उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव इस बार कई मायनों में दिलचस्प और ऐतिहासिक हो सकता है, अगर 10 मार्च की मतगणना एग्जिट पोल अनुमानों के आसपास ही रही तो. सातवें चरण की वोटिंग के ठीक बाद धड़ाधड़ चुनावी सर्वे आने लगे. इनमें भाजपा स्पष्ट बहुमत के साथ सत्ता में वापसी करते दिख रही है. 403 सीटों वाली यूपी विधानसभा के लिए इंडिया टुडे-एक्सिस माय इंडिया के सर्वें में 46% वोट शेयर के साथ भाजपा को 288-326 सीटें मिलती दिख रही हैं. वहीं सपा को 71-101, बसपा को 3-9 और कांग्रेस को 1-3 विधानसभा सीटें मिल सकती हैं.
सर्वे के अनुमानित आंकड़े इस लिहाज से ऐतिहासिक हैं कि जमीन पर महंगाई, बेरोजगारी किसान आंदोलन, कोरोना की दूसरी लहर में कुप्रबंधन, आवारा जानवरों की समस्या, हाथरस रेप कांड में कुप्रबंधन और लखीमपुरखीरी में केंद्रीय मंत्री पर लोगों को कुचलने के मुद्दे रहे. ये दूसरी बात है कि मुद्दे वोट डिलीवर नहीं कर पाए. जबकि भाजपा पर हमले के रूप में योगी सरकार पर ठाकुरवाद को संरक्षण देने के आरोप, कार्यकर्ताओं में असंतोष, ब्राह्मणों की व्यापक नाराजगी, स्थानीय विधायकों का विरोध, विपक्ष का ब्राह्मणों को पुचकारना और आतंरिक खींचतान के बावजूद भाजपा के पक्ष में व्यापक रूप से वोट डिलीवर हुए.
खासकर ब्राह्मणों के असंतोष का प्रचार इतना ज्यादा था कि भाजपा के बड़े नेताओं तक का आत्मविश्वास डगमगाता नजर आया. यह उनकी चुनावी रणनीतियों में भी दिखा. और यह भी कि अखिलेश ने ब्राह्मणों को लुभाने के लिए इस बार ऐतिहासिक रूप से टिकट बांटे और कई कद्दावर नेताओं को अपने पाले में भी जोड़ा.
अब ऐसी परिस्थितियों के बावजूद इंडिया टुडे-एक्सिस माय इंडिया के सर्वे में प्रचंड बहुमत के साथ भाजपा का सत्ता में वापस आना दिलचस्प है. और इसी सर्वे में पता...
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव इस बार कई मायनों में दिलचस्प और ऐतिहासिक हो सकता है, अगर 10 मार्च की मतगणना एग्जिट पोल अनुमानों के आसपास ही रही तो. सातवें चरण की वोटिंग के ठीक बाद धड़ाधड़ चुनावी सर्वे आने लगे. इनमें भाजपा स्पष्ट बहुमत के साथ सत्ता में वापसी करते दिख रही है. 403 सीटों वाली यूपी विधानसभा के लिए इंडिया टुडे-एक्सिस माय इंडिया के सर्वें में 46% वोट शेयर के साथ भाजपा को 288-326 सीटें मिलती दिख रही हैं. वहीं सपा को 71-101, बसपा को 3-9 और कांग्रेस को 1-3 विधानसभा सीटें मिल सकती हैं.
सर्वे के अनुमानित आंकड़े इस लिहाज से ऐतिहासिक हैं कि जमीन पर महंगाई, बेरोजगारी किसान आंदोलन, कोरोना की दूसरी लहर में कुप्रबंधन, आवारा जानवरों की समस्या, हाथरस रेप कांड में कुप्रबंधन और लखीमपुरखीरी में केंद्रीय मंत्री पर लोगों को कुचलने के मुद्दे रहे. ये दूसरी बात है कि मुद्दे वोट डिलीवर नहीं कर पाए. जबकि भाजपा पर हमले के रूप में योगी सरकार पर ठाकुरवाद को संरक्षण देने के आरोप, कार्यकर्ताओं में असंतोष, ब्राह्मणों की व्यापक नाराजगी, स्थानीय विधायकों का विरोध, विपक्ष का ब्राह्मणों को पुचकारना और आतंरिक खींचतान के बावजूद भाजपा के पक्ष में व्यापक रूप से वोट डिलीवर हुए.
खासकर ब्राह्मणों के असंतोष का प्रचार इतना ज्यादा था कि भाजपा के बड़े नेताओं तक का आत्मविश्वास डगमगाता नजर आया. यह उनकी चुनावी रणनीतियों में भी दिखा. और यह भी कि अखिलेश ने ब्राह्मणों को लुभाने के लिए इस बार ऐतिहासिक रूप से टिकट बांटे और कई कद्दावर नेताओं को अपने पाले में भी जोड़ा.
अब ऐसी परिस्थितियों के बावजूद इंडिया टुडे-एक्सिस माय इंडिया के सर्वे में प्रचंड बहुमत के साथ भाजपा का सत्ता में वापस आना दिलचस्प है. और इसी सर्वे में पता चलता है कि भाजपा ने अपने परंपरागत वोट (ब्राह्मण सहित सवर्ण) को मजबूती के साथ जोड़े रखने में कामयाबी तो पाई ही, गैरपरंपरागत वोट भी जकड़े रखा. ब्राह्मण विरोध की कल्पना करने वालों को हैरानी हो सकती है. सर्वे में 68 प्रतिशत पुरुष ब्राह्मण मतदाता और 72 प्रतिशत महिला ब्राह्मण मतदाताओं ने वोट किया. सवर्णों का ओवरऑल वोट 68 प्रतिशत पुरुष सवर्ण और 74 प्रतिशत महिला सवर्ण मतदाताओं ने भाजपा के पक्ष में मतदान किया.
जो ब्राह्मण या सवर्ण जातियों के वोट कटे भी वह इस बात का संकेत है कि विपक्षी दलों में सजातीय उम्मीदवार पाने की वजह से हुआ होगा. यानी विरोध तो नहीं था. अन्य जातियों में जाटव और यादव को छोड़कर भी भाजपा को वोट मिले जो 41 प्रतिशत से लेकर 71 प्रतिशत और उससे ज्यादा हैं. किसी और दल का व्यापक रूप से वोट ना पाना सबूत है कि अन्य जातियां भी भावुक रूप से भाजपा के साथ जुड़ी रहीं.
मजेदार है कि सपा को मुसलमानों और यादवों दिल खोल कर वोट दिया. जाटों के बारे में भी आंकलन किया जा रहा था कि किसान आंदोलन के बाद से यह जाति भाजपा से नाराज है. सर्वे दिखा रहा है कि जाट पुरुषों ने तो सपा के प्रति रुझान दिखाया है, लेकिन उन्हीं परिवारों की महिलाओं ने भाजपा के प्रति विश्वास कायम रखा है. इंडिया टुडे-एक्सिस माय इंडिया सर्वे में नीचे मुस्लिम, यादव और जाट मतों का प्रतिशत देख सकते हैं.
हिंदुत्व के बावजूद भाजपा से यारी करने को बेकरार दिखते हैं मुसलमान
एक बात साफ़ है कि यूपी में विधानसभा चुनाव की जमीन पर भाजपा के खिलाफ अखिलेश यादव के आक्रामक रुख के बावजूद कोई मुद्दा निर्णायक रूप नहीं ले पाया. भाजपा को पटखनी देने के लिए सपा प्रमुख के सारे व्यूह नाकाम हो गए. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की समाज कल्याण योजनाओं ने भाजपा के लिए अमोघअस्त्र के रूप में रूप में काम किया. एक प्रशासक के रूप में मुख्यमंत्री के रूप में योगी की क़ानून व्यवस्था पर लोगों ने भरोसा किया. अगर सर्वे के आंकड़े नतीजों में बदलते हैं तो बिहार के बाद उत्तर प्रदेश ऐसा हिंदी राज्य बनता दिख रहा है जहां- "अपराधतंत्र का हावी होना निश्चित एक समस्या थी और बेहतर क़ानून व्यवस्था के नाम पर लोग वोट देने निकले." इसके आगे बाकी मुद्दे बेमानी साबित हो गए.
व्यापक रूप से मुसलमानों का वोट इस बात का संकेत है कि समाज कल्याण योजनाओं और बेहतर क़ानून व्यवस्था में हिंदुत्व के आक्रामक मुद्दों के बावजूद मुसलमानों को भाजपा के साथ जाने में दिक्कत नहीं.
फिलहाल के सर्वे में सबसे निर्णायक महिलाएं नजर आ रही हैं. पुरुषों के मुकाबले हर वर्ग की महिलाओं ने भाजपा को ज्यादा वोट दिए. महिलाओं का वोट हासिल करने को लेकर भाजपा और सपा के बीच 16 प्रतिशत का अंतर है. जबकि ओवरऑल पुरुषों में यह अंतर सिर्फ 4 प्रतिशत का है जो अंतिम नतीजों में और पास या दूर भी हो सकता है. साफ़ है कि महिलाओं को फ्री के राशन, फ्री इलाज, गरीबों के कल्याण में मिल रहा पेंशन, शौचालय, पेयजल ने आकर्षित किया.
भाजपा पर लोगों का भरोसा दिख रहा
इंडिया टुडे-एक्सिस माय इंडिया के सर्वे मुताबिक़ भाजपा को 20 प्रतिशत मतदाताओं ने यूपी में सिर्फ इसलिए वोट दिया कि उन्हें फ्री राशन और तमाम सरकारी स्कीमों का फायदा मिला. 27 प्रतिशत ने सिर्फ इसलिए कि वो राज्य के विकास से खुश हैं. 8 प्रतिशत ने आंख मूंदकर मोदी जी के नाम और 12 प्रतिशत ने पार्टी से वफादारी की वजह से वोट किया.
सर्वे अनुमानों के आधार पर किए जाते हैं. ये आगे-पीछे हो सकते हैं. लेकिन सर्वे के अनुमान ही अंतिम आंकड़े बने तो मान लेना चाहिए कि यूपी में जनता का भरोसा मोदी-योगी के नेतृत्व और भाजपा सरकार की कल्याणकारी योजनाओं और सरकार के विकास कार्यक्रमों में है. सिर्फ धार्मिक वजहों यानी हिंदुत्व से मतदाता भाजपा के साथ नहीं बने हुए हैं. भाजपा पर लोगों का भरोसा तो दिख रहा है साथ ही यह भी दिख रहा कि अखिलेश के रूप में यूपी में विपक्ष का सबसे बड़ा चेहरा तमाम पैतरे और देशभर के दूसरे विपक्षी नेताओं का समर्थन पाने के बावजूद लोगों से संवाद नहीं कर पाया. अपनी बात नहीं मनवा पाया और उसके सारे औजार नाकाम साबित हुए.
विपक्ष के पास अभी भी भरोसेमंद नेता और भाजपा को हराने का कोई फ़ॉर्मूला यूपी में नहीं है.
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