राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और भाजपा के बारे में धारणा थी कि यहां पिछड़ी जाति के चेहरों को उच्च पदों का लाभ नहीं मिलता उस भाजपा में वो मुख्यमंत्री बने. पार्टी की प्रदेश कमान हाथ मे ली. राम जन्मभूमि आंदोलन के नायक बन कर उभरे. देश की आज़ादी के 5-6 दशकों से पराजय का मुंह देख रही अपनी भाजपा को उन्होंने बता दिया कि हिंन्दुत्व का मुद्दा और ओबीसी चेहरे का कॉम्बिनेशन सफलता का मूलमंत्र है.
देश की केंद्रीय राजनीति में भाजपा इस फार्मूले को अपनाकर सफलताओं की बुलंदियों को छू रही है. यूपी की सियासत में 6-6 महीनें के सीएम के आनोखे प्रयोग मे भी वो शामिल हुए. हिन्दुत्व के प्रचार-प्रसार में कल्याणकारी फैसलों में उन्होंने सन 1992 में ये भी ज़ाहिर किया था अपने मक़सद के आगे सत्ता क़ुरबान करने का हौसला किसी भी पद या किसी भी सत्ता से बड़ा होता है.
उनके राजनीतिक सफर में बग़ावत का कालखंड भी सियासी सिलेबस है. मोहब्बत और जंग की तरह राजनीति में सब जायज है और कुछ भी संभव है.पार्टी से उनकी नाराज़गी इस हद तक पंहुच गई थी कि वो ज़िद और क्रोध में अंधे होकर समाजवादी पार्टी से हाथ मिला बैठे थे. राम मंदिर आंदोलन के इस महानायक ने उन मुलायम सिंह से दोस्ती का हाथ मिला लिया था जिन्हें भाजपाई रामभक्तों का हथियारा कहते थे.
राम मंदिर आंदोलन के नायक के तौर पर अपनी सबसे बड़ी पहचान को धूमिल करते हुए कल्याण सिंह ने सपा के पाले में आने के बाद बाबरी ढांचा टूटने पर पछतावा भी जाहिर किया. उनकी जनक्रांति पार्टी और सपा की सरकार जब बनी तो उनके पुत्र राजवीर सिंह और ख़ासमख़ास कुसुम राय कैबिनेट मंत्री बनीं थीं. इसके बाद फिर बदलाव की सुबह हुई.
कल्याण सिंह ने फिर साबित किया कि राजनीति में सबकुछ संभव है. उन्होंने पुनः हिन्दुत्व की रक्षा का प्रहरी बनकर घर वापसी की. इस बीच नरेन्द्र मोदी युग की आहट सुनाई देने लगी थी. इस बार उन्होंने घर वापसी के बाद एक जनसभा में संकल्प लिया कि वो अब कहीं नहीं जाएंगे. जिएंगे भाजपा में और मरेंगे तो भाजपा में. अपने राजनीतिक अवतार की इस नई पारी में उन्होंने बहुत कोमल तेवरों के साथ दूरदर्शिता का परिचय दिया.
तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व संभालें और पीएम का चेहरा प्रोजेक्ट हों, इस बात पर बल देने वाले भाजपाइयों में वो अग्रणी थे. अयोध्या मे मंदिर निर्माण के लक्ष्यपूर्ति के लिए भी वो कहते रहे कि हिन्दुओं का ये सपना तब ही साकार हो सकेगा जब यूपी के साथ केंद्र में भी भाजपा की मजबूत सरकार होगी.
नरेंद्र मोदी को पीएम बनाने की रणनीति में कल्याण सिंह का ही मशवरा था कि लोकसभा चुनाव में यूपी को सफलता का केंद्र माना जाए, और इसके लिए मोदी वाराणसी से चुनाव लड़ें. सियासत दांव-पेंच मे माहिर हिन्दू ह्दय सम्राट कल्याण सिंह कोई आम नेता नहीं थे. त्रेतायुग में श्री राम के सबसे बड़े भक्त हनुमान थे तो वर्तमान युग में राम जन्म भूमि पर राम मंदिर निर्माण के प्रयोसों के हनुमान कल्याण थे.
श्री रामचंद्र ने लंका दहन/रावण से युद्ध से लेकर हर पवित्र अनुष्ठान में मानव, पशु-पक्षियों और हर वर्ग-समुदाय के लोगों को सम्मानित कर समानता के अधिकारों और सामाजिक न्याय का संदेश दिया था. रामभक्त कल्याण सिंह ने न सिर्फ पिछड़ों, दलितों, वंचितों के अधिकारों के लिए राजनीतिक संघर्ष किया बल्कि भाजपा और अन्य दलों को संदेश दे गए कि राजनीति में पिछड़ों को अगड़ी पंक्ति में रखना बेहद जरुरी है और लाभकारी भी.
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